Category: दिन विशेष कविता

  • हिन्दी की महत्ता पर कविता

    हिन्दी की महत्ता पर कविता

    हिन्दी की महत्ता पर कविता – मानव जाति अपने सृजन से ही स्वयं को अभिव्यक्त करने के तरह-तरह के माध्यम खोजती रही है। आपसी संकेतों के सहारे एक-दूसरे को समझने की ये कोशिशें अभिव्यक्ति के सर्वोच्च शिखर पर तब पहुँच गई जब भाषा का विकास हुआ। भाषा लोगों को आपस मे जोड़ने का सबसे सरल और जरूरी माध्यम है। आज यानी 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर, इस आलेख में हिंदी भाषा के महत्ता पर कविता दी गई है।

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 1

    हाथ जोड़ विनती करूँ,हिन्दी में हो बात।
    नही कभी भी छोड़ना,दिन हो चाहे रात।।

    हिन्दी हम सबकी हो भाषा।
    मान बढ़ेगा है अभिलाषा।

    भारत का नित गौरव जानें।
    हिन्दी भाषा अपना मानें।

    हिन्दी से ही जीवन अपना।
    आदत में हो लिखना पढ़ना।


    हम सब बनकर भाषी हिन्दी।
    माथ लगाये जननी  बिन्दी।

    आओ इसकी प्राण बचायें।
    हिन्दी खातिर उदिम चलायें।

    हिन्दी सबकी शान है,रखे हृदय में ध्यान।
    भाष विदेशी छोड़ दें,बढ़े हिन्द का मान।।

    तोषण कुमार चुरेन्द्र

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 2

    हिंदी महज भाषा नहीं
    हम सब की पहचान है
    जोड़े रखती मातृभूमि से
    यह भारत की शान है

    हिंदी में है मिठास भरी
    सहज सरल आसान है
    भावनाओं से ओतप्रोत है
    जो ना समझे नादान है

    छोटों को भी जी बोलती
    बड़ों को करती प्रणाम है
    सबको यह महत्व देती
    इसकी बिंदी का भी मान है

    दूसरों से प्रतिद्वंदिता नहीं
    सबका करती सम्मान है
    सब से घुल-मिल कर रहती
    यह गुणों की खान है

    अ से ज्ञ तक के सफर में
    बड़ा ही गूढ़ ज्ञान है
    अनपढ़ से ज्ञानी बनाती
    हिंदी सचमुच महान है

                 – आशीष कुमार
              मोहनिया कैमूर बिहार
           मो० नं०- 8789441191

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 3

    सोलह सितंबर हुई
    और खत्म हुआ
    हिंदी पखवाड़ा

    अब खत्म हुई
    अधोषित हिंदी में ही
    लिखने की
    या फिर बोलने की
    आचार संहिता

    आप स्वतंत्र हैं अब
    अंग्रेजी भाषा में
    या अर्ध अंग्रेजी भाषा में
    लिखने को

    मुझे पता है सहज नहीं
    बनावटी बातें बनाना
    मुखौटों के नीचे चहरों पर
    आ जाते हैं पसीने

    अगले सितंबर में
    फिर करना होगा
    थोड़ा-बहुत ढकोसला ।

    -विनोद सिल्ला

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 4

    हिन्दी की महत्ता पर कविता

    हिन्दी है हमारी भाषा हिंदुस्तान की आत्मा,
    हिन्दी से कोई बना विद्वान तो कोई महात्मा।
    हिन्दी में है जीवन हिन्दी में है विकास,
    चहूँ दिशाओं में फैलाए ज्ञान का प्रकाश।
    हिन्द के निवासी हम हिन्दी है हमारी जान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    बंगाल से महाराष्ट्र और कश्मीर से कन्याकुमारी,
    भिन्न भाषऐं हैं यहाँ लेकिन हिन्दी सबको प्यारी।
    हिन्दी में है माधुर्यता हिन्दी से है पहचान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    हिन्दी भाषा सब को बनाता है एक,
    चाहे हमारी जाति-धर्म हो अनेक।
    हिन्दी है प्राचीन आर्यों की भाषा,
    समझाती है भारत की परिभाषा।
    हिन्दी है हिन्दुस्तान की मातृभाषा,
    शांति-एकता है हिंदी की अभिलाषा।
    मैं सहृदय करूँ नित्य हिन्दी का गुणगान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    प्रेम – सौहार्द और बढ़ाए आपसी – भाईचारा,
    विश्व की सभी भाषाओं में हिंदी हैं मुझे प्यारा।
    हिंदुस्तान की शान और आत्म सम्मान है हिंदी,
    जैसे हिन्द – नारी की पहचान है माथे की बिंदी।
    हिन्दी की महत्ता को माना है सारा जहान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    हिन्दी सभी बोले चाहे गोरा हो या काला,
    हिंद की सरज़मीं में हिन्दी सब को पाला।
    कहता है अकिल सदैव हिन्दी का करो सम्मान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है हिंदी भाषा को पहचान।
    मैं लेखनी से करूं नित हिन्दी का बखान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    —- अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 5

    हिन्दी भारत देश में, भाषा मातृ समान।
    सुन्दर भाषा लिपि सुघड़, देव नागरी मान।।


    आदि मात संस्कृत शुभे, हिंदी सेतु समान।
    अंग्रेजी सौतन बनी , अंतरमन पहचान।।


    हिन्दी की बेटी बनी, प्रादेशिक अरमान।
    बेटी की बेटी बहुत, जान सके तो जान।।


    हिन्दी में बिन्दी सजे, बात अमोलक तोल।
    सज नारी के भाल से,अगणित बढ़ता मोल।।


    मातृभाष सनमान से, बढ़े देश सम्मान।
    प्रादेशिक भाषा भला, राष्ट्र ऐक्य अरमान।।


    हिन्दी की सौतन भले, दे सकती है कार।
    पर हिन्दी से ही निभे, देश धर्म संस्कार।।


    हिन्दी की बेटी भली, प्रादेशिक पहचान।
    बेटी की बेटी कहीं, सुविधा या अरमान।।


    देश एकता के लिए, हिन्दी का हो मान।
    हिन्दी में सब काम हो, नूतन हिन्द विधान।।

    कोर्ट कचहरी में करें, हिन्दी काज विकास।
    हिन्दी में कानून हो , प्रसरे हिन्द प्रकाश।।


    विभिन्नता में एकता, भाषा हो प्रतिमान।
    राज्य प्रांत चाहो करो, हिन्दी हिन्द गुमान।।


    उर्दू,अरबी सम बहिन, हिन्दी धर्म प्रधान।
    गंगा जमनी रीतियाँ, भारत भाग्य विधान।।


    अंग्रेजी सौतन बनी, प्रतिदिन बढ़ता प्यार।
    निज भाषा सद्भाव दे, पर भाषा तकरार।।


    हिन्दी का सुविकास हो,जनप्रिय भाषा मान।
    वेद ग्रंथ संस्कृत सभी, अनुदित कर विज्ञान।।


    हिन्दी संस्कृत मेल से, आम जनो के प्यार।
    मातृभाष सम्मान कर, हत आंगल व्यापार।।


    सबसे है अरदास यह, हित हिन्दी जयहिन्द।
    शर्मा बाबू लाल के, हिन्दी हृदय अलिन्द।।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    V/P…सिकदरा,303326. जिला…दौसा ( राज.)

  • साक्षरता अभियान – बाबूराम सिंह

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    विश्व साक्षरता दिवस की हार्दिक मंगल शुभ कामनायें



    साक्षरता अभियान
    —————————–
    साक्षरता अभियान चलायें,घर-घर अलख जगायें।
    जन-जन साक्षर भव्य बनायें,ज्ञान ज्योति फैलायें।

    बिना विद्या नर बैल समाना ,कहता है जग सारा।
    मिटे नहीं विद्या बिन कभीभी,मानव मनअँधियारा।
    तम अंधकार तिमिर सभी मिल,आओ दूर भगायें।
    साक्षरता अभियान चलायें ,घर-घर अलख जगायें।

    विद्या धन ऐसा है जगत में,बाँट न सकता कोई।
    बिन विद्याअग-जग में किसीका,भला कभी न होई।
    जन मानस आलोकित होवें ,ऐसा यत्न रचायें।
    साक्षरता अभियान चलायें,घर-घर अलख जगायें।

    भेद कभी बेटा – बेटी में , करे नहीं जग सारा।
    सभी हो साक्षर पढ़े -लिखे, हो यह सबका नारा।
    बढ़े प्रगति के पथ पर आगे ,सबको यह बतलायें।
    साक्षरता अभियान चलायें,घर-घर अलख जगाये।

