Tag: 14 नवम्बर बाल दिवस पर कविता

14 नवम्बर भारत में बाल दिवस, जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन : बच्चों की कविताएँ बाल कविता कहलाती हैं। ये हिंदी में बच्चों के लिए लिखी गई कविताएँ हैं।

  • जीवन के झंझावातों में श्रमिक बन जाते है

    जीवन के झंझावातों में श्रमिक बन जाते है

    बाल श्रम निषेध दिवस

    जीवन के झंझावातों में श्रमिक बन जाते है

    नन्ही नन्ही कोमल काया
    निज स्वेद बहाते हैं।
    जीवन के झंझावातों में,
    श्रमिक  बन जाते है।
    हाथ खिलौने वाले  देखो,
    ईंटों को झेल रहे।
    नसीब नहीं किताबें इनको
    मिट्टी से खेल रहे
    कठिन मेहनत करते है तब
    दो रोटी पाते है।
    जीवन के—–
    गरीबी अशिक्षा के चलते,
    जीवन दूभर होता
    तपा ईंट भठ्ठे में जीवन
    बचपन कुंदन होता
    सपने सारे दृग जल होते
    यौवन मुरझाते है।
    जीवन के—–
    ज्वाल भूख की धधक रही है
    घर घर  हाँडी खाली
    भूख भूख आवाज लगाती,
    उदर बना है सवाली
    मजबूरी की दास्ताँ  कहती
    बाल श्रमिक मुस्काते हैं।
    सुधा शर्मा
    राजिम, छत्तीसगढ़
    31-5-2019

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • जन-जन करोड़ों की मधुर मुसकान चाचा नेहरू /सुनील श्रीवास्तव ‘श्री’

    जन-जन करोड़ों की मधुर मुसकान चाचा नेहरू /सुनील श्रीवास्तव ‘श्री’

    भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बच्चे प्यार से ‘चाचा नेहरू’ भी कहते हैं। जवाहरलाल नेहरू का मानना ​​था कि बच्चे किसी भी समाज की मूल नींव होते हैं, इसलिए उनका पालन-पोषण उपयुक्त वातावरण में किया जाना चाहिए और पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती के उपलक्ष्य में हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है।

    जन-जन करोड़ों की मधुर मुसकान चाचा नेहरू /सुनील श्रीवास्तव 'श्री'

    जन-जन करोड़ों की मधुर मुसकान चाचा नेहरू /सुनील श्रीवास्तव ‘श्री’

    बच्चों के चाचा नेहरू इन्सान ही तो थे

    जन-जन करोड़ों की मधुर मुसकान भी तो थे

    गांधी-टोपी और कोट पहचान थी उनकी

    महके हुए गुलाब-सी मुसकान थी उनकी

    भारतीय जनतंत्र के प्रथम प्रधान भी तो थे । जन-जन …

    दौलत की चकाचौंध से कोसों रहे वो दूर

    जन-जन समाज जोड़ने से हो गए मशहूर

    गांधी के दाएँ हाथ की कमान भी तो थे । जन-जन ….

    शांति के पुकारी औ’ बच्चों के प्यारे थे

    लाखों देशवासियों की आँखों के तारे थे

    गुटनिरपेक्षता व पंचशील की वे जान भी तो थे । जन-जन …

    मोतीलाल के लाल सचमुच थे कमाल

    लेखन के क्षेत्र में भी कर दिया धमाल

    ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ की शान भी तो थे । जन-जन ….

    आजादी की लड़ाई में न इनका जवाब था

    शोलों की धधक में भी हिमानी मिजाज था

    गाँधी की अहिंसा की पहचान भी तो थे । जन-जन …

    जनता को रोजी-रोटी औ’ शिक्षा दिला सके

    ये और बात है कि हम तिब्बत ना पा सके

    ये देश-दुनिया की उच्च मचान भी तो थे । जन-जन …

    हँसमुख स्वरूप उनका क्या भुला सकेंगे हम ?

    अफसोस भी तो है उन्हें न पा सकेंगे हम

    भगवान् की इच्छा के निगेबहान भी तो थे । जन-जन …

  • बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)

    बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)

    हर साल 12 जून को विश्व दिवस बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने और उनकी मदद के लिए किया जा सकता है, इसके लिए सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाता है।

    बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)

    बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)


    राज, समाज, परायों अपनों, के कर्मो के मारे हैं!
    घर परिवार से हुये किनारे, फिरते मारे मारे हैं!
    पेट की आग बुझाने निकले, देखो तो ये दीवाने!
    बाल भ्रमित मजदूर बेचारे,हार हारकर नित हारे!
    __
    यह भाग्य दोष या कर्म लिखे,
    . ऐसी कोई बात नहीं!
    यह विधना की दी गई हमको,
    कोई नव सौगात नहीं!
    मानव के गत कृतकर्मो का,
    फल बच्चे ये क्यों भुगते!
    इससे ज्यादा और शर्म… की,
    यारों कोई बात नही!

    यायावर से कैदी से ये ,दीन हीन से पागल से!
    बालश्रमिक मेहनत करते ये, होते मानो घायल से!
    पेट भरे न तन ढकता सच ,ऐसी क्यों लाचारी है!
    खून चूसने वाले इनके, मालिक होते *तायल से!

