Author: कविता बहार

  • योग दिवस पर 3 कवितायेँ

    योग दिवस पर 3 कवितायेँ

    इन कविताओं में योग के महत्व और उसके द्वारा मिलने वाले शारीरिक और मानसिक लाभों का वर्णन किया गया है। योग को एक सरल और प्रभावी उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्रदान करता है।

    योग दिवस पर 3 कवितायेँ

    yogasan

    योगा नित दिन करना है

    योगा नित दिन करके हमको,
    तन-मन स्वस्थ बनाना है।
    दूषित पर्यावरण के प्रकोप से,
    खुद को हमें बचाना है।


    यकृत, गुर्दा, हृदय  रोगों  को,
    पास न  आने  देना है।
    जीवन  के इस भाग – दौड़ में,
    चाहे कितनी उलझन हो।

    थोड़ा समय निकाल  हमें भी,
    अनुलोम-विलोम करना है।
    खुद पर संयम रखकर हमको,
    शरीर संतुलित बनाना है।


    दुर्लभ  जीवन  पाया  हमनें,
    काया कंचन बनाना है।
    सारे व्याधियों को दूर भगाने,
    योगा नित दिन करना है।

    रविबाला ठाकुर”सुधा”

    आज से करना योगा

    योगा के अभ्यास से,रोगमुक्त हो जाय।
    मन सुंदर तन भी खिले,पहला सुख वह पाय।
    पहला सुख वह पाय,निरोगी काया ऐसी।
    सावन की बौछार,सुखद होती है जैसी।
    अब तो मानव जाग ,अभी तक दुख क्यों भोगा?
    शुरू करो मिल साथ,आज से करना योगा।।

    सुचिता अग्रवाल ‘सुचिसंदीप’

    तिनसुकिया असम

    योग मन का मीत है

    करना नित अभ्यास
         फैला योग का प्रकाश
                योग है मरहम भी
                      योग तो है साधना

    प्रात: काल उठा करो
          योग खूब सारा करो
                बाद स्नान ध्यान करो
                       ‌   योग है आराधना

    कम खाओ गम खाओ
            सेहत खूब बनाओ
                मन के मालिक बनो
                      रोगों को न थामना

    स्वर्ण जैसा रहे तन
            सदा शुद्ध रहे मन
                 देह धन हो संचित
                         ऐसी रहे कामना

    प्रकृति का हो वरण
        दोषों का हो निवारण
                जीवन में शांति रहे
                      राज भोग कीजिये

    तन सदा स्वस्थ रहे
         मन सदा स्वच्छ रहे
            व्यर्थ न हो धन व्यय
                     ऐसा योग कीजिये

    दूर करता तनाव
        शांत रहता स्वभाव
             दिनभर स्फूर्ति मिले
                      सब लोग कीजिये

    ध्यान चित्त का गीत है
             योग मन का मीत है
                   लगा लो ध्यान आसन
                                  ‌दूर रोग कीजिये
                            *

    धनेश्वरी देवांगन “धरा “

    ये कविताएं सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई हैं। कविताओं का उद्देश्य पाठकों को योग के लाभों से अवगत कराना और उन्हें इसे अपने दैनिक जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना है।

    कविताओं का सार:

    इन कविताओं में योग के दैनिक अभ्यास से जीवन में आने वाले सकारात्मक परिवर्तनों का वर्णन किया गया है। योग के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का संचार करता है। ये कविताएं पाठकों को योग के प्रति जागरूक करने और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने की प्रेरणा देती हैं।

  • योग दिवस / राजकिशोर धिरही

    योग दिवस / राजकिशोर धिरही

    राजकिशोर धिरही की कविता “योग दिवस पर” योग के महत्व और उसके द्वारा मिलने वाले शारीरिक और मानसिक लाभों को उजागर करती है। यह कविता शोभन छंद में रची गई है, जो सरल और प्रवाहमयी है, ताकि पाठक इसे आसानी से समझ सकें और इसके संदेश को आत्मसात कर सकें।

