Author: कविता बहार

  • दोहा सप्तक

    दोहा सप्तक

    दोहा सप्तक

                             *
    जो तू तोड़े फूल को , किया बड़ा क्या काम ।
    फूलों को  मुरदा  करे , खुश हो  कैसे  राम ।।
                             *
    जीवन  के सौन्दर्य से , जब  होगी पहचान ।
    पायेगा  तब ही  मजा , सचमुच  में इंसान ।।
            .                 *
    समय लगे न चित्र रचे , झटपट रचना होय ।
    एक चरित्र  निर्माण में , पूरा जीवन  खोय ।।
                              *
    मत कर संदेह मित्र पर , हानि  पड़े या लाभ ।
    तन मन धन को वार दे , मित्र मिले बड़़ भाग ।।
                              *
    दुविधा के भ्रम जाल में , सत्य दरस ना होय ।
    जीव को अधोगति मिले , पाय नरक को रोय ।।
                               *
    छोड़ विकारी भावना , मन में जड़ता आय ।
    सत्य संध श्री राम के , शरणागत  हो जाय ।।
                               *
    कथा कहत जीवन गया , मन को अवगुण भाय ।
    समय व्यर्थ  ही खो दिया , दूसर  को समुझाय ।।
                        ~  रामनाथ साहू  ” ननकी “
                              मुरलीडीह ( छ. ग.)
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  • जिन्दगी पर कविता

    जिन्दगी पर कविता

    मंजिल लक्ष्य

    जिन्दगी तो प्रेम की एक गाथा है,
    जिन्दगी भावुक प्रणय की छाँव है,
    जिन्दगी है वेदना की वीथिका सी
    जिन्दगी तो कल्पना की छुवन भर है।

    जिन्दगी है चन्द सपनों की कहानी,
    जिन्दगी विश्वास के प्रति सावधानी,
    जिन्दगी इतिहास है निर्मम् समय का
    जिन्दगी तो आँसुओं की राजधानी।

    जिन्दगी तो लहलहाती फसल सी है
    जिन्दगी कल्पनाओं के सुनहरे महल सी है
    जिन्दगी तो कामनाओ का घुटन भर है
    जिन्दगी तो कल्पना की छुअन भर है।
                 

    जिन्दगी तो एक  स्वप्न सा सुहावना है
    जिन्दगी का नाम ही सम्भावना है
    लोग कुछ भी कहे इस जिन्दगी को
    पर जिन्दगी तो मौत की ही प्रस्तावना है।

    कालिका प्रसाद सेमवाल
    मानस सदन अपर बाजार
    रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड)

  • मिला जो आशियाना

    मिला जो आशियाना

    मिला जो आशियाना
    वह सर्द रातों में ठिठुरता
    आसरा ढूंढता पेड़ो के नीचे
    पेड़ भी तो टपक रहे हैं
    चीथड़े खोजता अपने लिए
    जिससे ढक सके
    कम्पित बदन को
    मसृण पात…बैरी बने
    एक बूंद ….एक शीतल बूंद
    सिहरन पैदा करती अंतर तक
    श्वान से सटकर
    हल्की गर्माहट महसूस करता
    घुटने भी सिकुड़कर ,
    छू रहे चिबुक को
    सांसो की भाप से तपाता,
    हस्त,नेत्रों को
    नींद तो कहाँ?
    गुजर जाये ये निसि
    प्राणांतक… स्याह
    मार्ग में चलते मोटरों के धुएँ से
    तपन खींचता -सा
    आह! मिली जगह ओस बूंदों से बचने की
    श्मशान की चद्दरें
    तप्त गर्म राख सेंकने को
    अब जग के सब आशियाने
    तुच्छ है इसके लिये…
    ✍–धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई
    दौसा(राजस्थान)
    मो.-9680044509
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  • मुरली पर कविता

    मुरली पर कविता

    मुरली रे मुरली तूने ऐसा कौन सा काम किया है ।
    खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया  है।
    मुरली  बोलो न  मुरली बोलो न
    तेरी  किस्मत सबसे निराली कान्हा ने अपनाया ।
    कान्हा के अधरों पे सजी है कोई  समझ न पाया ।
    कान्हा की प्यारी हो——-कान्हा की प्यारी बन कर तूने जग में  नाम लिया है ।
    खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
    मुरली  बोलो न मुरली बोलो न ।
    राधा रूक्मनी तुझसे कान्हा के संग रहती ।
    कान्हा जो भी कहना  चाहे अपने मुख तू कहती ।
    तेरे बिन है श्याम अधूरा  हो——तेरे बिन है श्याम अधूरा सबने मान लिया है।
    खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
    मुरली बोलो न मुरली बोलो न ।
    सबको है अपनाया  कान्हा मुझको भी अपनाले ।
    चरणों  की प्रभू दास बना कर शरण में अपनी लगाले ।
    तेरी भक्ति हो——-तेरी  भक्ति  को मैने  जीवन धन मान लिया है।
    खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
    मुरली बोलो न मुरली बोलो न मुरली बोलो न मुरली बोलो न
    मुरली रे मुरली तूने ऐसा कौन सा काम किया है ।
    खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
    केवरा यदु “मीरा “
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  • विजय पर कविता

    विजय पर कविता

    जिस जीवन में संघर्ष न हो
    विजय उसे नहीं मिल सकती
    तेजस्वी वीर पुरुष के आगे
    अरिसेना नहीं टिक सकती।
    ललकार दो शत्रु को ऐसी तुम
    पर्वत का सीना टकराए
    साहस हृदय में प्रबल रखो
    रिपु का मस्तक भी झुक जाए।
    सरहद पर दुश्मन बार-बार
    माँ को आहत कर जाते हैं
    दुश्मन की ईंट बजाकर लाल
    विजय पताका फहराते हैं।
    नित जूझते हैं संघर्षों से
    बिगुल संग्राम बजाते हैं
    रण में तांडव करके वीर
    विजय तिलक लगाते हैं।
    अर्पण प्राण  भी हो जाएँ
    नहीं हटते वीर कभी पीछे
    इतिहास गवाह है वीरों ने
    लहू से मातृ चरण सींचे।
    रणवीरों तुमसे ही भारत माँ
    वीरभोग्या कहलाती है
    पालनहार माँ योद्धाओं की
    विजयी वीरभूमि बन जाती है।
    कुसुम
    नई दिल्ली
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