स्वतंत्रता दिवस पर कविता :- हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। पूरे भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर “राष्ट्र के नाम संबोधन” देते हैं। इसके बाद अगले दिन दिल्ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी तथा सभी शासकीय भवनों को रंग बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है।
स्वतंत्रता दिवस पर कविता
स्वतंत्रता की मुस्कान
दो सौ वर्षों की गुलामी के बाद, हमारा भारत देश हुआ आजाद। गांधी – भगतसिंह थे जैसे वीर, कोई था गरीब कोई था अमीर। देश की आजादी के लिए भारतीय हुए कुर्बान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
अंग्रेजी अधिकारीयों की तानाशाही, हिन्दुस्तान पर जुल्म का कहर ढाई। चारों तरफ था अन्याय – अत्याचार, हिंसा से करते गोरे हुकूमत का प्रचार। देश की आजादी के लिए लोगों ने दी बलिदान। बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
लक्ष्मीबाई- दुर्गावती जैसी नारी – शक्ति, लोगों को सिखाया देश-प्रेम की भक्ति। सुभाषचंद्र बोस चंद्रशेखर की ऐसी थी कहानी, नाम सुनकर कांपते अंग्रेज और मांगते थे पानी। आजादी के लिए लाचार था भारत का इंसान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
संघर्ष को आगे बढ़ाए स्वतंत्रता – सेनानी, हो गए शहीद लेकिन कभी हार न मानी। मंगल पांडे खुदीराम बोस का था श्रेष्ठ योगदान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
संघर्ष – बलिदान है आजादी का सूत्र, कई स्त्रियों ने गंँवाई वीर भाई – पुत्र। हमें आजादी मिली है कई संघर्षों के बाद, मेरे देश वासियों इसे रखना तुम आबाद। सभी महापुरुषों का मैं करूं सहृदय गुणगान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
15 अगस्त को लहराओ शान से तिरंगा, न करो हिन्दुस्तान में धार्मिक द्वेष – दंगा। हिन्दू-मुस्लिम और सिख – ईसाई, हम आपस में हैं सब भाई – भाई। परोपकार से तुम भी बनालो अपनी पहचान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
अकिल खान
यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है
यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है। यही तो मेरे देश की पहचान है। हो गए कितने ही प्राण न्यौछावर इसके सम्मान में, आज भी इस तिरंगे के लिए सबकी एक हथेली पर जान है। मेरे दिलो जिस्मों जान से ये सदा आती है, ये तिरंगा ही तो मेरा ईमान है। मिट गए देश के खातिर कैसे -कैसे देश भगत यहाँ, गांधी,तिलक,सुभाष व जवाहर जैसे फूल इस तिरंगे की पहचान है। भूला नहीं सकता कभी ये देश इन वीर जवानों को, भगत सिंह,राज गुरु,सुखदेव जैसे वीर जवान इस तिरंगे के लिए हुए कुर्बान है। घटा अमृत बरसाती है , फिज़ा गीत सुनाती है, धरा हरियाली बिछाती है, कई रंग कई मज़हब के होकर भी सबके हाथो में,
एक ही तिरंगा और सबकी ज़ुबान पर एक ही गान है। उत्साह की लहर शांति की धारा बहाती है नदियां, हम भारतीय की पहचान बताती ये धरती सुनहरी नीला आसमान है। करते है वतन से मुहब्बत कितनी ना पूछो हम दीवानों से, वतन के नाम पर सौ जान भी कुर्बान है। एक ही तिरंगे के साये में कई तरह के फूल खिलते व खुशबू महकती है, रंग,नस्ल, जात, मज़हब भिन्न- भिन्न होकर भी एक ही धरा के हम बागबान है। लिखी जाती है मुहब्बत की कहानियां पूरी दुनिया में, मगर मुहब्बत का अजूबा ताज को बताकर मिलता हिंदुस्तान को स्वाभिमान है। ज़मी तो इस दुनिया में बहुत है पैदा होने के लिए, “तबरेज़” तू खुशनसीब है जिस ज़मी पर पैदा हुआ वो हिंदुस्तान है।
तबरेज़ अहमद बदरपुर नई दिल्ली
लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान
कहीं लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान कहीं कहीं कहीं देश के नारे शहीदों का सम्मान कहीं
पूजा थाली दीप सजाकर चली देश की ललनाएँ!! भैया द्वारे सूत खोलकर रक्षा की ले रही दुआएँ।।
रंग बिरंगी सजी थी राखी भीड़ लगी थी बाजारों में! खिली खिली देश की गली दो दो पावन त्यौहारों मे!
दोनों प्रहरी इस मिट्टी के संजोग ये कैसा आज है आई? इधर बहन की रक्षक बैठे उधर सीमा पर सैनिक भाई!
जाता सावन दुख भी देता फिर न मिलेगा ऐसा रूप! पल न बीते भादों आता ऐसा इनका जोड़ी अनूप!!
गोल थाल सी निकली चंदा सावन पुन्नी अति मनभावन! शिवशंकर का नमन करे सब बम बम भोले मंत्र है पावन!
शाम सबेरे दिन भर आनंद लो फिर आ गयी है रात! वत्स कहे शुभ रात्रि सभी को राम लला को नवाकर माथ!
– राजेश पान्डेय वत्स
तिरंगा हाथ में ले काफिला जब गुजरता है
तिरंगा हाथ में ले काफिला जब – जब गुजरता है । जवानी जोश जलवा देख शत्रु का दिल मचलता है।।
कसम है हिन्दुस्तां की जां निछावर फिर करेंगे हम, नज़र कोई दिखा दे तो लहू रग – रग उबलता है ।
महक सोंधी मिट्टी की जमीं मेरी सदा महकाये , सलामत खूब हिन्दोस्तां रहे झिल-मिल चमकता है।
जरूरत यदि पड़े तो सर कटा दें देश की खातिर , जवां इस देश पर कुरबान होने को तरसता है ।
अमन का ताज भारत पे खिले हरदम दुआ करते , तिरंगे फूल से आजाद गुलशन अब महकता है।
दुआ हो गर खुदा का हम जनम हर बार लेंगे अब , झुकाते शीष हम आशीष हरदम ही झलकता है ।
कहे दिल से “धरा” भी ,फ़क्र करते हैं वतन पर हम , तिरंगा हिन्द का अब चाँद पर भी फहरता है।
धनेश्वरी देवांगन धरा रायगढ़ छत्तीसगढ़
राष्ट्रीय पर्व पर कविता
तीन रंगों का मैं रखवाला खुशहाल भारत देश हो। मेरी भावनाओं को सब समझें ऐसा यह सन्देश हो।
जब-जब होता छलनी मेरा सीना मैं भी अनवरत रोता हूँ । मेरे दिल की तो समझो मैं भी कातर और ग़मज़दा होता हूँ। सब के मन को निर्मल कर दो प्यार का समावेश हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
जब मेरी खातिर लड़ते-लड़ते मेरे सपूत शहीद हो जाते हैं | मेरी ही गोद में सिमटकर वे सब मेरे ही गले लग जाते हैं। बोझिल मन से ही सही उन्हें सहलाऊँ ऐसा मेरा साहस हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
जाकर उस माता से पूछो जिसने अपना लाल गँवाया है। निर्जीव देह देखकर कहती मैंने एक और क्यों न जाया है | तेरे जैसी वीरांगनाओं से ही देश का उन्नत भाल हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
मेरे प्यारे देश को शूरवीरों की आवश्यकता, अनवरत रहती है । उन प्रहरियों की सजगता के कारण ही, सुरक्षित रहती धरती है । आ तुझे गले लगाऊँ, तुझ पर अर्पण सकल आशीर्वाद हों । मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
मैं भी सोचा करता हूँ पर इस व्यथा को किसे सुनाऊँ मैं। छलनी होता मेरा सीना अपनी यह पीड़ा किसे दिखाऊँ मैं। देश की खातिर देह उत्सर्ग हो यही सबका अंतिम प्रण हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
श्रीमती वैष्णो खत्री (मध्य प्रदेश)
*पुलवामा हमले में शहीद को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि
आतंकी हमले की निंदा करके ये रह जाएंगे। और शहीदों की अर्थी पर पुष्प चढ़ाकर आएंगे।।
इससे ज्यादा कुछ नहीं करते ये भारत के नेता हैं। आज देश का बच्चा-बच्चा इन को गाली देता है।।
सीमा पार से आतंकी कैसे हमले कर जाते हैं? दिनदहाड़े देश के 40 जवान मर जाते हैं।।
सत्ता के सत्ताधारी अब थोड़ी सी तो शर्म करो। एक-एक आतंकी को चुनकर के फांसी पे टांक धरो।।
घटना सुनकर के हमले की दिल मेरा थर्राया है। सोया शेर भी आज गुफा से देखो कैसे गुर्राया है?
