दोहा सप्तक
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जो तू तोड़े फूल को , किया बड़ा क्या काम ।
फूलों को मुरदा करे , खुश हो कैसे राम ।।
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जीवन के सौन्दर्य से , जब होगी पहचान ।
पायेगा तब ही मजा , सचमुच में इंसान ।।
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समय लगे न चित्र रचे , झटपट रचना होय ।
एक चरित्र निर्माण में , पूरा जीवन खोय ।।
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मत कर संदेह मित्र पर , हानि पड़े या लाभ ।
तन मन धन को वार दे , मित्र मिले बड़़ भाग ।।
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दुविधा के भ्रम जाल में , सत्य दरस ना होय ।
जीव को अधोगति मिले , पाय नरक को रोय ।।
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छोड़ विकारी भावना , मन में जड़ता आय ।
सत्य संध श्री राम के , शरणागत हो जाय ।।
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कथा कहत जीवन गया , मन को अवगुण भाय ।
समय व्यर्थ ही खो दिया , दूसर को समुझाय ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह ( छ. ग.)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद