Category: दिन विशेष कविता

  • बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता

    बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता

    बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता : बालवृंद के प्रिय चाचा नेहरू ने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ एक स्नेहशील व्यक्तित्व के रूप में भी ख्याति पाई। उन्हीं का जन्म दिवस प्रति वर्ष 14 नवम्बर को बाल- -दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    जवाहरलाल नेहरू

    आ गया बच्चों का त्योहार/ विनोदचंद्र पांडेय ‘विनोद’

    सभी में छाई नयी उमंग, खुशी की उठने लगी तरंग,

    हो रहे हम आनन्द-विभोर, समाया मन में हर्ष अपार !

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    करें चाचा नेहरू की याद, जिन्होंने किया देश आजाद,

    बढ़ाया हम सबका, सम्मान, शांति की देकर नयी पुकार ।

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    चलें उनके ही पथ पर आज, बनाएं स्वर्ग-समान समाज,

    न मानें कभी किसी से बैर, बढ़ाएं आपस में ही प्यार !

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    देश-हित में सब-कुछ ही त्याग, करें भारत मां से अनुराग,

    बनाएं जन-सेवा को ध्येय, करें दुखियों का हम उद्धार ।

    आ गया बच्चों का त्योहार ।

    कदम मिला बढ़े चलो/मलखानसिंह सिसोदिया

    सुनील आसमान है हरी-भरी धरा,

    रजत भरी निशीथिनी, दिवस कनक भरा।

    खुली हुई जहान की किताब है पढ़ो,

    बढ़ो बहादुरों, कदम मिला चलो बढ़ो ।।

    चुनौतियाँ सदर्प वर्तमान दे रहा,

    भविष्य अंध सिंधु बीच नाव खे रहा ।

    भिड़ो पहाड़ से अलंघ्य श्रृंग पर चढ़ो,

    विकृत स्वदेश का स्वरूप फिर नया गढ़ो ।

    विवेक, कर्म, श्रम, ज्योति-दीप को जला,

    प्रमाद, बुजदिली, विषाद हिमशिला गला ।

    अजेय बालवीर ले शपथ निडर बढ़ो,

    सुकीर्ति दीप्त से स्वदेश भाल को मढ़ो ||

    समाज-व्यक्ति, राष्ट्र- विश्व शृंखला मिला,

    अशेष मातृभाव शत कमल – विपिन खिला ।।

    अटूट प्रेम-सेतु बाँधते हुए बढ़ो,

    अखंड ऐक्य-केतु गाड़ते हुए बढ़ो।

  • 14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर कविता

    14 sitambar hindi divas par kavita

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। अतः इस दिन 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मानते है.

    निज भाषा

    भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

    निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति का मूल ।

    बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय का शूल ॥

    विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार ।

    सब देशन से लै करहु, भाषा माँहि प्रचार ॥

    धर्म, जुद्ध, विद्या, कला, गीत, काव्य अरु ज्ञान ।

    सबके समझन जोग है, भाषा माँहि समान ॥

    भाषा-वन्दन

    सोम ठाकुर

    करते हैं तन मन से वन्दन जनगणमन की अभिलाषा का,

    अभिनन्दन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।

    यह अपनी शक्ति सर्जना का,

    माथे की है चंदन रोली,

    माँ के आंचल की छाया में,

    हमने जो सीखी है बोली।

    यह अपनी बँधी हुई अंजुरी, यह अपने गंधित शब्द-सुमन,

    यह पूजन अपनी संस्कृति का, यह अर्चन अपनी भाषा का ।

    अपने रत्नाकर के रहते,

    किसकी धारा के बीच बहें,

    हम इतने निर्धन नहीं कि,

    भाषा से औरों के ऋणी रहें,

    इसमें प्रतिबिम्बित है अतीत, आकार ले रहा वर्तमान,

    यह दर्शन अपनी संस्कृति का, यह दर्पण अपनी भाषा का।

    यह ऊँचाई है तुलसी की,

    यह सूर सिन्धु की गहराई

    टंकार चंदबरदाई की,

    यह विद्यापति की पुरवाई,

    जयशंकर का जयकार, निराला का यह अपराजेय ओज,

    यह गर्जन अपनी संस्कृति का, यह गुंजन अपनी भाषा का ।.

    जय हिंदी

    मगन अवस्थी

    जय हिन्दी, जय देवनागरी !

    जय कबीर तुलसी की वाणी,

    मीरा की वाणी कल्याणी 1

    सूरदास के सागर-मन्थन

    की मणिमंडित सुधा-गागरी ।

    जय हिंदी, जय देवनागरी !

