Tag: Poem on 5 June World Environment Day

  • पेड़ हमारे मित्र पर कविता

    पेड़ हमारे मित्र पर कविता

    पेड़ हमारे जीवन के अनमोल साथी और सच्चे मित्र होते हैं। ये हमें स्वच्छ वायु, छाया, और अनेक प्रकार के फल-फूल प्रदान करते हैं। इनका महत्व केवल हमारे दैनिक जीवन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

    पेड़ हमारे सच्चे मित्र हैं जो निःस्वार्थ भाव से हमें अनेक लाभ प्रदान करते हैं। इनकी रक्षा करना और इन्हें संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए और उनकी देखभाल करनी चाहिए ताकि हम और आने वाली पीढ़ियाँ एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण में जी सकें।

    इस प्रकार, “पेड़ हमारे मित्र” कविता संकलन के माध्यम से कवि ने पेड़ों के महत्व और उनके प्रति हमारी जिम्मेदारियों को उजागर किया है।

    पेड़ हमारे मित्र पर कविता"
    poem on trees

    पेड़ पर कविता

    पेड़वा बिना (भोजपुरी पर्यावरण गीत)

    जइसे तड़पेले जल बिना मछरी ना हो |
    तड़पे छतिया धरती पेड़वा बिना |
    गावे ना गोरिया सावन बिना कजरी ना हो |
    सतावे बरखा रतिया गोरी सजना बिना |

    महल अटारी मिलवा बनवले वनवा उजारी |
    पेड़वा के काटी काटी धरती दिलवा दुखाई |
    बरसेला बदरा कबों दुनिया ना हो पेड़वा बिना |

    बाची कईसे धरती पेड़वा ना लउके कही |
    जीव जन्तु पशु पक्षी बचावे जान भऊके कही |
    बची ना धरती अब आदमी के जतिया ना हो
    पेड़वा बिना |

    चीरइ क चह चह कोइलर कुहु ना सुनाला कही |
    झरना क झर झर पवनवा सर सर ना दिखाला कही |
    जिये खातिर मिले नाही हवा नकिया ना हो ,
    पेड़वा बिना |

    चाही हरियाली यदी धरती पेड़वा लगावा सभे |
    जल जंगल जमीन मिली परती बचावा सभे |
    मिलीहें ठंडी ठंडी पवन पुरवईया ना हो ,
    पेड़वा बिना |

    जइसे तड़पेले जल बिना मछरी ना हो |
    तड़पे छतिया धरती पेड़वा बिना |
    श्याम कुँवर भारती (राजभर)

    पेड़ पूर्वज पौध प्रिय संतान है

    पेड़ पूर्वज, पौध प्रिय संतान है।
    सिद्धकृत अध्यात्म है, विज्ञान है।।

    सभ्यता-शैशव पला मृदु छाँव में,
    कंद-फल संपन्न तरु के गाँव में।
    स्नेह-शाखाएँ बनी आवास थीं,
    मूलतः थी शक्ति-गहरी,पाँव में।।
    प्राण का आदिम यही रस पान है…

    वन धरा का साज है श्रृंगार है ,
    प्राणियों के हित इला का प्यार है।
    है नियंता शुद्धतम जलवायु का,
    सृष्टि का अनमोल यह उपहार है।।
    यह नहीं तो,भाँति किस उत्थान है?

    तरु-लताओं का अमोलक दान है,
    किंतु हमने क्या दिया प्रतिदान है?
    काटते हैं शीश उस आशीष का,
    प्राण का जिससे मिला वरदान है।।
    लोभ से अंधा,बधिर अब ज्ञान है।

    पौधरोपण का चलो अब प्रण करें’
    वन्य -अभयारण्य स़ंरक्षण करें।
    शस्य से हो यह धरित्री श्यामला,
    श्रम अहर्निश विश्व के जन-गण करें।
    लक्ष्यगामी कर्म ही अभियान है।

    पेड़ पूर्वज, पौध प्रिय संतान है।
    सिद्धकृत, अध्यात्म है, विज्ञान है।

    रेखराम साहू

    पेड़ भाई पर कविता

    धरती में जन्मे ….आदमी
    धरती में उगे ….पेड़
    सगे भाई हुए न…..!

