प्रात: वन्दन – हरीश बिष्ट
जन-जन की रक्षा है करती |भक्तजनों के दुख भी हरती ||ऊँचे पर्वत माँ का डेरा |माँ करती है वहीं बसेरा || भक्त पुकारे दौड़ी आती |दुष्टजनों को धूल चटाती ||भक्तों की करती रखवाली |जगजननी माँ खप्परवाली || भक्त सभी जयकार लगाते |चरणों में नित शीश नवाते ||मनोकामना पूरी करती |खुशियों से माँ झोली भरती || … Read more