सैनिक की रक्षा हेतु अब कदम बढ़ाना ही होगा। संविधान परिवर्तित कर कानून बनाना ही होगा।।
कितनी बहिनें विधवा हो गई और कितनों का प्यार गया। उस माँ पर क्या बीती होगी जिसका फूलों सा हार गया।।
जितने हुए शहीद देशहित उनको वंदन करता हूं। उनके ही चरणों में मैं अपने शीश को धरता हूँ।।
दे दी हमें आजादी पर कविता
दे दी हमें आजादी तो , भुला देंगे क्या उनको l रहने को न मिला चैन से, हिन्दोस्तां में जिनको ll
खाईं जिन्होंने गोलियाँ , अनाज के बदले I हँस फाँसी स्वीकारी , सुख – चैन के बदले ll
गिल्ली , मैच , ताँश न भायी , खेल किया बन्दूक से l दुश्मन मुक्त कराया भारत , खून किया जब खून से ll
पड़ा मूलधन ब्याज चुकी न , नमन करें हम उनको l रहने को न मिला चैन से , हिन्दोस्तां में जिनको ll
जरा निकलकर बाहर आओ , अपनी इस तस्वीर से I उस भारत को फिर से देखो , सींचा जिसको खूँ – नीर से ll
नशा भयंकर बिना मधु के , आजादी के खातिर l कभी नींद औ भूख लगी न , राष्ट्र भक्ति के शातिर ll
आओ ‘माधव’ तुम्हें बुलाता , नत मस्तक है उनको l रहने को न मिला चैन से , हिन्दोस्तां में जिनको Il
सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
मेरा देश महान
मेरा देश महान भैया ! मेरा देश महान ।। सिर पर मुकुट हिमालय का है पावँ पखारे सागर
पश्चिम आशीर्वाद जताता पूरब राधा नागर हर पनघट से रुन झुन छिड़ती मधुर मुरलिया तान ।।
नदिया झरने हर दम इसके कल कल सुर में गावे कनक कामिनी वनस्पति भी खिल खिल कर इठलावे
हर समीर हो सुरभित महके बिखरे जान सुजान ।।
इसकी हर नारी सावित्री हर बाला इक राधा नूतन अर्चन के छन्दों पर साँस साँस को साधा
प्रेम से पूजते मानव पत्थर बन जाते भगवान ।।
इसकी योगिक शक्ति को हर देश विदेश सराहावे इसकी संस्कृति को देखो झुक झुक शीश नवावे
जन गण मन का भाग्य विधाता गए तिरँगा गान ।।
रीति रिवाज अलग हैं इसके अलग अलग हैँ भाषा भारतवासी कहलाने की किन्तु एक परिभाषा
मिल जुल कर खेतों में काटती मक्का गेहूँ धान ।।
घायल की गति घायल जाने मीरा कहे दीवानी चुनरी का दाग छुड़ाऊँ कैसे
खरी कबीर की बानी मेरो मन कहाँ सुख पावे सही सूर का बान ।।
चहल पहल शहरों में इसके गाँवो में भोलापन जंगल मे नव जीवन इसके
बस्ती में कोलाहल कण कण में आकर्षण इसके हर मन मे एक आन ।।
सुशीला जोशी मुजफ्फरनगर
सबसे बढ़कर देशप्रेम है
प्रेम की वंशी, प्रेम की वीणा। प्रेम गंगा है……प्रेम यमुना ।।
प्रेम धरा की मधुर भावना। प्रेम तपस्या,प्रेम साधना ।।
प्रेम शब्द है,प्रेम ग्रंथ है । प्रेम परम् है,प्रेम अनंत है।।
प्रेम अलख है,प्रेम निरंजन । प्रेम ही अंजन,प्रेम ही कंचन।।
प्रेम लवण है , प्रेम खीर है । प्रेम आनंद औ’प्रेम ही पीर है।।
प्रेम बिंदु है,प्रेम सिंधु है । प्रेम ही प्यास,प्रेम अंबु है।।
प्रेम दुःखदायी,प्रेम सहारा । प्रेम में डूबो.. मिले किनारा ।।
प्रेम धरा की मधुर आस है । प्रेम सृजन है,प्रेम नाश है ।।
प्रेम मानव को ‘मानव’ बनाता । प्रेम शिला में.. ईश्वर दिखाता ।।
प्रेम दया है,प्रेम भाईचारा। प्रेम स्नेही….प्रेम दुलारा ।।
प्रेम प्रसून है,प्रेम गुलिस्तां । प्रेम से बनता पूरा हिंदोस्ताँ ।।
जित देखिए प्रेम ही प्रेम है पर सबसे बढ़कर देशप्रेम है ।।
निमाई प्रधान ‘क्षितिज’
प्राणों से प्रिय स्वतंत्रता….
शहीदों के त्याग,तप की अमरता हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता! धमकी से ना हथियारों से, हमलों से अत्याचारों से, न डरेंगे,न झुकेंगे राणा की संतान हैं विजयी विश्व तिरंगा हमारी, आन, बान, शान हैं! अगणित बलिदानों से, अर्जित है स्वतंत्रता हमें प्राणों से……. नफरतों की आग से,फूंकते रहो बस्तियां, अफवाहों से,भय से बढ़ाते रहो दूरियां, गीता,कुरान संग पढ़ेंगे, मंदिर-मस्जिद दिलों में रहेंगे, सीने पर जुल्म की, चलाते रहो बर्छियां, अश्रु,स्वेद रक्त सिंचित स्वतंत्रता, हमें प्राणों से…… पैगाम अमन के देती रहूंगी, हर रोज संकल्प ये लेती रहूंगी, लहू से गीत आजादी के, वन्देमातरम लिखती रहूंगी, किसी कीमत पर स्वीकार नहीं परतंत्रता, हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता….
डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’ अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)
मेरा देश सिखाता है
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई, हर मजहब से नाता है। सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है।
इक दूजे के बिना अधूरे, हिन्दू मुस्लिम रहते हैं। खुद को मिलकर के बड़े, गर्व से हिन्दुस्तानी कहते हैं । दीवाली में अली जहां हैं, शब्द राम का रमजानों में आता है सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है।
आजादी में की लड़ी लड़ाई , हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई ने। सीने पर गोली खायीं हर, मजहब की तरुणाई ने । आजादी का श्रेय देश में, हर मजहब को जाता है। सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है।
हिन्दू मस्जिद जाता है, मुस्लिम भी मंदिर जाते है। भारतवासी होने के , मिलकर संबंध निभाते हैं। हमको एक देखकर के, दुश्मन भी भय खाता है सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है। रचयिता किशनू झा
आज तिरंगा लहरायेगा
आज तिरंगा लहरायेगा आजादी की शान। इसके नीचे पूरे होंगे दिल के सब अरमान। जय जय हिन्दुस्तान। जय जय वीर जवान।।
हुई गुलामी सहन नहीं तब, फूँक शंख आजादी का। अलख जगी भारत मे घर-घर, खून खौल गया वीरों का। सिर पर कफन बाँध कर निकले होने को बलिदान।
आज…..। इस….। जय…..।जय….।
वीर सावरकर ,तात्या टोपे, झाँसी की लक्ष्मी बाई। भगत सिंह आजाद वीर ने दुश्मन को ललकार लगाई। आजादी के महायज्ञ में हुए सभी बलिदान।।
आज….।इस…। जय…।जय…।
भारत के कोने-कोने में, जंग छिड़ी आजादी की। छोड़े घर -परिवार रिश्ते, राह चले आजदी की। सभी एक मंजिल के राही हिन्दू मुसलमान।।
आज…..।इस…। जय…।जय…।
अनमोल अपनी आजादी, बच्चों! तुम रखवाली करना। जाति धर्म का भेद भुलाकर, सदा एक होकर रहना। यही एकता देगी जग में भारत को पहचान।।
आज….।इस….। जय….।जय….।
पुष्पाशर्मा”कुसुम”
वह भारत देश हमारा है
जहाँ तिरंगा लहराता, मंदिर मस्जिद गुरुद्बारा है, वह भारत देश हमारा है ••••
उत्तर में गिरिराज हिमालय दक्षिण सागर लहराते , राम कृष्ण गौतम गाँधी की, दसों दिशा गाथा गाते , अविरल बहती जिस छाती में माँ गंगा की धारा है , वह भारत देश हमारा है!
भेदभाव है नहीं जहाँ पर सब जिसको माँ कहते हैं, एक डोर मन बँधे जहाँ पर जय भारत सब कहते हैं , प्रेम शाँति “गणतंत्र” हमारा दिया विश्व को नारा है, वह भारत देश हमारा है
वेद पुराण बसे कण-कण में विश्व गुरु कहलाता है, योग ज्ञान सारी दुनियाँ को जो भारत सिखलाता है, मानवता ही सत्य धर्म है जो भारत सिखलाता है फैला है जिस देश से”नीलम” आज यहाँ उजियारा है, वह भारत देश हमारा है!! नीलम सोनी सीतापुर,सरगुजा (छत्तीसगढ़)
हिन्दूस्तां वतन है
हिन्दूस्तां वतन है, अपना जहां यही है। यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है। उत्तर में खड़ा हिमालय, रक्षा में रहता तत्पर।
चरणों को धो रहा है, दक्षिण बसा सुधाकर। मलयागिरि की शीतल, समीर बह रही है। हिन्दू स्तां…।यह….।
फल -फूल से लदे, तरुओं की शोभा न्यारी, महकी हुई है ,प्यारी केसर की खिलती क्यारी। कलरव पखेरुओं का, तितली उछल रही है। हिन्दू स्तां….।यह…।
अनमोल खजानों से ,वसुधा भरी है सारी। खेतों मे बिखरा सोना, होती है फसलें सारी। ये लहलहाती फसलें, खुशियाँ लुटा रही है। हिन्दू स्तां …।यह…।
मिट्टी में इसकी हम सब, पलकर बड़े हुये हैं। आने न आँच देंगे, ऐसा ही प्रण लिये हैं। मिट जायें हम वतन पर, तमन्ना यह रही है।
हिन्दू स्तां वतन है, अपना जहां यही है। यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है।
पुष्पा शर्मा ” कुसुम’
