Author: कविता बहार

  • हो नहीं सकती – बाबुराम सिंह

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हो नहीं सकती


    शुचिता सच्चाई से बड़ा कोई तप नहीं दूजा,
    सत्संग बिना मन की सफाई हो नहीं सकती।

    नर जीवन जबतक पुरा निःस्वार्थ नहीं बनता,
    तबतक सही किसीकी भलाई हो नहीं सकती।

    अन्दर से जाग भाग सदा पाप दुराचार से,
    सदज्ञान बिन पुण्यकी कमाई हो नहीं सकती।

    काम -कौल में फँसकर ना कृपण बनो कभी,
    सदा दान बिन धन की धुलाई हो नहीं सकती।

    देव ऋषि पितृ ऋण से उॠण होना है,
    वेदज्ञान बिन इसकी भरपाई हो नहीं सकती।

    राष्ट्र रक्षा जन सुरक्षा में सतत् निमग्न रह,
    बीन अनुभव कर्मों की पढ़ाई हो नहीं सकती।

    परमात्मा और मौत को रख याद सर्वदा,
    यह मत जान जग से विदाई हो नहीं सकती।

    अज्ञान में विद्वान का अभिमान मत चढ़ा,
    किसी से कभी सत्य की हंसाई हो नहीं सकती।

    बन आत्म निर्भर होश कर आलस प्रमाद छोड़,
    आजीवन तेरे से पोसाई हो नहीं सकती। ।

    शुम कर्म , वेद ज्ञान , सत्य – धर्म के बिना,
    बाबूराम कवि तेरी बड़ाई हो नहीं सकती।
    बाबुराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज ( बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032

  • कुम्हार को समर्पित कविता -निहाल सिंह

    कुम्हार को समर्पित कविता -निहाल सिंह

    फूस की झोपड़ी तले बैठकर।
    चाक को घुमाता है वो दिनभर।

    खुदरे हुए हाथों से गुंदके
    माटी के वो बनाता है मटके
    तड़के कलेवा करने के बाद
    लगा रहता है वो फिर दिन- रात
    स्वयं धूॅंप में नित प्रति दिन जलकर
    चाक को घुमाता है वो दिनभर |

    ऑंखों की ज्योति धुॅंधली पड़ गई
    चश्मे की नम्बर अधिक बढ़ गई
    इब के वैसाख के महीने में
    किये है सत्तर साल जीने में
    उसने माटी का रंग बदलकर
    चाक को घुमाता है वो दिनभर |

    माथे के बाल सफेद हो गए
    दाढ़ी के बाल समस्त सो गए
    चमड़ी पर इंक सी गिरने लगी
    भाल पर झुर्रियाँ पसरने लगी
    मेह में बुड्ढे तन को भिगोकर
    चाक को घुमाता है वो दिनभर |

    -निहाल सिंह, दूधवा-नांगलियां, झुन्झुनू , राजस्थान

  • हलषष्ठी पर हिंदी कविता – नीरामणी श्रीवास नियति

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हलषष्ठी पर हिंदी कविता

    आयी हलषष्ठी शुभम , माँ का यह व्रत खास ।
    अपने बच्चों के लिए , रखती है उपवास ।।
    रखती है उपवास , करे सगरी की पूजा ।
    बिना चले हल भोज्य , नहीं करते है दूजा ।।
    नियति कहे कर जोड़ , हृदय व्रत कर हर्षायी ।
    कथा सुनेंगे आज , मातु हल षष्ठी आयी ।।

    पत्तल महुआ का रहे , पसहर चांँवल खाद्य ।
    दूध दही घी भैंस का , साधक करते साध्य ।।
    साधक करते साध्य , बनावट के है सागर ।
    छः प्रकार के वस्तु , भरे मन भर के आगर ।।
    नियति कहे कर जोड़ , बैठिए आसन समतल ।
    नियम युक्त उपवास , बाद भोजन कर पत्तल ।।

    जाने व्रत का सब नियम , फिर रखिए उपवास ।
    माँ हल षष्ठी की कृपा , भरती हृदय उजास ।।
    भरती हृदय उजास , उमर लंबी हो सुत की ।
    सज सोलह श्रृंगार , भाद्र पद महिना युत की ।।
    नियति कहे कर जोड़, प्रेम से गाओ गाने ।
    देती है शुभ फल मातु , नियम जो व्रत का जाने ।।

    नीरामणी श्रीवास नियति
    कसडोल छत्तीसगढ़

  • चिकित्सक/ डाक्टर दिवस पर हिंदी कविता

    चिकित्सक/ डाक्टर दिवस पर हिंदी कविता

    चिकित्सक

    हिय में सेवा भावना, नहीं किसी से बैर।
    स्वास्थ्य सभी का ठीक हो, त्याग दिए सुख सैर।।
    नित्य चिकित्सक कर्म रत, करे नहीं आराम।
    लड़ते अंतिम श्वांस तक,चाहे सबकी खैर।।

