Category: हिंदी देशभक्ति कविता

  • 31 अक्टूबर राष्ट्रीय एकता दिवस पर कविता

    31 अक्टूबर राष्ट्रीय एकता दिवस पर कविता

    राष्ट्रीय एकता दिवस को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयन्ती को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है, जिनकी भारत के राजनीतिक एकीकरण में प्रमुख भूमिका थी। 

    हम सब भारतवासी हैं

    o निरंकारदेव ‘सेवक’

    हम पंजाबी, हम गुजराती, बंगाली, मदरासी हैं,

    लेकिन हम इन सबसे पहले केवल भारतवासी हैं।

    हम सब भारतवासी है !

    हमें देश-हित, जीना मरना पुरखों ने सिखलाया है।

    हम उनके बतलाये पथ पर, चलने के अभ्यासी हैं।

    हम बच्चे अपने हाथों से, अपना भाग्य बनाते हैं,

    हमें प्यार आपस में करना, पुरखों ने सिखलाया है,

    मेहनत करके बंजर धरती से, सोना उपजाते हैं !

    पत्थर को भगवान् बना दें, हम ऐसे विश्वासी हैं !

    वह भाषा हम नहीं जानते, बैर-भाव सिखलाती जो,

    कौन समझता नहीं, बाग में बैठी कोयल गाती जो।

    जिसके अक्षर देश-प्रेम के, हम वह भाषा-भाषी है !.

    एकता अमर रहें

    ● ताराचंद पाल ‘बेकल’

    देश है अधीर रे!

    अंग-अंग-पीर रे !

    वक़्त की पुकार पर,

    उठ जवान वीर रे !

    दिग्-दिगंत स्वर रहें !

    एकता अमर रहें !!

    एकता अमर रहें !!

    गृह कलह से क्षीण आज देश का विकास है,

    कशमकश में शक्ति का सदैव दुरुपयोग है।

    हैं अनेक दृष्टिकोण, लिप्त स्वार्थ-साध में,

    व्यंग्य-बाण-पद्धति का हो रहा प्रयोग है।

    देश की महानता,

    श्रेष्ठता, प्रधानता,

    प्रश्न है समक्ष आज,

    कौन, कितनी जानता ?

    सूत्र सब बिखर रहें !

    एकता अमर रहें !!

    एकता अमर रहें !!

    राष्ट्र की विचारवान शक्तियां सचेत हों,

    है प्रत्येक पग अनीति एकता प्रयास में ।

    तोड़-फोड़, जोड़-तोड़ युक्त कामना प्रवीण,

    सिद्धि प्राप्त कर रही है धर्म के लिबास में ।

    बन न जाएं धूलि कण,

    स्वत्व के प्रदीप्त-प्रण,

    यह विभक्ति भावना,

    दे न जाएं और व्रण,

    चेतना प्रखर • रहें !

    एकता अमर रहें !!

    एकता अमर रहें !!

    संगठित प्रयास से देश कीर्तिमान् हो,

    आंच तक न आ सकेगी, इस धरा महान् को।

    शत्रु जो छिपे हुए हैं मित्रता की आड़ में,

    कर न पाएंगे अशक्त देश विधान को ।

    पन्थ हो न संकरा,

    यह महान् उर्वरा,

    इसलिए उठो, बढ़ो!

    जगमगाएंगे धरा,

    हम सचेत गर रहें !

    एकता अमर रहें !!

    एकता अमर रहें !!

    ज्योति के समान शस्य श्यामला चमक उठें,

    और लौ-से पुष्प-प्राण-कीर्ति की गमक उठें।

    यत्न हों सदैव ही रख यथार्थ सामने,

    धर्मशील भाव से नित्य नव दमक उठें।

    भव्य भाव युक्त मन,

    अरु प्रत्येक संगठन,

    प्रण, प्रवीण साध लें,

    नव भविष्य-नींव बन,

    दृष्टि लक्ष्य पर रहें!

    एकता अमर रहें !!

    एकता अमर रहें !!

    भारत का मस्तक नहीं झुकेगा

    ● अटलबिहारी वाजपेयी

    एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते

    पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा

    अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतन्त्रता

    अश्रु, स्वेद, शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता

    त्याग, तेज, तप बल से रक्षित यह स्वतन्त्रता

    प्राणों से भी प्रियतर अपनी यह स्वतन्त्रता ।

    इसे मिटाने की साज़िश करने वालों से

    कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है।

    औरों के घर आग लगाने का जो सपना

    अपने ही घर में सदा खरा होता है।

    अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो

    अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ

    ओ नादान पड़ोसी अपनी आँखें खोलो

    आजादी अनमोल न उसका मोल लगाओ।

    पर तुम क्या जानों आज़ादी क्या होती है

    तुम्हें मुफ़्त में मिली न कीमत गई चुकायी

    अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाये हैं।

    माँ को खण्डित करते तुमको लाज न आई।

    अमरीकी शस्त्रों से अपनी आज़ादी को

    दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो

    दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली

    बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो।

    जब तक गंगा की धारा, सिंधु में तपन शेष

    स्वातंत्र्य समर की बेदी पर अर्पित होंगे

    अगणित जीवन, यौवन अशेष ।

    अमरीका क्या, संसार भले ही हो विरुद्ध

    काश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,

    एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते

    पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।

    एकता गीत

    माधव शुक्ल

    मेरी जां न रहें, मेरा सर न रहें

    सामां न रहें, न ये साज रहें !

    फकत हिंद मेरा आजाद रहें,

    मेरी माता के सर पर ताज रहें

    सिख, हिंदू, मुसलमां एक रहें,

    भाई-भाई-सा रस्म-रिवाज रहें !

    गुरु-ग्रंथ वेद-कुरान रहें,

    मेरी पूजा रहें और नमाज रहें !

    मेरी जां न रहें…

    मेरी टूटी मड़ैया में राज रहें,

    कोई गर न दस्तंदाज रहें !

    मेरी बीन के तार मिले हों सभी,

    इक भीनी मधुर आवाज रहें

    ये किसान मेरे खुशहाल रहें,

    पूरी हो फसल सुख-साज रहें !

    मेरे बच्चे वतन पे निसार रहें,

    मेरी माँ-बहनों की लाज रहें !

    मेरी जां न हो….

    मेरी गायें रहें, मेरे बैल रहें

    घर-घर में भरा सब नाज रहें !

    घी-दूध की नदियां बहती रहें,

    हरष आनंद स्वराज रहें !

    माधों की है चाह, खुदा की कसम,

    मेरे बादे बफात ये बाज रहें !

    खादी का कफन हो मझ पे पड़ा,

    ‘वंदेमातरम्’ अलफाज रहें !

    कोई गैर नहीं

    कोई नहीं है गैर !

    बाबा! कोई नहीं है गैर !

    हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई

    देख सभी हैं भाई-भाई

    भारतमाता सब की ताई,

    मत रख मन में बैर !

    बाबा! कोई नहीं है गैर !

    भारत के सब रहने वाले,

    कैसे गोरे, कैसे काले ?

    हिंदू-मुस्लिम झगड़े पाले,

    पड़ गए जिससे जान के लाले,

    काहे का यह बैर !

    बाबा! कोई नहीं है गैर !

    राम समझ, रहमान समझ लें,

    धर्म समझ, ईमान समझ लें,

    मसजिद कैसी, मंदिर कैसा ?

    ईश्वर का स्थान समझ लें,

    कर दोनों की सैर !

    बाबा ! कोई नहीं है गैर !

    सोचेगा किस पन में बाबा !

    क्यों बैठा है वन में बाबा !

    खाक मली क्यों तन में बाबा !

    ढूँढ़ लें उसको मन में बाबा !

    माँग सभी की खैर !

    बाबा! कोई नहीं है गैर !

    ‘कोई नहीं है गैर !

    बाबा ! कोई नहीं है गैर !

    भू को करो प्रणाम

    जगदीश वाजपेयी

    बहुत नमन कर चुके गगन को, भू को करो प्रणाम !

    भाइयों, भू को करो प्रणाम !

    नभ में बैठे हुए देवता पूजा ही लेते हैं,

    बदले में निष्क्रिय मानव को भाग्यवाद देते हैं।

    निर्भर करना छोड़ नियति पर, श्रम को करो सलाम।

    साथियों, श्रम को करो सलाम !

    देवालय यह भूमि कि जिसका कण-कण चंदन-सा है,

    शस्य – श्यामला वसुधा, जिसका पग-पग नंदन-सा है।

    श्रम- सीकर बरसाओ इस पर, देगी सुफल ललाम,

    बन्धुओं, देगी सुफल ललाम !

    जोतो, बोओ, सींचो, मेहनत करके इसे निराओ,

    ईति, भीति, दैवी विपदा, रोगों से इसे बचाओ।

    अन्य देवता छोड़ धरा को ही पूजो निशि-याम,

    किसानों, पूजो आठों याम !.

    आओ हम बुनियाद रखे आजाद हिन्दुस्तान की

    मोहम्मद अलीम

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    चारो ओर फैला प्रदूषण, भारत माता कराह रही |
    स्वच्छ भारत अभियान चला,नदियों में भी राह नही |
    प्रकृति से करते खिलवाड़, मन में अब उत्साह नही |
    इस धरा को स्वर्ग बनाने, जय बोलो युवा संतान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    चारो ओर आतंक मचा है, दुश्मन गोली बरसाते है |
    भारत माँ के वीर सपूत, सीने पर गोली खाते हैं |
    दोस्ती का हाथ बढ़ाकर,शत्रु को भी अपनाते हैं |
    बहुत वीरगांथाए हैं, जय बोलो बलिदान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    अणु -परमाणु बना रहे, बना रहे मिसाइल हैं |
    इंटरनेट का जाल बिछा,तरंगो से सब घायल हैं |
    रासायनिक उर्वरको का, प्रयोग करते जाहिल हैं |
    सुधार प्रक्रिया अपनाने को, जय बोलो विज्ञान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    राजनीति के गलियारो में, अच्छे नेताओ का टोटा है |
    भ्रष्टाचार मचा हुआ है, हमारा सिक्का खोटा है |
    गरीब मजदूरों के पास, न थाली न लोटा है |
    हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई, जय बोलो इंसान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    शिक्षा व्यवस्था चौपट सब,स्कूल में कौन पढ़ाते है |
    निजी विद्यालय को देखो , शुल्क रोज बढ़ाते है |
    ट्यूशन और फरमानो से, बच्चे बोझ से दब जाते हैं |
    शिक्षा में गुणवत्ता लाने, जय बोलो शिक्षा मितान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    हाहाकार मचा हुआ है,देख हिमालय की घाटी में |
    वीर सपूत लोहा लेते हैं, रक्त सिंचते है माटी में |
    अर्थव्यवस्था बिगाड़ रहे,यही शत्रु की परिपाटी में |
    आतंकियो को मार भगाने , जय बोलो जवान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    भारत महान बना जायें

    नेमलता पटेल नम्रता ,रायगढ़, छत्तीसगढ़

    एकता अखण्डता से बना हमारा संविधान है,

    जो गौरव बढ़ाता विदेशो में भी भारत का शान है।

    नन्हीं – नन्हीं चीटियाँ मिलकर भार उठा लेती है,

    वर्षा की नन्हीं बूंदे मिलकर सागर बन जाती है।

    एक – एक पेड़ से ही जंगल बनते है,

    मिलकर वातावरण शुद्ध करते है।

    एकता में ही शक्ति है आज हम सब भी मान लें,

    मिलकर ही काज सफल होंगे ये आज जान लें।

    तुझे समझ नहीं है कि तूने क्या खोया है,

    एकता छोड़कर अपने राहों में काँटे बोया है।

    चलो टूटे परिवारों को जोड़कर रूठे साथियों को मना लें,

    छोटे – छोटे फूलों को चुनकर बगिया अपनी सजा लें। 

    भाईचारे की भावना से वतन महका जायें,

    संरक्षण कर वन्य जीवों का चमन चहका जायें।

    इस अमूल्य मानव जीवन का मोल चुका जायें,

    एकता के बीज बोकर भारत महान बना जायें।

    भारत की आन

    रोमी जायसवाल  

    भारत की आन…..

