Tag: घनाक्षरी

घनाक्षरी एक वार्णिक छन्द है। इसे कवित्त भी कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में घनाक्षरी छन्द के प्रथम दर्शन भक्तिकाल में होते हैं। निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि हिन्दी में घनाक्षरी वृत्तों का प्रचलन कब से हुआ। घनाक्षरी छन्द में मधुर भावों की अभिव्यक्ति उतनी सफलता के साथ नहीं हो सकती, जितनी ओजपूर्ण भावों की हो सकती है।

  • शबरी पर कविता/ सौदामिनी खरे दामिनी

    शबरी पर कविता/ सौदामिनी खरे दामिनी

    शबरी पर कविता/ सौदामिनी खरे दामिनी

    shabri
    शबरी


    शबरी सी भक्ति मिले,
    जीवन सुगम चले,
    प्रभु के आशीष तले,
    होवे नवल विहान।

    यह भीलनी साधना,
    रही निष्काम भावना,
    कठिनाई से सामना,
    गुरु वचनों को मान।

    लोभ मोह छोड़कर,
    भक्ति भाव जोड़ कर,
    राम नाम बोल कर,
    लगाया प्रभु से ध्यान।

    मीठे बेरों को तोड़ती,
    वो कुटिया बुहारती,
    फूल राहों में डालती,
    ढलता है अवशान।।

  • पितृ पक्ष पर कविता 2021 -राजेश पान्डेय वत्स (मनहरण घनाक्षरी)

    हम यहाँ पर आपको पितृ पक्ष पर कविता प्रस्तुत कर रहे हैं आशा है आपको यह पसंद आएगी .

    कविता 1.

    झिलमिल उजियारी,समीप शरद ऋतु, 
    मणि जैसे ओस पड़े, 
    बिछे हुये घास में!

    तेज चले चुस्त लोग, कुछ दिखे लगा योग, 
    अम्बर की ओर ताके, 
    सूरज की आस में!

    धीमे धीमे वृताकार, लाल रंग लिये हुये, 
    खिली कली खुश मन, 
    फूलों के सुवास में!

    दिनकर देख नैन, शुभ भोर गई रैन, 
    वत्स गा ले राम गान, 
    पितृ पक्ष मास में!

    –राजेश पान्डेय वत्स!

    कविता 2. 

    आया जब पितृपक्ष, बनाते हलवा पूरी |
    बड़ा फरा के भोग, बिजौरी भूरी -भूरी ||
    उत्सव का माहौल, दशम दिन तक रहता है |
    पितर पक्ष का भोग, रोज कागा चखता है ||
    घर पर दादी भूख से, देखो अकुलाती रही |
    मृतकों को दे भोज सब, दादी मुरझाती रही ||


    जीते जी दुत्कार, मृत्य पर रोते धोते |
    दिये न रोटी दाल, मृत्यु पर भोज चढ़ाते ||
    चलता रहा कुरीत, आँख मूँदे अपनाते |
    करते कितने ढ़ोग, हाय फिर भी इठलाते ||
    क्यों आडम्बर में बहे, तेरी फितरत यह नहीं |
    भोजन भूखे को खिला, पितर तृप्त होंगे वहीं ||


    भूलो मत यह बात , आत्म से मानव जागो |
    लगे बुरी जो रीत, उसे तत्क्षण ही त्यागो ||
    तोड़ दीजिए रीत , करो साहस हे मनुजों |
    भूखे को दो भोज, कसम ले लो हे अनुजों ||
    कहो करोगे काम यह, छोड़ों काले काग को |
    फेंक कुसंस्कृत रीत को, अपना पाक विभाग को ||

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, महासमुंद, छ. ग.

  • भारत माँ के सपूत

    भारत माँ के सपूत

    – घनाक्षरी


    चाहे ठंड का कहर
    आधी रात का पहर
    तिलभर न हिलते,
    खड़े , सीना तान के।


    डरते न तूफान से
    डटे हैं बड़ी शान से
    भूख ,प्यास ,नींद छोड़,
    रखवारे मान के।


    समर्पित हैं देश को
    मातृ -भू जगदीश को
    तन, मन ,धन सब,
    सुर -लय गान के।


    लगे सब देव दूत
    भारत माँ के सपूत
    बचाये त्रासदी से वो,
    निज धर्म मान के।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • हिंदी से ही भारत की शुभ पहचान है

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    हिंदी से ही भारत की शुभ पहचान है

    ★★★★★★★★
    जिसे बोल मान बढ़े,
    हिंदी से ही शान बढ़े ।
    हिंदी से ही भारत की,
    शुभ पहचान है।
    ★★★★★★★★
    प्रजातंत्र की है धूरी ,
    जिसे बोले हिंद पूरी।
    अनेकता में भी एक ,
    देश ये समान है ।
    ★★★★★★★★★
    हिंदी प्रीत की है डोरी,
    जैसे लगे माँ की लोरी।
    हिंदी से ही बने सब,
    विधि का विधान है ।
    ★★★★★★★★★
    जानता है पूरा देश ,
    हिंदी से ही परिवेश ।
    पावन बना है सभी ,
    भारत महान है।
    ★★★★★★★★
    रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)

  • माँ शारदे पर कविता

    माँ शारदे पर कविता (देव घनाक्षरी)

    नमन मात शारदे
    अज्ञानता से तार दे
    करुणा की धार बहा
    मुख में दो ज्ञान कवल।।

    वीणा पुस्तकधारिणी
    भारती ब्रह्मचारिणी
    शब्दों में शक्ति भरदो
    वाणी में दो शब्द नवल।।

    हंस की सवारी करे
    तमस अज्ञान हरे
    रोशन जहान करे
    पहने माँं वस्त्र धवल।।

    अज्ञानी है माता हम
    करिए दोषों को शम
    ज्ञान का दान कर दो
    बढ़ जाएगा बुद्धि बल।।

    ✍️ डॉ एन के सेठी