    कठिन परीक्षा पास कर, बने चिकित्सक देख।
    धरती के भगवान है, बदले किस्मत रेख।।
    आओ हम सम्मान दे, उनको मिलकर आज।
    उठा शुभम कर लेखनी, लिख दो सुन्दर लेख।।

    नित्य किताबों में गडे़ , करते हैं नव खोज।
    ढूँढे रोग निदान वह, त्यागे छप्पन भोज।।
    पल भर की फुरसत नहीं, तज के घर परिवार।
    नस-नस में ऊर्जा भरे, ऐसा उनका ओज।।

    नीरामणी श्रीवास नियति
     कसडोल छत्तीसगढ़

    काम डॉक्टर साहब आएँ

    जीवन में आखिर कब तक हम, बोलो स्वस्थ यहाँ रह पाएँ
    बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।

    मानव तन इतना कोमल है, देता है सबको लाचारी
    तरह -तरह के रोगों से अब, घिरे हुए कितने नर- नारी
    बेचैनी जब बढ़ जाती है, रात कटे तब जगकर सारी
    बोझ लगे जीवन जब हमको, बने समस्या यह फिर भारी

    मौत खड़ी जब लगे सामने, तब दिन में तारे दिख जाएँ
    बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।

    अपनी भूख- प्यास को भूले, सेवा में दिन- रात लगे हैं
    धन्य डॉक्टर साहब ऐसे, जन-जन के वे हुए सगे हैं
    सचमुच देवदूत हैं वे अब, उन्हें देख यमदूत भगे हैं
    मौत निकट जो समझ रहे, उनमें जीवन के भाव जगे हैं

    जिनके पास नहीं हो पैसा, उनका भी वे साथ निभाएँ
    बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।

    जीव-जंतुओं के इलाज में, लगे हुए उनको क्यों भूलें
    पशु- पक्षी की सेवा करके, आज यहाँ वे मन को छू लें
    जो भी हमसे जुड़े हुए हैं, उन्हें देखकर अब हम फूलें
    आओ उनके साथ आज हम, सद्भावों का झूला झूलें

    जिनके आगे लगे डॉक्टर, उनकी महिमा को हम गाएँ
    बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)

    बिन चिकित्सक सब बेहाल

    मानव कंपित, दुखी बहुत
    आज हुआ वो खस्ताहाल,
    मंदिर मस्जिद बंद हो गए
    काम आ रहे हैं अस्पताल।

    हां मैं भी एक उपासक हूं
    मानता हूं प्रभु का कमाल,
    डॉक्टर उसकी श्रेष्ठ रचना,
    काम कर रहे हैं बेमिसाल।

    मंदिर का ईश्वर संबल देता
    डॉक्टर पहना रहे जयमाल,
    स्वस्थ होकर घर आते बच्चे
    मांए चूम रही है उनके गाल।

    मर्ज़ी तुम्हारी मानो ना मानो
    बिन चिकित्सक सब बेहाल,
    हर विपदा के सम्मुख खड़े हैं

    देवकरण गंडास अरविन्द

  • अति पर कविता – सुशी सक्सेना

    इंदौर मध्यप्रदेश से आदरणीया सुशी सक्सेना द्वारा रचित अति पर कविता यहां पर प्रस्तुत है

    Kavita Bahar || कविता बहार
    Kavita Bahar || कविता बहार

    अति पर कविता

    अति की बरसा, अति का सूखा,
    अति न किसी की भाये |
    अति की आँधी जब चल जाये,
    तो प्रलय दुनिया मे आ जाये |

    अति की बोली, अति का मौन,
    अति की भाषा समझे कौन |
    पत्थर के भी टुकड़े हो जाते हैं,
    जब मार अति की बो खाये |

    अति का क्रोध, अति का सहना,
    अच्छा न लगे अति का हंसना |
    नासूर बन जाते है इक दिन वे भी
    अति के आँसू जो पीते जाये |

    अति का भला, अति का बुरा,
    अति की चाह न किसी को भाये |
    सगे सगे भी दुश्मन बन जाते हैं,
    अति की नफरत जो दिल मे बस जाये |

    अति का रूप, अति कुरूप,
    अति की दौलत पागल कर जाये |
    भूखा मरे जो अति गरीब हो,
    अति न किसी की भाये |

    अति की उलझन, अति का सुकून
    दिवाना बना दे अति का जुनून |
    अति का जमघट, अति का वीराना,
    ऐसे मे साँस चैन की को ले पाये ।।


    सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश