Author: कविता बहार

  • बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

    बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

    बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

    beti

    मेरी बिटिया, मेरे घर की शान है।
    मेरे जीने का मकसद, मेरी जान है।

    पता ही न चला, कब बड़ी हो गई,
    मेरी बिटिया अपने पैरों पे खड़ी हो गई,
    मेरे लिए अब भी वो एक नन्हीं कली है,
    मेरे अंगना कि एक चिड़िया नादान है।

    या रब, हर बुरी नजर से उसे बचा कर रखना,
    उसकी जिंदगी को बहारों से सजा कर रखना,
    कोई नमीं भी छू न सके उसकी पलकों को,
    हर हसरत उसकी पूरी हो, यही अरमान है।

    मेरी परछाईं वो, मेरी पहचान है।
    मेरी बिटिया मेरा अभिमान है।

    सुशी सक्सेना

  • दुर्गा मैया पर कविता – सुशी सक्सेना

    दुर्गा मैया पर कविता – सुशी सक्सेना

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवी, शक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    दुर्गा मैया पर कविता

    आओ मईया मेरी, शेर पर होकर सवार।
    क्या हो गया है, देखो तेरे जगत का हाल।

    जाओ मईया जरा उस दिशा की ओर,
    नफ़रत के सिवा जहां, नहीं कुछ और,
    आपस में लड़ रही हैैं तेरी ये संतान,
    इतनी विनती करूं मैं जोड़ के दोनों हाथ,
    इनके दिलों में फिर से, जगा दे प्यार।

    मां रक्तबीज का खून अभी भी बाकी है,
    मानव के अंदर का हैवान अभी भी बाकी है,
    वध कर दो मईया उस दानव का, फिर
    देखो एक अच्छा इंसान अभी भी बाकी है,
    है यही अरज हमारी, जग को रखो खुशहाल।

    ग़रीबी और महामारी का फैला है प्रकोप,
    देखो प्रकृति का हम सब, सह रहे कोप
    माफ़ करो गलती हमारी, सब दुख करो दूर
    निर्धन को धन दे दो, बाछिन को दो पूत,
    झोली जो भी फैलाए, उसको देना दान।

    नमन तुम्हारे चरणों में, एक मेरी भी मुराद।
    सारे जग के साथ, मेरा भी करो बेड़ा पार।

    ( स्वरचित एवं मौलिक )
    सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

  • दुर्गा मैया पर गीत – आषीश कुमार

    दुर्गा मैया पर गीत – आषीश कुमार

    दुर्गा मैया पर गीत


    तेरे रूप अनेक हैं मैया
    हर रूप में हमको भाती हो
    नवरात्रि में नौ दुर्गा रुप में
    हम पर ममता लुटाती हो

    तीनो लोक हैं काँपे तुमसे
    जब शक्ति रूप धरती हो
    चण्‍ड-मुण्‍ड और ऐसे कितने
    महिषासुर मर्दन करती हो

    तुम बनती हो लक्ष्मी माँ
    सारा संसार चलाती हो
    धन की वर्षा करती जब
    कुटिया भी महल बनाती हो

    जब बनती हो वीणापाणि
    ज्ञान का दीप जलाती हो
    हम जैसे भूले-भटकों को
    मंजिल तक पहुँचाती हो

    बन कर तुम अन्नपूर्णा माँ
    भूखों का पेट भरती हो
    पशु पक्षी और मानव जन में
    कोई भेद ना करती हो

    ममता का प्रतिशोध जब लेती
    कालरात्रि बन जाती हो
    थर थर काँपे देवता दानव
    रौद्र रूप दिखलाती हो

    उद्धार करना हो जब भक्तों का
    स्वर्ग छोड़ चली आती हो
    पतित पावनी हे माँ गंगे
    बैकुण्‍ठ भी पहुँचाती हो

    कोई परीक्षा लेवे मैया
    ज्वाला बनकर दिखलाती हो
    बादशाह भी नतमस्तक हो गए
    सोने को भी झूठलाती हो

    है कोई ढूँढता मंदिर मंदिर
    पहाड़ों पर भी मिल जाती हो
    सच्चे मन से कोई ढूँढे
    अंतर्मन में मिल जाती हो

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • नन्हीं चिड़िया पर कविता – मीना रानी

