दौलत पर कविता /रामबली मिश्र
दौलत जिसके पास है, उसे चाहिए और।
और और की चाह में,कभी न पाता ठौर ।।
दौलत ऐसी भूख है,भरे न जिससे पेट।
दौलत करे मनुष्य का,रातोदिन आखेट।।
दौलत के पीछे सदा,भाग रहा इंसान।
मृग मरीचिका सी बनी,मार रही है जान।।
यदि दौलत संतोष की, जीवन है आसान।
थोड़े में भी पूर्ण हों,जीवन के अरमान।।
जिसको अधिक न चाहिए,वह संतुष्ट महान।
बहुत अधिक के संचयन,से मानव शैतान।।
दौलत के मद में सदा, होता अत्याचार।
दौलत की सीमा समझ,करना शिष्टाचार।।
महापुरुष की दृष्टि में,ईश्वर ही सम्पत्ति।
यह रहस्य अध्यात्म का,देता सहज विरक्ति।।
रामबली मिश्र वाराणसी उत्तर प्रदेश