यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम” के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
होली पर कविता होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में लोग चन्दन और गुलाल से ही होली खेलते थे। समय के साथ इनमें भी बदलाव देखने को मिला है। कई लोगों द्वारा प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे त्वचा या आँखों पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े। टीवी9 भारतवर्ष द्वारा घर पर होली के रंग बनाने एवं रासायनिक रंगों से दूर रहने की सलाह दी गई है।
होली पर कविता
होली की छाई है गजब की खुमारी लाल लाल दिखे सब नर नारी.
देवरजी ने हरा रंग डाला ननदजी ने पीला रंग डाला जीजाजी ने गुलाबी रंग डाला सिंदूरी रंग पे हाय ये दिल हारा होहह पियाजी का रंग सब पे है भारी होली की छाई है गजब खुमारी लाल लाल…..
पीकर भांग नागिन सी हुई चाल रंग बिरंगे रंगरसिया लगे सबके गाल विदेशिया लगे स्टाइल इन्द्रधनुषी बाल बुढ़े लगाते ठुमके ताल में दे ताल होहह रंग उड़े फूल बरसे फूलवारी होली की छाई है …. लाल लाल….
गर्म गर्म बड़ा पकोड़े टमाटर की चटनी गिलास गिलास ठंढ़ाई पापड़ी की चखनी मीठी मीठी गुझिंया ,चीनी की चाशनी खट्टी मिट्ठी नमकीन लगती हो सजनी होहह इस बार की होली है बड़ी करारी होली की छाई है… लाल…..
✍ सुकमोती चौहान रुचि बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
होली आई रे
होली आई रे, आई रे, होली आई रे !
तन-मन में उमंग भर लाई रे !
रंग बरस रहा है, रस बरस रहा,
जन-मन का मगन मन हरष रहा,
नव रंगों के कलश भर लाई रे !
नवनीत-से गाल, गुलाल-भरे,
गोरी झांक रही खिड़की से परे,
चोरी-चोरी से नजर टकराई रे !
रण-भूमि में रंग बसंत का था,
पथ तेरा सिपहिया अनंत का था,
तुझे मिली विजय सुखदाई रे !
हवन करें, पापों
o आचार्य मायाराम ‘पतंग’
हवन करें, पापों तापों को, देशप्रेम ज्वाला में ।
कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥
शीतजनित आलस्य त्यागकर, सब समाज उठ जाए।
यह मदमाती पवन आज तन-मन में जोश जगाए ।
थिरक उठें पग सभी जनों के मिलकर रंगशाला में ।
कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥
भाषा और प्रांत भेदों की हवा न हम गरमाएँ ।
छूआछूत की सड़ी गंध से, मुक्त आज हो जाएँ।
पंथ, जाति का तजकर अंतर, मिलें एक माला में ।
कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥
भारत भू के कण-कण में, धन प्रेमसुधा बरसाएँ ।
गौरवशाली राष्ट्र परम वैभव तक हम ले जाएँ ।
मिट जाए दारिद्र्य, विषमता, परिश्रम की ज्वाला में।
कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ।
सब रंग-रंग में रंग उठे भर अंग अंग में रंग उठे रग रग में रंग लिए सबने उड़ उठा गगन में फाग री।
हो होकर हो-ली होली में प्रिय प्यार लुटाते टोली में मैं प्रेम रंग में रंग उठी चल पड़ी प्रिय के साथ री।
ये लाल गुलाबी रंग हरे कर दे जीवन को हरे-भरे जीवन खुशियों से भर जाए लेके हाथों में हाथ री।
आओ कुछ मीठा हो जाए अपनेपन में हम खो जाए बजे तान,तन- मन में तक- धिन गा गाकर झूमे गात री।
हर दिन हो होली का उमंग चढ़ जाए सारे प्रेम रंग जल जाए जीवन की चिंता हो जाए तन मन साफ री।
जीवन के रंग पर रंग चढ़े
सबके मन में सौहार्द बढ़े प्रेम रंग चढ़ जाए इते कि मिट जाए मन की घात री।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
अपनी जिंदगी की शानदार होली
होली तो बहाना है – मनीभाई
पिया से मिलने जाना है। ओ….हो..हो…. पिया से मिलने जाना है। होली तो…बहाना है। सबसे हसीन… सबसे जुदा उससे रिश्ता …बनाना है। पिया से मिलने जाना है…
हाथों में तेरे….चुड़िया छन छन बजे। पैरों में तेरे …पायलिया छम छम बजे। रंग लगाके उसके गालों में… और भी सजाना है। होली तो…. बहाना है। पिया से मिलने जाना है।
हरा गुलाबी…. लाल लगाऊंगा। अपने हाथों से…. गुलाल लगाऊँगा आंचल में उसके.. प्यार भीगाके गले से उसे लगाना है। होली तो … बहाना है। पिया से मिलने जाना है।