    मानव प्रगति का इतिहास है, सहयोग आपस का।
    बिना एकता दृढ़ हो जाना,नहीं किसी के बस का।
    एकमत हो सब समझे बुझे,इसको सफल बनायें।
    साक्षरता अभियान चलायें ,घर-घर अलख जगाये।

    साक्षर जब जन-जन होगा तब ,फैलेगा उजियारा।
    जागृत होगा भव्य ज्ञान से ,भारत वर्ष हमारा।
    जन मानस मध्य ज्ञानालोक, सदा सरस फैलायें।
    साक्षरता अभियान चलायें ,घर-घर अलख जगाये।

    ————————————————————
    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
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  • शिक्षक की अभिलाषा – अखिल खान

    5 अक्टूबर 1994 को यूनेस्को ने घोषणा की थी कि हमारे जीवन में शिक्षकों के योगदान का जश्न मनाने और सम्मान करने के लिए इस दिन को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    शिक्षक की अभिलाषा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    शिक्षक की अभिलाषा

    मानव के लिए शिक्षा,एक अनमोल वरदान है,
    जो हो गया शिक्षित,उसका अलग पहचान है।
    अशिक्षा से मनुष्य,निराश और परेशान है,
    जो जलाए शिक्षा का दीप,वही ज्ञानवान है।
    गुरू की करो सेवा,गुरु है ज्ञान की परिभाषा,
    सम्मान की जिज्ञासा,शिक्षक की अभिलाषा।

    कर मेहनत विद्यार्थिगण,रचो तुम इतिहास,
    खुद को करो साबित न बनो तुम ‘उपहास’।
    कहता है ‘अकिल’,शिक्षक बीन सब है सुना,
    गुरू का बखान करती है,प्राचीन गंगा-यमुना।
    गुरु का ज्ञान है अनमोल,यह दूर करे हताशा,
    सम्मान की जिज्ञासा,शिक्षक की अभिलाषा।

    शिक्षक का करो सम्मान,रखिए उनका ध्यान,
    शिक्षक है पथ-प्रदर्शक,शिक्षक है ज्ञान-संज्ञान।
    शिक्षक एक विचार है,शिक्षा का न हो अपमान, 

    शिक्षा से हो उद्धार,दूर हो अशिक्षा का तूफान।
    हो सर्वत्र सम्मान,शिक्षक का यही है पिपासा,
    सम्मान की जिज्ञासा,शिक्षक की अभिलाषा।

    शिष्य करे नाम रोशन,हो असहायों का पोषण,
    अज्ञानता की बाग में,नित करे ज्ञान का रोपण।
    डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी,का हो नित-यश,
    5 सितम्बर को मनाईए,सभी ‘शिक्षक दिवस’।
    नित करो प्रयास,न रखो मन में कोई निराशा,
    सम्मान की जिज्ञासा,शिक्षक की अभिलाषा।

    ज्ञान नित बांटा जाए,इस अलौकिक संसार में,
    ज्ञान की हो वृद्धि,धर्म-समाज और व्यवहार में।
    ज्ञान का दीपक से रोशन हो,हर गली हर क्षेत्र,
    अज्ञानता की घटा दूर हो,खुले ज्ञान का नेत्र।
    संघर्ष में घबराओ नहीं,दिल को दो दिलाशा,
    सम्मान की जिज्ञासा,शिक्षक की अभिलाषा।

    संसार बनाने वाले ने,शिक्षक भी यहाँ बनाया है,
    गुरु को शिक्षा और समाज का रक्षक बनाया है।
    गुरू कहे शिष्य को,संघर्ष से बनो तुम महान,
    करोगे तुम ऊंचा,अपने और शिक्षक का नाम।
    एक दिन मिलेगी सफलता,रखो मन में आशा,
    सम्मान की जिज्ञासा,शिक्षक की अभिलाषा।

    अकिल खान.सदस्य,प्रचारक,

    ‘कविता बहार’ जिला – रायगढ़ (छ.ग.)

  • शाला और शिक्षक को समर्पित कविता

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    “शिक्षक दिवस मनाने का यही उद्देश्य है कि कृतज्ञ राष्ट्र अपने शिक्षक राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के प्रति अपनी असीम श्रद्धा अर्पित कर सके और इसी के साथ अपने समर्थ शिक्षक कुल के प्रति समाज अपना स्नेहिल सम्मान और छात्र कुल अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सके।

    शिक्षक दिवस
    शिक्षक दिवस

    शाला और शिक्षक को समर्पित कविता

    वही मेरी जन्मभूमि है .
    वही मेरी जन्मभूमि है .