    ये बेगाने से बेगारी से, ये दास प्रथा अवशेषी है!
    इनको आवारा न बोलो, ये जनगणमन संपोषी हैं!
    सत्सोचें सच मे ही क्या ये, सच में ही सचदोषी है!
    या मानव की सोचों की ये, सरे आम मदहोंशी है!
    __
    जीने का हक तो दें देवें ,रोटी कपड़े संग मुकाम!
    शिक्षासंग प्रशिक्षण देवें,जो दिलवादें अच्छा काम!
    आतंकी गुंडे जेलों मे, खाते मौज मनाते हैं!
    कैदी-खातिर बंद करें ये, धन आजाए इनके काम!
    . (तायल=गुस्सैल)

    बाबूलाल शर्मा

  • बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता

    बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता

    बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता : बालवृंद के प्रिय चाचा नेहरू ने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ एक स्नेहशील व्यक्तित्व के रूप में भी ख्याति पाई। उन्हीं का जन्म दिवस प्रति वर्ष 14 नवम्बर को बाल- -दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    जवाहरलाल नेहरू

    आ गया बच्चों का त्योहार/ विनोदचंद्र पांडेय ‘विनोद’

    सभी में छाई नयी उमंग, खुशी की उठने लगी तरंग,

    हो रहे हम आनन्द-विभोर, समाया मन में हर्ष अपार !

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    करें चाचा नेहरू की याद, जिन्होंने किया देश आजाद,

    बढ़ाया हम सबका, सम्मान, शांति की देकर नयी पुकार ।

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    चलें उनके ही पथ पर आज, बनाएं स्वर्ग-समान समाज,

    न मानें कभी किसी से बैर, बढ़ाएं आपस में ही प्यार !

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    देश-हित में सब-कुछ ही त्याग, करें भारत मां से अनुराग,

    बनाएं जन-सेवा को ध्येय, करें दुखियों का हम उद्धार ।

    आ गया बच्चों का त्योहार ।

    कदम मिला बढ़े चलो/मलखानसिंह सिसोदिया

    सुनील आसमान है हरी-भरी धरा,

    रजत भरी निशीथिनी, दिवस कनक भरा।

    खुली हुई जहान की किताब है पढ़ो,

    बढ़ो बहादुरों, कदम मिला चलो बढ़ो ।।

    चुनौतियाँ सदर्प वर्तमान दे रहा,

    भविष्य अंध सिंधु बीच नाव खे रहा ।

    भिड़ो पहाड़ से अलंघ्य श्रृंग पर चढ़ो,

    विकृत स्वदेश का स्वरूप फिर नया गढ़ो ।

    विवेक, कर्म, श्रम, ज्योति-दीप को जला,

    प्रमाद, बुजदिली, विषाद हिमशिला गला ।

    अजेय बालवीर ले शपथ निडर बढ़ो,

    सुकीर्ति दीप्त से स्वदेश भाल को मढ़ो ||

    समाज-व्यक्ति, राष्ट्र- विश्व शृंखला मिला,

    अशेष मातृभाव शत कमल – विपिन खिला ।।

    अटूट प्रेम-सेतु बाँधते हुए बढ़ो,

    अखंड ऐक्य-केतु गाड़ते हुए बढ़ो।

  • बाल-दिवस पर कविता

    बाल-दिवस पर कविता

    बाल-दिवस पर कविता

    आ गया बच्चों का त्योहार/ विनोदचंद्र पांडेय ‘विनोद’

    जवाहरलाल नेहरू

    सभी में छाई नयी उमंग, खुशी की उठने लगी तरंग,

    हो रहे हम आनन्द-विभोर, समाया मन में हर्ष अपार !

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    करें चाचा नेहरू की याद, जिन्होंने किया देश आजाद,

    बढ़ाया हम सबका, सम्मान, शांति की देकर नयी पुकार ।

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    चलें उनके ही पथ पर आज, बनाएं स्वर्ग-समान समाज,

    न मानें कभी किसी से बैर, बढ़ाएं आपस में ही प्यार !

    आ गया बच्चों का त्योहार !

    देश-हित में सब-कुछ ही त्याग, करें भारत मां से अनुराग,

    बनाएं जन सेवा को ध्येय, करें दुखियों का हम उद्धार ।

    आ गया बच्चों का त्योहार ।

    कदम मिला बढ़े चलो/ मलखानसिंह सिसोदिया

    सुनील आसमान है हरी-भरी धरा,

    रजत भरी निशीथिनी, दिवस कनक भरा।

    खुली हुई जहान की किताब है पढ़ो,

    बढ़ो बहादुरों, कदम मिला चलो बढ़ो ||

    चुनौतियाँ सदर्प वर्तमान दे रहा,

    भविष्य अंध सिंधु बीच नाव खे रहा ।

    भिड़ो पहाड़ से अलंघ्य श्रृंग पर चढ़ो,

    विकृत स्वदेश का स्वरूप फिर नया गढ़ो ।

    विवेक, कर्म, श्रम, ज्योति-दीप को जला,

    प्रमाद, बुजदिली, विषाद हिमशिला गला ।

    अजेय बालवीर ले शपथ निडर बढ़ो,

    सुकीर्ति दीप्त से स्वदेश भाल को मढ़ो ||

    समाज-व्यक्ति, राष्ट्र- विश्व शृंखला मिला,

    अटूट प्रेम-सेतु बाँधते हुए बढ़ो,

    अखंड ऐक्य-केतु गाड़ते हुए बढ़ो।