श्रीकृष्ण पर कविता – रेखराम साहू

shri Krishna

श्रीकृष्ण पर कविता – रेखराम साहू महाव्याधि है मानवता पर, धरा-धेनु गुहराते हैं।आरत भारत के जन-गण,हे कान्हा! टेरते लगाते हैं।। चित्त भ्रमित संकीर्ण हुआ है,हृदय हताहत जीर्ण हुआ है।धर्मभूमि च्युतधर्म-कर्म क्यों,अघ अधर्म अवतीर्ण हुआ है ।।संस्कृति के शुभ सुमन सुगंधित शोकाकुल झर जताते हैं।महाव्याधि मानवता पर है,धरा- धेनु गुहराते हैं।। काल,काल-कटु कंस हुआ है,तम-त्रिशूल विध्वंस … Read more

नव वर्ष पर कविता

नव वर्ष आ गया नववर्ष,क्या संदेह,क्या संभावना है?शेष कुछ सुकुमार सपने,और भूखी भावना है। हैं विगत के घाव कुछ,जो और गहरे हो रहे हैं,बात चिकनी और चुपड़ी,सभ्यता या यातना है! ओढ़कर बाजार को,घर घुट रहा है लुट रहा है,ग्लानि की अनुभूति दे जाती कटुक,शुभकामना है। नींद उनको फूल की शैय्या मेंं भी आती नहीं है,किन्तु … Read more

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

save nature

आज पर्यावरण पर संकट आ खड़ा हुआ है . इसकी सुरक्षा के प्रति जन जागरण के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने 5 मई को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला किया है . कविता बहार भी इसकी गंभीरता को बखूबी समझता है . हमने कवियों के इस पर लिखी कविता को संग्रह किया है .

भोर पर कविता -रेखराम साहू

morning

भोर पर कविता –रेखराम साहू सत्य का दर्शन हुआ तो भोर है ,प्रेम अनुगत मन हुआ तो भोर है। सुप्त है संवेदना तो है निशा ,जागरण पावन हुआ तो भोर है। द्वेष की दावाग्नि धधकी हो वहाँ,स्नेह का सावन हुआ तो भोर है। त्याग जड़ता,देश-कालोचित जहाँ,कर्म-तीर्थाटन हुआ तो भोर है। क्षुद्र सीमा तोड़,धरती घर हुई … Read more

बीज मनुज का शैशव है-रेखराम साहू

बीज मनुज का शैशव है आभासी परिदृश्यों से अब,हुआ प्रभावित बचपन है।नयी दृष्टि है,सोच नयी है,विश्व हुआ अधुनातन है!! परिवेशों से अर्जित करता,सद्गुण-दुर्गुण मानव है।युगों-युगों से तथ्य प्रमाणित,बीज मनुज का शैशव है।।शैशव में पोषित मूल्यों से ,बनता भावी जीवन है.. बिना सुसंस्कृति,अंधी शिक्षा,और पंगु है आविष्कार।स्वस्थ व्यक्ति निर्माण-सूत्र है,“हो सम्यक् आहार-विहार “।।ध्यान रहे यह नित्य,ज्ञान … Read more