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कोयल रानी

कोयल रानी

ओ शर्मीली कोयल रानी आज जरा तुम गा दो ना।
आम वृक्ष के झुरमुट में छुपकर मधुर गीत सुना दो ना।।

शीतल सुरभित मंद पवन है और आम का अमृतरस ।
आम से भी मीठी तेरी बोली सुनने को जी रहा तरस ।।

वसंत ऋतु आता तभी तुम दिखती इन आमों की डाली पे।
मिसरी सी तेरी बोली है अब गा दो ना तुम डाली से।।

ओ वनप्रिया, सारिका रानी आम की डलीया झूम रही ।
मनमोहक गान सुनने को पतिया तेरी पलकें चूम रही ।।

कुहू-कुहू की आवाज से तेरी गूँज उठी सारी बगिया ।
तेरी मीठी बोली से कुहुकिनी ,ऋतुराज का आगमन शुरू हुआ ।।

बौरे आये आम वृक्ष पर और बौरो से बना टिकोरा।
आम की डाली पर जब तुम गाती तो मैं आता दौड़ा-दौड़ा।।

चिड़ियों की रानी कहलाती मीठी आवाज सुनाती हो।
आम की डाली चढ़ कर कोकिल तुम रसीले आम टपकाती हो।।

टपके आम को खा-खा कर खूब सुनता हूँ मधुर गान ।
सचमुच तुम वसंत दूत हो मैं भी करता हूँ गुणगान ।।

✍बाँके बिहारी बरबीगहीया

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