    जय रहीम-रसखान – रस भरी,

    घनानन्द-मकरन्द-मधुकरी ।

    पद्माकर, मतिराम, देव के

    प्राणों की मधुमय विहाग री ।

    जय हिन्दी, जय देवनागरी ।

    भारतेन्दु की विमल चांदनी,

    रत्नाकर की रश्मि मादनी।

    भक्ति-स्नान और कर्म क्षेत्र की,

    भागीरथी भुवन- उजागरी ।

    जय हिन्दी, जय देवनागरी !

    जय स्वतन्त्र भारत की आशा,

    जय स्वतन्त्र भारत की भाषा।

    भारत-जननी के मस्तक की

    श्री-शोभा-कुंकुम-सुहाग री।

    जय हिन्दी, जय देवनागरी !

    मैं हिंदी हूँ

    ज्ञानवती सक्सेना

    मत नकारो इस तरह अस्तित्व मेरा,

    ज्ञान दात्री मैं तिमिर में वर्त्तिका हूँ ।

    सूर तुलसी और मीरा के अधर पर,

    स्नेह डूबे आंचलिक स्वर में ढली मैं।

    कवि निराला, पंत की अभ्यर्थना में,

    बन महादेवी खड़ी होकर चली मैं ।

    मत नकारो शब्द – शब्द कवित्व मेरा,

    पद-भजन-मुक्तक-सवैया गीतिका हूँ ।

    मैं रहीम, कबीर, खुसरो की गली में,

    आत्म-मुग्धा-सी स्वयं पर रीझती थी।

    रक्त में रसखान के रच-बस गई तो,

    मंदिरों की मूर्ति जैसी भीगती थी ।

    मत नकारो, पोर-पोर, कवित्व मेरा,

    सूक्तियाँ साधे समय की पुस्तिका हूँ ।

    सूर्यकांत हुए प्रखर दीखे निराला,

    मैथिली शरणम् हुई सरला कहाई ।

    कवि प्रसाद रवींद्र – दिनकर के दृगों में,

    चढ़ गई तो यश सरित् प्रतिमा नहाई ।

    मत नकारो भारतेंदु घनत्व मेरा,

    मैं तुम्हारे ही गगन की चंद्रिका हूँ।

    एक तुलसीदास के मानस चरित में,

    नव-रसों के कलश भरकर ढुल गई मैं ।

    कल्पना में डूबते- तिरते बहे तो,

    सूर के दो आँसुओं में तुल गई मैं ।

    मत नकारो युग प्रवर्तक तत्त्व मेरा,

    मैं सदा साहित्य की संरक्षिका हूँ ।

    वीरगाथा काल में होकर खड़ी मैं,

    सैनिकों में प्राण भर हुंकारती थी ।

    भारतेंदु सजग हुआ हिंदी -भवन में,

    मैं कुटी से महल तक गुँजारती थी ।

    मत नकारो वेदभाष्य महत्त्व मेरा,

    संस्कृति की बीज कोई वाटिका हूँ ।

  • 23 मार्च शहीद दिवस पर कविता

    23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है और भारत में मनाया जाता है। इस दिन 1931 को तीन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।

    महात्मा गांधी की स्मृति में। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। महात्मा गांधी के सम्मान में 30 जनवरी को राष्ट्रीय स्तर पर शहीद दिवस मनाया जाता है।

    शहीद गीत

    भारत भूषण

    मैं मरा नहीं सोया हूँ माँ के आँचल में

    कल सूरज बन कर जागूँगा उदयांचल में

    मुझे पहचान लेना ।

    जो केवल अपने लिए जिए वे मरते हैं।

    हम से तो अवतार उतरते हैं।

    देखो मैं उड़ता फिरता बैठा बादल में

    मुझे पहचान लेना ।

    मैं गया नहीं बैठा हूँ जन-जन के मन में।

    हिमगिरि से लेकर सागर तक के कण-कण में

    मैं आँखों में सपनों में प्राणों के तल में

    मुझे पहचान लेना ।

    मैं मिटा नहीं हँसता हूँ फूलों कलियों में

    बिजली बन दौड़ रहा बादल की गलियों में।

    मैं पवन बन गया हूँ घाटी के जंगल में

    मुझे पहचान लेना ।

    मैं बुझा नहीं जलता हूँ नयी जवानी में

    सीने पर गोली खाती हुयी कहानी में।

    मैं बिगुल फूँकता हूँ सेना की हलचल में ।

    मुझे पहचान लेना ।

    शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले

    ● जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी

    उरूजे कामयाबी पर कभी हिंदोस्तां होगा

    रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा।

    चखायेंगे मजा बरबादिये-गुलशन का गुलचीं को

    बहार आ जायेगी उस दिन जब अपना बागबां होगा।

    वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है,

    सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।

    जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हर्गिज,

    न जाने बादे मुर्दन मैं कहां और तू कहां होगा ?

    ये आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे कातिल

    बता कब फैसला उनके हमारे दर्मियां होगा ?

    शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले,

    वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

    इलाही वो भी दिन होगा जब अपना राज देखेंगे,

    जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा।

    ऐ मेरे वतन के लोगों

    ● पं. रामचंद्र द्विवेदी ‘प्रदीप’

    ऐ मेरे वतन के लोगों ! तुम खूब लगा लो नारा ।

    यह शुभ दिन है हम सबका, लहरा लो तिरंगा प्यारा ॥

    पर मत भूलो, सीमा पर वीरों ने प्राण गँवाए।

    कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आए।

    ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी ।

    जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी ||

    जब घायल हुआ हिमालय, खतरे में पड़ी आजादी ।

    जब तक थी साँस, लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी।

    संगीन पे धर कर माथा, सो गए अमर बलिदानी ।

    जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी ||

    जब देश में थी दीवाली, वे खेल रहे थे होली ।

    जब हम बैठे थे घरों में, वे झेल रहे थे गोली ।

    थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी ।

    जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी ।।

    कोई सिख, कोई जाट-मराठा, कोई गुरखा, कोई मद्रासी ।

    सरहद पर मरने वाला, हर वीर था भारतवासी ।

    जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी ।

    जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुर्बानी ।।

    थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूक उठाके ।

    दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गँवाके ॥

    जब अंत समय आया तो, कह गए कि अब मरते हैं।

    खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफर करते हैं।

    क्या लोग थे वो दीवाने, क्या लोग थे वो अभिमानी ।

    जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी ।

    तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी ।

    जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी ।।

    शहीदों को सलाम

    ● रामदास ‘नादान’

    ऐ शहीदों सलाम करता हूँ, ये इबादत मदाम करता हूँ।

    है अमानत तुम्हारी आजादी, मैं तुम्हारे ही नाम करता हूँ।

    दुश्मनों के सामने हम सर झुका सकते नहीं,

    अपनी अजमत अपने हाथों से मिटा सकते नहीं ।

    है सिखाया इन शहीदों ने यही हमको सदा,

    इन शहीदों का ये सरमाया लुटा सकते नहीं ।

    शहीदों का सदा ही बोलबाला हो,

    इन्हीं के नाम का हर सू उजाला हो।

    मिलें इनसे हमें दरसे – शहादत ही,

    हमारे दुश्मनों का मुँह ही काला हो ।

    शहीदों को प्रणाम करते चलो,

    अकीदत का ये जाम भरते चलो।

    भुलाओ न अहसान इनका कोई,

    इन्हें याद करते गुजरते चलो ॥

    वतन के वास्ते ही खूँ बहाया था शहीदों ने,

    कि आजादी का वो बीड़ा उठाया था शहीदों ने।

    उन्हीं के दम कदम से ही मिली है हमको आजादी,

    ये वो दिन है कभी नजदीक लाया था शहीदों ने ।।

    घायल हिंदुस्तान

    ● हरिवंश राय ‘बच्चन’

    मुझको है विश्वास किसी दिन

    घायल हिंदुस्तान उठेगा।

    दबी हुई दुबकी बैठी हैं

    कलरवकारी चार दिशाएँ,

    ठगी हुईं ठिठकी-सी लगतीं

    नभ की चिर गतिमान हवाएँ।

    अंबर के आनन के ऊपर

    एक मुर्दनी-सी छाई है,

    एक उदासी में डूबी हैं

    तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ।

    आँधी से पहले देखा है

    कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा,

    इस निश्चलता के अंदर से

    ही भीषण तूफान उठेगा।

    मुझको है विश्वास किसी दिन,

    घायल हिंदुस्तान उठेगा।

  • राष्ट्र भाषा हिन्दी – बाबूराम सिंह

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    14 सितम्बर-2022 हिन्दी दिवस पर विशेष

    राष्ट्र भाषा हिन्दी – बाबूराम सिंह

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सुखद सलोना शुभ,
    सरल सरस शुचितम सुख कारी है।
    भव्य भाव भूषित भारत भरम भरोस,
    निज अंक भरे जन-जन हितकारी है।