    समस्त भारतीय मनाते सम्मान। 

    भारत की आन…..

    निज  स्वत्व में ,स्वाधीनता का महत्व।

    लेकर तिरंगे की,हृदय मे मान।

    भारत की आन…..

    राष्ट्रीय एकता,मानो धर्मनिरपेक्षता। 

    वेदों की वाणी,ऋषियों की जुबानी। 

    धर्म सार का बढ़ता जिससे ज्ञान।  

     भारत की आन….

    शहीदों की शहादत से सींचा,बचाने वसुधा की मान,

    श्रद्धा सुमन अर्पण कर,करते नमन प्रणाम।          

    भारत की आन…..

    15अगस्त का दिवस पावन, क्षण बहुत महान, 

    हो राष्ट्रीय एकता सदभावना से,ध्वजवंदन कर गाते राष्ट्र गान। 

    भारत की आन…..

    आओ मनाये मिलकर,संकल्पित हो राष्ट्रीय एकता का निर्माण,

    सार्वभौमिकता अखंडता भाव से,मनाये महापर्व स्वतंत्रता दिवस महान,

    कम न हो कभी देश की आन,बान,शान। 

    भारत की आन…….     

    हम सब एक परिवार हैं

    गुलाब ठाकुर

    राष्ट्र निर्माण के लिए , भारतीय पुत तैयार हैं ।
    एकता के साथ खड़े हैं , हम सब एक परिवार हैं ।।

    ना मेरा – ना तेरा , भारत हमारा है ।
    वसुदेव कुटुंबकम से , परिवार विश्व सारा है ।।

    भारत माता के गले में , सुंदर एक माला है ।
    हिंदू , मुस्लिम , सिख , इसाई , चुन-चुन कर पुष्प डाला है ।।

    एक धागे में पिरो कर , सबको एक करना है ।
    चाहे कितना भी संकट आए , फिर क्यों उनसे  डरना है ।।

    अमीर गरीब का भेद हटे , ना कोई अत्याचार हो ।
    ऐसा कुछ प्रबंध करें , पूरा भारत परिवार ।।

    राष्ट्रीय एकता

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.) पिन- 493558

    ये स्वतंत्रता वीर भगतसिंह,चंद्रशेखर,सुभाषचन्द्र की निशानी है।
    साढ़े तीन सौ सालों के संघर्ष,बलिदान की कहती कहानी है।
    स्वतंत्रता का पर्व,नील गगन में लहराता अपना तिरंगा।
    धर्मनिरपेक्ष संप्रभु,गणतंत्रात्मक,स्वतंत्र भारत की निशानी है।1।


      तिरंगे की आन,बान,शान में कितने शीश कटाये हैं।
      माँ भारती की रक्षा खातिर,सीने में कितने गोली खाये हैं।
      हुआ है लतपथ जमीं माँ तेरे लालों के खून लाल से।
      हँसकर सूली चढ़े,वीर योद्धाओं ने इंकलाब,वंदेमातरम गाये हैं।2।


    भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु झूल गए फाँसी भारत स्वतंत्र कराने को।
    रानी लक्ष्मीबाई ने तलवार उठाई माँ भारती का गौरव बढ़ाने को।
    शहीद हुए माँ भारती के लाखों लाल, देश से दुश्मन भगाने को।
    ऊंचे गगन में तिरंगा फहरता रहे,हमें देशभक्ति का फर्ज बताने को।3।

    राष्ट्रीय एकता

    स्नेहलता “स्नेह”सीतापुर, अम्बिकापुर (छ. ग.)

    राष्ट्रीय एकता,चारों दिशा में,

    खुली सबा में,सारे जहां में

    जश्ने आज़ादी है,तिरंगा लहराया

    वंदेमातरम्

    गूंजे वतन में गूंजे चमन में

    गूंजे फिजाओं में

    जग-गण-मण का गायन

    करें हिंदू मुस्लिम सारे

    पूरब,पश्चिचम,उत्तर

    दक्षिण तक गगन हमारे

    एकता बाना है,भेद मिटाना है

    वंदेमातरम्…….

    धरती माँ की संतानें सब

    धरती माँ को प्यारी

    हिंदू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई 

    धरती की फुलवारी

    सींचकर शोणित से, जान लुटाना है

    वंदेमातरम्……..

    भारत सोने की चिड़िया है       

    राम-कृष्ण की भूमि

    उसका जीवन पावन जिसने

    भारत माटी चूमी

    हाथ ले रजकण को ,माथ लगाना है

    वंदेमातरम्…..

    राष्ट्रीय एकता

    -गुलशन खम्हारी “प्रद्युम्न” रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

    आजादी का जोत जलाने जला कोई पतंगा है,

    मस्त-मस्त मदमस्त मता आज मतंगा है ।

    यशस्वी यशगुंजित यशगान से,

    पुनीत पुनीत पुलकित पंकज पुमंगा है ।।


    निश्चय श्वेत रंग से अंग-अंग श्वेत अंगा है,

    देशभक्ति रक्त मांगती रक्तिम अब उमंगा है ।

    जागरण हो आचरण में तो,

    भीष्म जन्मती फिर से पावन गंगा है ।।

    दूध पिलाए सर्पों से देखो कितने सुरंगा है,

    वेदना आह अथाह से गुंजित आकाशगंगा है ।

    बंद करो मातम के सात सुरों को,

    पदचाप नृत्य में झूमे नवल अनंगा है ।।


    जयचंदों के जग में विप्लव कहीं पर दंगा है,

    अपनों से छला है सीना लाल रक्त रंगा है ।

    प्रहलाद आह्लादित होगा,

    हिरण्याक्ष को अवतार प्रभु नरसिंगा है ।।


    धर्मांधता के लालच में मचा हुआ हुड़दंगा है,

    धर्म बेचता पाखंड बाजार बीच में अधनंगा है ।

    पुण्यकर्म है देशप्रेम,रज-रज में साधु संत सत्संगा है ।।


    और मॉं भारती के जयघोष से बजा मृदंगा है,

    सतरंगी चुनर में श्रृंगार इंद्रधनुषी सतरंगा है ।

    यौवन तीव्र तेज प्रताप से,

    लहर-लहर-लहराता शान तिरंगा है ।।

    राष्ट्रीय एकता

    डॉ. वंदना सिंह

    आज फिर फिजाओं में गूंजेगा आजादी का तराना ,
    आज फिर हर कोईबन जाएगा देश भक्त दीवाना आज फिर बिक जायेंगे
    बहुत सारे झंडे तिरंगे
    और लोग कहलाएंगे देशभक्तचेहरे पर स्टीकर चिपका कर
    और देह को टैटू से रंग के ।
    आज फिर एक बार
    सेना इस ठंड में राजपथपर दमखम दिखलाएगी 
    और हम देखेंगे टीवी पर
    गणतंत्र दिवस का उत्सव
    अपनी रजाईयों में दुबके
    और फिर कल फेंक झंडे को
    हम आगे बढ़ जाएंगे ।
    फिर बन जाएंगे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ,दलित सवर्ण
    ना इंडियन रह जाएंगे
    कल फिर से खेलेंगे
    खेल नफरत का
    टुकड़ों में बंट जाएंगे ।
    फिर से करेंगे कृत्य
    देश को शर्मिंदा करने वाले
    कहीं पर्यटकों से बदसलूकी
    कहीं दिखाएंगे कानून को ठेंगा गणतंत्र की धज्जियां उड़ाएंगे
    फिर क्यों हो यह हंगामा ?
    क्यों यह शोर हो ?
    अगर सच में करो ,
    गणतंत्र का सम्मान
    भारत दुनियां में सिरमौर हो ।।

  • गणतंत्र दिवस पर कविता

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    गणतंत्र दिवस पर कविता : गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।

    Republic day

    गणतंत्र पर दोहा

    वीरों के बलिदान से,मिला हमें गणतंत्र।
    जन-जन के सहयोग से,बनता रक्षा यंत्र।।

    गणतंत्र दिवस हो अमर,वीरों को कर याद।
    अपनों के बलिदान से,भारत है आजाद।।

    भगत सिंह,सुखदेव को,नमन करे यह देश।
    आजादी देकर गए,सुंदर सा परिवेश।।

    आपस में लड़ना नहीं,हम सब हैं परिवार।
    बंद करें संवाद से,आपस के तकरार।।

    झंडा लहराते रहें,भारत की यह शान।
    गाएँ झंडा गीत हम,राष्ट्र ध्वज हो मान।।

    राजकिशोर धिरही

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    सज रहा गांव गली

    सज रहा गांव गली, सज रहा देश।
    दिन ऐसा आया है ,  जो है विशेष।
    दुनिया बदल रही पल पल में।
    चलो आज हम भी  लगा लें रेस।
    जश्न ए आजादी का ,हम मनाएंगे
    चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
    तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
    झूमते हुए लगालो ये नारा…
    वन्दे मातरम….


    सुनो सुनो ध्यान से, मेरी जुबानी।
    तकलीफ़ो से भरी, देश की कहानी।
    फिरंगियों ने की थी जो , मनमानी।
    पड़ गई जिनको  भी मुंह की खानी ।
    देश के वीरों का नाम, हम जगायेंगे।
    चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
    तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
    झूमते हुए लगालो ये नारा…
    वन्दे मातरम….

    -मनीभाई नवरत्न

    जन गण मन गा कर देखो- राकेश सक्सेना

    बस एक बार छू भर कर देखो,
    दिल की तह से महसूस कर देखो,
    गांधी भगत पटेल की तस्वीर पर,
    ख़ून पसीने की बूंदें तो देखो।।

    कितना त्याग किया वीरों ने,
    तस्वीर में छिपी सच्चाई तो देखो,
    बीवी बच्चे परिवार का मोह,
    देश हित में छोड़ कर तो देखो।।

    भूखे-प्यासे जंगल बीहड़ों में,
    भटक-भटक जी कर तो देखो,
    मीलों पैदल चल चलकर,
    जनजन में भक्ति जगाकर देखो।।

    आज़ादी हमें मिली थी कैसे,
    एकबार तस्वीरें छू कर तो देखो,
    अनशन आंदोलन फांसी का दर्द,
    देशहित में मर कर तो देखो।।

    आज़ाद भारत में इतराने वालों,
    वीर सेनानियों के आंसू तो देखो,
    क्या हमने राष्ट्र धर्म निभाया,
    दिल पर हाथ रख कर तो देखो।।

    कालाबाजार, भ्रष्टाचारों से,
    मुक्त भारत के सपने तो देखो,
    वीर सेनानियों की तस्वीरों पर,
    सच्ची श्रद्धांजलि देकर भी देखो।।

    फिर गर्व से सर उठा कर देखो,
    फिर झण्डा ऊंचा लहराकर देखो,
    फिर दिल में भक्ति जगाकर देखो,
    फिर जन गण मन भी गा कर देखो।।

