यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०उपमेंद्र सक्सेनाके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
नया अब साल है आया, रहे इंसानियत कायम मुहब्बत के चिरागाँ इसलिए हमने जलाए हैं।
सुकूने बेकराँ मिलती, अगर पुरशिस यहाँ पे हो न हो वारफ़्तगी कोई, दिले मुज्तर कहीं क्यों हो नवीदे सरबुलंदी से, जुड़ें सब ये तमन्ना है सरे आज़ार के पिन्दार को कुदरत यहाँ दे धो
अमीरों के घरों में खूब भामाशाह पैदा हों मिटे अब मुफ़लिसी का दौर ये पैगाम लाए हैं।
करें हम दीद-ए- बेबाक, दर्दे लादवा जब हो मिले तब जिंदगी में हक़ बज़ानिब दौर हो ऐसा फरेबे मुसलसल होती, रक़ाबत में कहीं पे जब वहाँ मंजर हमेशा से, रहा हैवानियत जैसा
अक़ाइद में न हो मौजे- हवादिस जो खलिश अब दे तबस्सुम हो तक़ल्लुम में, मिटेंगी तब बलाएँ हैं।
सितम -खुर्दा बशर के जख्म पर मरहम लगाएँ हम फ़जाँ में हो नहीं दहशत, तभी वो चैन से सोए न हो अग़ियार जब कोई, लगेंगे सब यहाँ अपने न काशाना कहीं उजड़े, न कोई जुल्म अब ढोए।
हक़ीकत को बयाँ करके, अमन की हम दुआ करते सग़ाने दहर बातें सुन हमारी तिलमिलाए हैं।
जिसके मन मै ऐंठ भरै बौ, अपने आगे किसकौ गिनिहै लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।
अंधो बाँटै आज रिबड़ियाँ, अपनिन -अपनिन कौ बौ देबै नंगे- भूखे लाचारन की, नइया कौन भलो अब खेबै आँगनबाड़ी मै आओ थो, इततो सारो माल बटन कौ बच्चन कौ कछु नाय मिलो पर, औरन के घर गओ चटन कौ
जिसको उल्लू सीधो होबै,बौ काहू कौ कब पहिचनिहै लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।
सरकारी स्कूल बनो जब, खूबै गओ कमीसन खाओ कछु लोगन ने मिली भगत से, जिततो चाहो उततो पाओ स्कूलन पै जिततो खर्चा, बा हिसाब से नाय पढ़ाई बरबादी पैसन की होबै, जनता की लुट जाय कमाई
आसा बहू न दिखैं गाँव मै, जच्चा को दुख- दरद न जनिहै लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।
हड़प लेय आधे रासन कौ, कोटेदार बनो है दइयर मनरेगा मै खेल हुइ रहो,रोबैं बइयरबानी बइयर अफसर नाय सुनैं काहू की, लगैं गाँव मै जो चौपालैं घोटाले तौ होबैं केते, लेखपाल जब चमचा पालैं
जौ लौ रुपिया नाय देव तौ,काम न कोऊ अपनो बनिहै लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।
होय इलक्सन पिरधानी को,अपनी धन्नो होय खड़ी है पंचायत को सचिब हियाँ जो, बाकी बासे आँख लड़ी है बी.डी.सी. मै बिकैं मेम्बर,तौ ब्लाक प्रमुख बनि पाबै और जिला पंचायत मै भी, सीधो-सादो मुँह की खाबै
होय पार्टी बन्दी एती, बात- बात पै लाठी तनिहै लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।
करवाचौथ पर हिंदी कविता– करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है।
करवा चौथ पर गीत- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
जीवन हो उनका मंगलमय, कभी न उनके लगें खरोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
इस दुनिया में पति से बढ़कर, कोई कहीं न होता दूजा उसको ही भगवान मानकर, करती हैं वे उसकी पूजा
पति की सेवा में जो तत्पर, कभी न वे उसका धन नोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
इस व्रत के पीछे सदियों से, चलती आई एक कहानी देख चंद्रमा को पत्नी फिर, पति के हाथों पीती पानी
बढ़ता प्यार खूब आपस में, उनके बीच न लड़तीं चोचें करवा चौथ मनाती हैंं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
झगड़ा होता नहीं कभी जब, फिर क्यों चले मुकदमेंदारी क्यों तलाक की नौबत आए, और मचे क्यों मारा-मारी
तालमेल हो संभव तब ही, समाधान में हों जब लोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
