Author: मनीभाई नवरत्न

  • आ सनम आ मेरे दिल में तू आ

    आ सनम आ मेरे दिल में तू आ

    प्रेम
    मनीभाई नवरत्न

    आ सनम आ ,मेरे दिल में तू आ।
    आ सनम आ मेरे दिल को चुराके जा ।

    जाने जा मैंने तुम्हें प्यार किया ।
    रात दिन तुझे याद किया ।
    अब तो मुझसे रूठ के ना जा जा ।।

    फूलों से खुशबू आ रही ।
    भंवरे झुमके यह गा रही ।
    मैंने तुम्हें चाहा हां हां हां ।।

    मेरे दिल में तू ,तू है धड़कन में ।
    मेरे सांसो में तू, तू ही यादों में।
    तू ही तू चारों तरफ जाना आ आ।।

    मनीभाई”नवरत्न

  • नवाजिश नवाजिश

    नवाजिश नवाजिश

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तू जो मिली होने लगी ,जीने की ख्वाहिश ।
    आई मेरे जीवन में तू , रब की नुमाइश।
    नवाजिश नवाजिश बस रब की नवाजिश।

    मुझको अपनी पनाह में ले ले ।
    सुन ले मेरी इल्तजा।
    कुछ ना भाये तेरे सिवा

    कैसा वक्त का तकाजा । तुझसे मिला, पूरी हूई मेरी फरमाइश।
    आई मेरे जीवन में तू , रब की नुमाइश।

    नवाजिश नवाजिश बस रब की नवाजिश।।

  • सायकिल दिवस कविता (Poem on World Cycle Day)

    सायकिल दिवस कविता (Poem on World Cycle Day)

    सायकिल दिवस कविता (Poem on World Cycle Day)

    cycle

    मनीभाई की कविता

    अपने बचपन में , की थी जिससे यारी।

    वो मेरी सायकिल,जिसमें करूँ सवारी ।

    आज बदहाल पड़ा, कहीं किसी कोने में

    सेवा कर गुजारी, जिसने जिंदगी सारी।

    ना वो ईंधन लेता, ना फैलायें प्रदूषण ।

    ना दुर्घटना का भय,सुरक्षित हो जीवन।


    ना कोई झंझट दें, ना पार्किंग असुविधा

    ना है कोई ड्राइविंग लायसेंस का टेंशन।

    आज सायकिल छोड़ , ऐसा लगा मानो

    मैंने अपने जीवन में, भूल की बड़ भारी।

    अब सायकिल-यात्रा ,है बड़ी होशियारी।

    साइकिल से हो जाती ,पैसों की बचत।
    साइकिल से हो जाती , थोड़ी कसरत।

    अनेक समस्याओं का है ,वो समाधान।

    आज सायकिल बनी है , बड़ी जरूरत।

    मोटापा बन जाता है,कई रोगों की खान।

    सायकिल चलाके दूर करें, यह बीमारी।

    अब सायकिल-यात्रा ,है बड़ी होशियारी।

    मोटर,कार निकालती है, दिन रात जहर।
    संकट के बादल मंडराते,अब गांव शहर।

    यूं तो धन-दौलत की कमी नहीं है हमको

    तथापि,सायकिल से करनी होगी सफर।

    समय से पहले आओ करलें पूरी तैयारी ।

    अब सायकिल-यात्रा ,है बड़ी होशियारी।        

    (रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर बसना )

    रेखा मल्हान कृष्णा की कविता

    साइकिल दिवस

    अरे! क्या आप पर्यावरण दिवस मनाने जा रहे हो?
    यानि निज धरा को स्वच्छ-सुन्दर बनाने जा रहे हो,
    सर्वप्रथम प्रदूषण मुक्त निज धरा हमें बनानी होगी,
    तो बताओ प्यारे! क्या तुम साइकिल चला रहे हो?

    साइकिल है शान की सवारी प्यारों ,
    धन-दौलत और सेहत बचाती ये प्यारों,
    ना कोई पैसा खर्च, वायु को भी करे शुद्ध,
    धीरे -धीरे डीजल- पैट्रोल हो रहा खत्म प्यारों ।

    धीरे -धीरे जब तुम अपने गंतव्य तक जाओगे,
    हाथ-पाँव भी तुम अपने मजबूत बनाओगे,
    दुर्घटना के खतरों से भी बचकर निकल जाएंगे,
    सुन्दर धरा सहित, स्वास्थ्य अपना भी पाओगे।

    एयरकंडीशनर वाहन से तापमान धरा का बढ़ा रहे,
    नन्हें-नन्हें शिशुओं, व नव अंकुर भी तुम खो रहे,
    आज से ही तुम लेलो एक महा-प्रण प्यारों,
    धरा को बचाओ प्यारे , जिसकी सुन्दरता खो रहे।

    साइकिल है सबसे प्यारी-न्यारी ये सवारी,
    जिसनें पूर्वजों की सेहत भी थी सँवारी,
    आओ मिलकर पूर्व-परंपरा का पालन करें,
    दोबारा अपनाएँ, साइकिल सवारी कृष्ण मुरारी।

    रेखा मल्हान कृष्णा

  • जो तुमसे हो गया है प्यार

    जो तुमसे हो गया है प्यार

    जिंदगी हर बार आती नहीं ,
    यादों में आकर तुम जाती नहीं ।
    तुम ना कर जाना इंकार
    जो तुमसे हो गया है प्यार ।।

    यादों में तेरे मैं हर पल छाया रहता ।
    सोचकर मैं तुमको हरदम मुसकाया रहता।
    अब तो दिल हो गया बेकरार
    जो तुमसे हो गया प्यार ।

    पूछो यह तुम मेरे सांसो से।
    सुनो ये तुम कहती है लबों से ।
    जो बजती कहे तुम्हारी पायल की झंकार ।
    जो तुमसे हो गया प्यार ।

    अब तो दिल कहता है बार बार ।
    जो मिल गया तुमसे यार ।
    जुदा नहीं कर पाएंगे कोई ।
    कुछ नहीं कर सकेगा हमको संसार ।
    जो तुमसे हो गया प्यार ।
    जो तुमसे हो गया प्यार ।

  • मेरे सांसों ने तेरे कानों में

    मेरे सांसों ने तेरे कानों में

    मेरे सांसों ने तेरे कानों में
    अपने दिल का पैगाम दिया ।
    गुजरी तुझ पर क्या जानेमन ?
    क्या इसका अंजाम हुआ?

    धोखा में ना रखना ,सनम तू मुझको ।
    बरसों से चाहत है चाहे तू मेरे दिल को ।
    खफा होने की बात क्या है ?
    ख्वाब तेरे हो तो जुदाई रात क्या है?
    यादों में तेरे रात दिन हुआ,
    दिन से फिर शाम हुआ।।

    तारीफे ना करूं तो तुझ पर साजिश होगी ।
    चाहता रहूं बस तुझको मेरी ख्वाहिश होगी ।
    सांसो की सांसो से , सांसों में ऐतबार ।
    नजरों की नजरों से , नजरों में इंतजार।
    दिन की मोती शाम की ज्योति को मैंने जान लिया।।

    – Lyrics by Manibhai