मुझे तेरी हर बातें याद आते हैं। तुमसे हुए हर मुलाकातें सताते हैं । क्यों उस दिन अनजान रहा , तेरे चाहत का ना भान रहा । अब जब पता है तू ही लापता है ,
कैसे मिलू तुझे? सोचकर हम घबराते हैं। मुझे तेरी हर बातें ….
बीते कल में चेहरा तेरा खोजू, आजकल मैं तेरी यादों में खोऊँ । ये सारी बातें आम हो गई , प्यार का इकरार खुलेआम हो गई। अब कैसे बताएं कि हम कितना चाहते हैं। मुझे तेरी …. तुझसे जुदा हुआ ,
मंजिले जुदा हुई । तू अगर ना मिला जिंदगी तबाह हुई । झलक तेरे पाने को मन मेरा बेचैन । प्यासे मेरे होंठ नहीं प्यासे हैं नैन।। कैसे बुझे इनकी प्यास, तेरी सूरत की आस लगाए रहते हैं । मुझे तेरी हर बातें…..
★कलम,कागज,कलमकार★ मैं एक अबूझ तुकबंदी कलमकार होता ज्यों व्यथित देता उसे आकार है मेरे सहचर कलम कागज मुखर नहीं मुझ जैसा निशब्द दोनों ही।
मनीभाई”नवरत्न”
मनीभाई के पिरामिड रचना
★मरणासन्न★
ये मेरी कौन सी है अवस्था जहाँ से अब दिखता है सच होने लगा पवित्र कैसी भुलभुलैया अब चला पता मरणासन्न हकीकत जिन्दगी दिखा दी।
“मनीभाई”नवरत्न”
मनीभाई के पिरामिड रचना
★रिश्ते नातों का जाल★
ये
जग अजीब जहाँ पर होती सबकी अलग जिन्दगी तथापि समाहित रिश्ते नातों का जाल खट्टी मीठी यादें आगे बढ़ाती कहानी को हरेक सिरे में। “मनीभाई” नवरत्न, मनीभाई के पिरामिड रचना
★क्रांति का सैलाब ★
है
कष्ट अन्याय सह जाना क्यों नहीं लाते क्रांति का सैलाब एकता मशाल से सबके कमाल से हमारी खामोशी उन्हें बल दे हौसला दे अन्यायी होने की। “मनीभाई”नवरत्न” मनीभाई के पिरामिड रचना
★नैतिकता की पाठ ★
हो
रहे मां बाप असहाय अनैतिकता बढ़ रही आज भारी आवश्यकता नैतिकता की पाठ सभी को पढ़ना मांग बढ़ी प्रबल आज की। “मनीभाई”नवरत्न”
मनीभाई के पिरामिड रचना
★न माने हार ★
ये जान प्रयास है नाकाम न माने हार हसूँ निराधार लोग कहे बावला गम से है हारा बना असभ्य सामाजिक नहीं है अब ये। “मनीभाई”नवरत्न”
पात्र परिचय :- रागिनी – एक कामकाजी लड़की। राजन- अंधा व्यक्ति । राहुल – रागिनी की सहकर्मी ।
(रागिनी अपनी ऑफिस की ओर जा रही थी। रास्ते में एक अंधा आदमी सड़क किनारे खड़ा हुआ सड़क पार करने की कोशिश रहा था ।)
रागिनी : (ऑटो से ही) भैया !अभी मुझे अपने ऑफिस तक नहीं जानी है। मुझे बस यही साइड में ड्राप कर दीजिए। (ऑटो से उतर कर सीधे अंधे आदमी के पास रागिनी पहुंचती है।)
रागिनी : (अंधे आदमी से )क्या मैं आपको रास्ता पार करने में मदद कर दूँ ?
राजन : हां जरूर! रोज कोई न कोई सहारा दे देता है । पर आज …….
रागिनी : (झट से हाथ पकड़ते हुए) आज मैं हूं ना! राजन : धन्यवाद !
रागिनी : वैसे आप सुबह-सुबह कहां गए थे? (दोनों सड़क पार करते हुए )
राजन : जी ! यही पास के मंदिर में ईश्वर दर्शन के लिए ……
रागिनी : (आश्चर्य से) ईश्वर दर्शन ! पर आप ईश्वर के दर्शन कैसे करते होंगे?मतलब आपके आँखें …..