तिरंगे की शान पर कविता
सिर्फ तिरंगा फहराने से, बढ़ेगी कैसे हमारी शान। जिन्होंने दी है कुर्बानियाँ, उनका करें सदा सम्मान।।
फले-फूले परिवार उनके, जो देश के लिए कुर्बान। पूरा समाज शिक्षित बने, सबके हों पूरे अरमान।।
प्रगति पथ पर बढ़ते रहें, पूरी दुनिया में पहचान। विज्ञान फलित होता रहे, मिले ज्ञान को सम्मान।।
हक बराबर सबको मिले, सबके लिए ये संविधान। ना जाति ना वर्गभेद रहे, हो अधिकार एक समान।।
(दोहा छंद) नई ईसवी साल में, बड़े दिनों की आस। . स्वागत नूतन वर्ष का, करते भाव विभोर। गुरु दिन भी होने लगे, मौसम भी चित चोर।। . माह दिसंबर में रहे, क्रिसमस का त्यौहार। संत शांता क्लाज करे, वितरित वे उपहार।। . सकल जगत में मानते, ईसा ईश महान। चला ईसवीं साल भी, इसका ठोस प्रमान।। . साज सज्ज सर्वत्र हो, खूब मने यह रीत। रहना मेल मिलाप से, भली निभाएँ प्रीत।। . ईसा के उपदेश का, सब हित है उपयोग। जैसे सब के हित रहे, प्राणायाम सुयोग।। . देख सुहाना दृश्य कवि, गँवई, मंद,गरीब। भाव उठे मन में कई, करते नमन सलीब।। . नूतन वर्ष विकास की, संगत क्रिसमस रात। गृह लक्ष्मी दीपावली , सजे उजाले पाँत।। . उच्च मार्ग देखें निशा , मन में उठे विचार। सुन्दर पथ ऐसा लगे, इन्द्र लोक पथ पार।। . ऊँचे चढ़ते मार्ग से, लगता हुआ विकास। लगातार ऊँचे चढ़े, छू लें चन्द्र प्रकाश।। . नीचे सागर पर्व सा, ऊपर लगे अकाश। तारक गण सी रोशनी, फैले निशा प्रकाश।। . नभ को जाते पंथ को, खंभ रखें ज्यों शीश। नव विकास सदमार्ग की, राह बने वागीश।। . आए शांता क्लाज जो, शायद यही सुमार्ग। उपहारों से पाट दें, गुरबत और कुमार्ग।। . शहर सिंधु सरिता खड़े, ऐसे पुलिया पंथ। लगते पंख विकास के, त्यागें सभी कुपंथ।। . नई ईसवीं साल का , नया बने संकल्प। तमस गरीबी क्यों रहे, नवपथ नया विकल्प।। . अभिनंदन नव साल का, करिए उभय प्रकार। युवकों संग किसान के, श्रमी सपन साकार।। . बिटिया प्राकृत शक्ति है, बढ़े प्रकाशी पंथ। पथ बाधाओं रहित हो, उज्ज्वल भावि सुपंथ। . सत पथ भावी पीढियाँ, चलें विकासी चाल। सबको संगत लें बढ़ें, रखलें वतन खयाल।। . नये ईसवीं साल में, बड़े दिनों की आस। रोजगार अवसर मिले, नूतन पंथ विकास।। . जीवन में किस मोड़ पर, हों खुशियाँ भरपूर। साध चाल चलते चलो, दिल्ली क्यों हो दूर।। . विकट मोड़ घाटी मिले, अवरोधक भी साथ। पार पंथ खुशियाँ मिले, धीरज कदमों हाथ।। . सड़क पंथ जड़ है भले, करते हैं गतिमान। सही चाल चलते चलो, नवविकास प्रतिमान। . पथ में अवरोधक भले, पथ दर्शक भी होय। पथिक,पंथ मंजिल मिले, सागर सरिता तोय। . उच्च मार्ग अवधारणा, सोच विचारों उच्च। जातिवर्ग मजहब नहीं,उन्नति लक्ष्य समुच्च।। . पाँव धरातल पर रहें, दृष्टि भले आकाश। चलिए सतत सुपंथ ही, होंगे नवल विकास।। . रोशन करो सुपंथ को, सुदृढ स्वच्छ विचार। रीत प्रीत विश्वास का, करिए सदा प्रचार।। . नई साल नव पंथ से , मिले नए सद्भाव। दीन गरीब किसान के, अब तो मिटे अभाव।। . नव पथ नूतन वर्ष के, संकल्पी संदेश। नूतन सृजन सँवारिए, नूतन हो परिवेश।। . क्रिसमस का त्यौहार है, सर्व देश परदेश। सबको ये खुशियाँ रहें, मिले न दुखिया वेश।! . शांता क्रिसमस में बने, जैसे दानी कर्ण। दीन हीन दिव्यांग को, लगता अन्न सुवर्ण।। . बनो शांता क्लाज करो, उपहारी शृंगार। मानव बम आतंक सब, करदें शीत अंगार।। . नव पथ नूतन साल के, लिख दोहे इकतीस। शर्मा क्रिसमस पे करे, नमन मसीहा ईस।।
१) बीते लम्हों की तरह अब के पल यूँ ना बीत जाए तो आओ कुछ इरादों को ,कुछ वादों को संकल्पों से पूरा करें मस्त होकर जन-जन। नव वर्ष का अभिनंदन।।
२) दुख के घड़ी बहुत बितायें अब कुछ अच्छा हो जीवन में हमें नित प्रगति करना है गांधी मत की संगति करना है तोड़ परवश का बंधन। नव वर्ष का अभिनंदन।।
३) गुजरे जमाने को दबाए हुए इतिहास के पन्नों पर। खुली किताब रहे नया जमाना ताकि भीनी खुशबू से उड़े, प्रेम ,अहिंसा ,अमन। नव वर्ष का अभिनंदन।।
४) चेहरों पर मुस्कान खिले मन के सारे ग़म घुले सजाये ऐसी काव्य रंगोली बने रात दीवाली और दिवस होली हंसे निश्छल,जैसे कोई बचपन। नव वर्ष का अभिनंदन।।
✒️ मनीभाई’नवरत्न’
आज लगने लगा मौसम नया
आज लगने लगा मौसम नया , नई कुछ बात है । सूरज की रज को छेड़ती शबनम की बरसात है। खिल उठे सबके मन की कली हुई कैसी करामात है। थिरक रहा गगन पवन गा रहा डाल पात है । जुड़ रहे सब के दिल यहां बंध रहा एक एक नात है। उत्सव मनाता जन-जन मानो इस साल की बारात है। और सही तो है नव वर्ष आया दूल्हे की तरह । और शायद इसी वजह । टूट रहे हैं सबके मन के बंधन। मेरी तरफ से आप लोगों को “नव वर्ष का अभिनंदन”।
मनीभाई ‘नवरत्न’,
नव वर्ष का अभिनंदन
सांसे चलना भूल जाये दिल धड़कना भूल जाये सूरज चमकना भूल जाये पानी बहना भूल जाये कोई परवाह नही,कोई शिकवा नही मगर तू भूल जाये एक पल,एक लम्हा के लिए मुझे यह गवारा नही ना भूलो तुम,ना भूले हम ना भूले ये रिश्ता अपनी बंधन नव वर्ष की अभिनंदन ।
मनीभाई नवरत्न
हैप्पी न्यू ईयर
लम्हा-लम्हा फिसल चला है ,समय की डोर। छोड़ो भी जाने दो ,आ गई उजली भोर । दिल तो खुशियां चाहे ,ज्यादा ज्यादा मोर । आज अभी जो मिला है ,मिलेगा क्या और? तो चले आओ मेरे निअर, नाचो गाओ मेरे डियर । सेलिब्रेट करेंगे ….बोलके चीअर। हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर। ओ माय डिअर , सेलिब्रेट विथ चीयर । हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।
मनीभाई नवरत्न
नव वर्ष आया सखी
शीतल बयार लिये, नूतन श्रृंगार किये, नव वर्ष आया सखी, कलश सजाइए ! नव उपहार लिये, नवल निखार लिये, खुशियाँ अपार लिये, आनंद मनाइए! बागन बहार लिये फूलन के हार लिये, भ्रमर गुंजार लिये तोरण बंधाइए! सुमन सुगंध लिये, नव मकरंद लिये, हृदय उमंग लिये, उत्सव मनाइए! विगत बिसार दीजे अनुभव सार लीजे श्रम अंगीकार कीजे आगे बढ़ जाइए। छल छिद्र त्याग कर, राग द्वेष राख कर, निर्मल हृदय धर, प्रेम अपनाइए! काम ऐसे नेक करें, उन्नति की सीढ़ी चढ़ें, देश व समाज बढ़े, सोचिए विचारिए! स्वार्थ भाव फेंक कर, विनय विवेक भर , राष्ट्र के विकास का जी संकल्प बनाइये!
——— सुश्री गीता उपाध्याय
स्वागत नव वर्ष
स्वागत नव वर्ष , नूतन रहे हर्ष स्वागत तुम्हारा , सहर्ष नव वर्ष नूतन वर्ष का फैला रहे उजास , नव वर्ष में हो अब , नया उत्कर्ष । दे दो तुम ऐसा अब , सुधा अमृत पुराना सभी हो जाए , विस्मृत नसीब बदल जाए , सबका अब तो , काम होने लगें सभी के , उत्तम । नयी सोच विचार , नया हो अंदाज़ कर दें पुराने को , नजरअंदाज ईर्ष्या , छल – कपट , निकालें मन से , रह न पाये अब , कोई धोखेबाज़ । भर लो नव चेतना , हर्षोल्लास नज़दीकियाँ सभी को , आएँ रास मुस्काते चेहरे खिलें , फूल सम , खुशियाँ लाएँ , पूरी हो हर आस । सुख – समृद्धि हो , कायम शांति हो सुख सपनों में , नयी क्रांति हो मानवता का दीप , जले हर ओर , नव वर्ष में , कोई भी न भ्रांति हो । हरित हरियाली लिए , हो संसार छाये जीवन में , चहुँ ओर बहार नूतन वर्ष का करने , अभिनंदन , शुभकामना देते , हम बार – बार ।
रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘
नये साल की शुभकामना
विधान :— सुगीतिका छंद ( 25 मात्रा ) आदि लघु (1)पदांत दीर्घ लघु (21) यति (15,10 )
गुजरते पुराने साल का, हृदय से आभार। नये साल की शुभकामना, कीजिए स्वीकार।
अबतक जो अनुभव मिले हैं रखेंगे वह याद। कुछ नया फिरसे करने का, करके शंखनाद। शुभ भावों से हृदय भरकर, करें मंगलचार। नये साल की शुभकामना, कीजिये स्वीकार!
हम विगत पलों से सीख ले, कर नवल अनुमान। नव पथ पर चल पड़े हैं अब, नव सृजन की ठान। नयी सोच लेकर बढ़ चले, भर प्रेम उद्गार। नये साल की शुभकामना, कीजिये स्वीकार।
शुभमय हो आपका हर पल, मिले सुख उपहार। खुशियों से हो दामन भरा, मिले न कभी हार। सदाचार जीवन में भरे, करें सब उपकार। नये साल की शुभकामना, कीजिये स्वीकार!