    योग दिवस / राजकिशोर धिरही

    yogasan

    योग करते जो यहां पर,मस्त अनुभव भाय।
    देह चंगा हो सदा ही,खूब जीवन पाय।।

    जान लो आसन सभी को,फायदा कुछ होय।
    है सरल व्यायाम करना,लाभ लेवत कोय।।

    जान ले अनुलोम योगा,गोमुखासन जोर।
    विश्व में फैले बहुत ही,देख हर पल शोर।।

    पेट चर्बी कम करे हम,योग से यह काम।
    ज्ञान प्राणायाम रख ले,ध्यान में रख नाम।।

    (विधा-शोभन छंद)

    राजकिशोर धिरही

    तिलई,जांजगीर छत्तीसगढ़

    योग दिवस पर कविता में कवि राजकिशोर धिरही ने योग के महत्व और लाभों को शोभन छंद के माध्यम से प्रस्तुत किया है। योग के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का संचार करता है। कविता में सामूहिक रूप से योग करने का आह्वान किया गया है, जिससे समाज में एकता और स्वस्थ जीवनशैली का निर्माण हो सके। यह कविता पाठकों को योग के प्रति जागरूक करने और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने के लिए प्रेरित करती है।

  • जीवन का पाठ है योग / अरुणा डोगरा शर्मा

    जीवन का पाठ है योग / अरुणा डोगरा शर्मा

    अरुणा डोगरा शर्मा की “यह”जीवन का पाठ है योग” कविता सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई है। कविता का उद्देश्य योग के सामूहिक अभ्यास के महत्व को रेखांकित करना और पाठकों को इसे अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना है।

    yogasan

    जीवन का पाठ है योग /अरुणा डोगरा शर्मा

    भौतिक सुखों को त्याग कर ,
    सही दिशा में प्रयास कर, 
    रहना अगर निरोग तुझे ,
    मानव नित योग का उपयोग कर।।

    पौराणिक संस्कृति संभाल उसका सार,
    नहीं तो विदेशी कर देंगे तार तार, 
    युवा तुझे ही बनना होगा ढाल ,
    न लुप्त होने देना योग विचार ।।

    जीवन का पाठ है योग ,
    आओ मिलकर करें सब लोग ,
    आसन सीख कर सिखाएं ,
    जीवन भर नहीं होगा रोग।।

    अरुणा डोगरा शर्मा

    ८७२८००२५५५

    “आओ मिलकर योग करें” कविता में कवयित्री अरुणा डोगरा शर्मा ने योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में बताया गया है कि मिल-जुल कर योग करने से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और सकारात्मकता भी बढ़ती है। योग का सामूहिक अभ्यास एक प्रेरणादायक और सहयोगी वातावरण का निर्माण करता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रेरित होता है। यह कविता पाठकों को योग के सामूहिक अभ्यास के लाभों को समझने और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है।

  • आओ मिलकर योग करें/ अनिता मंदिलवार सपना

    आओ मिलकर योग करें/ अनिता मंदिलवार सपना

    अनिता मंदिलवार ‘सपना’ की कविता “आओ मिलकर योग करें” योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को उजागर करती है। इस कविता में कवि ने योग के माध्यम से सामूहिकता, सामाजिक समरसता और स्वास्थ्य के लाभों का वर्णन किया है। योग को न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बल्कि सामुदायिक एकता और सामूहिक कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण बताया गया है।

    yogasan

    आओ मिलकर योग करें/ अनिता मंदिलवार सपना

    स्वस्थ रहे तन और मन
    आओ मिलकर योग करें,
    स्वास्थ्य हमारा अच्छा हो
    कुछ महायोग करें ।

    पुस्तकें भी हमें
    सिखलाते हैं यही,
    संतुलित भोजन लेकर
    इसका भोग करें ।

    पानी की बचत करें
    और इसे दूषित न करें,
    प्रकृति प्रदत्त चीजों का
    हम उपयोग करें ।