मेरे प्यार में आज …. वो रंग जायेगी मुझे गले लगाके …नहीं भूल पायेगी। फागुन का महीना …प्रेम का महीना प्रेम जताने में क्या शरमाना है? होली तो….बहाना है। पिया से मिलने जाना है।
होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार। यारा मेरे दिलदार,तुझ संग मिला मुझे प्यार॥
ये हमारी मस्तानी टोली,मीठी बोली,सूरतिया भोली। लोगों को मिलाये ऐसी होली,पानी ने रंग को जैसे घोली।
होली के रंग में डुबा संसार,होली के रंग है हजार। होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥1॥
क्या जमीं के रंग?क्या आसमाँ के रंग? मिल गया दोनों के रंग, आज होली के संग।
कोई ना बचा आज लाचार, होली के रंग है हजार। होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥2॥
हम पिया के दीवाने,कौन -सा रंग दें ना जानें। सारा तन रंग से गीला, फिर भी दिल ना मानें।
होली है रंग की बौछार, होली के रंग है हजार। होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥3॥
मनीभाई पटेल नवरत्न
होली पर्व पर कविता
दिया संस्कृति ने हमें,अति उत्तम उपहार, इन्द्रधनुष सपने सजे,रंगों का त्यौहार।1।
नव पलाश के फूल ज्यों,सुन्दर गोरे अंग, ढ़ोल-मंजीरा थाप पर,थिरके बाल-अनंग।2।
मलयज को ले अंक में,उड़े अबीर-गुलाल, पन्थ नवोढ़ा देखती,हिय में शूल मलाल।3।
कसक पिया के मिलन की,सजनी अति बेहाल, सराबोर रंग से करे,मसले गोरे गाल।4।
लुक-छिप बॉहों में भरे,धरे होंठ पर होंठ, ऑखों की मस्ती लगे,जैसे सूखी सोंठ।5।
बरजोरी करने लगे,गॉव गली के लोग, कली चूम कहता भ्रमर,सुखदाई यह रोग।6।
तरुणाई जलने लगी,देखि काम के बाण, बिरहन को नागिन डसे,प्रियतम देंगे त्राण।8।
पत्तों के झुरमुट छिपी,कोयल आग लगाय, है निदान क्या प्रेम का,कोई मुझे बताय।9।
ऋद्धि-सिद्धि कारक बने,ऊॅच-नीच का नाश, अंग-अंग फड़कन लगें,पल-पल नव उल्लास।10।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
होली के रंग कविता- आरती सिंह
लाल रंग हो अधीर,सज्जित होकर अबीर, निकले हैं आज कंचन काया को सजाने |
हरे-नील रंग चले, लेकर उमंग चले आज मधुर बेला में सबको रिझाने |
चाहे कोई अमीर होवे या फिर फ़क़ीर रंग सभी को लगे हैं एक सा रंगाने |
प्रेमी हो, मित्र चाहे, बैरी हो या हो बंधु रंग सभी को लगे हैं एक कर मिलाने |
आज कोई मूढ़ नहीं, ना कोई सयाना है एक जैसे चेहरे लगा आईना बताने |
प्रेम रंग डूबे सब, भूल गए ज़ात-पाँत ईश्वर के पुत्र लगे ईश को मानाने |
कान्हा ने राधा संग, खेले होली के रंग त्रिभुवन को भक्ति प्रेम रस में डुबाने |
आरती सिंह
रंगों की बहार होली कविता
रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली
होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली
प्रेयसी का श्रृंगार होली, प्रियतम का प्यार होली अंग – अंग खुशबू से महकें , प्रेम का इजहार होली
सैयां की बैंयां का हार होली, अरमानों का आगाज़ होली आशिकों का प्यार होली, मुहब्बत का इजहार होली
गुलाल से रोशन हो आशियाँ, दिलों में पलता प्यार होली कभी पिया का इन्तजार होली, कहीं खिलती बहार होली
कहीं इश्क़ का इजहार होली, कहीं नफरत पर वार होली खुदा की इबादत होली, खुदा पर एतबार होली
पालते जो दिलों में मुहब्बत , उन पर निसार होली उम्मीदों का ताज होली, रिश्तों का रिवाज होली
कुदरत का करिश्मा होली, प्रकृति का प्यार होली प्यार की जागीर होली, ख्वाहिशों का संसार होली
रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली
होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली
मौलिक रचना –
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
होली पर कविता – रचना चेतन
रंग, गुलाल, अबीर लिए, हर बार है होली आती लेकिन सुनो इस बार की होली, होगी बड़ी निराली ।।
पिचकारी, गुब्बारे, रंग, उमंग और उत्साह एक नई तरंग लिए, ये होली होगी कुछ खास ।।
