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  • भाग्य मुकद्दर नसीब पर कविता

    भाग्य/मुकद्दर/नसीब पर कविता- सोरठा छंद

    कर्म लिखे का खेल, भाग्य भूमि जन देश का।
    कौरव कुल दल मेल, करा न माधव भी सके।।

    लक्ष्मण सीताराम, भाग्य लेख वनवास था।
    छूट गये धन धाम, राजतिलक भूले सभी।।

    पांचाली के भाग्य, पाँच पति जगजीत थे।
    भोगे वन वैराग्य, कृष्ण सखी जलती रही।।

    कहते यही सुजान, भाग्य बदलते कर्म से।
    जग में बने महान, मनुज कर्म मानस धरे।।

    लिखते हल की नोंक, ये किसान भूभाग्य को।
    कैसे रहे अशोक, भाग्य न अपने लिख सके।।

    करे फैसला वोट, सरकारों के भाग्य का।
    कुछ पहुंचाते चोट, करे लोक कल्याण भी।।

    भाग्य भरोसे मान, खेती करे किसान जो।
    यह कैसा विज्ञान, प्रतिदिन घाटा खा रहे।।

    आदि सनातन बोल, गौ को सब माता कहे।
    रही सड़क पर डोल, कर्म भाग्य संयोग से।।

    भारत रहा गुलाम, भाग्य भरोसे देश जन।
    जब चेता आवाम, आजादी तब मिल गई।।

    जग में लोग गरीब, भाग्य भरोसे ही रहे।
    कोई चढ़े सलीब, मिले किसी को ताज है।।

    हरिश्चन्द्र हो रंक, भाग्य और संयोग से।
    बने भाग्य से कंक, धर्मराज बैराठ में।।

    करे कृष्ण कल्याण, भाग्य काल संयोग से।
    वही पार्थ के बाण, भील लूटले गोपिका।।

    बन जाते संयोग, भाग्य मानवी कर्म से।
    कोई छप्पन भोग, कोई भोगे शोक नित।।

    भाव जगे वैराग्य, कर्म करो निष्काम तब।
    पुरुषार्थी सौभाग्य, सतत परिश्रम से बने।।

    करिए सतत सुकर्म, भाग्य भरोसे मत रहो।
    सभी निभाओ धर्म, मिले भाग्य से देह नर।।

    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
    9782924479

  • तथाकथित श्रेष्ठता

    तथाकथित श्रेष्ठता

    मुंडेर को था घमंड
    अपनी श्रेष्ठता पर

    देहली पर बड़ी इतराई
    बड़ी लफ्फाजी की
    बड़ी तानाकशी की
    अपनी उच्चता के
    मनगढ़ंत दिए प्रमाण

    ताउम्र उसी देहली पर
    चढ़कर खड़ी रही मुंडेर
    जिसको वह
    कमतर व नीची
    कहती न थकी

    एक दिन आया जलजला
    चरमरा कर ढह गई मुंडेर
    आ कर गीरी
    देहली के पास

    छू मंत्र हो गई
    तथाकथित श्रेष्ठता।

    -विनोद सिल्ला

  • आज यह कैसी घड़ी

    भीड़ अब आगे बढ़ी, स्वार्थ में खूब अड़ी
    तंत्र हो गया घायल, आज यह कैसी घड़ी।

    कौन चोर कौन चौकीदार, पता नहीं चले यहाँ
    अपनों के बीच खड़ी दुनिया, लगती कुटिल है यहाँ
    भोले- भाले भूखे- प्यासे, बेघर हो घूमें जहाँ
    आँखों में आँसू हैं उनके, हाय अब जाएँ कहाँ

    नीति भी सिर पर चढ़ी, हाथ में जादू- छड़ी
    कहीं बज रही पायल, कहीं रोए हथकड़ी।
    भीड़ अब आगे बढ़ी……..

    सत्ता के लिए बेचैन जो, जेब हों भरते जहाँ
    भक्षक हैं बने- ठने रक्षक, किसकी कहें हम यहाँ
    माफिया भी साथ हों जिसके,जीत हो उसकी वहाँ
    अपनों से हार जो गए हैं, आँसू पिएंगे यहाँ

    भावना इतनी पढ़ी, आस्था पीछे पड़ी
    जो है उसका कायल, उससे ही आँख लड़ी।
    भीड़ अब आगे बढ़ी…….

    आसाराम बापू की तरह, गुरू मिलते हों जहाँ
    अपनी आस्तीन में ही जब, साँप पलते हों जहाँ
    कैसे कोई सीधा- सादा, इनसे बचेगा यहाँ
    एक बार चँगुल में फँसकर, रोता रहेगा यहाँ

    सजी- सँवरी है मढ़ी, जुड़ी सत्ता से कड़ी
    संयासी भी रॉयल, छड़ी रत्नों से जड़ी।
    भीड़ अब आगे बढ़ी……..

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद -निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)
  • राम-नाम विधा :- चौपाई

    राम-नाम विधा :- चौपाई

    jai sri ram
    ramji par hindi kavita

    राम-नाम लगे सबको प्यारा |
    सबने ही तन-मन में धारा ||
    राम सभी के पूज्य कहावे |
    सच्चे मन से सब जन ध्यावे ||

    सबको सद् का मार्ग दिखाते |
    बीच भँवर से पार लगाते ||
    प्रभु नाम की जपे जो माला |
    रहते उन पर सदा कृपाला ||

    छण में दुष्ट ताड़का मारी |
    छूँ कर शिला अहिल्या तारी ||
    चखे बेर सबरी के खाए |
    अंतर्मन से प्रभु मुस्काए ||

    राम-नाम जग में अति पावन |
    भजें सभी सबसे मनभावन ||
    राम-नाम सब मन में धारें |
    राम कृपा से भाग्य सँवारें ||


    हरीश बिष्ट “शतदल”
    रानीखेत || उत्तराखण्ड ||

  • नन्हे बहादुर-लाल बहादुर शास्त्री जी

    नन्हे बहादुर-लाल बहादुर शास्त्री जी दोहा छंद

    सदी बीस प्रारंभ में, चलती चौथी साल।
    दो अक्टूबर को लिए, जन्म बहादुर लाल।।

    जन्मे मुगल सराय में, वाराणसी सनेह।
    राम दुलारी मात थी, पिता शारदा गेह।।

    बचपन में गुजरे पिता, पले बढ़े ननिहाल।
    निर्धनता का सामना, करते पढ़ते लाल।।

    फिर चाचा के पास में, पहुँचे मुगलसराय।
    शिक्षा मे रह अग्रणी, लाल रहे कृषकाय।।

    ले उपाधि शास्त्री बने, कृपा रही बस ईश।
    काशी विद्या पीठ से, सन चलते छब्बीस।।

    ललिता जी के संग में, इनका हुआ विवाह।
    गाँधी से प्रेरित हुए, बाल तिलक की राह।।

    स्वतंत्रता के हित किया, कांग्रेसी दल मेल।
    आन्दोलन के पंथ पर, रहे भुगतते जेल।।

    आजादी के बाद में, कर के सक्रिय यत्न।
    कई पदों पर रह चुका, भारत भू का रत्न।।

    महा सचिव कांग्रेस के, इक्यावन की साल।
    देश और दल हित करे, काम बहादुर लाल।।

    सन बावन में तब बने, मुखिया मंत्री रेल।
    जनता से रखते रहे, सदा आत्ममय मेल।।

    सन सत्तावन में बने, फिर मंत्री संचार।
    निज कर्तव्य निबाह में, रखते शिष्टाचार।।

    वे फिर से मंत्री बने, सँवरे बहु उद्योग।
    देश संग वाणिज्य में, अद्भुत था संयोग।।

    सन इकसठ में दे दिया, नेहरु जी नव भार।
    गृह मंत्री बन के किए, शास्त्री बहुत सुधार।।

    सन चौंसठ की जून में, नवे दिवस की बात।
    वीर जवाहर लाल को, हुआ मृत्यु आघात।।

    देश हितैषी योग्य थे, सबने कहा सहर्ष।
    चुन प्रधान मंत्री लिए, नन्हे हित उत्कर्ष।।

    श्वेत क्रांति वह दूध हित, किए बहादुर लाल।
    हरित क्रांति से अन्न का, भोगें नहीं अकाल।।

    किए रूस से मित्रता, देश हेतु अनुबंध।
    सेना और किसान हित, शासन संग प्रबंध।।

    सन पैंसठ में पाक से, ठना सरासर युद्ध।
    सेना को तब छूट दी, हुए बहादुर क्रुद्ध।।

    धूल चटाई पाक को, लिया युद्ध जब जीत।
    रण रुकवाया रूस ने, जो था तब नवमीत।।

    संधि हेतु तब रूस में, पहुँचे भारत- पाक।
    ताशकंद की संधि में, लगे कपट को ताक।।

    वर्ष छियाँसठ जनवरी, एकादस दिन मान।
    ताशकंद की भूमि पर, तजी बहादुर जान।।

    जय जवान के नाद से, गूँजा हिन्दुस्तान।
    जय किसान गूँजे तभी, शास्त्री के सम्मान।।

    सादा जीवन वे जिए, रख के उच्च विचार।
    देश धरा हितकर्म वे, करके विविध प्रकार।।

    विजय घाट पर सो रहा, वह नन्हा सरदार।
    बार बार जन्मे कहाँ, ऐसा जन किरदार।।

    मृत्यु बाद इनको किया, भारत रत्न प्रदान।
    कोटि कंठ कहने लगे, जय जय हिंदुस्तान।।

    शर्मा बाबू लाल भी, करता इन्हे प्रणाम।
    लाल बहादुर से भले, भारत पूत सुनाम।।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    निवासी – सिकंदरा, जि. दौसा
    राजस्थान ३०३३२६