    राकेश सक्सेना

    आया दिवस गणतंत्र है

    आया दिवस गणतंत्र है
    फिर तिरंगा लहराएगा
    राग विकास दोहराएगा
    देश अपना स्वतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    नेहरू टोपी पहने हर
    नेता सेल्फ़ी खिंचाएगा।
    आज सत्ता विपक्ष का
    देशभक्ति का यही मन्त्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    चरम पे पहुची मंहगाई
    हर घर मायूसी है छाई
    नौ का नब्बे कर लेना
    बना बाजार लूटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।


    भुखमरी बेरोजगारी
    मरने की है लाचारी
    आर्थिक गुलामी के
    जंजीरो में जकड़ा
    यह कैसा परतन्त्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    सरहद पे मरते सैनिक का
    रोज होता अपमान यहाँ
    अफजल याकूब कसाब
    को मिलता सम्मान यहां
    सेक्युलरिज्म वोटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    सेवक कर रहा है शासन
    बैठा वो सोने के आसन
    टूजी आदर्श कोलगेट
    चारा खाकर लूटा राशन
    लालफीताशाही नोटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।


    भगत -राजगुरु- सुभाष-गांधी
    चला आज़ादी की फिर आँधी
    समय की फिर यही पुकार है
    जंगे आज़ादी फिर स्वीकार है
    आ मिल कसम फिर खाते हैं
    देश का अभिमान जगाते हैं।
    शान से कहेंगे देश स्वतंत्र है
    देखो आया दिवस गणतंत्र है।


          ©पंकज भूषण पाठक”प्रियम”

    अमर रहे गणतंत्र दिवस

    अमर रहे गणतंत्र दिवस
    ले नव शक्ति नव उमंग
    अमर रहे गणतंत्र दिवस।
    ले नव क्रांति शांति संग।


    हो सबका ध्वज तले संकल्प।
    एक रहें हम नेक रहें।
    हो हम सबका एक विकल्प।
    ममता समता हो हम में


    नव भारत की नई नींव
    मज़बूत बनाएँ हम सबमें
    इस शक्ति का हो संचार
    कुर्बां होने की शक्ति हो।


    हममें निहित हो सदाचार।
    विश्व बंधुत्व पर कर विश्वास।
    ऐ बंधु कदम बढाये जा
    अंतिम श्वास तक नि:स्वार्थ।


    विश्व शांति की लिए मशाल।
    फैला दे जग में संदेश
    लिए विशाल लक्ष्य विकराल।
    जला दे अंधविश्वास की मूल।
    तोड़ दे जाति भाषा वाद।
    प्रगति के ये बाधक शूल।


    अमर रहे गणतंत्र दिवस।
    सच कर दो यह विश्वास
    अमर रहे गणतंत्र दिवस।

    • सुनील गुप्ता  सीतापुर सरगुजा छत्तीसगढ

    मैंने हिंदुस्तान देखा है

    मैंने जन्नत नहीं देखा यारों मैंने हिंदुस्तान देखा है
    भाईचारे से रहते हर हिंदू और मुसलमान देखा है
    गीता-क़ुरान रहते साथ और पवित्र गंगा कहते हैं
    हरे-भगवे की छोड़ बैर सब जय जय तिरंगा कहते हैं


    लहराओ तिरंगा और सब जय जयकार करो
    दुश्मन से ना लड़ो बुराइयों पर ही वार करो
    सलाम ऐसे सैनिक जो स्वार्थ नंगा कहते हैं
    घर वालों की फ़िकर छोड़ जय जय तिरंगा कहते हैं


    तीन रंग के झण्डे में अद्भुत सामर्थ्यता छाई है
    ना जाने कितनों ने इसकी ख़ातिर जान गवाई है
    इंक़लाबियों को याद कर सुनाओ उनकी कहानी
    गर्व से भरो सर्वदा भले ही आँख में ना आए पानी


    आज़ादी के ख़ातिर तुम भी हो जाओ मतवाले
    लड़ो अपने आप से बन जाओ हिम्मत वाले
    आज़ादी के दीवानों को कल हमने ये कहते देखा
    जय जय हिंदुस्तान के नारों को एक साथ रहते देखा

    -दीपक राज़

    नव पीढ़ी हैं हम

    नव पीढ़ी हैं हम हिन्दुस्तान के
    वंदे मातरम्,वंदे मातरम् गाएंगे

    सबसे बड़ा संविधान हमारा
    अम्बेडकर पर हमें है गर्व
    लोकतंत्र है अद्वितीय हमारा
    चलो मनाते हैं गणतंत्र पर्व
    आजादी के हैं परवाने
    वतन पे जान लुटाएंगे
    नव पीढ़ी हैं……

    हम हैं भारत माता के लाल
    हमारी बात ही कुछ और है
    दुनिया एक दिन मानेगी
    हम ही जमाने की दौर हैं
    हमारे हौसले हैं फौलादी
    कांटों में फूल खिलाएंगे
    नव पीढ़ी हैं…..

    अब होगा दिग्विजय हमारा
    शिखर पर परचम लहराएगा
    वो  दिन अब  दूर  नहीं है
    जब चांद पे तिरंगा छाएगा
    इरादे नेक हैं हमारे
    दुनिया को दिखलाएंगे
    नव पीढ़ी हैं……

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    बोल वंदे मातरम्

    सांसों में गर सांसे है,
    और हृदय में प्राण है।
    अभिमान तेरा..है तिरंगा,
    और राष्ट्र..तेरी शान है।
    सिंह-सा दहाड़ तू…
    और बोल वंदेमातरम्…
    और बोल वंदेमातरम्….।


    है ये ओज की वही ध्वनि,
    जिससे थी अंग्रेजों की ठनी।
    हर कोनें-कोनें में जय घोष था,
    बाल-बाल में भरता जो रोष था।
    करके मुखर गाया जिसे सबने,
    वह गीत है वंदेमातरम्…..
    चल तू भी गा और मै भी गाऊं,
    हृदय के स्पंदन में वंदेमातरम्,
    और बोल वंदेमातरम्….
    और बोल वंदे मातरम्….।


    वीरों में जिसने अलख जगाया था,
    क्रांति लहर..को ज्वार दिलाया था।
    जिसने गगन में लहराया जय हिंद,
    वो राग है वंदे, वंदे मातरम्…
    वो राग है वंदे…..,वंदे मातरम्….।
    जिसे सुनकर शत्रु सारे कांपे थे,
    डरकर जिससे सरहद से वो भागे थे।
    गर्व करता है सैनिक जिसपे,
    वो जाप है अमर, वंदे मातरम्…।


    वो जाप है वंदे मातरम्,वंदे मातरम्।
    पंजाब,सिंध, गुजरात और मराठा,
    द्राविड़,उल्कल,बंग एकता का धार है।
    पहचान है हिन्द का है वंदेमातरम्,
    श्वास में जो ज्वाल सा निकले…,
    शब्द-शब्द में है जिसमें बसते मेरे प्राण हैं।
    वो गीत मेरा अभिमान है…..
    पुक्कू बोल जोर से वंदे मातरम्…..।।
    और बोल वंदे….मातरम्….।
    और बोल वंदे….मातरम्….।

        ©पुखराज यादव “प्राज”
           पता- वृंदावन भवन-163, विख- बागबाहरा,जिला- महासमुन्द (छ.ग.) 493448

    स्वतन्त्रता का दीप

    स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा


    (१)
    अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरी शान की
    ये बात आ खडी है अब तो तेरे स्वाभिमान की
    कटे नहीं,मिटे नहीं,झुके नहीं तो बात है
    अपने फर्ज पर सदा डटे रहे तो बात है
    तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जायेगा
    जो देश प्रति है फर्ज अपने फर्ज तू निभाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!

    (२)
    जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले
    छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले
    भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गयी
    नहीं झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गयी
    उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो
    एक-एक करके सबको देश से मिटाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!


    (३)
    मिली हमें आजादी कितनी माँ के लाल खो गये
    हँसते-हँसते भारती की गोद  जाके खो गये
    आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें
    भेद-भाव में बँटे जो साथ में मिला इन्हें
    सौंप ये वतन गये जो हमसे उम्मीदें बाँध जो
    सँवार के उम्मींदे उनकी देश को सजाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
    स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा !
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!


    शिवाँगी मिश्रा

    भारत की शान पर हो जाऊंँ कुर्बान,
    लब पे सदा रहे भारत का गुणगान।
    देश के संविधान का एसा हुआ था आरंभ,
    26जनवरी1950 को गणतंत्र हुआ प्रारंभ।


    हिंदुस्तान है वीर पराक्रम योद्धाओं से भरा,
    देख युद्ध कौशल-साहस दुश्मन हम से डरा।
    बनो नेक इंसान न करो अनर्गल-बहस,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    इस आजादी की ख़ातिर कितने हुए बलिदान,
    मंगल पांडे लक्ष्मीबाई महात्मा गांधी जी महान।
    देश-प्रेम को अपनाकर देशद्रोहियों को भगाइए,
    परोपकार से नित-दिल में देश प्रेम को जगाइए।


    वीरों के पुत्र हो न,रखो हृदय में कशमकश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
    भारतीय सविधान के निर्माता को सादर नमन,
    भीमराव अंबेडकर जी थे स्वतंत्रता का चमन ।दुश्मन-अंग्रेजों की कूटनीति,हुआ था विफल,
    क्रांतिकारियों के कारण ये मुहिम हुआ सफल।


    मनाओ सभी 73वें गणतंत्र दिवस की-यश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    हिंदुस्तान के सपूतों एक वादा करना,
    देश के दुश्मनों से हरगिज़ न डरना।
    नित करो अपने मातृभूमि से प्यार,
    देश रक्षा के लिए सदैव रहो तैयार।


    आतंकवाद-सांप्रदायिकता को दूर भगाओ,
    राष्ट्र रक्षा के लिए अभी से तैयार हो जाओ।
    दो सबको खुशियां न करो किसी को विवश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    हिंदू-मुस्लिम,जैन-बौद्ध,और सिख-ईसाई,
    न करो लड़ाई आपस में है सब भाई-भाई।
    याद रखो,एकता में ही है बल और शक्ति,
    सदैव हृदय में रहे हिन्दुस्तान की भक्ति।


    देश के वीरों दिल में रहे देश भक्ति का रस,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    सब मिलकर फहराएं तिरंगा ये देश की शान है,
    सभी राष्ट्रों से अनमोल हमारा हिन्दुस्तान है।
    कहता है “अकिल” भारत देश है सबसे प्यारा,
    विश्व गुरू कहें-जन,सबके आंखों का है ये तारा।


    ज्ञान के प्रकाश से दूर हो अज्ञानता का तमस,
    मुबारक हो आप सभी को, गणतंत्र दिवस।

    अकिल खान

    गणतंत्र दिवस – डॉ एन के सेठी

    लोकतंत्र का पर्व मनाएं।
    सभी खुशी से नाचे गाएं।।
    दुनिया में है सबसे न्यारा।
    यहभारत गणतंत्र हमारा।।

    इसकी जड़ है सबसे गहरी।
    इसकी रक्षा करते प्रहरी।।
    सबसे बड़ा विधान हमारा।
    नमन करे जिसको जग सारा।।

    लोकतंत्र का महापर्व है।
    हमको इस पर बड़ा गर्व है।।
    भारत प्यारा वतन हमारा।
    ये दुनिया में सबसे न्यारा।।

    भिन्न – भिन्न जाती जन रहते।
    विविध धर्म भाषा को कहते।।
    नाना संस्कृतियों का संगम है।
    खुशियाँ होती कभी न कम है।।

    उत्सव अरु त्यौहार मनाते।
    इक दूजे से प्यार जताते।।
    नारी का सम्मान यहाँ है।
    मेहमान का मान यहाँ है।।

    वसुधा को परिवार समझते।
    सर्वसुख की कामना करते।।
    करती पावन गंगा-धारा।
    सूरज फैलाए उजियारा।।

    हम दुश्मन को गले लगाते।
    सबमिल गीत खुशी के गाते।।
    करता हमसे जो गद्दारी।
    मिटती उसकी हस्ती सारी।।

    रण में पीठ न कभी दिखाते।
    दुश्मन के हम होश उड़ाते।।
    त्याग शील पुरुषार्थ जगाएं।
    लोकतंत्र का मान बढ़ाएं।।

    ©डॉ एन के सेठी

    उत्सव यह गणतंत्र का

    उत्सव यह गणतंत्र का , राष्ट्र मनाये आज ।
    जनमानस हर्षित सकल , खुशी भरे अंदाज ।।
    खुशी भरे अंदाज , गगनभेदी स्वर गाते ।
    भारत भूमि महान , प्रणामी भाव दिखाते ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , असंभव सारे संभव ।।
    लालकिले से गाँव , सभी पर होते उत्सव ।।

    उत्सव में उत्साह का , दिखता प्यारा रंग ।
    तन मन की संलग्नता , दुनिया होती दंग ।।
    दुनिया होती दंग , किये हम काम अजूबे ।
    भारत बना अनूप , प्रेम के छंदस डूबे ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , सभी जन के अधरासव ।
    रंगबिरंगे दृश्य , बने अब प्यारे उत्सव ।।

    उत्सव के दिन आज है, गाओ मंगल गान ।
    जल थल अरु आकाश में , उड़े तिरंगा शान ।।
    उड़े तिरंगा शान , मोद से हर्षित सारे ।
    सजे धजे सब लोग , आज हैं अतिशय प्यारे ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , सभी सुख होते उद्भव ।
    झूमे धरती आज , मनाते है सब उत्सव ।।

    रामनाथ साहू ” ननकी “

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    धरा हरित नभ श्वेत, सूर्य केसरिया बाना।
    सज्जित शुभ परिवेश,लगे है सुभग सुहाना।।
    धरे तिरंगा वेश, प्रकृति सुख स्वर्ग लजाती।
    पावन भारत देश, सुखद संस्कृति जन भाती।।

    भारत गर्वित आज,पर्व गणतंत्र हमारा।
    फहरा ध्वज आकाश,तिरंगा सबसे प्यारा।।
    केसरिया है उच्च,त्याग की याद दिलाता।
    आजादी का मूल्य,सदा सबको समझाता।।

    सिर केसरिया पाग,वीर की शोभा होती।
    सब कुछ कर बलिदान,देश की आन सँजोती।।
    शोभित पाग समान,शीश केसरिया बाना।
    देशभक्त की शान,इसलिए ऊपर ताना।।

    श्वेत शांति का मार्ग, सदा हमको दिखलाता।
    रहो एकता धार, यही सबको समझाता।।
    रहे शांत परिवेश , उन्नति चक्र चलेगा।
    बनो नेक फिर एक,तभी तो देश फलेगा।।

    समय चक्र निर्बाध,सदा देखो चलता है।
    मध्य विराजित चक्र, हमें यह सब कहता है।।
    भाँति भाँति ले बीज,फसल तुम नित्य लगाओ।।
    शस्य श्यामला देश, सभी श्रमपूर्वक पाओ।।

    धरतीपुत्र किसान, तुम इनका मान बढ़ाओ।
    करो इन्हें खुशहाल,समस्या मूल मिटाओ।।
    रक्षक देश जवान, शान है वीर हमारा।
    माटी पुत्र किसान,बनालो राज दुलारा।।

    अपना एक विधान , देश के लिए बनाया।
    संशोधन के योग्य, लचीला उसे सजाया।।
    देश काल परिवेश ,देखकर उसे सुधारें।
    कठिनाई को देख, समस्या सभी निवारें।।

    अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा।
    शुभ संस्कृति परिवेश,तिरंगा सबसे न्यारा।।
    बँधे एकता सूत्र, पर्व गणतंत्र मनाएँ।
    विश्व शांति बन दूत,गान भारत की गाएँ।।

    गीता उपाध्याय’मंजरी’ रायगढ़ छत्तीसगढ़

    आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ

    सागर जिसके चरण पखारे
    गिरिराज हिमालय रखवाला है
    कोसी गंडक सरयुग है न्यारी
    गंगा यमुना की निर्मल धारा है
    अनेकताओ में बहती एकता
    अदभुत गणतंत्र हमारा है
    केसरिया सर्वोच्च शिखर पर
    मध्य में इसके तो उजियारा है
    यह चक्र अशोक स्तंभ का देखो
    तिरंगे के नीचे में हरियाला है
    तीन रंग का ये अपना तिरंगा
    ये हम सबको प्राणों से प्यारा है
    वीर सपूतों की ये पावन धरती
    शहीदों ने स्व लहू से संवारा है
    जनता यहां करती है शासन
    अकेले आजाद वो रखबारा है

    आचार्य गोपाल जी

    प्यारा तिरंगा हमारा है

    रहे जान से भी प्यारा तिरंगा हमारा है |
    शहीदो खून से सींचा इसे सवारा है |
    झुकने ना देंगे लहर रुकने ना देंगे |
    पर्वतो शिरमोर हिमालय हमारा है |

    चरण पखारता सागर गरजता है |
    योगो युगो बहती गंगा नाम प्यारा है | 
    महाराणा लक्ष्मी रवानी शान कहानी है |
    आबरू वतन जंगल जीवन गुजारा है |

    गर्व हमे हम भारत के है लाल |
    हो पैदा वतन के वास्ते हम दुबारा है |
    चाल दुश्मनों  अब चलती  नही |
    दिया जवाब मुकम्मल हिन्द बहारा है |

    हो मजहब कोई सब भाई समझते है |
    पड़ी जरूरत वतन सबको पुकारा है |
    मिली आजादी लाखो कुर्बानियों सिला |
    रहे कायम यही स्वर्ग शहिदों इसारा है |

    आए चाहे कितनी आंधिया ओ तूफान |
    हम डिगे नहीं वतन परस्ती सहारा है |
    मांग लेगा जान वतन जब भी हमारी |
    रख हथेली गरदन खुद ही पसारा है |
    यूं ही चलती रहे जस्ने आजादी सदा |
    आंच आये माँ भारती नहीं हमको गवारा हैं |

    श्याम कुँवर भारती

    तिरंगे का सम्मान

    देशभक्ति का गीत आओ फिर दुहराते हैं
    पावन पर्व राष्ट्र का रस्मों रीत निभाते हैं।
    स्वतंत्र देश के गणतंत्र दिवस पर फिर से
    एक दिन के अवकाश का जश्न मनाते है।

    सूट-बूट में अफसर,नेता खादी लहराते हैं
    भ्रष्टाचार की कालिख़ खादी में छिपाते है।
    नौनिहाल बेहाल भूखे सड़क सो जाते हैं।
    भ्रस्टाचारी जेल में बैठ बटर नान उड़ाते हैं।

    सरहद पे जवान गोली से नहीं भय खाते हैं
    अपने देश के गद्दारों की गाली से घबराते हैं।
    राजनीति पर चौपाल पे चर्चा खूब कराते है।
    गन्दी है सियासत इसबात पे ठहाके लगाते है

    पर इस कचरे को साफ करने से कतराते हैं।
    घर आकर टीवी और बीबी से गप्पें लड़ाते हैं।
    सच्चाई सिसकती कोने में झूठे राज चलाते है
    भ्रस्टाचार के डण्डे में, झंडा तिरंगा फहराते हैं।

    तिरंगे को देना है तुझको अब सम्मान अगर
    देश का रखना है तुझको जो अभिमान अगर।
    आओ मिलकर फिर एक कसम हम खाते हैं।
    भय भूख और भ्रस्टाचार को देश से मिटाते है।

    जंगे-आज़ादी का गीत फिर एकबार दोहराते हैं।
    स्वाधीनता के गणतंत्र का फिर त्यौहार मनाते है।
    कट्टरता के जंजीरो से समाज को मुक्त कराते हैं
    वन्देमातरम जयहिंद का नारा बुलंद कर जाते है।

    भीतर बैठे गद्दारों को अब बेनक़ाब कर जाते हैं
    दुश्मन की छाती पर चढ़, राष्ट्रध्वज फहराते हैं।

    पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

    आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा

    जय जय भारत भूूमि तेरी जय जयकार

    आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा, जश्न देश मना रहा।
    लहर लहर तिरंगा आज चहुंओर लहरा रहा।।
    स्वतंत्र गणराज्य से , सर्वोच्च् शक्ति भारत आज बन रहा।
    न्याय, स्वतंत्रता,समानता की कहानी विश्व पटल पर रख रहा।।

    एकता और अखंंडता की मिशाल बना हिंदुस्तान।
    बहु सांस्कृतिक भूमि,  संंप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य महान।।
    भाईचारा, बंंधुत्व की भावना यहां सदा पनपी हैं।
    भारत की सभ्यता संस्कृति तो सदा ही चमकी हैं।।

    नारी शक्ति सफलता के झंंडे नित गाड़ रही।
    सीमा पर दुश्मनों से सीधे टक्कर ले रही।।
    शिक्षा, स्वास्थ्य का आज रहा नहीं  हैं अभाव।
    हमें तो हैं इस भारत भूूमि से अटूट लगाव।।

    समाज, धर्म के साथ सब भाषाएं यहां पनप रही हैं।
    सांमजस्य पूूर्ण व्यवहार से मानवता यहां खिल रही है।।
    लाल किले की प्रराचीरें गणतंत्र संंग स्वतंत्रता की याद दिलाती है।
    गांव की गलियां भी दूूूधिया रोशनी में नहाती हैं।।

    गरीबी, बेेेेरोजगारी, अशिक्षा शनैै: शनैः मिट रहे हैं।
    भण्डार इस धरा के धान से नित भर रहे हैं।।
    याद आती हमेें शहीदों की कुर्बानी खूब।
    उग रही है आजादी की सांस में नयी दूब।।

    रंगीन अंदाज में खुलकर हम भारतवासी जीते हैं।
    आज  भी हम भावों से रीते हैं।।
    सरहद पर जवान धरती मांं की  रक्षा में मुस्तैद हैं।
    स्वतंत्र है, गणतंत्र हैैं, बेेेडियों में नहीं कैद हैं।

    सामाजिक, सांस्कृतिक,   राजनैतिक, आर्थिक रूप से भारत मजबूत हैं।
    भारत शांति, अहिंंसा का विश्व में असली दूत हैं।।
    आओ हम सब गणतंत्र का सम्मान करेें।
    स्वतंत्रता संग गणतंत्र पर अभिमान करें।।

    विजयी भव का आशीर्वाद हमने पााया हैं।
    खुद भी जागे हैंं,दूसरों को भी जगाया हैैं।।
    पल्लवित, पुुष्पित भारत माता,  सत्यमेव जयतेे हमारा गहना।
    हिंदी, हिन्दू, हिंदोस्तान, हम हैंं विश्वगुरू हमारा क्या हैं कहना।।

    जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।
    जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।।
    धार्विक नमन, “शौर्य”, असम

    सत्यमेव   जयते   का   नारा   भ्रष्टमेव   जयते  होगा

    राजनीति  का  दामन  थामे  अपराधों की चोली है|
    चोली चुपके से दामन के कान में कुछ तो बोली है|
    अपराधी  फल  फूल  रहे हैं  नोटों की फुलवारी में|
    नेता  खेला  खेल   रहे   हैं   वोटों   की  तैयारी  में|
    अपराधों  का  उत्पादन  है  राजनीति  के  खेतों में|
    फसल  इसी  की  उगा रहे नेता चमचों व चहेतों में|
    नाच  रही  है  राजनीति  अपराधियों  के प्रांगण में|
    नौकरशाही  नाच  रही  है  राजनीति  के आँगन में|
    प्रत्याशी चयनित होता है जाति धर्म की गिनती पर|
    हार-जीत निश्चित होती है भाषणबाजी  विनती पर|
    मुर्दा भी जिन्दा  होकर  मतदान  जहाँ कर जाता है|
    लोकतन्त्र का जिन्दा सिस्टम जीते जी मर जाता है|
    जहाँ   तिरंगे   के  दिल पर तलवार चलाई जाती है|
    संविधान  की  आत्मा  खुल्लेआम  जलाई जाती है|
    वोटों   का   सौदा   होता   है  सत्ता  की  दुकानों में|
    खुली  डकैती  होती  है  अब कोर्ट कचहरी थानों में|
    निर्दोषों  को  न्याय  अदालत  पुनर्जन्म  में  देती  है|
    दोषी   को   तत्काल   जमानत  दुष्कर्म  में  देती  है|
    शोषित जब  भी  अपने अधिकारों से वंचित होता है|
    लोकतंत्र  का  पावन  चेहरा  तभी  कलंकित होता है|
    भ्रष्टाचारियों का विकास जब दिन प्रतिदिन ऐसे होगा|
    सत्यमेव   जयते   का   नारा   भ्रष्टमेव   जयते  होगा|

    देशभक्ति  की  प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है

    देशभक्ति  की  प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है|
    हर  गाली से  बढ़कर  शायद  देश द्रोह  की  गाली है|
    जिनको  फूटी  आँख  तिरंगा  बिल्कुल नहीं सुहाता है|
    निश्चित   ही  आतंकवाद   से  उनका   गहरा  नाता है|
    राष्ट्रवाद   के  कथित  पुजारी   क्षेत्रवाद   के  रोगी  हैं|
    देश  नहीं  प्रदेश  ही  उनके  लिए  सदा  उपयोगी  हैं|
    महापुरुष  की  मूर्ति  तोड़ने  वाले  भी  मुगलों  जैसे|
    गोरी, बाबर, नादिर, गजनी, अब्दाली  पगलों   जैसे|
    मीरजाफरों, जयचन्दों, का  जब जब  पहरा होता है|
    घर  हो  चाहे  देश  हो  अपनों  से  ही खतरा होता है|
    पूत   कपूत  भले  होंगे  पर  माता  नहीं   कुमाता  है|
    ऐसा  केवल  एक  उदाहरण  मेरी   भारत  माता   है|
    माँ  की  आँखों  के  तारे  ही माँ को आँख दिखाते हैं|
    आँखों  में  फिर  धूल  झोंककर आँखों से कतराते हैं|
    भारत  माँ  के  मस्तक  पर  जब पत्थर फेंके जाते हैं|
    छेद हैं  करते  उस  थाली  में  जिस  थाली में खाते हैं|
    कुछ  बोलें  या  ना  बोलें  बस  इतना  तो हम बोलेंगे|
    देशद्रोहियों    की   छाती   पर    बंदेमातरम्   बोलेंगे|
    भारत माता  की  जय  कहने  से  जो  भी कतराते हैं|
    भारत   तेरे   टुकड़े    होंगे   कहकर   के   गुर्राते   हैं|
    ऐसे  गद्दारों  को  चिन्हित  करके  उनकी  नस तोड़ो|
    किसी  धर्म  के  चेहरे  को आतंकवाद से मत जोड़ो|

    प्रतिशोधों  की  चिंगारी  को  आग  उगलते  देखा है


    प्रतिशोधों  की  चिंगारी  को  आग  उगलते  देखा है|
    काले  धब्बे  वाला  उजला  धुँआ  सुलगते  देखा  है|
    नफरत का सैलाब भरा है पागल दिल की दरिया में|
    भेदभाव  का  रंग  भरा  है अब भी हरा केशरिया में|
    गौरक्षक  के  संरक्षण  में  गाय  को  काटा  जाता है|
    जाति-धर्म  के  चश्में  से  इन्सान  को बाँटा जाता है|
    धरती से अम्बर तक जिनकी ख्याति बताई जाती है|
    उन्हीं पवन-सुत की भारत में  जाति  बताई जाती है|
    जातिवाद  जहरीला   देखा  सामाजिक  संरक्षण  में|
    भारत   बंद   कराते   देखा   जातिगत  आरक्षण  में|
    हमने   जिन्दा  इंसानों  को  जिन्दा  ही  सड़ते  देखा|
    मुर्दों   को   हमने   कब्रों-शमशानों  में  लड़ते   देखा|
    देखा  हमने  धर्मग्रंथ  के  आयत  और  ऋचाओं को|
    ना  हो   दंगा,  नहीं   करेंगे  आपस  में  चर्चाओं  को|
    देख   लिया    धर्मान्धी   ठेकेदारों    वाली    पगदण्डी|
    देख  लिया  है  हमने  मुल्ला,पण्डित पापी पाखण्डी|
    धर्मान्धी   लिबास   पहन  जब   मानव   नंगा   होता  है|
    अमन-शान्ति की महफिल में फिर खुलकर दंगा होता है|

    आजादी गुलाम हुई


    फसल  बाढ़  में  चौपट  भी है  नहर खेत भी सूखे हैं|
    सबकी   भूख   मिटाने  वाले  अन्न-देवता   भूखे   हैं|
    सबका  महल  बनाने  वाले  मजदूरों  की  छतें  नहीं|
    पेड़  के  नीचे  सोते  परिवारों   के घर  के  पते  नहीं|
    उजियारे  के  बिन  अँधियारा   कैसा  दृश्य बनाएगा|
    फुटपाथों  पर  भूखा बचपन कैसा भविष्य बनाएगा|
    माँ  के  गहने  बेंच  के  शिक्षा  सब  पूरी करते देखा|
    पी. एच. डी.  बेरोजगार  को  मजदूरी  करते  देखा|
    पाकीज़ा   रिश्तों   को   हमने  तार-तार  होते  देखा|
    अपनी  अस्मत  को  लुटते  एक  बेटी को रोते देखा|
    दरिन्दगी,  वहशी,  हैवानी,  लालच बुरी निगाहों पर|
    घर  में जलती  बहू, बहन-बेटी  जलती  चौराहों  पर|
    नही  समझ  में  आता  है  अब  सुबह हुई या शाम हुई|
    गुलामी    आजाद   हुई   या   आजादी    गुलाम   हुई|
                  —-“अली इलियास”—-

    चलो तिरंगा लहराएँ

    गणतंत्र दिवस का नया सबेरा,   
    यूँ ही ना मुस्काया।
              चढ़े सैकड़ों बलिवेदी पर, 
              तब ये शुभदिन आया।
    लाखों जुल्म सहे हमने,
    तब आजादी को पाया।
                विधि लिखा विद्वानों ने,    
                भारत गणतंत्र बनाया।
    जन मन के प्राँणों से प्यारा, 
    भारत देश सजाया।

             श्रद्धा से कर वंदन उनको, 
               आज प्रदीप जलाएँ।

    उनके तप का पावन ध्वज,  
    चलो तिरंगा लहराएँ।
                 रविबाला ठाकुर”सुधा”

  • शहीदों पर कविता

    शहीदों पर कविता

    शहीदों पर कविता , उस व्यक्ति को हम शहीद कहते हैं. ऐसे व्यक्ति जो कि किसी भी लड़ाई में देश की सुरक्षा करते हुए या देश के नागरिकों की सुरक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं. ऐसे व्यक्तियों को शहीद कहा जाता है. यह व्यक्ति पुलिस, जल सेना, वायु सेना, थल सेना, BSF, होम गार्ड आदि के सिपाही होते है, इन्ही के लिए कविता बहार की कुछ कविताये जो इनके शहादत को बुला नहीं देगी

    mahapurush

    शहीदों पर कविता

    ढह गई वह इमारत
    जिसके लोकार्पण के
    पत्थर की सीमेंट
    नहीं सूखी अभी तलक
    जिसके निर्माण की फाईल
    अभी हुई थी पास
    हाल ही में हुए थे
    इंजीनीयर के हस्ताक्षर
    फाईल पर
    इमारत क्यूं न ढहे
    इसने खड़ी कर दी
    कितनी आलीशान इमारतें
    ठेकेदार की कोठी
    इंजीनीयर का बंगला
    बड़े बाऊ का फलैट
    इस इमारत को
    मिलना ही चाहिए
    शहीद का दर्जा
    जो ठेकेदार, इंजीनीयर
    व बड़े बाऊ के
    भवन पर
    हो गई कुर्बान

    विनोद सिल्ला

    शहीदों पर कविता

    गूंज रही थीं
    स्वरलहरियां
    ‘शहीदों की चिताओं पर
    लगेंगे हर वर्ष मेले’
    अवसर था
    एक शहीद की
    चिता पर लगे मेले का
    इस मेले में हुए एकत्रित
    शहीद की जाति के लोग
    था आयोजन का मुख्यातिथि
    शहीद की जाति का सफेदपोश
    जिसने बताया शहीद को
    अपनी जाति का गौरव
    अपनी जाति का
    मान-सम्मान
    संकीर्णता ने
    शहीद की
    शहादत का दायरा
    कर दिया
    कितना संकुचित
    और कर लिए
    अपनी जाति के
    सभी वोट पक्के

    शहीदों की शहादत की कहानी

    शहीदों की शहादत की  कहानी   भी सुनानी है।
    चरण रज वीर की लेकर यूँ मस्तक से लगानी है।
    ये सरहद  जो हमारी  है ,यही गुरुधाम है यारों,
    मिटे जो देश की   खातिर उन्हें  सम्मान दो प्यारों।
    चलें हम राह पर  उनकी,हमें किस्मत बनानी  है,
    शहीदों  की शहादत की   कहानी भी सुनानी है।
    रखा है   मान वीरों ने    बचायी लाज आँचल की
    दुआ अब दे रही आत्मा, हुई आवाज़ पायल की
    दिलाकर न्याय यूँ उनको हमें कीमत चुकानी है ।
    शहीदों की शहादत की   कहानी भी   सुनानी है।
    नहीं औकात दुश्मन की जो हमको आँख दिखलाये
    रही आदत हमारी है  कि सबका मान   रख    आये ।
    सिखायी शास्त्र ,ग्रंथों ने वही     रीती     निभानी है
    शहीदों की     शहादत       की कहानी भी सुनानी है ।
    सदा दिल की हि सुनते हैं हमें मत आज़माओ तुम
    अगर चुप हैं डराने को न अब भभकी दिखाओ तुम
    यही वो    बात है अपनी जो    दुनियाको दिखानी है
    शहीदों   की शहादत    की कहानी भी  सुनानी है।
                     नीलम सिंह

    शहादत पर कविता

    शहादत की इबादत का,
    यही दस्तूर होता है।
    दिलो मे गर्व भर जाए,
    नयन में नीर होता है।
    मुल्क का मान रखते हैं,
    मौत ईमान रखते हैं।

    जगे जब वीर सीमा पे,
    चैन से देश सोता है।
    छोड़ परिवार सब प्यारे,
    सितारे गगन गिनता है।
    तभी तो हर शहादत पे,
    किसी का चाँद खोता है।

    नमन करते शहादत को,
    शमन आतंक करते है।
    शहीदी मान के खातिर,
    शरीरी तान बोता है।
    मुझे मन हूक उठती है,
    तिरंगे कफन चाहत की।

    मिला ना क्यों मुझे अवसर,
    सोच के लाल रोता है।
    शहीदों की शहादत से,
    यही पैगाम है मिलता।
    मरें तो देश के खातिर,
    जनम क्यों व्यर्थ ढोता है।

    करें अब होंश की बातें,
    दिलों में जोश जग जाएँ।
    का्व्य जो जोश भरता है,
    जोश ही शोक धोता है।

    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं

    छोड़ चले प्यारे वतन को ,मेरे वीर जवान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे है,दिखते अब निशान है।

    ऐसे धोखे बार बार हम , अकसर खाते रहे हैं
    भारत माँ की आँखों से,आंसू भी आते रहे हैं
    बिखर गए टुकड़े होकर,ऐसा क्यों बलिदान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान है।

    सुनके क्या गुजरी है,मुँह का निवाला छूट गया
    जिनके भी कश्मीर में थे, उनका दिल टूट गया
    आज खबर मैं देखूं कैसे,उनमें अपनी जान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान है।

    एक -एक कतरे पर ,भारत माँ का नाम लिखा
    ओढ़ तिरंगा आये जब,सब देशों में मान दिखा
    अंतिम सांस बचे  तो बोेले ‘मेरा देश महान है’
    ज़ख्म भी  गहरे भरे हैं , दिखते अब निशान है

    चीख निकल गयी माँ की, मूर्छित हो गई बेटी
    तोड़ चूड़ियां दहाड़ मार,पत्नी धरती पर लेटी
    सदमें में परिवार,फिर भी जिन्दा वो हैवान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान हैं।

    मुर्दा बनकर तूआतंकी,किस बिल में सोया है
    मेरे वतन का कोना-कोना,गला फाड़ रोया है
    ढूंढ-ढूंढ मारेगे तुमको,जब तक तन में प्रान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं , दिखते अब निशान है।


    ✍–धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई

    शहीद बना दो

    वतन पर शहीद हो जाऊँ,
    ऐसा मेरा दिल बना दो ।
    भगत,आजाद,
    या फिर से मुझे बिस्मिल बना दो ।। (1)

    तूफानों से निबाह,
    मेरा बरसों से रहा ।
    अब मुझे किसी कश्ती का,
    शाहिल बना दो ।। (2)

    दुश्मनों के नापाक ईरादे,
    टिक नहीं पाएंगे ।
    बस उनके लिए मुझे,
    बेरहम क़ातिल बना दो ।। (3)

    मातृभूमि के सिवा,
    और कुछ भी याद न रहे ।
    ऐसा कोई देशभक्त,
    मुझे कोई फाज़िल बना दो ।। (4)

    बसंती चोला लिए,
    राख हो जाऊँ इस मुल्क पर ।
    मेरे भी जीवन को,
    तुम किसी काबिल बना दो ।। (5)

    बापू के महान विचार,
    जीवित रहें फ़लक पर ।
    इस धरा की मिट्टी को,
    सदा के लिए दुर्मिल बना दो ।। (6)

    वीरों की शहादत को,
    सुभद्रा सी रोशनाई दूँ ।
    दिनकर,चतुर्वेदी,
    या फिर मुझे धूमिल बना दो ।। (7)

    प्रकाश गुप्ता ‘हमसफ़र’

    कारगिल जंग के वीर

    वतन की हिफाजत के लिए त्याग दिए प्राण।
    तुमने आह!तक नहीं किये त्यागते समय प्राण।।
    सीने पर गोली खा के हो गये देश के लिए शहीद।
    मुख में था मुस्कान गोली खा के भी बोले जय हिंद।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 1।।

    धन्य हैं जिसने तुमको आंचल में छुपा कर दुध पीलाई वो माता।
    धन्य है जिसने तुमको हाथ पकड़कर चलना सीखलाया वो पिता।।
    धन्य है जिसने तुमको वीरता की राखी पहनाई वो बहन।
    धन्य है जिसने तुम्हारे लिए सदा जीत की दुआ मांगती वो पत्नी।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 2।।

    जब तक रहेगा सुरज-चांद अमर रहेगा तुम्हारा नाम।
    हिंद देश के हिंदुस्तानी कर रहे हैं तुमको बारंबार प्रणाम।।
    मां-बाप के आंखों के तारा भारत माता की सपूत वीर।
    अपने खून से सजाया तुमने भारत माता की तस्वीर।।
    मेरे वतन क जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमके शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 3।।

    वीर शहीदों भारत मां की सपुत करते हैं तुमपे नाज।
    श्रद्धा सुमन के दो फूल समर्पित करते हैं हम तुम को आज।।
    जिसने बहाया अपना खून – पसीना वो है कितना महान।
    धन्य हुई भारत मां की मिट्टी की रख ली आन बाण शान।।
    मेरे वतन के जांबाज तुमको शत् – शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 4।।

    कर दिए वीरान दुश्मनों ने वो माता-पिता के गुंजते आंगन।
    उजाड़ दिए माथे की सिंदूर इक पतिव्रता नारी की सुहागन।।
    अगल कर दिए भाई-बहन के प्रेम की रक्षा-बंधन से।
    कर दिए अलग वीर सपूत को भारत माँ की दामन से।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों को बारंबार नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।।5।।

    पुनीत राम सूर्यवंशी “सोनाखान”

    वतन के रखवाले

    सरहद की दुर्गम घाटी चोटी पर,
    नित प्रहरी बन तैनात हैं
    निशि-वासर हिमवर्षा,पावस में
    कर्तव्यनिष्ठ भारत माँ के लाल हैं।

    घर  छोड़ सरहद पर बैठे हैं रणबांकुरे
    देशवासी चैन की नींद सो पाते हैं
    अमन शांति सर्वत्र है हमसे
    निर्भय, निडर परिवेश बनाते हैं।
    मात- पिता परिवार प्रियजन
    सबसे बढ़कर है देश की रक्षा
    बारूद के ढेर पर तोपों से हम
    दुश्मन से करते हैं सुरक्षा।

    जब जब रिपु ने वार किया
    देश की थाती पर प्रहार किया
    बसंती चोला पहन निकले हम
    अरि का भीषण संहार किया।
    आँच न आने देंगे माँ तुझ पर
    प्राणों की बाजी लगा देंगे
    आँख उठाई दुश्मन ने तो
    अस्तित्व जड़ से मिटा देंगे।

    जान हथेली पर लेकर हम
    दुश्मन की ईंट बजाते हैं
    छठी का दूध दिलाकर याद
    भारत माँ का ध्वज़ फहराते हैं।
    वतन के हम रखवाले हैं
    फौलादी सीना ताने मतवाले हैं
    आज़ादी की रक्षा में तत्पर
    शहादत देने वाले हैं।
    आतंकी जेहादी का हम
    सीमा पर ढेर लगाते हैं
    फर्ज़ निभाने की खातिर
    सर पर कफ़न बांध कर चलते हैं।।

    सौभाग्य है हम रखवालों का
    हिफाज़त-ऐ-वतन जीवन बिताते हैं
    मौका-ए-शहादत मिल जाए तो
    तिरंगे में लिपट कर आते हैं।  

    कुसुम लता पुंडोरा

    वतन परस्ती में खुद को

    नाम वतन के अपनी आन और शान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    है हिम्मत तो आगे आओ,
    देशभक्ति का बिगुल बजाओ
    देखो लुटेरा लूट रहा है,
    माँ बहनों की लाज बचाओ
    देख तू खुद को सच से न अंजान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    आज वतन भी ताक रहा है,
    कौन फ़र्ज़ से भाग रहा है
    मातृभूमि की रक्षा के हित,
    कौन हितैषी जाग रहा है
    सबसे पहले अपने वतन का मान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    साम्प्रदायिकता परवान चढ़ रही
    अनैतिकताएं कितनी बढ़ रही
    हिन्दू मुस्लिम राजनीति है
    सब क़ौमें आपस में लड़ रहीं
    बंदे तू तो खुद को हिंदुस्तान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    भिन्न भिन्न परिवेश हो चाहे,
    अलग भाषा और भेस हो चाहे
    जग में हमको एक है रहना
    आपस मे कई भेद हों चाहे
    वीर शहीदों के पूरे अरमान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    वतन की खातिर मरना सीखो
    अपने वतन पर मिटना सीखो
    आंच न इस कि आन पे आए
    इन दावों पर टिकना सीखो
    अपनी पावन माटी का सम्मान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    अपने वतन की बात निराली,
    कहीं ईद और कहीं दीवाली
    रंग बिरंगी परम्परा है
    यहां भजन और वहाँ कव्वाली
    ‘चाहत’ है गीतों में तू यशगान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’

    वतन हमारा है चमन – देश पर दोहे

    वतन हमारा है चमन, भाँति-भाँति के फूल |
    रंग रूप सबसे अलग, “जन-गण-मन” है मूल |

    उर में बसता हिन्द है, बसे तिरंगा नैन |
    जय भारत जय हिन्द की, बसा जीभ पर बैन ||

    तीन रंग का ओढ़कर, आज दुशाला यार |
    देश प्रेम में डूबकर, करते जय जयकार ||

    भारत प्यारा देश है, प्यारे सारे लोग |
    जो जैसा है सोचता, वैसा पाता भोग ||

    सिक्का चित पट से बना, दोंनो हुए विशेष |
    हुए आदमी कुछ बुरे, बुरा नहीं है देश ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    आजाद हिन्दुस्तान पर कविता

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    चारो ओर फैला प्रदूषण, भारत माता कराह रही |
    स्वच्छ भारत अभियान चला,नदियों में भी राह नही |

    प्रकृति से करते खिलवाड़, मन में अब उत्साह नही |
    इस धरा को स्वर्ग बनाने, जय बोलो युवा संतान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    चारो ओर आतंक मचा है, दुश्मन गोली बरसाते है |
    भारत माँ के वीर सपूत, सीने पर गोली खाते हैं |
    दोस्ती का हाथ बढ़ाकर,शत्रु को भी अपनाते हैं |
    बहुत वीरगांथाए हैं, जय बोलो बलिदान की |

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    अणु -परमाणु बना रहे, बना रहे मिसाइल हैं |
     इंटरनेट का जाल बिछा,तरंगो से सब घायल हैं |

    रासायनिक उर्वरको का, प्रयोग करते जाहिल हैं |
    सुधार प्रक्रिया अपनाने को, जय बोलो विज्ञान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    राजनीति के गलियारो में, अच्छे नेताओ का टोटा है |
    भ्रष्टाचार मचा हुआ है, हमारा सिक्का खोटा है |
    गरीब मजदूरों के पास, न थाली न लोटा है |
    हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई, जय बोलो इंसान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |

    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    शिक्षा व्यवस्था चौपट सब,स्कूल में कौन पढ़ाते है |
    निजी विद्यालय को देखो , शुल्क रोज बढ़ाते है |
    ट्यूशन और फरमानो से, बच्चे बोझ से दब जाते हैं |
    शिक्षा में  गुणवत्ता लाने, जय बोलो शिक्षा मितान की |

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    हाहाकार मचा हुआ है,देख  हिमालय की घाटी में |
    वीर सपूत लोहा लेते हैं, रक्त सिंचते है माटी में |

    अर्थव्यवस्था बिगाड़ रहे,यही शत्रु की परिपाटी  में |
    आतंकियो को मार भगाने , जय बोलो जवान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के  किसान की |

    मोहम्मद अलीम

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  • स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता :- हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। पूरे भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर “राष्ट्र के नाम संबोधन” देते हैं। इसके बाद अगले दिन दिल्‍ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी तथा सभी शासकीय भवनों को रंग बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है।