    धरती ने माँ का फर्ज निभाया…
    पेड़ों ने भी न रखा बकाया…
    पर आदमी..औकात पर उतार आया
    माँ का दामन बाँट दिया..
    भाई का सर काट दिया…
    धरा की छाती छलनी कर् दी..
    जंगलों को जहर बांटे…
    इंसानी फितूर ने…
    सदा भाइयों के हाथ -पैर काटे….!!!!

    दरअसल गलती आदमी की भी नहीं
    खुदा ने उसे ..मुंह ऐसा दिया कि…
    कुत्ते सा भौंके और काटे भी !
    जिन्दगी बख्शने वाले भाई के
    कुनबे में जहर बांटे भी..?!
    पेर ऐसे दिए कि…..पल भर में
    वामन की तरह संसार नाप ले..
    दिमाग लोमड़ी की तरह कि….
    दूसरों का सुख -सार टॉप ले..!
    जीभ दिया सुवर सा कि…
    जहां भर की गंदगी खाके पचा जाए..
    टोक दो कि रोक दो तो…
    दुनिया की जान खा जाए…!?!

    वृक्ष बन्धु ने पर..सदा बांटा
    मौत के बदले …जिंदगी,
    आदि से अंत तक कर दी
    आदमी की बंदगी…

    धरा की कोख से जनते ही
    दातुन-दोना-पत्तलों में
    फिर खिलौनों -खाट और सामान बन गया,
    सूरज की आग और
    इंद्र के बज्र से
    आसमानी कहर से बचाने आदम के सर तन गया,,
    छत बना, घर बना, भोजन-भाजन-शयन बना
    जिंदगी भर काम आया
    फिर मरा जब आदमी तो
    घर से घाट तक
    और आखिर में साथ जलकर स्वर्ग तक भी..!!

    आदमी यदि हरित बन्धु का
    क़त्ल तू करता रहेगा…
    धरा औ आकाश बीच
    कार्बन भरता रहेगा…
    जिंदगी चैन की साँसे
    कभी न ले सकेंगी …!
    विश्व की प्राण वायु
    विष विष विष हो चलेगी…।

    तब फिर उगेंगे ये धरा की कोख से
    जिंदगी को जान देने
    विष के प्रकोप से…
    ये हवा का विष को काट
    खुद को नेस्तनाबूद करने वालों को
    जीवन बांटेंगे…..
    जिस तरह आदम
    नहीं छोड़ेगा अपनी फितरत,..
    पेड़ भी न छोड़ेगा
    प्राण वायु देने की नियामत..।

    बेचारे पेड़ भाई
    सुख में दुःख में
    जीने मरने में शामिल..
    आदमी के काम आ फुला नहीं समाता,
    पर ..तब,..क्रोधित हो जाता है
    जब कागजों औ भाषणों में
    ऊसे जनता है आदमी..
    राष्ट्रिय कोषों को हड़पने
    भगवा पहन,अगुवा बनता है आदमी…
    टोपी,कुर्सी,वर्दी की जेब भरने
    देश जन की छाती में
    गढ़े खनता है आदमी..!
    उनके लिए प्राण वायु की जगह
    विष उगल देगा पेड़…खोकर धैर्य…।।।

    डॉ0दिलीप गुप्ता

  • पर्यावरण दिवस पर चौपाई/ बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’

    पर्यावरण दिवस पर चौपाई/ बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’

    पर्यावरण दिवस पर चौपाई

    save nature

    बच्चे – बूढ़े सुन लो भाई,
    पेड़ों की मत करो कटाई।
    वृक्षों से मिलती है छाया,
    गर्मी में हो शीतल काया।

    सबने इनकी महिमा गाई,
    मिलते हैं फल-फूल दवाई।
    पेड़ों से ही वर्षा आती,
    सब के मन को यह हर्षाती।

    बात सभी को यह समझाना,
    एक-एक को पेड़ लगाना।
    मिलकर सारे पेड़ लगाओ,
    भारत भू को स्वच्छ बनाओ।



    *बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’*

  • 5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    save nature


    पेड़ हमर तो संगी साथी,
    पेड़ हमर आय जान।
    जीव जंतु सबो के आसरा,
    पेड़ आय ग भगवान।।

    डारा पाना अउ जड़ी सबो,
    आथे अबड़ दवाई।
    जीवन एखर बिन शून्य हे,
    होथे बड़ सुखदाई।

    देथे दाई असन मया जी,
    सुख के एहर खदान।
    पेड़ हमर……



    जियत मरत के नाता रिस्ता,
    जोरे हन हम भाई।
    आठो बेरा ताकत हमरो,
    चाहे हमर भलाई।

    जिनगी के सुख हावय सबो,
    करत मानव कल्यान।
    पेड़ हमर……..

    बरसा लावय सुख बगरावय,
    सुख के लिखय कहानी।
    नदिया नरवा औ चारो कोती,
    अगला उछला पानी।

    धरती  के  सिंगार  पेड़ हे,
    जिइसे गहना समान।
    पेड़ हमर……



    घाम-छाँव दे मया मयारू,
    देत हवा अउ पानी।
    धान,गहूँ आनी बानी के,
    खेती करत किसानी।

    एखर से जीवन के किस्सा,
    एखर किस्सा महान।
    पेड़ हमर…….



    खातू ,माटी ,पान पताई,
    सर के बनथे जानव।
    सुख-दुख के ए संगी साथी,
    भाई अइसन मानव।

    चले रोज घर के जी चूल्हा,
    भाई संझा बिहान।
    पेड़ हमर..

    परमेश्वर अंचल

  • पर्यावरण संकट-माधवी गणवीर

    पर्यावरण संकट-माधवी गणवीर

    पर्यावरण संकट

    पर्यावरण संकट-माधवी गणवीर

    जीवन है अनमोल, 
    सुरक्षित कहां फिर उसका जीवन है,
    प्रक्रति के दुश्मन तो स्वयं मानव है,
    हर तरफ प्रदूषण से घिरी हमारी जान हैं,
    फिर भी हर वक्त बने हम कितने नादान है।

    मानव हो मानवता का 
    कुछ तो धरम करो,
    जीवन के बिगड़ते रवैय्ये का 
    कुछ तो करम करो
    चारो ओर मचा हाहाकार है
    प्रदूषण का डंका बजा है।
    वायु, मर्दा, ध्वनि जल
    सब है इसके चपेट में।
    ये सुरक्षित तो सुखी हर इंसान है।
    हर तरफ प्रदूषण से घिरी जान है ।
    फिर भी हर वक्त ……..

    दूर-दूर तक फैली थी हरियाली,
    जिससे मिलती थी खुशहाली,
    धड़ल्ले से कटते वन,जंगल सारे,
    हरियाली का चारो तरफ तेजी से उठान है,
    बिना वृक्ष के जीवन कैसा विरान है।
    फिर भी हर वक्त ……

    नदियां की थी पावन धारा
    मानव ने ही दूषित किया सारा,
    जल जीवन के संकट से,
    कैसे उभरे इसके कष्ट से,
    आओ ढूढे इसके कारण 
    जिससे मानव जीवन ही परेशान है।
    फिर भी हर वक्त बने हम कितने नादान है।

    माधवी गणवीर
    राजनादगांव
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • वृक्षारोपण पर दोहे

    वृक्षारोपण पर दोहे

    वृक्षारोपण पर दोहे

    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

    पर्यावरण सुधार पर , वृक्ष लगा दो चार।
    धरा बने जब सुंदरम,करना जय जयकार।।

    पावन मन से सब जुड़े,धरा बनाएं स्वच्छ।
    पर्यावरण सुधार कर, सुख पनपे प्रत्यक्ष।।

    हरियाली की छाँव हो,स्वच्छ पवन मृदु नीर।
    मृदा रहें पोषित सुलभ , नहीं रहें जग पीर।।

    हरियाली जो हो तभी , कृपा करें देवेन्द्र।
    पर्यावरण सुधार हो,विनती करें डिजेन्द्र।।
    ◆◆◆◆◆◆★★★◆◆◆◆◆
    -डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”