Author: कविता बहार

  • महापर्व संक्रांति / रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    महापर्व संक्रांति / रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    महापर्व संक्रांति / रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    मधुर – मृदु बोल संक्रांति पर , तिल – गुड़ – लड्डू के खाओ
    मिलजुलकर सभी प्रेम – प्यार , समता , सौहार्द बढ़ाओ
    महापर्व संक्रांति लाए सदा , खुशहाली चहुँ ओर ,
    पतंग उड़ाओ , शुभकामनाएँ लेते – देते जाओ ।

    patang-makar-sankranti

    आया – आया करो स्वागत , पर्व संक्रांति का महान
    सपने ऊँचे सजाकर तुम , छू लो विस्तृत आसमान
    आशाओं की उड़े पतंग , थामो विश्वासों की डोर ,
    पुण्य कमाओ आज सभी , देकर प्रेम से कुछ भी दान ।

    कितना बढ़िया पावन , मनमोहक है , खुशी का त्योहार
    अफ़सोस ! आता नहीं मनोहर , यह त्योहार बार – बार
    ख़ुशबू ही ख़ुशबू फैली जा रही , अब तो चारों ओर ,
    गन्ने – रस की खीर , तिल – गुड़ के लड्डू होंगे तैयार ।

    अन्य राज्यों के साथ अब तो , पंजाब भी सराबोर
    गूँजता जा रहा लोहड़ी के , संगीत का मधुर शोर
    सुन्दर मुंदरिए मनोहर गाना , सबको ही है भाता ,
    भंगड़े – गिद्दे के साथ , थामते सब पतंग की डोर ।

    रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

  • कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    ठिठुरन सी लगे ,
    सुबह के हल्के रंग रंग में ।
    जकड़न भी जैसे लगे ,
    देह के हर इक अंग में ।।

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    उड़ती सी लगे,
    धड़कन आज आकाश में।
    डोर भी है हाथ में,
    हवा भी है आज साथ में।

    पर कागजी तितली…..
    लगी सहमी सी
    उड़ने की शुरुआत में ।
    फैलाये नाजुक पंख ,
    थामा डोर का छोर…
    हाथ का हुआ इशारा,
    लिया डोर का सहारा …
    डोली इधर से उधर,
    गयी नीचे से ऊपर
    भरी उमंग से ,
    उड़ने लगी
    जब हुई उड़ती तितलियों के ,
    साथ में ,
    बतियाती जा रही है ,
    पंछियों के पँखों से ….
    होड़ सी ले रही है,
    ज्यों आसमानी रंगो से
    हुई थोड़ी अहंकारी,
    जब देखी अपनी होशियारी ।
    था दृश्य भी तो मनोहारी,
    ऊँची उड़ान थी भारी ।

    डोर का भी रहा सहारा ,
    हाथ करता रहा इशारा ,
    तभी लगी जाने किसकी नजर ,
    एक पल में जैसे थम गया प्रहर ,
    लग रहे थे तब हिचकोले ,
    यों लगा जैसे संसार डोले ।

    डोर से डोर थी ,
    अब कट गयी ।
    इशारे की बिजली भी ,
    झट से गयी ।
    अब तो हवा भी न दे पायी सहारा
    घड़ी दो घड़ी का था ,
    अब खेल सारा ।
    ऊँची ही ऊँची उड़ने वाली ,
    अब नीचे ही नीचे आयी ।
    जो आँखे मदमा रही थी ,
    अब तक…..
    उनमें अंधियारी थी छायी ।

    तभी उसे लगा ,
    अचानक एक तेज झटका
    डोर लगी तनी सी,
    लगे ऐसा जैसे मिल गया ,
    जो सहारा था सटका।
    डोर का पुनः मिल रहा था ,
    ‘ अजस्र ‘ सहारा ।
    हाथ और थे पर ,
    मिल रहा था बेहतर इशारा ।
    फिर उडी आकाश में ,
    तब बात समझ ये आई
    बिना सहारे ,बिना इशारे ,
    न होगी आसमानी चड़ाई ।
    जीवन सार समझ आया तो,
    वो हवा में और अच्छे से लहराई।