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष आओ, नूतन-निर्माण लिये इस महा जागरण के युग में, जागृत जीवन अभिमान लिये।
दीनों-दुखियों का मान लिये, मानवता का कल्याण लिये। स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।
संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति की चालाओं के गान लिये, मेरे भारत के लिए नई प्रेरणा, नया उत्साह लिये;
मुर्दा शरीर में नये प्राण प्राणों में नव अरमान लिये, स्वागत! स्वागत! मेरे आगत! तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।
युग-युग तक नित पिसते आये, कृषकों को जीवन-दान लिये, कंकाल मान रह गये शेष, मज़दूरों का नव माण लिये।
श्रमिकों का नव संगठन लिये, पददलितों का उत्थान लिये, स्वागत ! स्वागत! मेरे आगत आओ तुम स्वर्ण विहान लिये।
जीवन की नूतन क्रान्ति लिये क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये स्वागत ! जीवन के नवल वर्ष आओ, तुम स्वर्ण-विहाल लिये।
नव वर्ष का सवेरा
नये साल का आया पावन सवेरा पावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा |
फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें भौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायें धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव आओ मन की माला में हम गूथ जायें
मोहक मनोहर लगे दुनिया प्यारा | नये साल का आया पावन सवेरा ||
अम्बर के रंगों से धरती सजायें पतंगों के तारों से नभ जगमगाये नदियों के निर्मल धारा सा जीवन झरनों के जल सा प्रेम झरझरायें,
नूतन हवा नव बहे जीवन धारा | नये साल का आया पावन सवेरा ||
अरुण लालिमा का तिलक हम लगायें सफलता के पथ पर कदम हम बढ़ायें सुखमय सुनहरा नवल प्रवाह पल में कठिन जिंदगी को सरल हम बनायें,
सुख समृद्धि का हो दिल में बसेरा | नये साल का आया पावन सवेरा ||
हरियाली फसलों सा तन झूम जाए धन धान्य से पूर्ण आंगन मन भाये सफलता कदम चूमती जाये हर पल नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं |
मिटेगा गमों का कुहासा अंधेरा | नये साल का आया पावन सवेरा ||
रचनाकार-रामबृक्ष बहादुरपुरी,अम्बेडकरनगर
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
सुबह सवेरे कूकी कोयल चिड़िया चहचहाई आँखें खुलते ही नई नवेली पहली किरण मुस्काई मेरे दिल की गहराइयों से सबसे पहले नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
धरती पर ओस की चादर लिपट लिपट आई बाग में खिली कली खुलकर खिलखिलाई देखो नाच-नाच कर तितलियाँ भी दे रही नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
ठंडी हवा ने चारों तरफ अपनी हुकूमत जमाई पर बच्चे-बूढ़े सबने छोड़ी अपनी-अपनी रजाई दीवानों सा जोश लेकर देने निकले हैं सभी नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
नए साल के स्वागत में सबने पलकें हैं बिछाई सभी बालाओं ने द्वार पर रंगोली है बनाई झूम झूम कर मस्ती में दे रहे हैं सारे नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
फोड़े पटाखे बच्चों ने फुलझड़ियाँ जलाई ठूँस-ठूँस कर खिला रहे एक दूजे को मिठाई सबकी जुबान पर चढ़ा है बस एक ही राग नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
मंदिर में मूरत के आगे सब ने कतार लगाई श्रद्धा सुमन अर्पित कर ईश्वर की वंदना गाई शुभ मंगल प्रीतिमय आशीष की कामना संग नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
– आशीष कुमार मोहनिया, कैमूर, बिहार
नव वर्ष पर कुण्डलिया छन्द
आया नूतन वर्ष यह ,चहुँ दिश भरा उमंग l हुआ प्रफुल्लित देख मन ,सदा रहे ये रंग ll सदा रहे ये रंग , मिलें खुशियाँ मनचाहीं I रहे समय अनुकूल , मिटें घड़ियाँ अनचाहीं ll कह ‘माधव’कविराय ,पड़े न दुःख की छाया I उन्नति करो हज़ार , साल सुन्दर जो आया Il
प्यारा लगता है बहुत , देख गज़ब उल्लास I दिन – दूना निशि चौगुना , होता रहे विकास ll होता रहे विकास , मिले सम्मान प्रतिष्ठा l धन वैभव भरपूर , सदा उत्तम हो निष्ठा Il कह ‘माधव’कविराय ,तुम्हें फल दे यह न्यारा l नशा व्यसन कर त्याग , वर्ष नूतन ये प्यारा ll
#स्वरचित #सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव” #कस्बा,पो. – कबरई जिला – महोबा(उ. प्र.)
खुशहाल हो नववर्ष – महदीप जंघेल
भूले बिसरे ,बीते कल को, भूले दुःख संताप के गम। पुलकित होगा रोम-रोम, मन हर्षित होगा अनुपम ।।
रवि स्वरूप उज्ज्वलित हो जीवन, चाँद -सा दमकता रहे । धन संपदा की हो बरसात, भाग्य का हीरा चमकता रहे।।
नव वर्ष लाए जीवन में उजाले, खुले आपके भाग्य के ताले। सदैव आशीर्वाद मिले उस ईश्वर का, जो सम्पूर्ण जगत को पाले।।
जिंदगी में, न कोई गम हो, आँखे,न कभी नम हो। मनोकामनाएँ हो पूर्ण सभी, कि खुशियाँ, न कभी कम हो।।
सब जीवों से प्रेम करो और, खुशियाँ बाँटो अपार। बुराइयाँ दूर करो,नववर्ष में अपनाओ सदैव सदाचार।।
माँ वसुधा का सम्मान करें, वृक्ष लगाकर करें श्रृंगार। जल का हम सदुपयोग करें, करें सदैव परोपकार।।
सेवा और सत्कार करे हम, मानवता का कार्य करे हम। औरों को सुख पहुंचाने को, परमार्थ का ध्यान धरे हम।।
नूतन वर्ष में ऐसा कुछ कर जाएँ, कि,जिंदगी खुशियों से भर जाये। सत्कर्मो की करें कमाई, नववर्ष की आप सबको, बहुत बहुत बधाई।।
महदीप जंघेल निवास-खमतराई तहसील-खैरागढ़ जिला -राजनांदगांव(छ.ग)
नव वर्ष का स्वागत करें
भुलाकर शिकवा गिले नव वर्ष का स्वागत करें
आया नववर्ष हमारे द्वार दस्तक दे रहा बारम्बार बीते बरस की बातों को हम दें अब तो बिसार नये विचारों का नवागत करें ।।1 नववर्ष का स्वागत करें •••
बाँटे खुशियाँ आपस में हो बस प्यार ही प्यार नव संकल्प लेकर हम भेदभाव मिटा दें यार विचारों में अपने आगत करें ।।2 नववर्ष का स्वागत करें •••
सबसे भाव प्रेम नेह का दोस्ती का दें उपहार अभिनंदन के साथ है सपना का नमस्कार गलत बातों को अनागत करें ।। 3 नववर्ष का स्वागत करें •••
अनिता मंदिलवार सपना अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़
नववर्ष की शुभकामनाएँ
नववर्ष की शुभकामनाएँ , आओ हम खुशी मनाएँ ।
विनाश का रास्ता छोड़कर, प्रगति पथ पर बढ़ते जाएँ ।
संदेश यही है नववर्ष पर, दीप सा हम जलते जाएँ ।
साहस रखना कभी न डरना, यही लक्ष्य हम धरते जाएँ ।
जैसे दीप बाती संगी साथी, हम भी साथ निभाते जाएँ ।
निराश कभी न होना सपना, उजास दिलों में भरते जाएँ ।
अनिता मंदिलवार सपना अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़
नव वर्ष में हो नवसृजन
नव वर्ष में हो नवसृजन सदभावना से करे अभिनंदन उज्जवल मय जीवन में हो हषॆ ऐसा हो सबका नववर्ष
आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने, और दिल में छुपी है जो भी आशायें! यह नया साल उन्हें सच कर जाए; आप के लिए यही है हमारी शुभकामनायें
अनिता मंदिलवार “सपना” अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़
शुभ आगमन हे नव वर्ष
शुभ आगमन हे नव वर्ष शुभ आगमन हे नव वर्ष वंदन अर्चन हे नूतन वर्ष अभिनंदन हे नवागत वर्ष नतमस्तक नमन हे नव्य वर्ष।
खुशियों की सौगात लाना, रोशनी की बरसात लाना, चंद्रिका की शीतलता बरसाना नव सृजन मधुमास लाना।
क्लेष, विषाद,कष्ट मिटाना जो बीत चुका अतीत बुरा उसको न तुम पुन: दोहराना कातर मन का क्रंदन धो जाना।
नफ़रत मिटाना उल्फत जगाना दर्द का तुम मर्ज़ लाना सावन प्यासा है मेरे मन का मधुरिम झड़ी फुहार लाना।
मधुर हास परिहास बनकर पीड़ा का संसार हरकर, आहट अपनी मुझको दे जाना तप्त निदाघ में भी कुसुम खिलाना।
दहलीज़ पर रंगोली बनकर मेरे मन का बुझा दीप जलाना बचपन की वो हंसी ठिठोली लाना कैद है जिसमें खुशियों का खज़ाना।
नव प्रीत लिए नव भाव लिए आशाओं का अंबार लिए धीरे से हँसकर आना नव प्राण जीवन में जगाना।
कितने ही नववर्ष आए मर्म मन का मेरा समझ न पाए आतप में भी स्निग्धता लाना शूलों में व्यथित कुसुम खिलाना।
हे नूतन वर्ष आशा है तुझसे राग द्वेष रहें दूर मुझसे रूठे हुए को सद्भाव देना माँ वीणापाणि का आशीष देना।
हर हाल में हर रूप में शुभ मंगलमय विहान लाना सुबरन कलम का धनी बनाना सर्वे भवन्तु सुखिन:का भाव लाना।
कुसुम लता पुंडोरा
साल जो बदला है
साल जो बदला है तो थाली को बदल दो, कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो। नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो साले को बदल दो औ साली को बदल दो।।1
काम बदलना है तो सीवी को बदल दो, गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो। नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो, हो गयी पुरानी तो……बीवी को बदल दो।।2
खाना जो पकाना है तो चूल्हे को बदल दो, दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो। नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो हो गया पुराना तो…..दूल्हे को बदल दो।।3
हाल जो बेहाल है तो फिर हाल बदल दो, धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो। नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो, मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।4
पैकेट वही रक्खो मगर सामान बदल दो, पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो। राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो, दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।5
शाह को मिलता है जो सत्कार बदल दो। काम कराने का वो…संस्कार बदल दो सरकार का जो काम है वो काम तो करे, सो गयी सरकार तो… सरकार बदल दो।6
दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो, अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो। पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो, जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।7
अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो, नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो। कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो, भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।8
आज सारा विश्व उल्लसित है नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ, विगत की खट्टी-मीठी यादों को, इतिहास के पन्नों में बाँट, स्वागत है तेरा.. नया साल ! प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं लेकर कई सवाल।
शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको और भारत के इतिहास में स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको
क्या सत्य ही तुम कुछ कर पाओगे? देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?
अरे!! देश का एक वर्ग तो तुम्हें जानता ही नहीं । क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?
जिनकी सुबह भूख से होती हो , तब रात खाने को सूखी रोटी हो। और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं, बदन पर कपड़े और सिर पर छत भी नहीं, वो क्या जाने क्या है नया साल ? जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।
इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से, दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से उनका क्या वास्ता? जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।
जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।
झाँककर देखो उनके दिलों में, उनको साल का कुछ पता नहीं जो जीते हैं फूटपाथ पर और मरते भी वहीं हैं। न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।
ऐ नववर्ष! क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ? भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे? हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे? नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?
गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।
सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़
ऐ नववर्ष !
आज सारा विश्व उल्लसित है नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ, विगत की खट्टी-मीठी यादों को, इतिहास के पन्नों में बाँट, स्वागत है तेरा.. नया साल ! प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं लेकर कई सवाल।
शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको और भारत के इतिहास में स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको
क्या सत्य ही तुम कुछ कर पाओगे? देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?
अरे!! देश का एक वर्ग तो तुम्हें जानता ही नहीं । क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?
जिनकी सुबह भूख से होती हो , तब रात खाने को सूखी रोटी हो। और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं, बदन पर कपड़े और सिर पर छत भी नहीं, वो क्या जाने क्या है नया साल ? जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।
इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से, दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से उनका क्या वास्ता? जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।
जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।
झाँककर देखो उनके दिलों में, उनको साल का कुछ पता नहीं जो जीते हैं फूटपाथ पर और मरते भी वहीं हैं। न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।
ऐ नववर्ष! क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ? भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे? हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे? नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?
गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।
नव वर्षारंभ
नव वर्षारंभ पर मिट जाए सारे कलंक, हो जायें जुदाई-जुदाई नव वर्ष की बधाई-बधाई बज उठी उमंग बिगुल, अंतरपट की है वफाई। जिन्दगी जन्नत सी हो, न हों कोई हरजाई… नव वर्ष की बधाई-बधाई दसों दिशाओं से मिले, सफल प्रखर मधुराई। मधुर-मधुर जीवन पथ, बनी रहे सुखदाई… नव वर्ष की बधाई-बधाई अनुपम आप जगत के, न हो कभी तन्हाई । सुखद के पीहूर और विजयी के बजे शहनाई… नव वर्ष की बधाई-बधाई नव वर्षारंभ पर मिट जाए सारे कलंक, हो जायें जुदाई-जुदाई नव वर्ष की बधाई-बधाई
जगत नरेश
नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है :-
कुछ बीत गया है और कुछ आने वाला है । एक वर्ष जीवन से और घट-जाने वाला है ।
खट्टे – मीठे कुछ यादें मन मे छुपे हुए है । जो कभी हँसाने तो कभी रुलाने वाला है ।
लड़खड़ाना मत नए मोड़ देख कर सफऱ में , क्योंकि गिरे तो यहां नही कोई उठाने वाला है ।
अपने मन की बस सुनना आगे इस सफर में । क्योंकिं हरेक व्यक्ति राह से भटकाने वाला है।
वक्त के साथ चलोगे ग़र वक्त के हिसाब से । तो वो तुम्हें मंजिल के क़रीब लेजाने वाला है ।
सारे गीले-शिकवे मिटा दो हर गम मन से हटा दो । आने वाला पल अनन्त खुशियां लाने वाला है ।
जो बीत गई सो बात गई भूला दो बीतें लम्हों को । क्योंकिं नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है ।
-आरव शुक्ला रायपुर , (छ .ग)
है भास्कर तेरी प्रथम किरण
है भास्कर तेरी प्रथम किरण, जब वर्ष नया प्रारम्भ करे। जन जन की पीड़ा तिरोहित कर, नव खुशियो को प्रारम्भ करे। इस धरती,धरा, भू,धरणी पर, मानवता का श्रृंगार झरे। अब विनयशील हो प्राणी यहाँ, बस भस्म तू सबका दम्भ करे। है भास्कर तेरी……..
तेरा-मेरा,मेरा-तेरा सब, त्याग के नव निर्माण करे। आपस में ऐसा समन्वय हो, मिल सृष्टि का कल्याण करे। उत्पात,उपद्रव,झगड़ो का, क्या मोल है ये आभास रहे। भाईचारे का कर विकास, हर धर्म का हम परित्राण करे। है भास्कर तेरी…..
अब देख मनुज की पीड़ा को, आँखों में नीर निरन्तर हो। दुःख दर्द सभी का साझा रहे, मानवता अंत अनन्तर हो। उत्तुंग शिखर पर संस्कृतियां, गाएं केवल भारत माँ को। निज देश हित बलि प्राणों की, प्रणनम्य, जन्म जन्मान्तर हो।
जब जब भी धर्म ध्वजा फहरे, तिरंगा वहाँ अनिवार्य रहे। उद्घोषित कोम का नारा जहाँ, जय हिन्द सदा स्वीकार्य रहें। गीता,कुरान,गुरु ग्रंथ साहब, बाइबिल के रस की धार बहे। सब माने अपने धर्म यहाँ, पर भारत माँ शिरोधार्य रहें।
हर पल हर क्षण जननी का हो, हर भोंर रम्य,अभिराम रहे। सुरलोक स्वर्ग धरा पर हो, मनभावन नित्य जहाँन रहे। माँ भारती जग में हो विख्यात, ब्रम्हांड ही हिंदुस्तान बने। मन में सबके वन्दे मातरम् , और मुख से जन गण गान रहे।
विपिन वत्सल शर्मा सागवाडा(राज.)
स्वागत नूतन वर्ष
नूतन वर्ष लेकर आये, नव आशाओं का संचार। नई सोच व नई उमंग से, मानवता की हो जयकार।। कठिन राहों का साहस से, डटकर करें सदा सामना। खुशियाँ लेकर आये उन्नीस। नव वर्ष की शुभकामना।। प्रेम भाव का दीप जले, हो हर मन में उजियारा। सारे जग में अब बन जाये, अपना ही यह भारत प्यारा।। जले ज्ञान का दीपक सदा, मिटे जगत से अंधकार।…. नूतन वर्ष लेकर आये, नव आशाओं का संचार। नई सोच व नई उमंग से, मानवता की हो जयकार।। ….. बँधे एकता सूत्र में हम सब, नव वर्ष में मिले यही वरदान। भारत भू की एकता जग में, बन जाये सबकी पहचान।। मिट जाये हर मन से अब, राग द्वेष का मैल सारा। किरणें फैले पावनता की, हर आँगन खुशियों की धारा।। अन्तः मन की जगे चेतना, बहे मानवता की अब धार।।…. नूतन वर्ष लेकर आये, नव आशाओं का संचार। नई सोच व नई उमंग से, मानवता की हो जयकार।। …… ……….भुवन बिष्ट रानीखेत (उत्तराखंड )
नावां बछर आगे
हित पिरित जोरियाइ के एदे आगे रे संगी। नावां नावां सीखे के करव , नावां बछर आगे रे संगी।
जून्ना पीरा बिसरा के , निकता बुता करव ग। चारी चुगली भूला के , मया के सुरता करव ग। सत ईमान ल हिरदे म भर ले, जिन्गी म तोर कदर आगे रे संगी। नावां बछर आगे रे संगी नशा ल बैरी बना के, तन ल बने सिरजावव। नोनी बाबू ल पढ़ा लिखा के, परिवार ल अंजोर करावव। जम्मो के हांसी मुख म लाके, जिन्गी म तोर सुधार आही रे संगी। नावां बछर आगे रे संगी। पान झरे ड़ोंगरी अप
न के, हरियाय के परन करले। सुग्घर होही फूल फुलवारी, जियरा म गुनन करले। मेहनत कर ले चेत लगाके, जिन्गी के नावां पीका उलहा जाही रे संगी। नावां बतर आगे रे संगी।
नावां बछर आगे रे संगी, नावां बछर आगे जी। नाम बगर जाही रे संगी, नावां बछर आगे जी।
नव आशाओं की किरणें, लेकर आया नूतन वर्ष। अब धरा में फैले हरियाली, शीश में हो खुशहाल कलश। हिंसा बैर भाव अज्ञानता, मिटे जग से यह कटुता। ज्ञान के चक्षु खुल जायें, मानव मानवता दिखलायें। बिते वर्ष दशक युगान्तर, मिटा न पाये कालान्तर। व्याप्त जग में है भयंकर, राजा रंक का ही अंतर। एक बगिया के हैं फूल, रंग भिन्न एक हैं धूल। एक है सबका बनवारी, सिंचे मानवता की क्यारी। राग द्वेष की बहे न धारा, हिंसा मुक्त हो जगत हमारा। सद्गगुणों को हम अपनाकर, झलक एकता की दिखलाकर। नमन करें सदा भारत माता को, चहुँ दिशा में खुशहाली फैलाकर । सोच नई व नई उमंग से, भर दें ज्ञान का अब तरकश। नव आशाओं की किरणें, लेकर आया नूतन वर्ष।।
…….भुवन बिष्ट रानीखेत (उत्तराखंड )
नव वर्ष ये लाया है बहार
नव वर्ष ये लाया है बहार, फैले खुशियाँ जीवन अपार। मंगल छाये घर घर बसंत, दुख दर्द मिटे पीड़ा तुरन्त।।
पावन फूलों की बेला हो, जीवन बस प्रीति मेला हो। हर आँगन गूंजे किलकारी, मनभावन फूलों की क्यारी।।
झनके वीणा के सुगम तार, सुर की सरिता की सरल धार। उन्नति पाओ उतंग शिखर, आखर नवल बन हो प्रखर।।
कर दो प्रकृति सुंदर श्रृंगार, हर युवा के कांधे पे हो भार। जीवन मधुमास सा प्यारा हो, ये देश हमारा न्यारा हो।।
सुख जंगल मंगल छा जाये, धन की वर्षा मिलकर पाये। चहूँ दिश में फैले प्रेम प्यार, नव वर्ष का लो मीठा उपहार।।
सरिता सिंघई कोहिनूर
नववर्ष पर कविता
पलकें बिछाए खड़े हम सभी दिलों में है हमारे अपार हर्ष शुभ मंगल की कामना संग स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
रसधार बहे सर्वदा प्रेम की सुख समृद्धि में हो उत्कर्ष सर्वत्र शांति की कामना संग स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
सत्य अहिंसा परम धर्म बने नैतिक मूल्य हो हमारे आदर्श सर्व कल्याण की कामना संग स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
चढ़ें सीढ़ियाँ सफलता की ज्ञान विज्ञान से छू लें अर्श जग प्रसिद्धि की कामना संग स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
प्रगति रथ की तीव्र गति से आनंदित हो हमारा भारतवर्ष आशीष वर्षा की कामना संग स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
– आशीष कुमार मोहनिया, कैमूर, बिहार
पद्मा के दोहे – मंगल हो नववर्ष
दास चरण नित राखिए, हे सतगुरु भगवान । विघ्न हरो मंगल करो, शुभता दो वरदान।।1
मंगल हो नव वर्ष में , ऐसा दो वरदान। त्रास हरो संसार का, हे कृपालु भगवान।।2
कोरोना के त्रास में, सत्र बिताएँ बीस। स्वास्थ्य खुशी सौभाग्य दें, मंगल हो इक्कीस।।3
लेकर नूतन वर्ष को, मन में भरे उमंग। मंगल सबका काज हो, बाजे खुशी मृदंग।।4
बुरे कर्म करना नहीं, करना है सत्कर्म । मंगलकारी काज हो, करो परमार्थ धर्म।।5
नए वर्ष में प्रण करें , वसुधा करें श्रृंगार । जंगल में मंगल सदा, वृक्ष बने उपहार।।6
नया वर्ष खुशियों भरा , गाओ मंगल गीत । छोड़ो कटुता बढ़ चलो, मन में रखकर प्रीत।।7
करें सभी जन प्रार्थना, नया वर्ष हो खास। हर्षित वसुधा हो सदा, करें पाप का नाश।।8
है कराह रही वसुधा, देख विश्व का ताप । शुद्ध वातावरण नहीं, करें घृणित सब पाप।।9
करें ईश से प्रार्थना, नवल सृजन नववर्ष। सिर पर प्रभु का हाथ हो, करने को उत्कर्ष।।10
नव प्रसंग नव वर्ष में, लेकर चलना साथ । धर्म कर्म धारण करो, नवल भोर के हाथ।।11
पद्मा करती कामना, रहें सभी खुशहाल। मान खुशी ऐश्वर्य से, जीवन सदा निहाल।।12
पद्मा साहू “पर्वणी” खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़
नववर्ष की कामनाएं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
हर दिन को नए वर्ष की मंगल कामना से पुष्पित करो कुछ संकल्प लो तुम कुछ आदर्श स्थापित करो
हर दिन यूं ही कल में परिवर्तित हो जाएगा तूने जो कुछ न पाया तो सब व्यर्थ हो जाएगा
उद्योग हम नित नए करें हम नित नए पुष्प विकसित करें कर्म धरा को अपना लो तुम हर- क्षण हर -पल को पा लो तुम
समय व्यर्थ जो हो जायेगा हाथ न तेरे कुछ आएगा मात – पिता आशीष तले जीवन को अनुशासित कर पुण्य संस्कार अपनाकर अपना कुछ उद्धार करो तुम
इस पुण्य धरा के पावन पुतले राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम मानवता की सीढ़ी चढ़कर संस्कृति का चोला लेकर
पुण्य लेखनी बन धरती पर मानव बन उपकार करो तुम संकल्पों का बाना बुनकर नित- नए आदर्श गढो तुम
अपनाकर जीवन में उजाला नित – नए आयाम बनो तुम दया पात्र बनकर ना जीना अन्धकार को दूर करो तुम
हर दिन को नए वर्ष की मंगल कामना से पुष्पित करो कुछ संकल्प लो तुम कुछ आदर्श स्थापित करो
शुरू कर शुभ काज, मिलेंगे सर पे ताज, मान भी मिलेंगे ढेरों, सबको यकीन है।
नव साल मालामाल, नव काज कर लाल, नव साल बेमिसाल, मौसम रंगीन है।।
त्याग आदत बुराई, कर चल चतुराई, दूसरों की निंदा करे, कारज मलिन है।।
वही जन आगे बढ़े, नित पथ नव गढ़े, कंटक मेटते चले,, मनुज शालीन है।।
नव दिन नव वर्ष, जन-जन नव हर्ष, स्वागत करने सभी, मानव तल्लीन है।
पुलकित पोर-पोर, उमंग है चहुँओर, इसको मनाने सब, बिछाए कालीन हैं।
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✒️पीपी अंचल “गुणखान”
उपमेंद्र सक्सेना: नये वर्ष में मिटे अमंगल
गीत-उपमेंद्र सक्सेना एड.
