Category हिंदी कविता

विधवा पर कविता

विधवा पर कविता सफेद साड़ी में लिपटी विधवाआँसुओं के चादर में सिमटी विधवामनहूस कैसे हो सकती है भला अपने बच्चों को वह विधवारोज सबेरे जगाती हैउज्जवल भविष्य कीf करे कामनाप्रतिपल मेहनत करती हैसर्वप्रथम मुख देखे बच्चेसफलता की सीढ़ी चढ़ते हैंसमझ…

हमसफर पर कविता

हमसफर पर कविता सात फेरों से बंधे रिश्ते ही*हम सफर*नहीं होतेकई बार *हम* होते हुए भी*सफर* तय नहीं होते कई बार दूर रहकर भीदिल से दिल की डोर जुड़ जाती हैहर पल अपने पन काअहसास दे जाती हैकोई रूह के…

कुंडलियाँ – बेटी पर कविता

  बेटी पर कविता बेटी जा पिया के घर ,            गुड़िया नहीं रोना । सजा उस घरोंदे को,            साफ सुथरा रखना।। साफ सुथरा रखना,         पति सेवा तुम…

मिलकर पुकारें आओ -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

मिलकर पुकारें आओ ! फिर मिलकर पुकारें आओगांधी, टालस्टाय और नेल्सन मंडेलाया भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और सुभाष चन्द्र बोस कीदिवंगत आत्माओं कोताकि हमारी चीखें सुन उनकी आत्माएंहमारे बेज़ान जिस्म में समाकर जान फूंक देताकि गूंजे फिर कोई आवाजें जिस्म…

बेटी का दर्द पर कविता

बेटी का दर्द पर कविता अब तो लगने लगा है मुझको,कोख में ही माँ मुझको कुचलो।बाहर का संसार है सुंदर,ऐसा लगता है कोख के अंदर।पर जब पढ़ती हो तुम खबरें,हत्या, बलात्कार, जेल और झगड़े।नन्हा सा ये तन मेरा,भर उठता है…

हम तो उनके बयानों में रहे -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

हम तो उनके बयानों में रहे हम जब तक रहे बंद मकानों में रहे।वे कहते हैं हम उनके ज़बानों में रहे।1। उनके लिए बस बाज़ार है ये दुनियाँगिनती हमारी उनके सामानों में रहे।2। मुफ़लिसी हमारी तो गई नहीं मगरहमारी अमीरी…

समय का चक्र डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’ की कविता

समय का चक्र चिता की लकड़ियाँ,ठहाके लगा रही थीं,शक्तिशाली मानव को निःशब्द जला रही थीं! रोकती रही मैं मगर सताता रहाताकत पर अपनी इतराता रहा! भूल जाता बचपन में तुझे खिलौना बन रिझाती रही,थक जाता जब रो-रो करपलना बनकर झुलाती…

बेटियां सिर्फ होती पराई हैं…?- संतोष नेमा “संतोष”

बेटियां सिर्फ होती पराई हैं दिल्लीहैदराबादऔऱउन्नाव..!!कहाँ हैबेटियों कासुरक्षितठाँव..??शहरदर शहरदरिंदगीबदस्तूरजारी है.!!घटनाओं कीखिलतीरोज नईएक पारी है..!!नेता अबनित नएबयानफेंकते हैं..!ऐसे मौकों पर भीराजनीतिकरोटियांसेंकते हैं..!!क्या यहीपरिदृश्यहै आज का..?हिंदुस्तानीसभ्य समाज का..!!कहाँ गएकानून केलंबे हाथ..?हम क्योंहो गएइतने अनाथ..??क्या हो गएहम इतनेकमजोर..?अपराधियों परनहीं चलताअब कोई जोर..??कब तलकबेटियाँ…

न्याय प्रक्रिया में सुधार जरूरी है-संतोष नेमा “संतोष”

न्याय प्रक्रिया में सुधार हैदराबादकांड पर जोमानवाधिकारवाले उन्हेंकल तकअनाचारियों कोदानव कहते थे..!और बड़े हीबेफिक्री सेरहते थे.!!आज उनकाअंजाम देखउनकीमानवताजागी..!बोले बिनन्यायालय मेंअपराध सिद्ध हुएवो कहाँ हैं दागी..?यह सुन एकमहिलाबौखलाई..!बोली येदोगली नीतिकहाँ से आई..?हम भीन्यायालय केनिर्णय कोमानते हैं.!पर न्यायकब मिलेगाये भी जानते हैं..!!निर्भया…

दर्द के रूप कविता

दर्द के रूप कविता स्वयं के दर्द से रोना,अधिकतर शोक होता है।परायी-पीर परआँसू,बहे तो श्लोक होता है। निकलती आदि कवि की आह से प्रत्यक्ष भासित है,हृदय करुणार्द्र हो,तब अश्रु पर आलोक होता है। धरा की,धेनुओं की,साधुओं की प्रीति-पीड़ा से,हैं धरते…