    नन्हीं चिड़िया पर कविता – मीना रानी

    नन्हीं चिड़िया पर कविता

    beti

    माँ
    तेरे आंगन की
    मैं एक
    नन्हीं चिड़िया
    खेलती-चहचहाती
    आंगन में
    सुबह उठते ही
    कानों में
    रस भरती
    फुदकती फिरती
    मुझे देख
    भूल जाती तूं
    सारे गम जहान के
    काम दिन-रात
    मैं करती
    तेरी सेवा मैं करती
    बदले में कुछ न चाहती
    बड़ी हुई तो
    उड़ गई
    इस आंगन से
    माँ भूल न जाना
    इस नन्हीं चिड़िया को ।

    -मीना रानी, टोहाना
    हरियाणा

  • दीपावली : सुवा गीत/ छत्तीसगढ़ी रचना

    यहाँ पर दीपावली अवसर पर गए जाने वाला सुवा गीतों का संकलन किया गया है . छत्तीसगढ़ में सुआ गीत प्रमुख लोकप्रिय गीतों में से है।

    सुआ गीत का अर्थ है सुआ याने मिट्ठु के माध्यम से स्रियां सन्देश भेज रही हैं। सुआ ही है एक पक्षी जो रटी हुई चीज बोलता रहता है। इसीलिए सुआ को स्रियां अपने मन की बात बताती है इस विश्वास के साथ कि वह उनकी व्यथा को उनके प्रिय तक जरुर पहुंचायेगा। सुआ गीत इसीलिये वियोग गीत है।

    प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं।

    सुवा गीत 1

    तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
    कइसे के बन गे वो ह निरमोही
    रे सुअना
    कोन बैरी राखे बिलमाय
    चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
    रे सुअना
    मन के लहर लहराय
    देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
    रे सुअना
    बाती संग जाहंव लपटाय

    सुवा गीत 2

    तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    बिनती करंव मय चन्दा सुरुज के
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    चोंच तो दिखत हवय लाले ला कुदंरु
    रे सुअना
    आंखी मसूर कस दार…
    सास मोला मारय ननद गारी देवय
    रे सुअना
    मोर पिया गिये परदेस
    तरी नरी नना मोर नहा नारी ना ना
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव…….

    सुवा गीत 3

    तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
    तुलसी के बिरवा करै सुगबुग-सुगबुग
    रे सुअना
    नयना के दिया रे जलांव
    नयनन के नीर झरै जस औरवांती
    रे सुअना
    अंचरा म लेहव लुकाय
    कांसे पीतल के अदली रे बदली
    रे सुअना
    जोड़ी बदल नहि जाय

    सुवा गीत 4

    तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
    मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार
    रे सुअना तुलसी में दियना बार
    अग्धन महीना अगम भइये
    रे सुअना बादर रोवय ओस डार
    पूस सलाफा धुकत हवह
    रे सुअना किट-किट करय मोर दांत
    माध कोइलिया आमा रुख कुहके
    रे सुअना मारत मदन के मार
    फागुन फीका जोड़ी बिन लागय
    रे सुअना काला देवय रंग डार
    चइत जंवारा के जात जलायेंव
    रे सुअना सुरता में धनी के हमार
    बइसाख…….. आती में मंडवा गड़ियायेव
    रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय
    जेठ महीना में छुटय पछीना
    रे सुअना जइसे बोहय नदी धार
    लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका
    रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार
    सावन रिमझिम बरसय पानी
    रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय
    भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा
    रे सुआना कइसे के देईस बिसार
    कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय
    रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर
    कातिक महीना धरम के कहाइस
    रे सुअना आइस सुरुत्ती के तिहार
    अपन अपन बर सब झन पूछंय
    रे सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार

    दिवाली मनाबो

    सब के घर म उम्मीद के दिया जलाबो,
    युवा शक्ति के अपन लोहा मनवाबो,
    अपन शहर ल नावा दुल्हन कस सजाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    बेरोजगार ल रोजगार दिलवाबो,
    दू रोटी खाबो अउ सब ल खवाबो,
    रद्दा बिन गड्ढा, समतल बनाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    अमीर गरीब के फरक ल मेटा के,
    सब झन ल अपन अधिकार देवाबो,
    एक व्यक्ति-एक पेड़ के नारा ले,
    अपन शहर ल हरिहर बनाबो।

    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    © प्रकाश दास मानिकपुरी✒✍
    ? 8878598889 रायगढ़ (छ. ग.)