     ✍️✍️ *डी कुमार –अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)
  • राम आएँगे गीत कविता हिंदी में

    राम आएँगे गीत कविता हिंदी में

    राम आएँगे गीत कविता हिंदी में (Ram Aayenge Lyrics In Hindi)


    मेरी झोपड़ी के भाग,आज जाग जाएंगे,
    राम आएँगे,
    राम आएँगे आएँगे,राम आएँगे,
    मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,
    राम आएँगे ॥

    राम आएँगे गीत कविता हिंदी में

    राम आएँगे तो,आंगना सजाऊँगी,
    दिप जलाके,दिवाली मनाऊँगी,
    मेरे जन्मो के सारे,पाप मिट जाएंगे,
    राम आएँगे,
    मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,
    राम आएँगे ॥

    राम झूलेंगे तो,पालना झुलाऊँगी,
    मीठे मीठे मैं,भजन सुनाऊँगी,
    मेरी जिंदगी के,सारे दुःख मिट जाएँगे,
    राम आएँगे,
    मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,
    राम आएँगे ॥

    मैं तो रूचि रूचि,भोग लगाऊँगी,
    माखन मिश्री मैं,राम को खिलाऊंगी,
    प्यारी प्यारी राधे,प्यारे श्याम संग आएँगे,
    श्याम आएँगे,
    मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,
    राम आएँगे ॥

    मेरा जनम सफल,हो जाएगा,
    तन झूमेगा और,मन गीत गाएगा,
    राम सुन्दर मेरी,किस्मत चमकाएंगे,
    राम आएँगे,
    मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,
    राम आएँगे ॥

  • अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश

    अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश

    अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;



    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।
    कण-कण में उल्लास भरा,
    जन -जीवन अति आनन्दित है।टेक।

    shri ram hindi poem.j



    बर्बरता की धुली कालिमा,
    सपनों के अंकुर फूटे,
    स्वच्छ विचारों के प्रहार से,
    दुर्दिन के मानक टूटे।
    नाच रहीं खुशियॉ अम्बर में,
    पुण्य धरा उत्सर्गित है।
    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।1।

    बलिदान दिया निज का जिसने,
    तोड़ दिया जग-बन्धन को,
    कट गये शीश प्रभु चरण हेतु,
    नमन अवध के चन्दन को।
    मोक्षदायिनी सरयू की,
    कल-कल धार तरंगित है।
    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।2।

    धर्म-ध्वजा फिर से लहराये,
    जन-जन स्नेह असीमित हो,
    सुख-समृद्धि के ताने-बाने,
    मंजुल सृजन सुशोभित हो।
    जब जाग गया सोया पौरुष,
    देखो विश्व अचम्भित है।
    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।3।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;

  • श्री राम को प्रणाम है/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    श्री राम को प्रणाम है/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    श्री राम को प्रणाम है/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे



    धीर वीर श्री राम को
    कोटि-कोटि प्रणाम है।
    कौशल्या के लाल
    दशरथ कुमार है।
    संत हितकारी पर
    दुष्टों का काल है।।

    वही प्रभु श्री राम को
    कोटि-कोटि प्रणाम है ।।

    shri ram hindi poem.j


    निर्गुण निराकार पर
    धरती में अवतार है।
    दशरथ कुमार है पर
    कण कण में राम है।।
    धीर वीर संयम शील
    श्री राम को प्रणाम है।

    देखने पर मनुज मगर
    श्रीबिष्णु का अवतार है।
    आदि अनादि अनंत
    सर्वव्यापी प्रभु राम है।
    शिव के अराध्य और
    भक्तों के भगवान है।
    मर्यादा पुरुषोत्तम राम को
    कोटि-कोटि प्रणाम है।

    डाॅ विजय कुमार कन्नौजे