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  • संसद ल सड़क म लगा के तो देख

    संसद ल सड़क म लगा के तो देख

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    गिंजरथे गुरु ह गली म पुस्तक ल धर के,
    बटोरे हे लईकन ल मास्टर गाँव भर के।

    जनता के हक ल बगरा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    हमला भरोसा हे किसान अउ नागर म,
    माथा गंगा बोहावथे मंगलू के जांगर म।
    तर जाही चोला पसीना म नहा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    बक नई फूटै अब तो मुँह म तोपना हे,
    दुश्मन ल देश के बाडर म रोकना हे।
    पहिली करोना के भूत ल भगा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    लंका ह चमकत हे पूछी ह जरगे,
    मँहगी के आगी म भूख ह मरगे।
    साग भाजी हरियर मँगा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    भासन म देश के रोजगार जगाना हे।
    बूता कोनो माँगे तव घंटी बजाना हे।
    अपन घर म खिलौना बनाके तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख।
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    अनिल कुमार वर्मा

  • मरने वाले की याद में कविता

    मरने वाले की याद में कविता

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    ओढ़ना बिना जेखर जिंनगी गुजरगे,
    मरनी म ओखर कपड़ा चढ़ाबो।
    माँग के खवईया ओ भूख म मरगे,
    जम्मों झी गाँव के तेरही ल खाबो।

    जियत म देख ले आँखी पिरावै,
    पुतरी म ओखर माला चढ़ाबो।
    जिंनगी जेखर हलाकानी म बीते हे,
    मरे म मिनट भर शान्ति हम देबो।

    जेखर सहारा बर कोनो नई आईन,
    तेखर सिधारे म सब झन जुरियाबो।
    साधन बर जियत ले जेनहा तरसगे,
    परलोक बर ओखर सरि जिनिस चढ़ाबो।

    हलुआ कहाँ पाबे फरा नई खाए,
    सुरता ओखर करके बरा ल खाबो।
    करें हन जेखर जियत भर बुराई ,
    खोज खोज के ओखर गुन ल गोठियाबो।

    अनिल कुमार वर्मा

  • कपटी करोना जीव के काल होगे

    कपटी करोना जीव के काल होगे

    कोरोना वायरस
    corona

    जंजाल होगे मानुस बर
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    छोटे बड़े नई चिन्हैं अंधरा,
    सबो ल बारे तै बन अंगरा।
    तपे तै तपनी अईसे बैरी ,
    कुबेर घलो कंगाल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    जमो जिनिस अउ हाथ म रईथे,
    छूत महामारी तोला कईथे।
    मुँह म तोपना हाथ म साबुन
    घर घर ह अस्पताल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    डाक्टर पुलिस अफसर बाबू ,
    हावै करोना म सबले आघु।
    जगा जगा म लागे हे करफू ,
    करमईता के भुंईया हड़ताल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    देहरी बंद हवय देवता के ,
    प्रथा सिरावत हे नेवता के ।
    घर म रहना कहूँ नई जाना
    भीड़ घलौ जी के काल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    सुन्ना परगे गाँव शहर ह,
    हवा म बगरे एखर जहर ह।
    बम बारुद के भरे खजाना,
    इहा दवई के दुकाल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    पैसा वाला मस्त हावै,
    जमो गरीब त्रस्त हावै।
    रंग रंग केे पकवान कहूं ल,
    पेज पसिया के मुहाल होगे।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    गुजर बसर के नियम बदलगे,
    चीन देस के जादू ह चलगे।
    हाथ ल धो के पाछू परगे ,
    चारोमुड़ा सुनसान होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।

  • करिया बादर पर कविता

    करिया बादर पर कविता

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    जम्मों जीव रद्दा तोर देखत हे।
    गरमी पियास कुहका झेलत हे।
    बिजली के बिंदी लगाना।
    आँखी म काजर अँजाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    भुँईया के छाती ह फाटगे।
    पानी सुखागे हे घाट के।
    झमझम ले मौसम बनाना।
    सुग्घर नगाड़ा बजाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    नदिया अउ नरवा सुखागे।
    कुआँ अउ नल ह अटागे।
    नवा बहुरिया अस लजाना।
    चंदा कस मुँह ल देखाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    रुख राई कल्पत हे देख ले।
    जीव जंतु तड़फत हे देख ले।
    अमृत के धार ल बोहाना।
    गंगा मैंया हमला तै जियाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।

  • जय गणेश जी पर कविता

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    जय गणेश जी पर कविता

    गणेश
    गणपति

    ददा ल जगा दे दाई,
    बिनती सुनाहुं ओ,
    नौ दिन के पीरा ल,
    तहु ल बताहुं ओ।
    लईका के आरो ल सुनके,
    आँखी ल उघारे भोला,
    काए होेगे कइसे होगे,
    कुछु तो बताना मोला।
    कईसे मैं बतावौ ददा,
    धरती के हाल ल,
    आँसू आथे कहे ले,
    भगत मन के चाल ल
    होवथे बिहान तिहा,
    जय गणेश गावथे,
    बेरा थोकन होय म,
    काँटा ल लगावथे।
    गुड़ाखू ल घसरथे,
    गुटका ल खाथे ओ,
    मोर तिर म बईठे,
    इकर मुँह बस्सावथे।
    मोर नाव के चंदा काटे,
    टूरा मन के मजा हे,
    इहे बने रथव ददा,
    ऊँंहा मोर सजा हे।

    रोज रात के सीजर दारू,
    ही ही बक बक चलथे ग,
    धरती के नाव ल सुनके,
    जी ह धक धक करथे ग।
    डारेक्ट लाईन चोरी,
    एहू अबड़ खतरा,
    नान नान टिप्पूरी टूरा,
    उमर सोला सतरा।
    मच्छर भन्नाथे मोर तिर,
    एमन सुत्थे जेट म,
    बडे़ बडे़ बरदान माँगथे,
    छोटे छोटे भेंट म।
    ऋद्वि सिद्वी तुहर बहुरिया,
    दुनो रिसाये बईठे हे,
    कुछू गिफ्ट नई लाये कइके,
    सुघर मुँ ंह ल अईठे हे।
    मोला चढ़ाये फल फूल,
    कभू खाये नई पावौ ग,
    कतका दुःख तोला बतावौ,
    कईसे हाल सुनावौ ग।
    आसो गयेव त गयेव ददा,
    आन साल नई जावौ ग,
    मिझरा बेसन के लाडु,
    धरौ कान नई खावौ ग।