Author: कविता बहार

  • कल्पना शक्ति पर कविता

    कल्पना शक्ति बनाम मन की अभिव्यक्ति!

    भावावेश में आकर,
    कल्पनाओं के देश में जाकर,
    अक्सर बहक जाता हूं,
    खुद को पंछी सा समझ कर,
    उड़ता हूं, उन्मुक्त गगन में,
    खुशी से, चहक जाता हूं!
    यह मेरे, मन की, भड़ास है
    या कि छिछोरा पागलपन,
    क्या कुछ है, मुझे नहीं पता,
    लगता है जैसे कि, कच्चा कोयला हूं,
    जब तब, अंगार लगती है तो,
    जलता है दिल और दहक जाता हूं!
    सामाजिक पाखण्ड और वैभव का घमंड,
    हृदय को मेरे, यूं तार तार कर देता है,
    धनी गरीब का फासला, किसलिए भला?
    मेरे भविष्य के सपनों को, बेज़ार कर देता है!
    जाति बिरादरी की यह प्राचीन परम्परा,
    कब तक सहेगी यह, रत्न प्रसविनी धरा?
    निर्बल को बल मिले, सत्य को मिले अभिव्यक्ति
    दूर दिगंत में विचर रही , हमारी कल्पना शक्ति!


    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़ pin 496001

  • नव वर्ष का उत्सव !

    *नव वर्ष का उत्सव !*


    मैंने नव वर्ष का उत्सव
    आज ये नही मनाया है……….!
    किसे मनाऊँ,किसे नही
    कुछ समझ न आया है …..!!

    चाहे ये विक्रम संवत हो
    या जो ग्रेगोरियन रंगाया है
    चाहे अपना शक संवत हो
    या हिजरी ने जो नचाया है !..मैंने..

    गर दिन खराब चल रहा तो
    दिन को दीन क्यों बताया है,
    जब अपना जेब गरम है तो
    देखो फिर ये कैसी माया है !.मैंने..

    आज भी वही दिन व रात
    कुछ भी अंतर न पाया है,
    न तुम बदले न हम बदले
    अब काहे को भरमाया है !…मैंने..

    ग़रीब झोपड़ी बद से बदतर
    आज और कैसे उड़ आया है,
    वो तेरा गुरुर और ये मेरा अहं
    आज फिर से टकराया है !…मैंने..

    सत्य छोड़,इस झूठ प्रपंच को
    आज तूने फिर सिरजाया है ,
    आकण्ठ ….डूबे भ्रट्राचार को
    हटाने,कोई कदम उठाया है!..मैंने..

    ये निर्भया,भय से काप रहे
    कितनों को जिंदा जलाया है,
    राजनीति के चतुर खिलाड़ी
    राजधर्म कहाँ छोड़ आया है!.. मैंने..

    जल,जंगल,जमीन रक्षा हेतु
    क्या इस पर दीप जलाया है,
    अपने स्वार्थ के ख़ातिर तूने
    ‘हसदेव’ जैसों से टकराया है !

    मैंने नव वर्ष का उत्सव
    आज नही मनाया है ……….!
    किसे मनाऊँ,किसे नही ?
    कुछ समझ न आया है …….!!

    — *राजकुमार मसखरे*
    मु.भदेरा (पैलीमेटा/गंडई)
    जिला- के.सी.जी (छ.ग.)

  • चमचा गिरि नही करूंगा

    चमचा गिरि नही करूंगा


    जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा
    चमचा गिरी नही करूंगा।
    कवि हूं कविता लिखुंगा
    राजनेता से नहीं बिकुंगा।।

    चापलुसी चमचा गिरी तो
    किसी कवि का धर्म नहीं।
    अत्याचार मै नहीं सहूंगा।
    जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा ।

    राज नेता से नहीं बिकुंगा ।
    कवि हूं मैं, कविता लिखुंगा।।

    कवि धर्म कभी कहता नहीं
    अतिशयोक्ति काब्य लिखुंगा।
    जो सच्चाई है वहीं लिखुंगा।
    राजनेता से नहीं बिकुंगा।।

    चमचा गिरी नही करूंगा
    चाहे भले ही मर मिटुंगा।
    कवि हूं कविता लिखुंगा।
    राजनेता से नहीं बिकुंगा।।

    मैं भारत मां का पुत सपुत
    एक सनातनी कट्टर हिन्दू हूं।

    देश द्रोही सनातन विरोधी से
    जीवन पर्यन्त नहीं झुकुंगा।।
    चाहे प्राण भले जायें मेरा
    पर चमचा गिरि नही करूंगा।

    श्रीराम कृष्ण का अनुयायी है एक सनातनी कट्टर हिन्दू हूं।।
    वेद पुराण का पढ़ने वाला
    सत्य दया प्रेम क्षमा सिंद्धू हूं


    डॉ विजय कुमार कन्नौजे
    अमोदी आरंग ज़िला रायपुर
    छत्तीसगढ़

  • गंगा की पुकार

    गंगा की पुकार


    गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।
    रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।।

    कलयुग ऊपर दोष मढत हे,
    खुद करम में नहीं ठिकाना।
    कइसे करही का करही एमन
    ओ नरक बर करही रवाना।।

    स्वार्थ के डगर अब भारी होगे
    अनर्थ होत हे प्यार।
    प्यार अंदर अब नफरत हवय
    बढे हवय अत्याचार।।

    प्यार नाम अब धोखा हवे
    सुन लौ जी संत समाज।
    हृदय काकरो स्वच्छ नहीं
    जहर भरे हवय आज।।

    जहरीला हवय तन हा भाई
    मन हवय गंदा।
    कलयुगी पापी देख देख,
    रोवत हवे माई गंगा ।।

    लोगन कइथे सभ्य जमाना
    अनपढ़ रिहिस नादान।
    कवि विजय के कहना हवय
    अनपढ़ रिहिस भगवान।।

    नता गोता ला खुब मानय
    गांव बसेरू परिवार।
    सबके बेटी,सब कोई मानय
    हृदय बसाय सत्कार।।

    , डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर

  • तृषित है मन सबका!

    तृषित है मन सबका!
    ***
    शंकर ने, विष पान किया,
    तब नील कण्ठ कहलाए,
    व्याघ्र चर्म का, वसन पहनकर,
    मंद मंद मुसकाए!
    विष धर को, गलहार बनाया,
    नंदी पीठ बिरजाए,
    चंद्र शीश पर रखकर, शिव जी,
    चंद्रमौली कहलाए!
    पर्वत पर आशियां बनाया,
    डमरू हाथ बजाए,
    कंद मूल खाकर ही जिसने,
    ताण्डव नृत्य सिखाए!
    प्रतीकात्मक ही इसे मानकर,
    स्तुति करते आए,
    मन है तृषित, आज हम सबका,
    दुनिया में भरमाए!
    कहे कबीरा संतन जन को,
    न्याय वही दे पाए,
    जिसने कष्ट सहे जीवन में,
    महा काल बन जाए!
    ***
    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़