राजन : क्यों? मैं दृष्टिहीन हूं इसलिए ….. पर ईश्वर दर्शन तो मन की आंखों से की जाती है ना । ईश्वर को मन से पुकारा जाता है और मन से ही पूजा की जाती है ।
रागिनी : मतलब ? राजन : मैंने कुछ समय पहले ईश् को स्मरण किया कि वह अपना दूत भेजें और मुझे सड़क पार करा दें। और फिर देखो, उसने आखिर तुम्हें भेज ही दिया ।
रागिनी : पर यहां तो मैं ही हूं।कोई ईश्वर का दूत नहीं ।
राजन : यह तुम्हारी सोच है ।जो तुम अपने अंदर के ईश्वर को नहीं देख पा रही हो। रागिनी :(हंसती हुई )मेरे अंदर में ईश्वर ……
राजन : हां ! पर तुम्हें मेरी बात जल्दी समझ नहीं आएगी क्योंकि तुम्हारे दोनों आंखों ने बाह्यस्वरूप को देखा है। ईश्वर के आंतरिक अनुभूति नहीं कर पाई हो।
( सड़क पार हो चुका था ।इस बीच रागिनी और राजन के बीच पहचान हो जाती है।रागिनी फिर से ऑफिस जाने को होती है ।)
(आफिस में)
रागिनी :(राहुल से ) राहुल ! क्या तुमने ईश्वर को देखा है ?
राहुल : नहीं तो ,पर क्यों ?
रागिनी : आज मैं एक अंधे आदमी से मिली थी । जो यह कह रहा था कि ईश्वर के दर्शन तो मन की आंखों से की जाती है ।(मुस्कराते हुए )और मुझे ईश्वर के दूत की संज्ञा दे रहा था ।
राहुल : फिर तो जरूर तुमने उसके साथ कुछ अच्छा किया होगा ? रागिनी: मैंने तो बस उसे सड़क पार करने में मदद की थी ।शायद इसलिए ………
राहुल : ( दिल्लगी करते हुए) पर हमें तो तुम सामान्य लड़की ही नजर आती हो ,और ईश्वर के दूत तो कभी नहीं ।
रागिनी :(चिढ़ते हुए )और तुम मुझे शैतान….. ( अगला दिन ) राजन वही सड़क किनारे पर खड़ा हुआ था। रागिनी दूसरे दिन भी राजन के पास जाती है ।)
रागिनी : कैसे हो राजन? राजन : कौन रागिनी ? रागिनी : नहीं , ईश्वर का दूत! (हंसते हुए) ( राजन भी हंसता है )
रागिनी: इससे पहले मैंने इतना अच्छा अनुभव कभी नहीं किया था। ऐसा लगा मानो आपकी आंखों से ईश्वर का दर्शन कर लिया हो ।
राजन : पर रागिनी, मेरी तो आंखें नहीं।
रागिनी : पर मन की आंखें तो है ।जिससे मैंने ईश्वर का दर्शन कर लिया।और अब मैं अधिक से अधिक लोगों की सेवा करना चाहती हूं ।
राजन : काश! तुम्हारी जैसे सभी लोगों की दृष्टि बदल जाती तो पूरी श्रृष्टि ही बदल जाती ।
(बातोंबात में राजन और रागिनी के बीच मित्रता के बीज अंकुरित होने लगे थे)
(अगला दिन)
(रागिनी दूर से ही राजन को निगाह डाले हुई थी। पर वह जानबूझकर राजन के पास नहीं जाती है ।वह देखना चाहती थी कि आज राजन किसकी मदद से सड़क पार करेगा ? परंतु जो भी मददगार उसके पास पहुँचता वह सड़क पार करने से मना कर देता। कुछ समय बाद अचानक सड़क पर दुर्घटना से भीड़ जमा हो जाती है।मोटरसायकिल गिरा पड़ा था । रागिनी जल्द ही घटनास्थल पर पहुंच जाती है।)
एक बाइक वाला: (राजन से क्रोधित स्वर में) अंधे होकर भी घर से अकेले क्यूँ निकलते हो? एक दिन खुद तो मरोगे, दूसरे को भी ले डुबोगे ।
(राजन वहीं सकपकाया हुआ चुपचाप खड़ा हुआ था। रागिनी बाइक चालक को शांत कराती है और भीड़ के हटने का इंतजार करती है।)
रागिनी :(राजन से ) इस तरह आप कब तक अकेले सड़क पार करते रहेंगे ? हर दिन ईश्वर अपना कोई दूत तो नहीं भेज सकता ना।
राजन : (रौंधे हुये धीमी स्वर में) आज मुझे ईश्वर के दूत की नहीं बल्कि अपने दोस्त की प्रतीक्षा थी। (रागिनी की आंखें अश्रु से डबडबा जाती है )
रागिनी : (माफी मांगते हुए करूण स्वर में) मैं बहुत शर्मिन्दा हूं।मुझे माफ कर दो, राजन।
राजन: जिनके मित्र होते हैं ,उन्हें किसी ईश्वर की जरूरत नहीं होती है । (राजन और रागिनी दोनों मित्रता के भाव में डूब जाते हैं ।)