Category हिंदी कविता

छत्तीसगढ़ कविता

छेरछेरा / राजकुमार ‘मसखरे’

छेरछेरा / राजकुमार ‘मसखरे’ छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेरछेरामाई कोठी के धान ल हेर हेरा. आगे पुस पुन्नी जेखर रिहिस हे बड़ अगोराअन्नदान के हवै तिहार,करे हन संगी जोरा…छेरछेराय बर हम सब जाबोधर के लाबो जी भर के बोरा…..! आजा…

दिल एक मंदिर / पद्म मुख पंडा

दिल एक मंदिर मंदिरों में, अगर, भगवान रहा होताहर कोई भक्त, बहुत धनवान, रहा होता! गरीबी में, जिंदगी, यूँ नहीं गुजरती,मजे में, हर कोई इन्सान ,रहा होता! सच्चाई की, न उड़ती ,यूँ धज्जियां,झूठ से, न कोई भी, परेशान रहा होता!…

रोटी / विनोद सिल्ला

रोटी सांसरिक सत्य तोयह है किरोटी होती हैअनाज कीलेकिन भारत में रोटीनहीं होती अनाज कीयहाँ होती हैअगड़ों की रोटीपिछड़ों की रोटीअछूतों की रोटीफलां की रोटीफलां की रोटीऔर हांयहाँ परनहीं खाई जातीएक-दूसरे की रोटी। -विनोद सिल्ला Post Views: 31

JALATI DHARATI

प्रलय / रमेश कुमार सोनी

प्रलय / रमेश कुमार सोनी दिख ही जाता है प्रलय ज़िंदगी मेंदुर्घटना में पूरे परिवार के उजड़ जाने से,बाढ़,सूनामी,चक्रवात से औरकिसी सदस्य के घर नहीं लौटने सेप्रलय की आँखों में ऑंखें डालकरकौन कहेगा कि नहीं डरता तुझसे। आख़िरी क्षण होगा…

पालक जागरूकता पर कविता / डॉ विजय कन्नौजे

पालक जागरूकता पर कविता / डॉ विजय कन्नौजे बुलाते हैं शिक्षक पालक कोपर आते नहीं है लोग।पालक बालक जागरूक होशिक्षक को लगाते दोष।‌अनुशासन की पाठ कहें तोकुछ शिक्षक नही निर्दोष।गेहूं के संग है कुछ घुन पीसेशिक्षक गरिमा हो दोस्त।। शिक्षा…

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चमकते सितारे/ आशीष कुमार

चमकते सितारे नन्हे नन्हे और प्यारे प्यारेआसमान में चमकते सितारेदेखा दूर धरती की गोद सेलगता पलक झपकाते सारे ऊपर कहीं कोई बस्ती तो नहींजहाँ के चिराग दिखाएँ नजारेउड़ा ले गया कोई जुगनुओं कोआकाशगंगा सा टिमटिमाते सारे जला आया कोई दीपक…

बसंत ऋतु

बसंत ऋतु / राजकुमार मसखरे

राजा बसंत / राजकुमार मसखरे आ…जा आ…जाओ,हे ! ऋतुराज बसन्त,अभिनंदन करते हैं तेरा, अनन्त अनन्त ! मचलते,इतराते,बड़ी खूबसूरत हो आगाज़,आओ जलवा बिखेरो,मेरे मितवा,हमराज़ ! देखो अब ये सर्दियाँ, ठिठुरन तो जाने लगी,यह सुहाना मौसम, सभी को है भाने लगी !…

बसंत ऋतु

वसंत ऋतु / डा मनोरमा चंद्रा ‘ रमा ‘

वसंत ऋतु / डा मनोरमा चंद्रा ‘ रमा ‘ आया वसंत आज, भव्य ऋतु मन हर्षाए। खिले पुष्प चहुँ ओर, देख खग भी मुस्काए।। मोहक लगे वसंत, हवा का झोंका लाया। मादक अनुपम गंध, धरा में है बिखराया।। आम्र बौर…

चार के चरचा/ डा.विजय कन्नौजे

चार के चरचा*****4*** चार दिन के जिनगी संगीचार दिन के‌ हवे जवानीचारेच दिन तपबे संगीफेर नि चलय मनमानी। चारेच दिन के धन दौलतचारेच दिन के कठौता।चारेच दिन तप ले बाबूफेर नइ मिलय मौका।। चार भागित चार,होथे बराबर गण सुन।चार दिन…

patang subh makar sankranti

मकर संक्रांति आई है / रचना शास्त्री

मकर संक्रांति आई है / रचना शास्त्री मगर संक्रांति आई है। मकर संक्रांति आई है। मिटा है शीत प्रकृति में सहज ऊष्मा समाई है। उठें आलस्य त्यागें हम, सँभालें मोरचे अपने । परिश्रम से करें पूरे, सजाए जो सुघर सपने…