कविता बहार

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

बसंत बहार

बसंत बहार शरद फुहार जाने लगीबसंती बहार आने लगी !कोयल की कूक गुंजे चहुँ ओरधीरे – धीरे धूप तेज कदम नेंबाग में आम बौराने लगी! शाम ढ़ले चहचहाते पक्षियोंघोसला को लौटने झुंड में,पेड़ों को पत्ते पीला होकरएक – एक कर…

भोर का दिनकर

” भोर का दिनकर “ पश्चिम के सूर्य की तरहदुनियाँ भी ….मुझे झूठी लगीमानवता काएक भी पदचिन्हअब तो दिखाई नहीं देताजागती आँखों केसपनों की तरहअन्तःस्थल कीभावनाएँ भीखण्डित होती हैंतब ..जीवन काकोई मधुर गानसुनाई नहीं देताफिर भी ….सफेदपोश चेहरों कोबेनकाब करते…

लकड़ियों पर कविता

लकड़ियों पर कविता              चिता की लकड़ियाँ,ठहाके लगा रही थीं,शक्तिशाली मानव को,निःशब्द जला रही थीं!मैं सिसकती रही,जब तू सताता था,कुल्हाड़ी लिए हाथ में,ताकत पर इतराता था!भूल जाता बचपन में,खिलौना बन रिझाती रही,थक जाता जब खेलकर,पालने में झुलाती रही!देख समय का…

बोल रहे पाषाण

बोल रहे पाषाण बोल रहे पाषाण अबव्यक्ति खड़ा मौन है,छोड़ा खुद को तराशनापत्थरों पर ही जोर है।कभी घर की दीवारेंकभी आँगन-गलियारे,रखना खुद को सजाकररंग -रौगन का दौर है।घर के महंगे शो पीसबुलाते चारों ओर हैं  ,मनुज को समय नहींअब चुप्पी…

आया बसंत

“आया बसंत” नव पल्लव नव रंग लिए,नव नवल पुष्प का गंध लिए।सरसों की पीली चुनरी ओढ़े, टेशू के सुन्दर रंग लिए। खेतों और खलिहानों में, बागों और कछारों में। जंगल और पहाड़ों में, रंग बसंती संग लिए। उलट-पुलट चल रही बयारें,…