अनेकों भाव हिय मेरे
अनेकों भाव हिय मेरे अनेकों भाव मन मेरे, सदा से ही मचलते हैं।उठाता हूँ कलम जब भी, तभी ये गीत ढलते हैं।पिरोये भाव कर गुम्फित, बनी है गीत की मालाकई अहसास सुख-दुख के, करीने से सजा डाला।समेटे बिंब खुशियों के, सुरों में यत्न कर ढाला।सुहाने भाव अंतस में, मचलते अरु पनपते हैं।1अनेकों भाव हिय मेरे… … Read more