    सूर्योदय से पहले उठकर
    सूर्य नमस्कार करें,
    जीवन जीने की यहीं से
    नई शुरुआत करें ।

    सांसों की क्रिया द्वारा
    आओ प्राणायाम करें,
    मन मस्तिष्क का कुछ तो
    चलो व्यायाम करें ।

    तन और मन की शक्ति
    चलो बढ़ा लें हम,
    अनुलोम-विलोम, कपालभाति से
    पुलकित हर रोम करें ।

    विचार यदि शुद्ध होंगे
    काम करेंगे अच्छे से,
    सपना पूरा होगा सबका
    ऐसा योग मनोयोग करें ।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    अनिता मंदिलवार ‘सपना’ की यह कविता सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई है। कविता का उद्देश्य योग के सामूहिक अभ्यास के महत्व को रेखांकित करना और पाठकों को इसे अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना है।

    कविता का सार:

    “आओ मिलकर योग करें” कविता में कवि अनिता मंदिलवार ‘सपना’ ने योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में बताया गया है कि मिल-जुल कर योग करने से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और सकारात्मकता भी बढ़ती है। योग का सामूहिक अभ्यास एक प्रेरणादायक और सहयोगी वातावरण का निर्माण करता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रेरित होता है। यह कविता पाठकों को योग के सामूहिक अभ्यास के लाभों को समझने और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है।

  • आओ मिल कर योग करें हम / शिवांगी मिश्रा

    आओ मिल कर योग करें हम / शिवांगी मिश्रा

    शिवांगी मिश्रा की कविता “आओ मिल कर योग करें हम” योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को उजागर करती है। इस कविता में कवयित्री ने योग को न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य और शांति का साधन बताया है, बल्कि इसे एक सामूहिक गतिविधि के रूप में भी प्रस्तुत किया है जो समुदाय और समाज में एकता और सकारात्मकता लाने का काम करती है।

    शिवांगी मिश्रा की यह कविता सरल, प्रेरणादायक और समर्पण की भावना से ओतप्रोत है। कविता का उद्देश्य योग के सामूहिक अभ्यास के महत्व को रेखांकित करना और पाठकों को इसे अपनाने के लिए प्रेरित करना है।

    yogasan

    आओ मिल कर योग करें हम / शिवांगी मिश्रा

    चेतन्य रहे अपना ये तन मन ।
    आओ मिल कर योग करें हम ।।

    स्वास्थ्य साधना करनी सबको
    यह संदेश दिया जाए ।।
    सदा हमे रहना है सुखी तो ।
    आओ योग किया जाए ।।
    योग करोगे दूर रहेंगे,सदा हमारे रोगों का गम ।।

    आओ मिल कर योग करें हम ।।

    जीवन का गर बने नियम ये ।
    तो हर इक मन बच्चा हो ।।
    योग को हिस्सा बना लो अपना ।
    स्वास्थ्य हमेशा अच्छा हो ।।
    कभी बीमारी रोग के भय से,किसी की ना हों आंखे नम ।।

    आओ मिल कर योग करें हम ।।

    यह कानून ना बना किसी का ।
    ना ही इक ये दिवस मात्र है ।।
    हम सबका ही भला है इसमें ।
    अपना लो ना ये बुरा साथ है ।।
    इतना इसको अपनाओ की,

    कभी कही ना पाए थम ।।

    चेतन्य रहे अपना ये तन मन ।
    आओ मिल कर योग करें हम ।।

    शिवांगी मिश्रा

    “आओ मिल कर योग करें हम” कविता में कवि शिवांगी मिश्रा ने योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में बताया गया है कि मिल-जुल कर योग करने से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और सकारात्मकता भी बढ़ती है। योग का सामूहिक अभ्यास एक प्रेरणादायक और सहयोगी वातावरण का निर्माण करता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रेरित होता है। यह कविता पाठकों को योग के सामूहिक अभ्यास के लाभों को समझने और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है।