Category: हिंदी कविता

  • भारत मां के सपूत

    भारत मां के सपूत                  

    (1)
    तिलक लगाकर चल, भाल सजाकर चल।
    माटी मेरे देश की, कफ़न लगाकर चल।
    देश में वीर योद्धा जन्मे, मच गई खलबल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    (2)
    भगत ,चंद्रशेखर, सुखदेव थे क्रांतिकारी दल।
    अंग्रेजो के नाक में ,दम कर रखा था हरपल।
    देश आजादी पाने के लिए,बना लिए दलबल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    (3)
    नारी जगत की शान ने,मचाया कोलाहल।
    ऐसी वीरांगना लक्ष्मीबाई को याद करेंगे हरपल।
    मातृभूमि  के लिए,जब कुर्बानी दी थी ओ पल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    (4)
    लाल बाल पाल क्रांतिकारी, ये थे गरम दल।
    साइमन कमीशन वापस जाओ,किया हल्ला बोल।
    वीर लाला लाजपत राय ने गवांई प्राण ओ पल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
    बसना, महासमुंद , (छ. ग.)
    ‌8120587822

  • वन्दे मातरम् गाऊँगा

    वन्दे मातरम् गाऊँगा

    वन्दे मातरम् गाऊँगा

    mahatma gandhi

    बापू जी के चरखे को,
    मैं भी खूब घुमाऊँगा।
    सत्य-अहिंसा की बातें,
    सबको रोज सुनाऊँगा।।

    चाचा जी के लाल ग़ुलाब,
    बाग़-बगीचे में लगाउँगा।
    शीश झुकाकर चरणों में,
    लाल ग़ुलाब चढ़ाऊँगा।।

    पर्वत-घाटी ऊँचा चढ़कर,
    तिरंगा ध्वज फहराउंगा।
    चाहे दुनिया जो भी करले,
        वन्देमातरम् गाऊँगा।।

        ||स्वरचित||
    उमेश श्रीवास”सरल”
    मु.पो.+थाना-अमलीपदर
    विकासखण्ड-मैनपुर
    जिला-गरियाबंद,छत्तीसगढ़

  • बोझ पर कविता

    बोझ पर कविता

    कभी कभी
    कलम भी बोझ लगने लगती है
    जब शब्द नहीं देते साथ
    अंतरभावों का
    उमड़ती पीड़ायें दफन हो जाती
    भीतर कहीं
    उबलता है कुछ
    धधकता है
    ज्वालामुखी सी
    विचारों के बवंडर
    भूकंप सा कंपाते है
    मन मस्तिष्क को
    और सारे तत्वों के बावजूद
    मन अकेला हो जाता है
    उस माँ की तरह
    जो नौ महीने सहर्ष
    भार ढोती ।
    उस पिता की तरह
    जो कंधे और झुकती कमर तक
    जिम्मेदारी उठाता
    पर
    वक्त के दौर में उपेक्षित हो
    अपनी ही संतति को बोझ लगते  हैं ।
    तब शब्द कफन ओढ़ लेते है
    और टूट जाती है नोक कलम की
    संवेदनाओं के सूखते
    स्याही
    कलम को बोझिल कर देते हैं ।


    सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़

  • जीवनामृत मेरे श्याम

    जीवनामृत  मेरे   श्याम :   —

    अमृत  कहाँ  ले  पाबे रे  मंथन  करे बगैर ।
    सद्ज्ञान नई मिले तोला साधन करे बगैर ।।

    मन  मंदराचल  बना ले  हिरदे  समुंद  कर ,
    मन  नई बँधावे  देख ले  बंधन करे बगैर ।।

    गुन  दोष  के सुतरी  ल बने  बांध  खिंच के ,
    मथ  रात दिन आठो पहर खंडन करे बगैर ।।

    आही घड़ी लगन  अमरित हो  जाही परगट ,
    झन पीबे  ननकी  सद्गुरु  बंदन करे बगैर ।।                  

    ~  रामनाथ साहू  ”  ननकी  “
                                 मुरलीडीह

  • हिन्दी की बिंदी में शान

    हिन्दी की बिंदी में शान

    हिन्दी भाषा की बिंदी  में शान।
    तिरंगे के गौरव गाथा की आन।।
    राजभाषा का ये पाती सम्मान।
    राष्ट्रभाषा से मेरा भारत महान ।।


    संस्कृत के मस्तक पर चमके।
    सिंधी,पंजाबी चुनरी में दमके।।
    बांग्ला,कोंकणी संग में थिरके।
    राजस्थानी चूड़ियों में खनके ।।


    लिपि देवनागरी रखती ध्यान।
    स्वर व्यंजन में है इसकी शान।।
    मात्राओं का हमें कराती ज्ञान।
    शब्द भंडार है अनमोल खान।।

    हिन्दी से राष्ट्र का नव निर्माण।
    जन- जन का करती कल्याण।।
    दुनिया में भारत की  पहचान।
    हिंदी से होगा जग का उत्थान।।


    कबीर, मीरा, तुलसी, रसखान।
    सबने गाया हिन्दी का गुणगान।।
    ‘रिखब’ करता शारदे का ध्यान ।
    पाता निशदिन अनुपम वरदान ।।


    ©रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
    ‘जयपुर