Author: कविता बहार

  • दौलत पर कविता /डॉ0 रामबली मिश्र

    दौलत पर कविता /डॉ0 रामबली मिश्र

    दौलत पर कविता /रामबली मिश्र

    दौलत पर कविता /डॉ0 रामबली मिश्र

    दौलत जिसके पास है, उसे चाहिए और।
    और और की चाह में,कभी न पाता ठौर ।।

    दौलत ऐसी भूख है,भरे न जिससे पेट।
    दौलत करे मनुष्य का,रातोदिन आखेट।।

    दौलत के पीछे सदा,भाग रहा इंसान।
    मृग मरीचिका सी बनी,मार रही है जान।।

    यदि दौलत संतोष की, जीवन है आसान।
    थोड़े में भी पूर्ण हों,जीवन के अरमान।।

    जिसको अधिक न चाहिए,वह संतुष्ट महान।
    बहुत अधिक के संचयन,से मानव शैतान।।


    दौलत के मद में सदा, होता अत्याचार।
    दौलत की सीमा समझ,करना शिष्टाचार।।

    महापुरुष की दृष्टि में,ईश्वर ही सम्पत्ति।
    यह रहस्य अध्यात्म का,देता सहज विरक्ति।।

    रामबली मिश्र वाराणसी उत्तर प्रदेश

  • नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ बाल गीत

    नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ बाल गीत

    “नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ” यह एक प्रसिद्ध हिंदी बाल गीत है जो बच्चों के बीच प्रसिद्ध है। यह गीत देशभक्ति की भावना को उत्तेजित करता है और बच्चों को अपने देश के प्रति प्रेरित करता है। नन्हा मुन्ना इस गीत में एक बच्चे को संदेश देता है कि वह अपने देश का सिपाही है और देश की सेवा में अपना सर्वस्व निस्वार्थता से समर्पित करना चाहिए। इस गीत में बच्चों को देशभक्ति और सेवाभाव की भावना सिखाई जाती है।

    नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ

    नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ
    बोलो मेरे संग जय हिंद, जय हिंद,
    जय हिंद जय हिंद, जय हिंद!

    रस्ते पे चलूँगा न डर-डर के
    चाहे मुझे जीना पड़ें मर-मर के
    मंजिल से पहले न लूँगा कभी दम
    आगे ही आगे बढ़ाऊँगा कदम
    देहने बाएँ देहने बाएँ थम ।
    नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ
    बोलो मेरे संग जय हिंद, जय हिंद,
    जय हिंद जय हिंद, जय हिंद !

    धूप में पसीना मैं बहाऊँगा जहाँ
    नए-नए खेत लहराएँगे वहाँ
    धरती पे फाँके न पाएँगे जनम
    आगे ही आगे बढ़ाऊँगा कदम
    देहने बाएँ, देहने बाएँ थम।

    नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ
    बोलो मेरे संग जय हिंद, जय हिंद,
    जय हिंद जय हिंद, जय हिंद।

  • वृक्ष लगाएं धरती बचाएं/ नीलम त्यागी ‘नील’

    वृक्ष लगाएं धरती बचाएं/ नीलम त्यागी ‘नील’

    “वृक्ष लगाएं, धरती बचाएं” एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि हमें पर्यावरण की संरक्षण के लिए वृक्षारोपण का समर्थन करना चाहिए। वृक्ष लगाना हमारे पर्यावरण के सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि वृक्ष प्राकृतिक रूप से हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, वायु में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, और पर्यावरण के साथ हमारे संबंध को सुधारते हैं।

    नीलम त्यागी, जिन्हें “नील” के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख लेखिका और साहित्यिक हैं जो अपनी रचनाओं में पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर करती हैं। उनकी कविताओं और कहानियों में प्रकृति के साथ हमारे संबंध की महत्वपूर्ण भूमिका है, और वे अक्सर वृक्षारोपण और पर्यावरण की रक्षा के संदेश को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं।

    वृक्ष लगाएं, धरती बचाये/नीलम त्यागी ‘नील’

    वृक्ष लगाएं धरती बचाएं/ नीलम त्यागी 'नील'

    आओ मिलकर पेड़ लगाएं…
    इस धरा को वसुंधरा बनाये…
    एक वन हम ऐसा सजाये…
    जिससे सारे रोग कट जाएं…

    प्रदूषण को ऐसी मार लगाएं…
    आओ एक वृक्ष सभी लगाएं…
    एक एक करके सभी उपवन बनाये…
    मानव से ज्यादा हम वृक्ष लगाएं…

    इस धरा को हम सभी बचाये…
    जल और पेड़ का महत्त्व बताएं..
    जीवन अपना उपयोगी बनाएं..
    महानता वृक्षों की सभी को समझाये…

    समय रहते ही सजग हो जाएं…
    जीवन हम अपना ऐसा बनाये…
    पेड़ों से इस ज़मीं को सजाये…
    संदेश ये सारे जग में फैलाएं….


    नीलम त्यागी ‘नील’

  • प्रेरक कविता/ डॉ0 रामबली मिश्र

    प्रेरक कविता/ डॉ0 रामबली मिश्र

    “बिना संघर्ष कुछ नहीं मिलता” हमें बताती है कि हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रयास करना और संघर्ष करना होता है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन्हें पार करने के लिए हमें मेहनत, संघर्ष, और साहस की आवश्यकता होती है। बिना किसी प्रकार के संघर्ष और परिश्रम के, हम अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में समर्थ नहीं हो सकते।

    “डॉ. रामबली मिश्र” वाराणसी के एक प्रमुख कवि हैं, जिन्होंने अपने जीवन के दौरान साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी रचनाएँ और लेखन साहित्य के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं।

    बिन संघर्ष नहीं कुछ मिलता /डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी

    प्रेरक कविता/ डॉ0 रामबली मिश्र

    बिन संघर्ष नहीं कुछ मिलता।
    यह जीवन भी कभी न खिलता।
    संघर्षों की अमिट कहानी।
    बिन संघर्ष भानु नहिं उगता।

    बिन संघर्ष नहीं शिक्षा है।
    बिन संघर्ष नहीं रक्षा है।
    श्रम में ही संघर्ष छिपा है।
    श्रम अनुपम नैतिक दीक्षा है।

    सकल लोक संघर्ष कर रहा।
    मनुज बिना संघर्ष मर रहा।
    जो संघर्षशील नित कर्मठ।
    बिना हिचक वह स्वयं चर रहा।

    बिन संघर्ष न अर्थ मिलेगा।
    सारा जीवन व्यर्थ लगेगा।।
    है संघर्ष मधुर फल कुंजी।
    मन वांछित हर काम बनेगा।।

    डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी

  • पर्यावरण को नुकसान पर कविता /एस के कपूर श्री हंस

    पर्यावरण को नुकसान पर कविता /एस के कपूर श्री हंस

    पर्यावरण को नुकसान पर कविता /एस के कपूर श्री हंस

    पर्यावरण को नुकसान पर कविता /एस के कपूर श्री हंस

    1

    नदी ताल में कम हो  रहा जल 

    हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं।

    ग्लेशियर पिघल रहेऔर समुन्द्र

    तल यूँ बढ़ते ही जा रहे हैं।।

    काट    सारे वन कंक्रीट के कई

    जंगल बसा दिये विकास ने।

    अनायस विनाश की ओर कदम

    दुनिया के चले  जा  रहे हैं।।

    2

    पॉलीथिन के ढेर पर  बैठ     हम

    पॉलीथिन हटाओ नारा दे रहे हैं।

    प्रक्रति का शोषण कर के सुनामी

    भूकंप का अभिशाप ले  रहे  हैं।।

    पर्यवरण प्रदूषित हो रहा दिनरात

    हमारी आधुनिक संस्कृति कारण।

    भूस्खलन, गर्मी, बाढ़  ,ओला वृष्टि

    नाव बदले में आज हम खे रहे हैं।।

    3

    ओज़ोन लेयर छेद,कार्बन उत्सर्जन

    अंधाधुंध दोहन दुष्परिणाम है।

    वृक्षों की कटाई बन गया आजकल

    विकास प्रगति  दूसरा नाम है।।

    हरियाली  समाप्त करने  की  बहुत

    बडी कीमत चुका रही दुनिया।

    इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र नित

    असुंतलनआज हो गया आम है।।

    4

    सोचें क्या देकर  जायेंगे  हम  अपनी 

    अगली  पीढ़ी  को  विरासत में।

    शुद्ध जल और वायु को ही कैद  कर

    दिया जीवनशैली  हिरासत में।।

    जानता  नहीं  आदमी  कि कुल्हाड़ी

    पेड़  नहीं पाँव पर चल रही है।

    प्रकृति नहीं सम्पूर्ण  मानवता  नष्ट हो

    जायेगी  दानवी हिफाज़त में।।

    एस के कपूर “श्री हंस”

    बरेली