नया अब साल है आया – उपमेंद्र सक्सेना
नया अब साल है आया नया अब साल है आया, रहे इंसानियत कायममुहब्बत के चिरागाँ इसलिए हमने जलाए हैं। सुकूने बेकराँ मिलती, अगर पुरशिस यहाँ पे होन हो वारफ़्तगी कोई, दिले मुज्तर कहीं क्यों होनवीदे सरबुलंदी से, जुड़ें सब ये तमन्ना हैसरे आज़ार के पिन्दार को कुदरत यहाँ दे धो अमीरों के घरों में खूब … Read more