    अनमोल एकता का अनूठा स्तम्भ दृढ,
    अविचल विश्व बन्धुत्व की पुजारी है।
    हर भाव हर दृष्टिकोण से उत्तम अति,
    कवि बाबूराम भाषा हिन्दी हमारी है।

    अस्तु जागरूक एकजुट हो यतन बिच,
    प्रचार प्रसार सभी हिन्दी की हीं कीजिए।
    होवे हर कार्य हर क्षेत्र बिच हिन्दी में हीं,
    संसदों में व्यक्तव्य हिन्दी में हीं दीजिए।

    भाषणों उदघोषणो और वार्तालाप बिच,
    हिन्दीको हीं सभीआत्मसात कर लीजिए।
    हिन्दीबिना हिन्द खुशहाल कभीहोगा नहीं,
    कवि बाबूराम हिन्दी प्रेम रस पीजिए।

    भारत आजादी स्वाधीनता सम्पूर्ण तभी,
    हिन्दी हर ओर जब हर में समायेगी।
    भारतभव्य भालकी अनुप बिन्दी हिन्दी है,
    सुयश सुख शान्ति हिन्दी से लहरायेगी।

    विश्व में अटल अतुल आर्यावर्त हिन्दी से,
    विश्व गुरु गौरव गुण हिन्दी बढायेगी।
    संस्कृति सभ्यता की शान कवि बाबूराम,
    आपस में समरसता हिन्दी हीं लायेगी।

    स्कूल कालेज कोर्ट आफिस हर घर में,
    हिन्दी की अचूक सभी आलोक फैलाइये।
    हर हिन्द वासी भेद-भाव जात-पात छोड़,
    हिन्दी सु – पताका चहुँ ओर फहराइये।

    आजादी का मूलमंत्र राज हर खुशियों का,
    मानवता माधुर्य शुचि हिन्दी से हीं पाइये।
    राष्ट्र धर्म न्याय नीति सबके उत्थान हेतु,
    कवि बाबूराम हिन्दी सार में समाइये।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
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  • सिरपुर की कविता

    सिरपुर की कविता

    27 सितम्बर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है। विद्यालय में इस दिन पर्यटन का महत्व बताते हुए प्रान्त तथा देश के पर्यटन स्थलों की विस्तृत जानकारी करानी चाहिए। पर्यटन के विभिन्न साधनों से अवगत कराते हुए सड़क मार्ग तथा रेलमार्गों के नक्शे लगाकर महत्वपूर्ण स्थलों तक पहुँचने का मार्ग तथा समय, व्यय आदि भी बताने चाहिए। पर्यटन के समय क्या क्या सामग्री साथ में लेनी चाहिए, किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना है, इस प्रकार की सारी शिक्षा इस अवसर पर आसानी से दी जा सकती है। वर्ष में एक बार पर्यटन का कार्यक्रम रखना भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यह भी विद्यालय की गतिविधियों का विशेष अंग हो, जिसके लिए अर्थ-व्यवस्था तथा यात्रा क्रम, विश्राम स्थल आदि का प्रबन्ध पहले से किया जाना चाहिए।

    सिरपुर की कविता

    सिरपुर की कविता

    सिरपुर की है , इतिहास गहरा।
    छत्तीसगढ़ की है, ये पावन धरा।
    गौरव बढ़ाता लक्ष्मणेश्वर ।
    यश फैलाता महादेव गंधेश्वर।
    भग्नावशेष है स्वास्तिक विहार के,
    जिसमें विराजे गौतम बुद्धेश्वर ।
    श्रीपुर है दिव्य स्थल,
    जहाँ देवों का पहरा ।
    छत्तीसगढ़ की है, ये पावन धरा।1

    दक्षिण कोशल की है जो राजधानी ।
    पांव पखारे जिसे ,महानद की पानी ।
    राम-लक्ष्मण की मंदिर है जहाँ, सुहानी ।
    बनाया था जिसे हर्ष की वासटा महारानी ।
    शैव,वैष्णव,बौद्ध,जैन धर्म से जुड़ी
    यहाँ पर उनकी चिह्न प्रतीकों से भरा।
    छत्तीसगढ़ की है, ये पावन धरा।2

    दूरस्थ क्षेत्रों से आते चित्रांगदापुर ।
    अखिल विश्व धरोहर में, है मशहुर ।
    सातवीं शताब्दी में आया जो भूकंप
    हो गई फिर यह दिव्य स्थल चूर-चूर ।
    कला स्थापत्य धर्म अध्यात्म से पूर्ण
    सोमवंशी राजाओं का था यहाँ डेरा।
    छत्तीसगढ़ की है, ये पावन धरा।3
    (✒ मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़ )