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  • बापू जी का ज्ञान

    बापू जी का ज्ञान

    बापू जी का ज्ञान

    mahatma gandhi

    देश के लिए जिन्होंने दिए हैं,अमूल्य योगदान,
    इसलिए हिन्दुस्तान को मिला है,अलग पहचान।
    भारतीयों को सत्य-अहिंसा,का पाठ-पढ़ाए,
    हिन्दुस्तान का संपूर्ण,संसार में मान बढ़ाए।
    हिंद के लिए,अपना सर्वस्व कर दिए कुर्बान,
    हिन्दुस्तान की पहचान,गांधी जी का ज्ञान।

    महात्मागांधी जी दया,अहिंसा,प्रेम के थे समंदर,
    2 अक्टूबर1869 को जन्मे,स्थान था पोरबंदर।
    परिवार में सदाचार-व्यवहार का डोर बांधी,
    बापू जी के पिताजी थे,श्री करमचंद गांधी।
    बचपन में धार्मिक शिक्षा पर,दिए ध्यान,
    हिन्दुस्तान की पहचान,बापू जी का ज्ञान।

    विलायत में वकालत का,किए थे पढ़ाई,
    अफ्रीका में गोरों के विरूद्ध,लडे थे लड़ाई।
    अंग्रेजों का मनसूबा हो गया था,असफल,
    अफ्रीकी लोगों का क्रांति,हुआ था सफल।
    दक्षिण अफ्रीका में गांधी,जी हो गए महान,
    हिन्दुस्तान की पहचान,गांधी जी का ज्ञान।

    हिन्दुस्तान में अंग्रेजों को,नानी याद दिलाई,
    गांधीजी,नेहरू-भगत सिंह,ने लड़ी लडाई।
    आजादी के लिए,असंख्य लोगों में थी आश,
    गांँधी जी भी गए थे, देश के लिए कारावास।
    स्वतंत्रता के खातिर,कई लोग हुए कुर्बान,
    हिन्दुस्तान की पहचान,बापू जी का ज्ञान।

    हरिश्चंद्र नाटक को,ह्रदय में किए थे आत्मसात,
    संघर्ष के लिए लोगों का,बापू जी ने दिया साथ।
    गोरों,भारत छोड़ो कहती थी हिंद की आबादी,
    15अगस्त1947को,भारत को मिली आजादी।
    30 जुलाई 1948 को,गोडसे ने गोली मारी,
    शहीद हो गए बापू,गमगीन हो गई जग सारी।
    हर शहर गांव-गली,शोक की लहर चली,
    महात्मा गांधी जी को,विनम्र श्रद्धांजलि।
    देशवासियों,किजीए बापू जी का गुणगान,
    हिन्दुस्तान की पहचान,बापू जी का ज्ञान।

    ‘राष्ट्रपिता’ जी के ज्ञान से भारत हुआ आजाद,
    कहता है ‘अकिल’,जरा उनको भी कर लो याद।
    स्वतंत्रता सेनानियों का,यही है पहचान,
    करके संघर्ष बढ़ाया,हिन्दूस्तान का मान।
    बापू जी के कार्य से,कोई नहीं है अनजान,
    हिन्दुस्तान की पहचान,बापू जी का ज्ञान।

    अकिल खान.
    सदस्य, प्रचारक “कविता बहार” जिला-रायगढ़ (छ.ग.)

  • विजय पर्व दशहरा

    विजय पर्व दशहरा

    विजय पर्व दशहरा : किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

    doha sangrah

    राम समन्दर सेतु हित, कपि गण नल हनुमंत।
    सतत किए श्रम साधना, कृपा दृष्टि सियकंत।।

    किए सिन्धु तट स्थापना, पूजे सहित विधान।
    रामेश्वर शुभ रूप शिव, जगत रहा पहचान।।

    सैन्य चढ़ी गढ़ लंक पर, दल ले भालु कपीश।
    मरे दनुज बहु वीर भट, सजग राम जगदीश।।

    कुम्भकर्ण घननाद से, मरे दनुज दल वीर।
    राक्षसकुल का वह पतन, हरे धरा की पीर।।

    सम्मति सोच विचार के, कर रावण से युद्ध।
    मारे लंक कलंक को, करने वसुधा शुद्ध।।

    शर्मा बाबू लाल भी, करता लिख कर गर्व।
    मने सनातन काल से, विजयादशमी पर्व।।

    ‘विज्ञ’ करे शुभकामना, हो जग का कल्याण।
    रावण जैसे भाव तज, मिले मनुज को त्राण।।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    निवासी – सिकन्दरा, दौसा
    राजस्थान ३०३३२६

  • अब तो मन का रावण मारें

    किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

    अब तो मन का रावण मारें

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बहुत जलाए पुतले मिलकर,
    अब तो मन का रावण मारे।

    जन्म लिये तब लगे राम से,
    खेले कृष्ण कन्हैया लगते।
    जल्दी ही वे लाड़ गये सब,
    विद्यालय में पढ़ने भगते।
    मिल के पढ़ते पाठ विहँसते,
    खेले भी हम साँझ सकारे।
    मन का मैं अब लगा सताने,
    अब तो मन का रावण मारें।

    होते युवा विपुल भ्रम पाले,
    खोया समय सनेह खोजते।
    रोजी रोटी और गृहस्थी,
    कर्तव्यों के सुफल सोचते।
    अपना और पराया समझे,
    सहते करते मन तकरारें।
    बढ़ते मन के कलुष ईर्ष्या,
    अब तो मन के रावण मारें।

    हारे विवश जवानी जी कर,
    नील कंठ खुद ही बन बैठे।
    जरासंधि फिर देख बुढ़ापा,
    जाने समझे फिर भी ऐंठे।
    दसचिंता दसदिशि दसबाधा,
    दस कंधे मानेे मन हारे,
    बचे नही दस दंत मुखों में,
    अब तो मन के रावण मारें।

    जाने कितनी गई पीढ़ियाँ,
    सुने राम रावण की बातें।
    सीता का भी हरण हो रहा,
    रावण से मन वे सब घातें।
    अब तो मन के राम जगालें,
    अंतर मन के कपट संहारें।
    कब तक पुतले दहन करेंगे,
    अब तो मन के रावण मारें।

    रावण अंश वंश कब बीते,
    रोज नवीन सिकंदर आते।
    मन में रावण सब के जिंदे,
    मानो राम, आज पछताते।
    लगता इतने पुतले जलते,
    हम हों राम, राम हों हारे।
    देश धरा मानवता हित में,
    अब तो मन के रावण मारें।

    बहुत जलाए पुतले मिलकर,
    अब तो मन के रावण मारें।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,303326
    दौसा,राजस्थान,9782924479

  • रावण दहन पर कविता

    किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

    रावण दहन पर कविता

    लगा हुआ है दशहरे का मेला
    खचाखच भरा पड़ा मैदान है
    चल रही है अद्भुत रामलीला
    जुटा पड़ा सकल जहान है

    धनुष बाण लिए श्रीराम खड़े
    सामने खड़ा शैतान है
    होने वाला है रावण दहन
    जयकारों से गूँज रहा आसमान है

    अंत में हारती बुराई
    रावण दहन प्रमाण है
    सच्चाई की जीत हुई हमेशा
    समय बड़ा बलवान है

    लीजिए असंख्य अवतार प्रभु
    अच्छाई आज लहूलुहान है
    कलयुग में विपदा है भारी
    घर-घर रावण विराजमान है

    काम क्रोध लोभ कपट जैसी
    आज के रावण की पहचान है
    सभी बुराइयों का दहन कीजिए
    विनती कर रहा हिंदुस्तान है

    – आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • दशहरा पर कविता

    किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

    दशहरा पर कविता

    durgamata

    राम रावणको मार,धर्मका किये प्रचार,
    बढ़ गया सत्य सार ,यही है दशहरा।

    देव फूल बरसायें ,जगत सारा हर्षाये,
    गगन-भू सुख पाये,यही है दशहरा।

    खुशहुये भक्तजन,कहेसभी धन्य-धन्य,
    होइ के महा मगन ,यहीं है दशहरा।

    सुनो मेरे प्यारे भाई ,बुराई पर अच्छाई,
    जाता जब जीत पाई ,यहीं है दशहरा।

    छल-कपट टारदो,जन-जनको प्यार दो,
    अवगुण सुधार लो , यहीं है दशहरा।

    सदा हरिगुण गाओ,सुख शुभ उपजओ,
    सबको गले लगाओ , यही है दशहरा।

    चलो सत्य राह पर,कर्म हो निगाह पर,
    दौड़ो नहीं चाह पर ,यहीं है दशहरा

    मनविषयों से मोड़,व्देष-दम्भ मोह छोड़,
    परहित में हो दौड़ , यहीं है दशहरा।

    अंदरसे शीघ्र जाग,प्रभु सुभक्ति में लाग,
    आपसी बढ़ाओ राग ,यहीं है दशहरा।

    सत्संगमें रहे चाव,रखो समता का भाव,
    छोड़ो सकल दुराव , यहीं है दशहरा।

    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508