बीता वर्ष, जुड़ गयीं यादें, वे हमको इतना दहलाएँ नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।
संघर्षों से जूझ रहे जो, सब दिन उनके लिए बराबर कोई माथा थामे बैठा, कोई बन जाता यायावर समय बदल लेता जब करवट, सुख होते उस पर न्योछावर कोई अब गुमनाम हो गया, कोई दिखता है कद्दावर
दर्द मिला जीवन में इतना, उसको हम कब तक सहलाएँ नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।
आगत का स्वागत हम करते, उस पर हम कितना भी मरते लेकिन उसको भी जाना है, इस सच्चाई से क्यों डरते नया नवेला जो भी होता, दु:ख उसको भी यहाँ भिगोता बीच भँवर में फँसा यहाँ जो, फसल प्रेम की कैसे बोता
वातावरण घिनौना इतना, अब दबंग सबको बहलाएँ नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।
भेदभाव अब फैला इतना, सीधा- सच्चा रोते देखा कूटनीति पर आधारित क्यों, हुआ योजनाओं का लेखा कोई धन-दौलत से खेले, कोई भूखा ही सो जाता कोई चमक रहा तिकड़म से, कोई सपनों में खो जाता
लोग हुए जो अवसरवादी, कैसे वे अपने कहलाएँ नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।
कहीं पे पानी तो कहीं ओस गिर रही है कि लगता है यह दिसंबर जाने वाला है अब इस नव वर्ष की करो तैयारी सभी अब एक नव वर्ष फिर से आने वाला है
कुछ लोगों की यादें अब, धूमिल होती जा रही हैं लगता है नए रिश्तों का दामन कोई पकड़ा रहा है आओ यहां हम सभी मिलजुल कर यूं खुशियां बांटें हम भुला दें सभी गमों को,नव उत्कर्ष आने वाला है
पुराने साल का गम छोड़ कर हर्षोल्लास भरें हम अब खुशियां मनाएं हम,नया प्रहर्ष आने वाला है कि जानें क्या-क्या नया सिखाएगा अब यह साल, नए तरीके से निखरें,कि पुराना कर्ष जाने वाला है
अब भगाएं हम इस वर्ष यह कोरोना बीमारी को एक बार फिर से एक और नया वर्ष आने वाला है
शिवाजी के अल्फाज़
राजकुमार मसखरे: नव वर्ष
नववर्ष,नव उत्कर्ष हो चहुँदिशि हर्ष हो , प्रगति के नये सोपान यथार्थ व आदर्श हो !
कट जाये जीवन में टीस की झंझावात बनें सभी क़ाबिल, अपना ये प्रादर्श हो !
हो माता का आशीष प्रकृति की हो रक्षा खुशी से छलके जीवन हर दिन,हर पल अर्श हो !
राजकुमार मसखरे
इंदुरानी: नव वर्ष दोहे
धीरे धीरे उंगलियाँ, छुड़ा रहा यह वर्ष। अंग्रेजी नव वर्ष का, मना रहे हम हर्ष।।
उखड़ रही है सांस अब ,बृद्ध दिसम्बर रोय। जवां जनवरी क्या पता, साथ किस तरह होय।।
बीते वर्ष को अलविदा, ले कर यह विश्वास। साल नया यह शुभ रहे, हो पूरी हर आस।।
इन्दु,अमरोहा, उत्तर प्रदेश
अकिल खान: नया साल
जीवन में सभी मुश्किल हो जाएं दूर, चारों दिशाओं में हो हर्ष-उमंग का सूर। निराश-मन पुनः उठ जाओ, आलस्य-अहं को दूर भगाओ। जीवन में हो सफलता का भूचाल, मुबारक हो सभी को, नया साल।
दूर करो जीवन में अपनी गलती और कमी, फिर से हमको पुकारा है ये वीरों का ज़मीं। अपनी कुंठा-द्वेष को है नित हराना, मुश्किल समय में कभी न घबराना। मेहनत से करो जीवन में कमाल, मुबारक हो सभी को, नया साल।
गिरकर उठना जीवन में जिसने सीखा है, इस जमाने में उसी ने इतिहास लिखा है। मुड़ कर देखने वालों को कुछ नहीं मिलेगा, आगे बढ़ने से ही सफलता का चमन खिलेगा। मेहनत के ताल से मिलाओ ताल, मुबारक हो सभी को, नया साल।
2021में कोरोना से जीवन हो गया था मुश्किल, 2022में जिन्दगी में खुशियाँ हो जाए शामिल। जो हो गया भूल जाओ यह जीवन की रीत है, जो किया मेहनत नित उसी को मिला जीत है। नव वर्ष में जीवन हो खुशहाल, मुबारक हो सभी को,नया साल।
घर-परिवार है रिश्तों की क्यारी, दोस्तों की यारी है सबसे प्यारी। जिसने खाया है मेहनत का धूल, उसे मिला है कामयाबी का फूल। कर्म से पहचानो समय का चाल, मुबारक हो सभी को,नया साल।
–अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ.ग). पिन – 496440.
स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
भूले बिसरे खुशी और ग़म की यादें, बनती है अतित की इतिहास पुराना।
आने वाले पल में खुशहाली भरा हो, हार्दिक स्वागत है नववर्ष हो सुहाना।
उगते सूरज की स्वर्णीम मधुर किरणें, नववर्ष में नव सृजन की सहभागी बनें।
दुःख ग़म से भी दूर रहे दो हजार बाईस, कोई अनहोनी घटना की दीवार न तने ।
स्वागत है नववर्ष तुम्हारा २०२२ में, विदा २०२१ के अनेक कष्ट अपार ।
घोर संकट में परिवार की तबाही और, अनेकों परिवार ने महामारी को झेला है।
अचानक आये अनहोनी की भूचाल को, प्रकृति ने भी हमारे साथ खूब खेला है।।
बदलते वर्ष की अविस्मरणीय यादें, कई रहस्यों से भरा दुख भी हजार।
आने वाले वर्ष की शुभ मंगलकामनाएं, आप सभी के लिए अति लाभदायक हो।
हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं, तहेदिल से शुक्रिया विदाई में कहने लायक हो।
✍️ सन्त राम सलाम,,,,,✒️ बालोद, छत्तीसगढ़
अर्जुन श्रीवास्तव: (नए वर्ष की हार्दिक बधाई)
आया है नया वर्ष! मिलकर मनाओ हर्ष! करो संघर्ष सब प्रेम तरुणाई हो
बिछड़े हुए मीत से! मिलो जाकर प्रीत से! दोनों मिल गाओ गीत प्रेम शहनाई हो
ओढ़ करके दुशाला! आई जब भोर बाला! पुष्पों की ले माला खुशियां छाई हो
सुनहरे यह पल! मिलेंगे ना कल! खुश रहो प्रतिपल नए साल की बधाई हो
स्वरचित अर्जुन श्रीवास्तव सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
महदीप जंघेल सर: दोस्ती
दोस्त तुम नववर्ष में, जीवन में बदलाव जरूर लाओगे। एक संदेश तेरे नाम, भरोसा है जरूर निभाओगे। हर बुराई छोड़ देना, मेरा साथ मत छोड़ना। हर वादे तोड़ देना, मेरा विश्वास मत तोड़ना। हर धारा मोड़ देना, मुझसे मुंह मत मोड़ना। सबसे रिश्ता रखना, बुराई से मत जोड़ना। हर वस्तु तोल देना, मेरी दोस्ती मत तोलना। वादा कर जीवन भर, मुझसे संबंध मत तोड़ना।
✍️महदीप जंघेल
खमतराई, खैरागढ़
जिला – राजनादगांव(छ.ग)
नववर्ष का अभिनंदन
हर्षोल्लास से सराबोर हुआ भारतवर्ष का कण कण शुभ मंगलमय नव वर्ष का अभिनंदन ! अभिनंदन !
गीत संगीत से गूंज उठा सुरम्य मधुर वातावरण रंग बिरंगी फुलझड़ियां जलाकर अभिनंदन ! अभिनंदन !
नगरी नगरी द्वारे द्वारे खिल उठा घर आंगन रंग रंगीली रंगोली बना कर अभिनंदन ! अभिनंदन !
सुख समृद्धि हो भारतवर्ष में यश कीर्ति में हो वर्धन पलक पांवड़े बिछा नूतन वर्ष का अभिनंदन ! अभिनंदन !
विकास देश का हो अनवरत खुशहाल हो जनता जनार्दन मंगल कामना संग नूतन वर्ष का अभिनंदन ! अभिनंदन !
