मुरली पर कविता
मुरली रे मुरली तूने ऐसा कौन सा काम किया है ।
खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है।
मुरली बोलो न मुरली बोलो न
तेरी किस्मत सबसे निराली कान्हा ने अपनाया ।
कान्हा के अधरों पे सजी है कोई समझ न पाया ।
कान्हा की प्यारी हो——-कान्हा की प्यारी बन कर तूने जग में नाम लिया है ।
खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
मुरली बोलो न मुरली बोलो न ।
राधा रूक्मनी तुझसे कान्हा के संग रहती ।
कान्हा जो भी कहना चाहे अपने मुख तू कहती ।
तेरे बिन है श्याम अधूरा हो——तेरे बिन है श्याम अधूरा सबने मान लिया है।
खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
मुरली बोलो न मुरली बोलो न ।
सबको है अपनाया कान्हा मुझको भी अपनाले ।
चरणों की प्रभू दास बना कर शरण में अपनी लगाले ।
तेरी भक्ति हो——-तेरी भक्ति को मैने जीवन धन मान लिया है।
खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
मुरली बोलो न मुरली बोलो न मुरली बोलो न मुरली बोलो न
मुरली रे मुरली तूने ऐसा कौन सा काम किया है ।
खुस होकर कान्हा ने तुझे अधरों पे थाम लिया है ।
केवरा यदु “मीरा “
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद