सागर- मनहरण घनाक्षरी
पोखर व झील देखो , जिसमें न गहराई ,
थोड़ा सा ही जल पाय, मारते उफान हैं I
सागर को देखो वहाँ , नदियाँ हैं कई जहाँ ,
सबको समेट हिय , करे न गुमान है I
जिसका न ओर छोर , दिल में अथाँह ठोर ,
सबको ही एक रस , देता सम्मान है I
तेरे सम और नहीं , जगत में दिखे कहीं ,
“माधव”विशाल हिय ,ग्यानियों की शान है I
जल धारा भिन्न-भिन्न,राह भी हैं भिन्न-भिन्न ,
सबका स्वभाव भिन्न , सागर में देखिये I
जगत में भिन्न जीव, कर्म पथ भिन्न – भिन्न ,
जाति धर्म मान भिन्न , मिलें प्रभु देखिये I
देता है चुनौती गर , प्रकृति को छेड़ नर ,
ज्वार से विनाशकारी , कोप जरा देखिये I
धन पद पाय सभी ,”माधव” न मद कभी,
सम्पदा अपार हिय , जलनिधि देखिये I
सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”