Category हिंदी कविता

जीवन का शाश्वत सत्य

जीवन का शाश्वत सत्य भोर की बेला हुई, दिनकर की पलकें खुली।इंतज़ार ख़त्म हुआ, सौगात लेकर आई नयी सुबह।।धीरे धीरे आँखे खोल रहा,स्वर्ण किरणें बिखेर रहा।नयी सुबह प्रारंभ हुई, रात्रि निशा विभोर हुई।। कल जो जा रहा पश्चिम में था,आज…

मन पर कविता

मन पर कविता सोचा कुछहो जाता कुछ हैमन के ही सब सोचमन को बांध सका न कोईमन खोजे सब कोय।।⭕हल्के मन से काम करो तोसफल रहे वो कामबाधा अगर कोई आ जायेबाधित हो हर काम।।⭕मन गिरे तन मुरझायेवैद्य काम नही…

तोता पर कविता

तोता पर कविता ना पंख है ना पिंजरे में कैद,फिर भी है तोता ।खाता है पीता है,रहता है स्वतंत्र,हमेशा एक गीत है गाता नेता जी की जय हो। कर लिया बसेराबगल की कुर्सी पर,खाने को जो है मिलतामुफ्त का भोजन,टूट…

संतोषी है मधुशाला

संतोषी है मधुशाला संतोषी अँगूर लता है,संतोषी साकी बाला।संतोषी  पीने  वाला हैसंतोषी है मधुशाला।बस्ती -बस्ती चौराहे पर,अपनी दुकान खोलने वाले। विज्ञापन  के राम  भरोसे,अपनी दुकान चलाने वाले।जंगल उपवन बाग बगीचे,संतोष  दिखाई  देता है।डगर अकेली सन्नाटे मे,भीड़ जुटाती मधुशाला। संतोष  समाई …

doha sangrah

अविनाश तिवारी के दोहे

अविनाश तिवारी के दोहे घड़ी घड़ी घड़ी का फेर है,    मन में राखो धीर।राजा रंक बन जात है,   बदल जात तकदीर।। प्रेम प्रेम न सौदा मानिये,    आतम  सुने पुकार।हरि मिलत हैं प्रीत भजेमति समझो व्यापार।। दान देवन तो करतार है, …

उन बातों को मत छेड़िये

उन बातों को मत छेड़िये सारी बातें बीत गई उन बातों को मत छेड़िये,जो तुम बिन गुजरी उन रातों को मत छेड़िये। तुम मिलो न मिलो हमसे रूबरू होकर कभी,लाखो शिकायते हैं उन हालातों को मत छेड़िये। एक नजर भर…

चेहरे पर कविता

चेहरे पर कविता सुनोकुछ चेहरोंके भावों को पढ़नाचाहती हूॅपर नाकाम रहती हूॅ शायदखिलखिलाती धूप सीहॅसी उनकीझुर्रियों की सुन्दरताबढ़ते हैंपढ़ना चाहती हूॅउस सुन्दरता के पीछेएक किताबजिसमें कितनेगमों के अफसाने लिखे हैंना जाने कितने अरमान दबे हैंना जाने कितने फाँके लिखे हैं…

इन्तजार पर कविता

इन्तजार पर कविता विसंगति छाई संसृति मेंकरदे समता का संचार।मुझे ,उन सबका इन्तजार…। जीवन की माँ ही है, रक्षकफिर कैसे बन जाती भक्षक ?फिर हत्या, हो कन्या भ्रूण की या कन्या नवजात की ।रक्षा करने अपनी संतान कीजो भरे माँ…

संस्कार पर कविता

संस्कार पर कविता अहो,युधिष्ठिर हार गया है,दयूत् क्रीड़ा में नारी को,दुःसाशन भी खींच रहा है,संस्कारों की हर साड़ी को। अपनी लाज बचाने जनता,सिंहासन से भीड़ जाओ तुम,भीख नही अधिकार मांगने,कली काल से लड़ जाओ तुम,विपरित काल घोर कलयुग है,ना याद…

क्यूँ झूठा प्यार दिखाते हो

क्यूँ झूठा प्यार दिखाते हो क्यूँ  झूठा  प्यार  दिखाते  हो ….दिल  रह  रह  कर  तड़पाते  हो .. गैरों  से  हंसकर  मिलते  होबस  हम  से  ही  इतराते  हो घायल  करते  हो  जलवों  से …नज़रों  के  तीर  चलाते  हो … जब  प्यार …