सब आनंदित होते घर में, अपनापन जब रहता जारी धन- दौलत की कमी नहीं हो, लगे न फिर कोई बीमारी
जीवन के पथ पर जो बढ़ते, उन चरणों में क्यों हों मोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे , मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
सात फेरों के थे जो वचन वो , मिलके निभते रहे, तेरी जय हो । मांग सिंदूर भरे,जीवन संग-संग चले । मेरी धड़कन उन्हीं की दीवानी रहे । दीवानी रहे…मइया करवा मइया करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे , मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
मेरी सुनले तू अब मोरी मइया , मेरे जीवन की तू ही खेवइया। जीवन ये भी रहे ,भले फिर से मिले । मेरी सजना के संग ही कहानी रहे । कहानी रहे…मइया करवा मइया करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे , मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
माह कातिक का जब-जब भी आये, करके पूजन तुझे हम मनाएं , सजना संग-संग रहे ,हर सुहागन कहे । मरते दम तक वो राजा की रानी रहे । वो रानी रहे…..मइया करवा मइया करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
मेरे सजना की जीवन रवानी रहे । मइया करवा मइया , मइया ओ करवा मइया ।
*डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज)*
करवाचौथ पर हिंदी कविता
करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है । जमीं के चांद का आसमान के चांद से मिलने का पल , बड़ा सुहाना लगता है। पति प्रेम से लिप्त यह व्रत , मन को लुभाना लगता है। करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।
किए सोलह श्रृंगार नारियां जब छतों में आती हैं , चांद को देखने का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है। हाथों में मेहंदी , आंखो पे काजल, गले में हार का दीदार सुहाना लगता है। नई चूड़ी , नए कंगना , नवीनता का सारा श्रृंगार सुहाना लगता है।
पहन कर चुनरी सतरंगी , पिया को रिझाना लगता है। कर सोलह श्रृंगार सज कर , पिया के मन को लुभाना लगता है। कार्तिक की चतुर्थी चांदनी में , मुझे पिया चांद सी बनना लगता है। निर्जल व्रत रखकर , पिया की उम्र बढ़ाना लगता है।
करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है। आसमान का एक चांद भी शरमा जाता है, जमीं के लाखों चांद को देख कर, शरमाने की अदा का वह पल बड़ा सुहाना लगता है।
प्रकती भी देती है जमीं के देवियों का साथ, सर्दी की हल्की बौछार का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है। अखंड सुहाग रहे सभी मां – बहनों का, खुदा से दुआ दोहराना लगता है । करवा चौथ के व्रत का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है।।
चांद का साया
ए चांद दीखता है तुझमें, मुझे मेरे चांद का साया है। हुआ दीदार जो तेरा तो ये चांद भी अब मुस्काया है।।
सदा सुहागन चाहत दिल में, पति हित उपवास किया मैंने। जीवन भर साजन संग पाऊं, मन में एहसास किया मैंने।। जितना जब मांगा है तुमसे, उससे ज्यादा ही पाया है…
माही की है रची महावर, मंगल सूत्र पहना है। कुमकुम मांग सजाई है, सोलह श्रंगारी गहना है।। चौथ कहानी सुनी आज, और करवा साथ सजाया है…
नहीं करो तुम लुक्का छिप्पी, मुझको बिल्कुल नहीं भाती ये। बैरन बदली को समझा दो, जले पर नमक लगाती ये।। हुई इंतेहा इंतजार की, बीते नहीं वक्त बिताया है…
सुबह से लेकर अभी तलक, मैं निर्जल और निराहार रही। अंत समय तक करूं चतुर्थी, खांडे की ही धार सही।। चांद रहो तुम सदा साक्षी, जब पिया ने व्रत खुलाया है…
शिवराज चौहान नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)
करवा चौथ-सुचिता अग्रवाल
कार्तिक चौथ घड़ी शुभ आयी। सकल सुहागन मन हरसायी।। पर्व पिया हित सभी मनाती। चंद्रोदय उपवास निभाती।।
करवे की महत्ता है भारी। सज-धज कर पूजे हर नारी।। सदा सुहागन का वर हिय में। ईश्वर दिखते अपने पिय में।।
जीवनधन पिय को ही माना। जनम-जनम तक साथ निभाना।। कर सौलह श्रृंगार लुभाती। बाधाओं को दूर भगाती।।
माँग भरी सिंदूर बताती। पिया हमारा ताज जताती।। बुरी नजर को दूर भगाती। काजल-टीका नार लगाती।।
गजरे की खुशबू से महके। घर-आँगन खुशियों से चहके।। सुख-दुख के साथी बन जीना। कहता मुँदरी जड़ा नगीना।।
साड़ी की शोभा है न्यारी। लगती सबसे उसमें प्यारी।। बिछिया पायल जोड़े ऐसे। सात जनम के साथी जैसे।।
प्रथा पुरानी सदियों से है। रहती लक्ष्मी नारी में है।। नारी शोभा घर की होती। मिटकर भी सम्मान न खोती।।
चाहे स्नेह सदा अपनों से। जाना नारी के सपनों से।। प्रेम भरा संदेशा देता। पर्व दुखों को है हर लेता।।
उर अति प्रेम पिरोये गहने। सारी बहनें मिलकर पहने।। होगा चाँद गगन पर जब तक। करवा चौथ मनेगी तब तक।।
डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप” तिनसुकिया, असम
करवाचौथ पर हिंदी कविता
( सरसी छंद)
आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।
करे आरती पूजा करके , पाने पति का प्यार ।।
पायल बाजे रुनझुन रुनझुन , बिन्दी चमके माथ ।
मंगलसूत्र गले में पहने , लगे मेंहदी हाथ ।।
करवा चौथ लगे मन भावन, आये बारम्बार ।
आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।।
रहे निर्जला दिनभर सजनी , माँगे यह वरदान ।
उम्र बढे हर दिन साजन का , बने बहुत बलवान ।।
छत के ऊपर देखे चंदा , खुशियाँ मिले अपार ।
भोली सी सूरत को देखे , सजन लुटाए प्यार ।।
सुखी रहे परिवार सभी का, जुड़े ह्रदय का तार।
आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।।
*महेन्द्र देवांगन माटी*
*पंडरिया छत्तीसगढ़*
हूँ करवा मैं
मेरे चाँद में बहत्तर हैं छेद हूँ करवा मैं पति की बढ़े उम्र हों दीर्घजीवी जब भी वो चेतेंगे देख के त्याग बनेंगे पत्नीव्रता खुलेगा भाग्य मेरा मेरे बच्चों का होगा उद्धार संवरेगा संसार मिलेगा प्यार करवा चौथ व्रत होगा सफल चांद मेरा धवल यही मेरा संबल।।
हाँ मुंशी प्रेमचंद जी , साहित्यकार थे ऐसे मानवता की नस-नस को पहचान रहे हों जैसे।
सन् अठ्ठारह सौ अस्सी में अंतिम हुई जुलाई तब जिला बनारस में ही लमही भी दिया सुनाई आनंदी और अजायब जी ने थी खुशी मनाई बेटे धनपत को पाया, सुग्गी ने पाया भाई फिर माता और पिता जी बचपन में छूटे ऐसे बेटे धनपत से मानो सुख रूठ गए हों जैसे।
उर्दू में थे ‘नवाब’ जी हिंदी लेखन में आए विधि का विधान था ऐसा यह प्रेमचंद कहलाए लोगों ने उनको जाना दुखियों के दु:ख सहलाए घावों पर मरहम बनकर निर्धन लोगों को भाए अपनाया था जीवन में शिवरानी जी को ऐसे जब मिलकर साथ रहें दो, सूनापन लगे न जैसे।
बी.ए. तक शिक्षा पाई, अध्यापन को अपनाया डिप्टी इंस्पेक्टर का पद शिक्षा विभाग में पाया उसको भी छोड़ दिया फिर संपादन उनको भाया तब पत्र-पत्रिकाओं में लेखन को ही पनपाया फिर फिल्म कंपनी में भी, मुंबई गए वे ऐसे जब दीपक बुझने को हो, तब चमक दिखाता जैसे।
उन्नीस सौ छत्तीस में अक्टूबर आठ आ गई क्यों हाय जलोदर जैसी बीमारी उन्हें खा गई अर्थी लमही से काशी मणिकर्णिका घाट पा गई थोड़े से लोग साथ थे, गुमनामी उन्हें भा गई बेटे श्रीपत, अमृत को, वे छोड़ गए तब ऐसे बेटों से नाम चलेगा, दुनिया में जैसे- तैसे।