विनती स्वीकार करो प्रभु प्रीति पूर्वक है वंदन सदा बरसे आशीष आपका अभिनंदन ! अभिनंदन !
बंधु भावना हो स्थापित । प्रेमालय में हों वासित ।। प्रीत प्रांत प्रिय सुखकर हों । हर हिय जगा हृदेश्वर हो ।।
वर्तमान निःश्रृत धारा । समय सुदिन हो अति प्यारा ।। आज श्रेष्ठ कर प्रण जीवन । आनंदित गुण उद्दीपन ।।
संभव हो महत जितेन्द्रिय । जिजीविषा आनंद सुप्रिय ।। भाल तिलक सज्जित हर्षित । जग में हों गर्वित चर्चित ।।
रामनाथ साहू ” ननकी “मुरलीडीह ( छ. ग. )
ज्ञान भंडारी: नूतन वर्षाभिनंदन
नव वर्ष, नवचेतना, नव उमंगे नव हर्षित तरंगे लेकर आये, हर दिन स्वर्णिम दिन हो, राते हो चांदी जैसी चमकती सितारों भरी , भावना सबकी पावन हो ,नदियों के धारा सी,खरी।
भूले हम वेदनामय पीड़ा को , करे हम सबको आत्मसात सुखी रहे हर मानव जात ,सुख शांति का हो आवास, खिले हर कली कली, गूंजे हर गली गली झूलो से जैसे झूलते , हर शाख शाख ओ अलि अलि।
फले फूले, हर मौसम, तिरंगे की शान बढ़े, धरा दुल्हन सी लगे,ओढ़नी टेसुओ की ओढ़े, अमलतास , पलाश श्रृंगार करे,हर फूल झूमे, हर डाल डाल नूतन परिधान पहनें, हर टूटे दिल जुड़े, गाए सब मंगल गीत, सबका स्वास्थ स्वस्थ रहे, सर पे यश का ताज हो , आशीर्वाद बना रहे जगत जननी का , आशीर्वाद बना रहे, सब स्व जनो का, ऐसा मंगल नूतन वर्ष होवे।
रचयिता _ज्ञान भण्डारी।
एस के नीरज : नववर्ष का धमाल
नए साल की सुबह सुबह पड़ोसी ने जोर से शोर मचाया और मुहल्ले में भोंपू बजाया सबको नया साल मुबारक हो!
मैंने कहा भाई सुबह सुबह ये तुम गला क्यों फाड़ रहे हो खुद तो रात भर सोते नहीं दूसरों को भी सोने नहीं देते !
रात भर क्यों इसी चिंता में घुले जा रहे थे क्या आप … कि सुबह होते ही सबको मुबारक पर मुबारक दूंगा भले ही बदले में लोगों से सत्रह सौ साठ गाली खाऊंगा!
पड़ोसी ने कहा – भाई आप समझते नहीं मेरी बात बुझते नहीं आज तो बस नया साल है चारों तरफ धमाल ही धमाल है फिर भी कमाल ही कमाल है आपको नए साल का पता नहीं है
आज मजे करोगे तो भाया पूरा साल मजे में बीतेगा आज रोओगे तो पूरे साल रोते ही रह जाओगे…..!
मैंने कहा – ना तो मुझे रोना है ना किसी के लिए कांटे बोना है मेरा बस चले तो साल भर मुझे घोड़ा बेचकर सोना है …..!
मगर पड़ोसी हों अगर मेहरबान तो गधे भी बन जाएं पहलवान पूरी रात भर डी जे बजाया फिर भी आपको रास ना आया सुबह सुबह ये भोंपू बजा रहे हो और सारी दुनिया को दिखा रहे हो कि नया साल सिर्फ तुम्हे ही मनाना और एंजॉय करना आता है हमें कुछ भी नहीं आता जाता है !
लेकिन यदि हम मनाना शुरू कर दें तो तुम मुहल्ले मुहल्ला क्या शहर छोड़कर भाग जाओगे… इसलिए मि.नया साल मनाना है पड़ोसियों को अपना बनाना है तो ये राग अलापना बंद कर दो और नववर्ष का स्वागत करना है तो कोई एक बुराई दफन कर दो ।
*@ एस के नीरज*
अनिल कुमार वर्मा: मंगला मंगलम 2022
जीवन पथ के सारे सपने, सच हो सच्ची राह मिले. उम्मीदों से अधिक स्नेह हो, जितनी भी हो चाह मिले. मन हो निर्मल धार सरीखा, गहराई में थाह मिले. कृत्य करें आओ ऐसे कि, दसो दिशाएँ वाह मिले. नूतन मन में नूतन चिंतन, नये सृजन साकार करें. सुखद सुनहरी सुंदर छाया, जनहित में तैयार करें. कर्मरती हों सबसे आगे, श्रम का ही सम्मान हो. नये वर्ष क्या जीवन भर, आपका श्री मान हो.
शुभेच्छु अनिल कुमार वर्मा सेमरताल
परमेश्वर साहू अंचल: नूतन वर्ष पर दोहा (नए साल,बेमिसाल)
हृदय सुमन सम जानिए,प्रेम मिले खिल जाय। घृणा नीर मत सिंचिए, फौरन ही मुरझाय।।
जीवन में पतझड़ नहीं , हो जी सदा बहार। खुशियों की बारिश रहे,हो न कभी तकरार।।
करे खुशी नित चाकरी, चँवर डुलाए हर्ष। हरपल उन्नति की कली, सुरभित हो नव वर्ष।।
शीतलता बन धूप में, रहे साथ नित छाँव। घर आँगन हो स्वर्ग से, मधुबन जैसे गांव।
मानवता हो मनुज में, और दिलों में प्यार। रहें मनुज नित एकता,अखिलविश्व गुलजार।।
सकल जीव सम प्रेम हो, जन-जन में संस्कार। हिलमिल जीवन मन्त्र से,पुलकित हो संसार।।
शिक्षा की दीपक जले, घर-घर हो उजियार। गांव-गली उपवन लगे, रिश्तों में मनुहार।।
प्रेम सुमन आँगन खिले, और शुभ्र नव भोर। खुशियों की बरसात हो, उन्नति हो चहुँओर।।
✒️पीपी अंचल “गुणखान”
हरिश्चंद्र त्रिपाठी”हरिश” : मन उसको नव वर्ष कहेगा
फिर-फिर याद करेगा कोई, फिर-फिर याद सतायेगी। मंगलमय हो जीवन अनुपल, सुखद घड़ी फिर आयेगी।1।
सुख-समृद्धि का ताना-बाना, तार-तार उर -बीन बजे। खुशहाली की मलय सुरभि से, कलम और कोपीन सजे ।2।
समरसता की प्रखर धार में, भेदभाव बह जायें सब। सबसे पहले राष्ट्र हमारा, नव विकास अपनायें सब।3।
नहीं किसी का मन दुख जाये, सबको स्नेह लुटायें हम । अमर संस्कृति के रक्षक बन, मॉ का कर्ज चुकायें हम।4।
साथ प्रकृति का यदि हम देंगे, धन-धान्य पूर्ण नव हर्ष रहेगा। दिशा बहॅकती फसल मचलती, मन उसको नव वर्ष कहेगा।5।
चलो एक क्षण मान रहा मैं, नव वर्ष तुम्हारा आया है। आप मुदित हैं यही सोच कर, मन मेरा भी हरषाया है।6।
नश्वर जीवन,कर्म हमारे, सुख-दुःख के निर्णायक हैं। सबके हित की सुखद कामना, मातृभूमि गुण गायक हैं।7।
सबका साथ विकास सभी का, ना शोषण की गुंजाइश हो। मिले प्रकृति का संरक्षण यदि, सुखकर दो हजार बाइस हो।8।
वर्ष की माला बनी है, पुष्प क्षण से, नव्यता शिव,सत्य के सुंदर वरण से। चित्रपट की भाँति ही,समझो समय को, दृश्य बनते या बिगड़ते आचरण से। नव सृजन के गीत गूँथे जा सकेंगें, लोकहित सद्भावना के व्याकरण से। हर्ष देशी या विदेशी से परे है, मुक्त है यह क्षुद्रता के संस्करण से। विश्व है परिवार,का उद्घोष जिसका, है अटल वह वह देश इस पर प्राण-प्रण से। एक नन्हा दीप, तम का नभ उठाकर, ज्योति का अध्याय लिखता है किरण से। व्यर्थ कोई भी कभी खाली न लौटा, हाथ हो या माथ लग प्रभु के चरण से।
रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)
शची श्रीवास्तव : इन सालों में हमने देखा
नया साल फिर से आया साल पुराना जाते देखा, आते जाते इन सालों में उम्र को हमने ढलते देखा, ऐसे कितने साल बदलते इन सालों में हमने देखा।
माँ पापा का वरदहस्त दादीमाँ का स्नेहिल स्पर्श, भाई बहन का प्यार अनूठा नहीं बदलते हमने देखा, सालों साल बदलते रिश्ते इन सालों में हमने देखा।
मन उपवन के संगी साथी नववर्ष पे बेहद याद आएं, मन की परतों में दबी छुपी यादें कभी न मिटते देखा, स्मृतिपट से हर बात बिसरते इन सालों में हमने देखा।
ढलती सांझ की बेला में ढल रहा पुराना वर्ष सतत्, लम्हा लम्हा ढल रही उम्र उत्साह उमंग न घटते देखा, काश कसक कुछ रह जाते इन सालों में हमने देखा।
नववर्ष का वंदन अभिनंदन जाते हुए साल, प्रनाम तुम्हें, ये काल चक्र चलता यूं ही कभी न इसको रुकते देखा, सुख दुख नित आते जाते इन सालों में हमने देखा।।
शची श्रीवास्तव , लखनऊ
नववर्ष विद्या-मनहरण घनाक्षरी
नव वर्ष की बेला में,मिल जुल यार सँग, खुशियां मनाओ सब,मस्ती करो भोर से। कोई चाहे कुछ कहे,जीवन के चार रंग,सुनो नहीं किसी की,जाने सब शोर से।। बधाई नये साल की,बोले जब अंग अंग,गूँजे बस यही बात,मीत चारो ओर से। अनमोल पल मिला,होना नहीं आज दंग,प्रेम को बढाओ तुम,नाचो वन मोर से।।
मुस्कराकर कर दो मेरा भी स्वागत, मुझको भी कह दो तुम सुप्रभात, हर दिन भूमंडल मे स्वर्ण बिखेरता, सृष्टि की हर रचना मे आभा भर देता,
हर वर्ष देखता मैं कई सपने, पर इस वर्ष देखे स्वप्न सुनहरे, नित बहे शान्ति समानता का स्रोत, जिससे हो जाए जग ओतप्रोत, भूमंडल मे बिखरे छटा सुनहरी,
न हो प्रदूषण, न हो कोई महामारी , नव वर्ष में हर बाला, दुर्गा का रूप धरे विशाला, हर बालक छू ले ऊचाईयां, जिसकी कीर्ति से महकेगी ये दुनिया, हर मानव के मन का महके कोना कोना, जिसमें उत्साह, आशा नवचेतना का सजा हो पलना, धूमिल होगा तम,तिमिर ,अवसाद सारा, जगपटल हो जायेगा उज्जवल सारा। (माला पहल मुंबई से)
नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।नववर्ष पर कविता बहार की कुछ हाइकु –
विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है।
जल संकट पर कविता
पानी मत बर्बाद कर , बूँद – बूँद अनमोल | प्यासे ही जो मर गये , पूँछो उनसे मोल || 1 ||
अगली पीढ़ी चैन से , अगर चाहते आप | शुरू करो जल संचयन , मिट जाये सन्ताप || 2 ||
पानी – पानी हो गया , बोतल पानी देख | रुपयों जैसा मत बहा , अभी सुधारो रेख || 3 ||
जल से कल है दोस्तो , जल से सकल जहान | जल का जग में जलजला , जल से अन्न किसान || 4 ||
वर्षा जल संचय करो , सदन बनाओ हौज | जल स्तर बढ़ता रहे , सभी करें फिर मौज || 5 ||
जल को दूषित गर किया , मर जायें बेमौत | ‘माधव’ वैसा हाल हो , घर लाये ज्यों सौत || 6 ||
जल जीवन आधार है , और जगत का सार | ‘माधव’ पानी के बिना , नहीं तीज – त्योहार || 7 ||
जल से वन – उपवन भले , भ्रमर करें गुलजार | जल बिन सूना ही रहे , धरा हरा श्रंगार || 8 ||
पानी से घोड़ा भला , पानी से इंसान | पानी से नारी चले , पानी से ही पान || 9 ||
नीरद , नीरधि नीर है , नीरज नीर सुजान | ‘माधव’ जन्मा नीर से , जान नीर से जान || 10 ||
#नारी = स्त्री , नाड़ी , हल #जान = प्राण , समझना #रेख = लाइन , कर्म #जलजला – प्रभाव , महत्व
#सन्तोष कुमार प्रजापति माधव
जल बिना कल नहीं
जल से मिले सुख समृद्धि, जल ही जीवन का आधार। जल बिना कल नही, बिना इसके जग हाहाकार।
जल से हरी-भरी ये दुनिया, जल ही है जीवन का द्वार। जल बिना ये जग सूना, वसुंधरा का करे श्रृंगार।
पर्यावरण दुरुस्त करे, विश्व पर करे उपकार। नीर बिना प्राणी का जीवन, चल पड़े मृत्यु के द्वार।
जल,भूख प्यास मिटाए, जीव -जंतु के प्राण बचाए। सूखी धरणी की ताप हरे, प्यासी वसुधा पर प्रेम लुटाए।
वर्षा जल का संचय करके, जल का हम सदुपयोग करें। भावी पीढ़ी के लिए बचाकर, अमृत -सा उपभोग करें।
जल ही अमृत जल ही जीवन, दुरुपयोग से होगा अनर्थ। नीर बिना संसार की, कल्पना करना होगा व्यर्थ ।
अतः जल बचाएं,उसका सदुपयोग करें।जल है तो कल है।
रचनाकार -महदीप जंघेल निवास -खमतराई, खैरागढ़
जल संकट बनेगा-आझाद अशरफ माद्रे
गहरा रहा पानी का संकट, अब तो चिंता करनी होगी।
ध्यान अगरचे अब ना दिया, सबको कीमत भरनी होगी।
ये भी जंग ही है अस्तित्व की, जो मिलकर हमें लड़नी होगी।
छोड़ उपभोगी मानसिकता को, डोर समझदारी की धरनी होगी।
आनेवाली पीढ़ी जवाब मांगेगी, उसकी तैयारी हमें करनी होगी।
आज़ाद भी होगा इसमें शामिल, अब ज़िम्मेदारी तय करनी होगी।
आझाद अशरफ माद्रे गांव – चिपळूण, महाराष्ट्र
जल संकट पर रचना
सरिता दूषित हो रही, व्यथा जीव की अनकही, संकट की भारी घड़ी।
नीर-स्रोत कम हो रहे, कैसे खेती ये सहे, आज समस्या ये बड़ी।
तरसै सब प्राणी नमी, पानी की भारी कमी, मुँह बाये है अब खड़ी।
पर्यावरण उदास है, वन का भारी ह्रास है, भावी विपदा की झड़ी।
जल-संचय पर नीति नहिं, इससे कुछ भी प्रीति नहिं, सबको अपनी ही पड़ी।
चेते यदि हम अब नहीं, ठौर हमें ना तब कहीं, दुःखों की आगे कड़ी।
नहीं भरोसा अब करें, जल-संरक्षण सब करें, सरकारें सारी सड़ी।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ तिनसुकिया
जल संकट
संकट होगा नीर बिन, बसते इसमें प्राण । बूंद बूंद की त्रासदी , देंगे खुद को त्राण ॥ देंगे खुद को त्राण , चिंतन अभी से करना । सबसे बड़ा विधान, नीर का मूल्य समझना ॥ बिन जल के मधु मान,बने जीवन का झंझट। जतन करें फिर लाख,मिटाने जल का संकट॥
मधु सिंघी नागपुर ( महाराष्ट्र )
जल ही जीवन पर कविता
जीवन दायिनी जल, घट रहा पल पल, जल अमूल्य सम्पदा, सलिल बचाइए। सूखा पड़ा कूप ताल, गर्मी से सब बेहाल, कीमती है बूँद बूँद, व्यर्थ न बहाइए। वर्षा जल संचयन, अपनाएं जन जन, जल स्तर बढ़ाकर, संकट मिटाइए। जागरुक हो जाइए, कर्तव्य से न भागिए, पश्चाताप से पहले, विद्वता दिखाइए।
सुकमोती चौहान रुचि बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
जल है तो है कल
धरती सुख गई ,आसमां सूख जाएगा। जीने के लिए जल, फिर कहां आएगा ? संकट छा जाए ,इससे पहले बदल जल है तो है कल जल है तो है कल बूंद बूंद जल होता है, मोती सा कीमती “ये रक्त है मेरी’, सदा से धरती माँ कहती हीरा मोती पैसे जीने के लिए नहीं जरूरी जल के बिना हर दौलत हो जाती अधुरी आने वाले कल के लिए , जा तू संभल जल है तो है कल जल है तो है कल “पेड़ लगाओ-जीवन पाओ” ये ध्येय हमारा हो। जल बचाने के लिए, हरियाली नदी किनारा हो। विनाश की शोर सुनो, “विकास विकास” ना चिल्लाओ। स्वार्थी इतना मत बनो कि कुल्हाड़ी अपने पैर चलाओ। जन को जगाने के लिए ,बना लो दल। जल है तो है कल जल है तो है कल
मनीभाई नवरत्न छत्तीसगढ़
पानी की मनमानी
पानी की क्या कहे कहानी जित देखो उत पानी पानी पानी करता है मनमानी ।।
भीतर पानी बाहर पानी सड़को पर भी पानी पानी दरिया उछल कूदते धावें तटबन्धों तक पानी पानी ।।
याद आ गयी सबको नानी पानी की क्या कहे कहानी पानी करता है मनमानी ।।
न सेतु न पेड़ रोकते न मानव न पशु टोकते प्राणी भागे राह खोजते पानी मे सब जान झोंकते
अपनी जिद अड़ गया पानी पानी की क्या कहे कहानी पानी करता है मनमानी ।।
उछल कूदती नदिया धावें लहरों पर लहरें हैं जावे एक दूजे से होड़ लगावे सागर से मिलने को धावें
नदिया झरने कहे कहानी पानी की क्या कहे कहानी पानी करता है मनमानी ।।
सुशीला जोशी मुजफ्फरनगर
जल पर दोहे
अब अविरल सरिता बही , निर्मल इसके धार । मूक अविचल बनी रही, सहती रहती वार ।।
वसुधा हरी-भरी रहे, बहता स्वच्छ जलधार । जल की शुद्धता बनी रहे, यही अच्छे आसार ।।
नदियाँ है संजीवनी, रखे सब उसे साफ । जो करे गंदगी वहाँ, नहीं करें अब माफ ।।
जल प्रदूषित नहीं करो, जीवन का है अंग । स्वच्छ निर्मल पावन रहे, बदले नाही रंग ।।
अनिता मंदिलवार सपना
जल ही जीवन है - अकिल खान ( जल संरक्षण कविता)
जल में मत डालो मल, फिर कैसे खिलेगा कमल। वृक्षों की बंद करो कटाई, यही शुद्ध जल का हल। जल है प्रलय, जल से होता निर्मल धरा गगन है । करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
कल – कारखानों के अपद्रव्य , मानव की मनमानी, करते परीक्षण – सागर में, होती पर्यावरण को हानि। जल से हैं खेत – खलिहान – वन, मुस्कुराते चमन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
बढ़ती आबादी से निर्मित हो गये विषैले नदी नाला, कट गए कई वन बगीचे,हो गया जल का मुँह काला। उठो जल बचाना अभियान है, कहता अकिल मन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
भरेंगे तालाब-कुँआ,और करेंगे बाँध में एकत्र पानी, हटाकर अपशिष्ट, खत्म करेंगे जल संकट की कहानी। नदी झरने झील तालाब सुखे, बने मरुस्थल निर्जन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
मानव अपना भविष्य बचा लो कहता है अब ये जल, जल संकट होगी भयावह ,जानो आज नहीं तो कल। विश्व एकता सुलझाएगी इसको, कहता अकिल मन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
अकिल खान रायगढ़
विश्व जल दिवस की कविता
जल है जीवन का आधार, करता सबका है बंटाधार। जल से धरती परती सजती, मिले ना जल हो जन लाचार।
जल जीवों की काया है, दो तिहाई भाग में छाया है। मृदु,खारे, रंगीन कहीं बन, अनेक रूपों में पाया है।
जल बिन तरु सूखे डगरी का, छाया मिटती उस नगरी का। बनकर गंगाजल है धोता, मैल पुरानी सब गगरी का।
अंतिम जब जीवन की बेला, खत्म हो रही जीवन मेला। तब दो बूंद पिलाकर जल ही, मौत से करते ठेलम ठेला।
जल इतना अहम है भाई, सब कहते हैं गंगा माई। समझ ना पाये होके अंधे, जल में इतनी मैल गिराई।
दूषित जलाशय फाँसी केफंदे, हमारे विकास ने किये हैं गंदे। खूब फलते फूलते हैं देखो, इस धारा पर पानी के धंधे।
जल की बूंद बूँद का संचय करना होगा, हो ना जाये कहीं जल संकट डरना होगा। यदि नहीं सम्भला धरा का हर जीव जन, तो जल बिन मछली जैसे मरना होगा।