Category हिंदी कविता

हम कहाँ गुम हो गये

हम कहाँ गुम हो गये हम कहाँ गुम हो गयेमोह पाश में हम बंधे,नयनों मे ऐसे खो गये।रही नहीं हमको खबर,हम कहाँ गुम हो गये।।इंद्र धनुष था आँखों में,रंगीन सपनों में खो गये।प्रेम की मूक भाषा में,हम कहाँ गुम हो…

नज़र की नज़र से

नज़र की नज़र से नज़र की नज़र से मुलाक़ात होगीहज़ारों सवालों की बरसात होगीबयाँ हर सबब हिज़्र का वो करेंगेकि हर बेगुनाही की इस्बात होगीसर-ए-राह हमसे जताना न उल्फ़तगिरेंगे जो आँसू तो आफात होगीनज़र फ़ेर ली तुमसे हमने कहीं जोअदब…

गीत नवगीत लिखें

गीत नवगीत लिखें ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें। मन के भाव पिरोते जायें, जैसा करें प्रतीत लिखें। देख बदलते अंबर के रँग, काव्य तूलिका सदा चले।छाया से सागर रँग बदले, लहरें तट से मिलें गले।लाल गुलाबी…

अंतरात्मा पर कविता

अंतरात्मा पर कविता मेरा संबंध तुमसेअंतरात्मा का है।हाँ बाहृा जगत मेंहम पृथक ही सही,न दिखे ये रिश्ताजग में कहींमन का जुड़ावमन से तो है ।मेरा संबंध तुमनेअंतरात्मा का है।भू से अंबर तकहर जगह तुममेरी नजरों में हो।मेरी हर धडकन में…

मेरी तीन माताएँ

यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है। मेरी तीन माताएँ नौ…

ओ तरु तात सुन ले

ओ तरु तात सुन ले ओ!तरु तात!सुन लेमेरी वयस और तेरी वयस का अंतर चिह्न लेमैं नव अंकुर,भू से तकतातेरे साये में पलतातू समूल धरा के गर्भ में जम चुका। माना ,तेरी शाखा छूती जलद कोमधुर स्पर्श से पय-नीर पान…

चाहत को तुम पलकों में छुपाया न करो

चाहत को तुम पलकों में छुपाया न करो सुनो न सुनो न ऐसे तड़पाया न करोपास बुला के दूर को हटाया न करोआख़िर इतना क्यों इतराते रहते होकितनी बार कहा है भाव खाया न करो गैरों से हंस हंस के…

भारत मां के सपूत

भारत मां के सपूत                   (1)तिलक लगाकर चल, भाल सजाकर चल।माटी मेरे देश की, कफ़न लगाकर चल।देश में वीर योद्धा जन्मे, मच गई खलबल।भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल। (2)भगत ,चंद्रशेखर, सुखदेव थे क्रांतिकारी दल।अंग्रेजो के नाक में…

mahatma gandhi

वन्दे मातरम् गाऊँगा

वन्दे मातरम् गाऊँगा बापू जी के चरखे को,मैं भी खूब घुमाऊँगा।सत्य-अहिंसा की बातें,सबको रोज सुनाऊँगा।। चाचा जी के लाल ग़ुलाब,बाग़-बगीचे में लगाउँगा।शीश झुकाकर चरणों में,लाल ग़ुलाब चढ़ाऊँगा।। पर्वत-घाटी ऊँचा चढ़कर,तिरंगा ध्वज फहराउंगा।चाहे दुनिया जो भी करले,    वन्देमातरम् गाऊँगा।।     ||स्वरचित||उमेश…

बोझ पर कविता

बोझ पर कविता कभी कभीकलम भी बोझ लगने लगती हैजब शब्द नहीं देते साथअंतरभावों काउमड़ती पीड़ायें दफन हो जातीभीतर कहींउबलता है कुछधधकता हैज्वालामुखी सीविचारों के बवंडरभूकंप सा कंपाते हैमन मस्तिष्क कोऔर सारे तत्वों के बावजूदमन अकेला हो जाता हैउस माँ…