क्यूँ झूठा प्यार दिखाते हो
क्यूँ झूठा प्यार दिखाते हो ….
दिल रह रह कर तड़पाते हो ..
गैरों से हंसकर मिलते हो
बस हम से ही इतराते हो
घायल करते हो जलवों से …
नज़रों के तीर चलाते हो …
जब प्यार नहीं इज़हार नहीं …
फिर हम को क्यूँ अज़माते हो ..
आ जाओ हमारी बांहों में …
इतना भी क्यूँ घबराते हो …
हम आपके हैं कोई गैर नहीं …
फिर क्यूँ हम से शर्माते हो …
जब फर्क तुम्हे पड़ता ही नहीं
क्यूँ आते हो फिर जाते हो
दुनिया की नज़र में क्यूँ हमको ..
अपना कातिल बतलाते हो ..
तिरछी नज़रों से देख मुझे …
क्यूँ मन ही मन मुस्काते हो ..
मुझको है भरोसा बस तुम पर …
क्यूँ झूठी कसमें खाते हो ..
आते जाते क्यूँ मुझ पर तुम
भँवरा बन के मन्डराते हो
करके महसूस फिज़ाओं में
खुशबू कह मुझे बुलाते हो
जब प्यार हुआ है तुम को भी ..
‘चाहत’ से क्यूँ कतराते हो …
नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
झाँसी