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता
    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता की मुस्कान

    दो सौ वर्षों की गुलामी के बाद,
    हमारा भारत देश हुआ आजाद।
    गांधी – भगतसिंह थे जैसे वीर,
    कोई था गरीब कोई था अमीर।
    देश की आजादी के लिए भारतीय हुए कुर्बान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    अंग्रेजी अधिकारीयों की तानाशाही,
    हिन्दुस्तान पर जुल्म का कहर ढाई।
    चारों तरफ था अन्याय – अत्याचार,
    हिंसा से करते गोरे हुकूमत का प्रचार।
    देश की आजादी के लिए लोगों ने दी बलिदान।
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    लक्ष्मीबाई- दुर्गावती जैसी नारी – शक्ति,
    लोगों को सिखाया देश-प्रेम की भक्ति।
    सुभाषचंद्र बोस चंद्रशेखर की ऐसी थी कहानी,
    नाम सुनकर कांपते अंग्रेज और मांगते थे पानी।
    आजादी के लिए लाचार था भारत का इंसान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    संघर्ष को आगे बढ़ाए स्वतंत्रता – सेनानी,
    हो गए शहीद लेकिन कभी हार न मानी।
    मंगल पांडे खुदीराम बोस का था श्रेष्ठ योगदान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    संघर्ष – बलिदान है आजादी का सूत्र,
    कई स्त्रियों ने गंँवाई वीर भाई – पुत्र।
    हमें आजादी मिली है कई संघर्षों के बाद,
    मेरे देश वासियों इसे रखना तुम आबाद।
    सभी महापुरुषों का मैं करूं सहृदय गुणगान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    15 अगस्त को लहराओ शान से तिरंगा,
    न करो हिन्दुस्तान में धार्मिक द्वेष – दंगा।
    हिन्दू-मुस्लिम और सिख – ईसाई,
    हम आपस में हैं सब भाई – भाई।
    परोपकार से तुम भी बनालो अपनी पहचान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    अकिल खान

    यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है

    यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है।
    यही तो मेरे देश की पहचान है।
    हो गए कितने ही प्राण न्यौछावर इसके सम्मान में,
    आज भी इस तिरंगे के लिए सबकी एक हथेली पर जान है।
    मेरे दिलो जिस्मों जान से ये सदा आती है,
    ये तिरंगा ही तो मेरा ईमान है।
    मिट गए देश के खातिर कैसे -कैसे देश भगत यहाँ,
    गांधी,तिलक,सुभाष व जवाहर जैसे फूल इस तिरंगे की पहचान है।
    भूला नहीं सकता कभी ये देश इन वीर जवानों को,
    भगत सिंह,राज गुरु,सुखदेव जैसे वीर जवान इस तिरंगे के लिए हुए कुर्बान है।
    घटा अमृत बरसाती है , फिज़ा गीत सुनाती है, धरा हरियाली बिछाती है,
    कई रंग कई मज़हब के होकर भी सबके हाथो में,

    एक ही तिरंगा और सबकी ज़ुबान पर एक ही गान है।
    उत्साह की लहर शांति की धारा बहाती है नदियां,
    हम भारतीय की पहचान बताती ये धरती सुनहरी नीला आसमान है।
    करते है वतन से मुहब्बत कितनी ना पूछो हम दीवानों से,
    वतन के नाम पर सौ जान भी कुर्बान है।
    एक ही तिरंगे के साये में कई तरह के फूल खिलते व खुशबू महकती है,
    रंग,नस्ल, जात, मज़हब भिन्न- भिन्न होकर भी एक ही धरा के हम बागबान है।
    लिखी जाती है मुहब्बत की कहानियां पूरी दुनिया में,
    मगर मुहब्बत का अजूबा ताज को बताकर मिलता हिंदुस्तान को स्वाभिमान है।
    ज़मी तो इस दुनिया में बहुत है पैदा होने के लिए,
    “तबरेज़” तू खुशनसीब है जिस ज़मी पर पैदा हुआ वो हिंदुस्तान है।

    तबरेज़ अहमद
    बदरपुर नई दिल्ली

    लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान

     

    कहीं लहराता तिरंगा
    बजता राष्ट्रीय गान कहीं
    कहीं कहीं देश के नारे
    शहीदों का सम्मान कहीं

    पूजा थाली दीप सजाकर
    चली देश की ललनाएँ!!
    भैया द्वारे सूत खोलकर
    रक्षा की ले रही दुआएँ।।

    रंग बिरंगी सजी थी राखी
    भीड़ लगी थी बाजारों में! 
    खिली खिली देश की गली
    दो दो पावन त्यौहारों मे! 

    दोनों प्रहरी  इस  मिट्टी के
    संजोग ये कैसा आज है आई? 
    इधर बहन की रक्षक बैठे
    उधर सीमा पर सैनिक भाई!

    जाता सावन दुख भी देता
    फिर न मिलेगा ऐसा रूप! 
    पल न बीते भादों आता
    ऐसा इनका जोड़ी अनूप!!

    गोल थाल सी निकली चंदा
    सावन पुन्नी अति मनभावन! 
    शिवशंकर का नमन करे सब
    बम बम भोले मंत्र है पावन! 

    शाम सबेरे दिन भर आनंद
    लो फिर आ गयी है रात! 
    वत्स कहे शुभ रात्रि सभी को
    राम लला को नवाकर माथ!

                – राजेश पान्डेय वत्स

    तिरंगा हाथ में ले काफिला जब गुजरता है

    तिरंगा हाथ में ले काफिला जब – जब गुजरता है ।
    जवानी जोश जलवा देख शत्रु का दिल मचलता है।।

    कसम है हिन्दुस्तां की जां निछावर फिर करेंगे हम,
    नज़र कोई दिखा दे तो लहू रग – रग उबलता है ।

    महक सोंधी मिट्टी की जमीं मेरी सदा महकाये ,
    सलामत खूब हिन्दोस्तां रहे झिल-मिल चमकता है।

    जरूरत यदि पड़े तो सर कटा दें देश की खातिर ,
    जवां इस देश पर कुरबान होने को तरसता है ।

    अमन का ताज भारत पे खिले हरदम दुआ करते ,
    तिरंगे फूल से आजाद गुलशन अब महकता है।

    दुआ हो गर खुदा का हम जनम हर बार लेंगे अब ,
    झुकाते शीष हम आशीष हरदम ही झलकता है ।

    कहे दिल से “धरा” भी ,फ़क्र करते हैं वतन पर हम ,
    तिरंगा हिन्द का अब चाँद पर भी फहरता है।

    धनेश्वरी देवांगन धरा
    रायगढ़ छत्तीसगढ़

    राष्ट्रीय पर्व पर कविता

    तीन रंगों का मैं रखवाला खुशहाल भारत देश हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें ऐसा यह सन्देश हो।

    जब-जब होता छलनी मेरा सीना मैं भी अनवरत रोता हूँ ।
    मेरे दिल की तो समझो मैं भी कातर और ग़मज़दा होता हूँ।
    सब के मन को निर्मल कर दो प्यार का समावेश हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    जब मेरी खातिर लड़ते-लड़ते मेरे सपूत शहीद हो जाते हैं |
    मेरी ही गोद में सिमटकर वे सब मेरे ही गले लग जाते हैं।
    बोझिल मन से ही सही उन्हें सहलाऊँ ऐसा मेरा साहस हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    जाकर उस माता से पूछो जिसने अपना लाल गँवाया है।
    निर्जीव देह देखकर कहती  मैंने एक और क्यों न जाया है |
    तेरे जैसी वीरांगनाओं से ही देश का उन्नत भाल हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    मेरे प्यारे देश को शूरवीरों की आवश्यकता, अनवरत रहती है ।
    उन प्रहरियों की सजगता के  कारण ही, सुरक्षित रहती धरती है ।
    आ तुझे गले लगाऊँ, तुझ पर अर्पण सकल आशीर्वाद हों ।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    मैं भी सोचा करता हूँ पर इस व्यथा को किसे सुनाऊँ मैं।
    छलनी होता मेरा सीना अपनी यह पीड़ा किसे दिखाऊँ मैं।
    देश की खातिर देह उत्सर्ग हो यही सबका अंतिम  प्रण हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    श्रीमती वैष्णो खत्री
    (मध्य प्रदेश)

    *पुलवामा हमले में शहीद  को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि

    आतंकी हमले की निंदा करके ये रह जाएंगे।
    और शहीदों की अर्थी पर पुष्प चढ़ाकर आएंगे।।

    इससे ज्यादा कुछ नहीं करते ये भारत के नेता हैं।
    आज देश का बच्चा-बच्चा इन को गाली देता है।।

    सीमा पार से आतंकी कैसे हमले कर जाते हैं?
    दिनदहाड़े देश के 40 जवान मर जाते हैं।।

    सत्ता के सत्ताधारी अब थोड़ी सी तो शर्म करो।
    एक-एक आतंकी को चुनकर के फांसी पे टांक धरो।।

    घटना सुनकर के हमले की दिल मेरा थर्राया है।
    सोया शेर भी आज गुफा से देखो कैसे गुर्राया है?

    सैनिक की रक्षा हेतु अब कदम बढ़ाना ही होगा।
    संविधान परिवर्तित कर कानून बनाना ही होगा।।

    कितनी बहिनें विधवा हो गई और कितनों का प्यार गया।
    उस माँ पर क्या बीती होगी जिसका फूलों सा हार गया।।

    जितने हुए शहीद देशहित उनको वंदन करता हूं।
    उनके ही चरणों में मैं अपने शीश को धरता हूँ।।

    दे दी हमें आजादी पर कविता

    दे  दी  हमें  आजादी  तो ,
    भुला   देंगे  क्या  उनको l
    रहने  को न  मिला चैन से,
    हिन्दोस्तां   में   जिनको ll

    खाईं जिन्होंने गोलियाँ ,
    अनाज    के    बदले I
    हँस   फाँसी  स्वीकारी ,
    सुख – चैन  के बदले ll


    गिल्ली , मैच , ताँश न भायी ,
    खेल    किया   बन्दूक   से l
    दुश्मन  मुक्त  कराया  भारत ,
    खून  किया  जब  खून  से ll

    पड़ा मूलधन ब्याज चुकी न ,
    नमन    करें    हम   उनको l
    रहने  को  न  मिला  चैन से ,
    हिन्दोस्तां      में    जिनको ll

    जरा निकलकर बाहर आओ ,
    अपनी    इस    तस्वीर   से  I
    उस भारत  को  फिर से देखो ,
    सींचा  जिसको  खूँ – नीर से ll


    नशा  भयंकर  बिना  मधु  के ,
    आजादी       के       खातिर l
    कभी नींद औ भूख लगी न ,
    राष्ट्र   भक्ति    के      शातिर ll

    आओ ‘माधव’ तुम्हें  बुलाता ,
    नत    मस्तक  है      उनको l
    रहने  को  न  मिला  चैन  से ,
    हिन्दोस्तां     में    जिनको  Il

    सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”

    मेरा देश महान

    मेरा देश महान भैया !
    मेरा देश महान ।।
    सिर पर मुकुट हिमालय का है
    पावँ पखारे सागर

    पश्चिम आशीर्वाद जताता
    पूरब राधा  नागर
    हर पनघट से
    रुन झुन छिड़ती
    मधुर मुरलिया तान ।।

    नदिया झरने हर दम इसके
    कल कल सुर में गावे
    कनक कामिनी वनस्पति भी
    खिल खिल कर इठलावे