    जहाँ मैंने बातों को समझा
    जहाँ से खुला आनंद द्वार ।
    भटक जाता राहों में शायद
    गुरु आपने ही लगाई पार ।
    आशीष सदा आपकी, नहीं कोई कमी है।
    वही मेरी जन्मभूमि है ।
    वही मेरी जन्मभूमि है ।

    हमने जो पूछा, वो सब बताया।
    सच्चे राहों में जीना, ये सिखाया ।
    आज हम निर्भर हैं, खुद पर
    वो आपकी रहमों करम पर ।
    कोई इसके सिवा जो सोचे, गलतफहमी है।
    वही मेरी जन्मभूमि है ।
    वही मेरी जन्मभूमि है ।

  • हाइकु कैसे लिखें (How to write haiku)

    हाइकु कैसे लिखें

    hindi haiku || हिंदी हाइकु
    hindi haiku || हिंदी हाइकु

    “हाइकु” एक ऐसी सम्पूर्ण लघु कविता है जो पाठक के मर्म या मस्तिष्क को तीक्ष्णता से स्पर्श करते हुए झकझोरने की सामर्थ्य रखता है । हिन्दी काव्य क्षेत्र में यह विधा अब कोई अपरिचित विधा नहीं है । विश्व की सबसे छोटी और चर्चित विधा “हाइकु” 05,07,05 वर्ण क्रम की त्रिपदी लघु कविता है, जिसमें बिम्ब और प्रतीक चयन ताजे होते हैं । एक विशिष्ट भाव के आश्रय में जुड़ी हुई इसकी तीनों पंक्तियाँ स्वतंत्र होती हैं ।


    मेरा एक हाइकु उदाहरण स्वरूप देखें –
                 माँ का आँचल  (05 वर्ण)
               छँट जाते दुःख के  (07 वर्ण)
                   घने बादल । (05 वर्ण)


           हाइकु में 05,07,05 वर्णक्रम केवल उसका कलेवर, बाह्य आवरण है परंतु थोड़े में बहुत सा कह जाना और बहुत सा अनकहा छोड़ जाना हाइकु का मर्म है ।


         हाइकु के सबसे प्रसिद्ध जापानी कवि बाशो ने स्वयं कहा है कि – जिसने चार – पाँच हाइकु लिख लिए वह हाइकु कवि है, जिसने दस श्रेष्ठ हाइकु रच लिए वह महाकवि है । यहाँ तो गुणात्मकता की बात है, परंतु हमारी हिन्दी के हाइकुकारों में संख्यात्मकता का दम्भ है, हम कुछ भी लिख कर अपने आपको बाशो के बाप समझने की भूल कर बैठते हैं । मेरे विचार से एक उत्कृष्ट हाइकु की रचना कर लेना हजारों रद्दी हाइकु लिखने की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेयष्कर है ।


    हाइकु को एक काव्य संस्कार के रूप में स्वीकार कर 05,07,05 अक्षरीय त्रिपदी, सारगर्भित, गुणात्मक, गरिमायुक्त, विराट सत्य की सांकेतिक अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले हाइकुओं की रचना करनी चाहिए, जिसमें बिम्ब स्पष्ट हो एवं ध्वन्यात्मकता, अनुभूत्यात्मकता, लयात्मकता आदि काव्य गुणों के साथ – साथ संप्रेषणीयता भी आवश्यक रूप में विद्यमान हो । वास्तविकता यही है कि काल सापेक्ष में पाठक के मर्म को स्पर्श करने में जो हाइकु समर्थ होते हैं, वही कालजयी हाइकु कहलाते हैं ।

    धान की बाली
    महकती कुटिया
    खुश कृषक ।

        ~ ● ~

    फूली सरसों 
    पियराने लगे हैं 
    मन के खेत ।

       ~ ● ~

    पूष की रात
    हल्कू जाएगा खेत
    मन उदास ।

       ~ ● ~

    भोर का रुप
    मुस्कान बाँट रही
    कोमल धूप ।

       ~ ● ~

    ठिठुरी धरा
    आकाश में कोहरा
    छाया गहरा ।

    माँ पर हाइकु

    01.
    माँ का आँचल
    छँट जाते दुःख के
    घने बादल ।
    —0—
    02.
    खुशियाँ लाती
    तुलसी चौंरे में माँ
    बाती जलाती ।
    —0—
    03.
    छोटी दुनिया
    पर माँ का आँचल
    कभी न छोटा ।
    —0—
    04.
    दुआएँ माँ की
    ये अनाथों को कहाँ ?
    मिले सौभाग्य !
    —0—
    05.
    लिखा माँ नाम
    कलम बोल उठी
    है चारों धाम ।
    —0—
    □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    गणतंत्र दिवस विशेष हाइकु

             हा.. गणतंत्र
          रोता रहा है गण
             हँसता तंत्र ।
              


             सैनिक धन्य
          देश खातिर जीने
             करते प्रण ।
              


               राम रहीम
          भाइयों को लड़ाते
             बने जालिम ।
           


              मनुष्य एक
          रक्त सबका लाल
           क्यों फिर भेद ?
          


              मनु तू जान
           सबके लिए होता
             सम विधान ।


             देश की रक्षा
          माँ भारती सम्मान
            यही हो आन ।


              मातृ सेवार्थ
         प्राणों का न्यौछावर
              गर्व तू मान ।

    ✍प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    शीत के हाइकु

    जल का स्रोत
    चट्टानों पर भारी 
    निकला फोड़ ।

         ●●●

    सांध्य गगन
    सूरज को छिपाने 
    करे जतन ।

         ●●●

    शीत का रूप
    सूरज बाँच रहा
    स्नेहिल धूप ।

         ●●●

    शीत का घात
    हिलते नहीं पेड़
    ठिठुरें पात ।

         ●●●

    पहाड़ी गाँव 
    छिप गया सूरज
    शीत का डर ।

         ●●●

    प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    पुस्तक विषय पर हाइकु

    01}
    ज्ञान के पाठ
    पुस्तकें सहायिका
    खुलें कपाट ।

    02}
    अच्छी किताब
    दूर हुआ अंधेरा 
    मिला प्रकाश ।

    03}
    पुस्तक पास
    ज्ञानी हमसफ़र 
    मिलता साथ ।

    04}  
    पुस्तक पन्ने
    सन्निहित प्रकाश 
    उजली राहें ।

    05}
    किताबें कैद
    दीमकों की मौज
    भरते पेट ।

    06}
    सिन्धु किताब
    आओ गोता लगाएँ
    ज्ञान अथाह ।

    □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    {01}
    ईश्वर खास
    जर्रे – जर्रे में मिला
    उसका वास ।

         ●●●

    {02}
    कर्म के पास
    कागज न किताब
    बस हिसाब ।

         ●●●

    {03}
    पिया की याद
    बेरहम सावन
    बरसी आग ।

         ●●●

    {04}
    उधड़ा तन
    करता रहा रफ़ू
    मन जतन ।

         ●●●

    {05}
    माटी को चीर
    अंकुरित हो उठा
    नन्हा सा बीज ।

         ●●●

    {06}
    विरही मेघ
    कजराया सावन
    बरस पड़ा ।

         ●●●

    {07}
    विरही मेघ
    प्रेयषी आई याद 
    बिफर पड़ा ।

         ●●●

    {08}
    चलना नित
    घड़ी की टिक टिक
    देती है सीख ।

         ●●●

    {09}
    तरु की छाँह
    पथिक को मिलता
    शीतल ठाँव ।

         ●●●

    {10}
    रहा जुनून
    प्रभु से मिल कर
    मिला शुकून ।

       ●●●

    {11}
    चाँद चमका
    रजनी का चेहरा
    निखर उठा ।

         ●●●

    {12}
    कुसुम खिला
    माटी और नभ का
    प्रणय मिला ।

    [13]
    आहत मन
    नोंचे यहाँ बागबाँ
    सुमन तन ।

    [14]
    चली कुल्हाड़ी
    रोते देख पेड़ों को 
    रुठे हैं मेघ ।

    [15]
    बोला न दीप
    परिचय उसका
    प्रकाश गीत ।

    [16]
    बुलाते पेड़ 
    सूख गई पत्तियाँ 
    बरसो मेघ ।

    [17]
    आहत मन
    काटे लकड़हारा 
    पेड़ का तन ।

    प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
    साहित्य प्रसार केन्द्र साँकरा
    जिला – रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
    पिन – 496554