    हर समीर हो
    सुरभित महके
    बिखरे जान सुजान ।।

    इसकी हर नारी सावित्री
    हर बाला इक राधा
    नूतन अर्चन के छन्दों पर
    साँस साँस को साधा

    प्रेम से पूजते
    मानव पत्थर
    बन जाते भगवान ।।

    इसकी योगिक शक्ति को
    हर देश विदेश सराहावे
    इसकी संस्कृति को देखो
    झुक झुक शीश नवावे

    जन गण मन का
    भाग्य विधाता
    गए तिरँगा गान ।।

    रीति रिवाज अलग हैं  इसके
    अलग अलग हैँ भाषा
    भारतवासी कहलाने की
    किन्तु एक परिभाषा

    मिल जुल कर
    खेतों में काटती
    मक्का गेहूँ धान ।।

    घायल की गति घायल जाने
    मीरा कहे दीवानी
    चुनरी का दाग छुड़ाऊँ कैसे

    खरी कबीर की बानी
    मेरो मन कहाँ सुख पावे
    सही सूर का बान ।।

    चहल पहल शहरों में इसके
    गाँवो में भोलापन
    जंगल मे नव जीवन इसके

    बस्ती में कोलाहल
    कण कण में
    आकर्षण इसके
    हर मन मे एक आन ।।

    सुशीला जोशी
    मुजफ्फरनगर

    सबसे बढ़कर देशप्रेम है

    प्रेम की वंशी, प्रेम की वीणा।
    प्रेम गंगा है……प्रेम यमुना ।।

    प्रेम धरा की मधुर भावना।
    प्रेम तपस्या,प्रेम साधना ।।

    प्रेम शब्द है,प्रेम ग्रंथ है ।
    प्रेम परम् है,प्रेम अनंत है।।

    प्रेम अलख है,प्रेम निरंजन ।
    प्रेम ही अंजन,प्रेम ही कंचन।।

    प्रेम लवण है , प्रेम खीर है ।
    प्रेम आनंद औ’प्रेम ही पीर है।।

    प्रेम बिंदु है,प्रेम सिंधु है ।
    प्रेम ही प्यास,प्रेम अंबु है।।

    प्रेम दुःखदायी,प्रेम सहारा ।
    प्रेम में डूबो.. मिले किनारा ।।

    प्रेम धरा की मधुर आस है ।
    प्रेम सृजन है,प्रेम नाश है ।।

    प्रेम मानव को ‘मानव’ बनाता ।
    प्रेम शिला में.. ईश्वर दिखाता ।।

    प्रेम दया है,प्रेम भाईचारा।
    प्रेम स्नेही….प्रेम दुलारा ।।

    प्रेम प्रसून है,प्रेम गुलिस्तां ।
    प्रेम से बनता पूरा हिंदोस्ताँ ।।

    जित देखिए प्रेम ही प्रेम है
    पर सबसे बढ़कर देशप्रेम है ।।

    निमाई प्रधान ‘क्षितिज’

    प्राणों से प्रिय स्वतंत्रता….

    शहीदों के त्याग,तप की अमरता
    हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता!
    धमकी से ना हथियारों से,
    हमलों से अत्याचारों से,
    न डरेंगे,न झुकेंगे राणा की संतान हैं
    विजयी विश्व तिरंगा हमारी,
    आन, बान, शान हैं!
    अगणित बलिदानों से,
    अर्जित है स्वतंत्रता
    हमें प्राणों से…….
    नफरतों की आग से,फूंकते रहो बस्तियां,
    अफवाहों से,भय से बढ़ाते रहो दूरियां,
    गीता,कुरान संग पढ़ेंगे,
    मंदिर-मस्जिद दिलों में रहेंगे,
    सीने पर जुल्म की,
    चलाते रहो बर्छियां,
    अश्रु,स्वेद रक्त सिंचित स्वतंत्रता,
    हमें प्राणों से……
    पैगाम अमन के देती रहूंगी,
    हर रोज संकल्प ये लेती रहूंगी,
    लहू से गीत आजादी के,
    वन्देमातरम लिखती रहूंगी,
    किसी कीमत पर स्वीकार नहीं परतंत्रता,
    हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता….


    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)

    मेरा देश सिखाता है

    हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई,
    हर मजहब से नाता है।
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    इक दूजे के बिना अधूरे,
    हिन्दू मुस्लिम रहते हैं।
    खुद को मिलकर के बड़े,
    गर्व से हिन्दुस्तानी कहते हैं ।
    दीवाली में अली जहां हैं,
    शब्द राम का रमजानों में आता है
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    आजादी में की लड़ी लड़ाई ,
    हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई ने।
    सीने पर गोली खायीं हर,
    मजहब की तरुणाई ने ।
    आजादी का श्रेय देश में,
    हर मजहब को जाता है।
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    हिन्दू मस्जिद जाता है,
    मुस्लिम भी मंदिर जाते है।
    भारतवासी होने के ,
    मिलकर संबंध निभाते हैं।
    हमको एक देखकर के,
    दुश्मन भी भय खाता है
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।  
                             रचयिता
                            किशनू झा

    आज तिरंगा लहरायेगा

    आज तिरंगा लहरायेगा
    आजादी की शान।
    इसके नीचे पूरे होंगे
    दिल के सब अरमान।
    जय जय हिन्दुस्तान।
    जय जय वीर  जवान।।

    हुई गुलामी सहन नहीं तब,
    फूँक शंख आजादी का।
    अलख जगी भारत मे घर-घर,
    खून खौल गया वीरों का।
    सिर पर कफन बाँध कर निकले
    होने को बलिदान।

    आज…..।
    इस….।
    जय…..।जय….।

    वीर सावरकर ,तात्या टोपे,
    झाँसी की लक्ष्मी बाई।
    भगत सिंह आजाद वीर ने
    दुश्मन को ललकार लगाई।
    आजादी के महायज्ञ में
    हुए सभी बलिदान।।

    आज….।इस…।
    जय…।जय…।

    भारत के कोने-कोने में,
    जंग छिड़ी आजादी की।
    छोड़े घर -परिवार  रिश्ते,
    राह  चले आजदी की।
    सभी एक मंजिल के राही
    हिन्दू मुसलमान।।

    आज…..।इस…।
    जय…।जय…।

    अनमोल अपनी आजादी,
    बच्चों! तुम रखवाली करना।
    जाति धर्म का भेद भुलाकर,
    सदा एक होकर रहना।
    यही एकता देगी जग में
    भारत को पहचान।।

    आज….।इस….।
    जय….।जय….।

    पुष्पाशर्मा”कुसुम”

    वह भारत देश हमारा है


    जहाँ तिरंगा लहराता,
    मंदिर मस्जिद गुरुद्बारा है,
    वह भारत देश हमारा है ••••


    उत्तर में गिरिराज हिमालय
    दक्षिण सागर लहराते ,
    राम कृष्ण गौतम गाँधी की,
    दसों दिशा गाथा गाते ,
    अविरल बहती जिस छाती में
    माँ गंगा की धारा है ,
    वह भारत देश हमारा है!


    भेदभाव है नहीं जहाँ पर
    सब जिसको माँ कहते हैं,
    एक डोर मन बँधे जहाँ पर
    जय भारत सब कहते हैं ,
    प्रेम शाँति “गणतंत्र” हमारा
    दिया विश्व को नारा है,
    वह भारत देश हमारा है


    वेद पुराण बसे कण-कण में
    विश्व गुरु कहलाता है,
    योग ज्ञान सारी दुनियाँ को
    जो भारत सिखलाता है,
    मानवता ही सत्य धर्म है
    जो भारत सिखलाता है
    फैला है जिस देश से”नीलम”
    आज यहाँ उजियारा है,
    वह भारत देश हमारा है!!
                  नीलम सोनी
             सीतापुर,सरगुजा (छत्तीसगढ़)

    हिन्दूस्तां वतन है

    हिन्दूस्तां वतन है, अपना जहां यही है।
    यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है।
    उत्तर में खड़ा हिमालय, रक्षा
    में रहता तत्पर।

    चरणों को धो रहा है, दक्षिण
    बसा सुधाकर।
    मलयागिरि की शीतल, समीर बह रही है।
    हिन्दू स्तां…।यह….।

    फल -फूल से लदे, तरुओं की शोभा न्यारी,
    महकी  हुई है ,प्यारी केसर की खिलती क्यारी।
    कलरव पखेरुओं का, तितली उछल रही है।
    हिन्दू स्तां….।यह…।

    अनमोल खजानों से ,वसुधा
    भरी है सारी।
    खेतों मे  बिखरा सोना, होती
    है फसलें सारी।
    ये लहलहाती फसलें, खुशियाँ लुटा रही है।
    हिन्दू स्तां …।यह…।

    मिट्टी में इसकी हम सब, पलकर बड़े हुये हैं।
    आने न आँच देंगे, ऐसा ही प्रण लिये हैं।
    मिट जायें हम वतन पर,
    तमन्ना यह रही है।

    हिन्दू स्तां वतन है, अपना जहां यही है।
    यह आशियाना अपना,
    जन्नत से कम नहीं है।

    पुष्पा शर्मा ” कुसुम’

    तिरंगे की शान पर कविता

    सिर्फ तिरंगा फहराने से,
    बढ़ेगी कैसे हमारी शान।
    जिन्होंने दी है कुर्बानियाँ,
    उनका करें सदा सम्मान।।

    फले-फूले परिवार उनके,
    जो देश के लिए कुर्बान।
    पूरा समाज शिक्षित बने,
    सबके हों पूरे अरमान।।

    प्रगति पथ पर बढ़ते रहें,
    पूरी दुनिया में पहचान।
    विज्ञान फलित होता रहे,
    मिले ज्ञान को सम्मान।।

    हक बराबर सबको मिले,
    सबके लिए ये संविधान।
    ना जाति ना वर्गभेद रहे,
    हो अधिकार एक समान।।

    मधु राजेंद्र सिंघी

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  • माटी की शान वीर नारायण सिंह पर

    माटी की शान वीर नारायण सिंह पर

    माटी की शान वीर नारायण सिंह पर

    भारत को आजादी पाना इतना नहीं था आसान ।
    वीरों ने संघर्ष किया और किया अपना बलिदान ।
    अग्रगण्य हैं उनमें सदा छत्तीसगढ़ के वीर महान।
    शहीद वीर नारायण सिंह बने इस माटी की शान।

    भुखमरी का शिकार हो रहे थे ,हमारे प्रांतवासी।
    कोई नहीं देख सकता ऐसा दृश्य जो हो साहसी।
    क्रूर माखन का लूटा गोदाम, संकोच ना जरा सी। गरीबों में बंटवाया अन्न , ऐसे दयालु आदिवासी।

    जब बगावत की बात आई भीड़ गए वीर सेनानी। फौज बनाया अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी थी जवानी।
    वीर नारायण के कारनामे से, जनता हुई दीवानी।
    ठाना था एक चीज, वो है बस आजादी को पानी।

    पिता से विरासत मिली, आपको देशभक्ति निडरता।
    लोक प्रिय नायक बने,परोपकारी और न्यायप्रियता। हे जननायक! है धन्य आपकी वीरता और कर्मठता।
    जेल में ही बना लिया सेना, और बन गए आप नेता।

    बना राजधानी का केंद्र, स्मारक जय स्तंभ है नाम।
    सोनाखान के जमींदार को मिली , जहां परम धाम।
    अंग्रेजों के तानाशाही का,  जीते जी लगाई लगाम।
    हे आदिवासी ! बिंझवार वीर ! तुझको मेरा प्रणाम।

    मनीभाई नवरत्न