रंग उड़े, गुलाल उड़े, पर रहना होगा सावधान अपने संग अपनों की सेहत का, रखना होगा ध्यान ।।
कोरोना का खतरा टला नहीं है, अतः बनी रहे दो गज दूरी गुजिया, नमकीन का स्वाद बढ़े, पर मास्क बहुत जरूरी ।।
सड़कों, चौबारों, मैदानों में हर साल, रंग बहुत उड़ाये सबकी सुरक्षा के लिए इस बार, चलो होली घर में मनाएँ ।।
सेहत और खुशियों से भरी रहे, सब लोगों कि झोली एक नया संदेश लिए, देखो आई है ये होली ।।
रचना चेतन
हमारी होली – आशीष बर्डे
रंगो में तु रंग मिलाकर रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर
आग लगाओं क्रोध को भस्म कर दो मोह को छोड़ के बेरंग दुनिया को आनंद में रंग दो तन मन को
रंगो में तु रंग मिलाकर रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर
खुशीयो का रंग चडाकर दुखो का चोला छोड़कर उल्लास में स्वयं भिगकर हर्षित कर दो जन जन को
रंगो में तु रंग मिलाकर रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर
स्वभाव कर लो अमृतमयी बैराग चोड़कर दूर कही हर जीव्हा को मिष्ठान से भरकर
आशीष बर्डे (khumen)
होली – एक प्रेमी की नज़र से (आझाद अशरफ माद्रे)
शीर्षक : होली-एक प्रेमी की नज़र से रंगों में रंग जब कभी मिलते है, चेहरे फुलों की तरह खिलते है।
जान पहचान की ज़रूरत नही, होली में दिल दिल से मिलते है।
होली में काश दोनों मिल जाए, कितने अरमान दिल में पलते है।
रूठकर प्रेमी नही खेलते होली, बाद में हाथों को अपने मलते है।
जाने अनजाने में वो मुझे रंग दे, आज़ाद उनकी गली में चलते है।
आझाद अशरफ माद्रे
भटके हुए रंगों की होली – राकेश सक्सेना
आज होली जल रही है मानवता के ढेर में। जनमानस भी भड़क रहा नासमझी के फेर में, हरे लाल पीले की अनजानी सी दौड़ है। देश के प्यारे रंगों में न जाने कैसी होड़ है।।
रंगों में ही भंग मिली है नशा सभी को हो रहा। हंसी खुशी की होली में अपना अपनों को खो रहा, नशे नशे के नशे में रंगों का खून हो रहा। इसी नशे के नशे में भाईपना भी खो रहा।।
रंग, रंग का ही दुश्मन ना जाने कब हो गया। सबका मालिक ऊपरवाला देख नादानी रो गया, कैसे बेरंग महफिल में रंगीन होली मनाएंगे। कैसे सब मिलबांट कर बुराई की होली जलाऐंगे।।
देश के प्यारे रंगों से अपील विनम्र मैं करता हूँ। धरती के प्यारे रंगों को प्रणाम झुक झुक करता हूँ अफवाहों, बहकावों से रंगों को ना बदनाम करो, जिसने बनाई दुनियां रंगों की उसका तुम सम्मान करो।।
हरा, लाल, पीला, केसरिया रंगों की अपनी पहचान है। इन्द्रधनुषी रंगों सा भारत देश महान है, मुबारक होली, हैप्पी होली, रंगों का त्यौहार है। अपनी होली सबकी होली, अपनों का प्यार है।।
(राकेश सक्सेना)
मैं आया खेलन फाग तिहार
मेरे दिलबरजानी मेरे यार सांवरिया …. मैं आया खेलन फाग तिहार । सांवरिया …. आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
आज रंगों से करले …तू श्रृंगार। अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।। चम चम चमके रे ..तेरी लाली बिन्दिया। मेरा चैन लेके रे …लुटे निन्दिया।
बच्चों के चाचा नहीं, किससे माँगे रंग। चाचा भी खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।
बुरा मानते है सभी, रंगत हँसी मजाक। बूढ़ों की भी अब गई, पहले वाली धाक।।
पानी बिन सूनी हुई, पिचकारी की धार। तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।
मोबाइल ने कर दिया, सारा बंटाढार। कर एकल इंसान को,भुला दिया सब प्यार।।
आभासी रिश्ते बने, शीशपटल संसार। असली रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।
हम तो पैर पसार कर, सोते चादर तान। होली के अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।। आप बताओ आपके, कैसे होली हाल। सच में ही खुशियाँ मिली,कैसा रहा मलाल।।
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
फागुन के रंग
हर इंसान अपने रंग में रंगा है, तो समझ लो फागुन की होली है। हर रंग कुछ कहता ही है, हर रंग मे हंसी ठिठोली है।
जीवन रंग को महकाती आनंद उल्लास से, जीवन महक उठता है एक-दूसरे के विश्वास से। प्रकृति की हरियाली मधुमास की राग है, नव कोपलों से लगता कोई लिया वैराग है।
हर गले शिकवे को भूला दो, फैलाओं प्रेम रूपी झोली है। हर इंसान अपने रंग में रंगा है, तो समझ लो फागुन की होली है।
आग से राग तक राग से वैराग्य तक, चलता रहे यूँ ही परम्परा ये फ़ाग तक। होलिका दहन की आस्था, युगों-युगों से चली आ रही है।
आग मे चलना राग मे गाना, प्रेम की गंगा जो बही है। परम्परा ये अनूठी होती है, कितनी हंसी ठिठोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है, तो समझ लो फागुन की होली है। सपनों के रंग मे रंगा ये संसार सारा, सतरंगी लगता इंद्रधनुष सबको है प्यारा।
बैगनी रंग शान महत्व और राजसी प्रभाव का प्रतीक। जामुनी रंग दृढ़ता नीला विस्तार और गहराई का स्वरूप।
हरा रंग प्रकृति शीतलता, स्फूर्ति और शुध्दता लाये। पीला रंग प्रसन्नता आनंद से घर द्वार महकाये। रंग नारंगी आध्यात्मिक सहन शक्ति सिखाये।
लाल रंग उत्साह साहस, जीवन के खतरे से बचाये। रंग सात ये जीवन मे रंग ही रंग घोली है। हर इंसान अपने रंग में रंगा है, तो समझ लो फागुन की होली है।
आया होली का त्यौहार – रविबाला ठाकुर
आया होली का त्यौहार, लेके रंग अबीर-गुलाल। आओ मिलके खुशी मनाएँ, चलो तिलक लगाएँ भाल। जाति-पाँति और वर्ग-भेद का, तोड़ो क्लेश भरा जंजाल। मानव ने ही रचा-बसा है, ये सभी घिनौना जाल। ऊपर वाले ने तो ढाला, देखो सबको एक समान। इसी लिए तो हम सबका है, खून एक सा गहरा लाल। आओ मिलकर रंगों से हम, रंग दें एक-दूजे का गाल। एक-सूत्र में बँध जाएँ, मानव-मानव एक समान। तभी मिटेगा देश-राज से, चीनी-पाकी सा शैतान। और बनेगा जग में मेंरा, प्यारा भारत देश महान। आओ मिलकर सभी मनाएँ, रंग भरा होली त्यौहार।
रविबाला ठाकुर”सुधा”
होली के रंग – बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
(1)
होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम, मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।
हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच, मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।
रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर, शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।
ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग, ‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।
(2)
फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए, गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।
बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय, ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।
बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत, कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।
पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम, कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।
(3)
बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ, उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।
उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब, करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।
‘बासु’ कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़, किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
आया रंगो का त्यौहार – भुवन बिष्ट
होली के रंग अबीर से। आओ बाँटें मन का प्यार।। खुशहाली आये जग में। है आया रंगों का त्यौहार।। रंग भरी पिचकारी से अब। धोयें राग द्वेष का मैल।। ऊँच नीच की हो न भावना। उड़े अबीर लाल गुलाल।। होली के हुड़दंग में भी। बाँटें मानवता का प्यार।। खुशहाली आये जग में। आया रंगों का त्यौहार।। होली के रंग अबीर से। आओ बाँटें मन का प्यार।। गुजिया मिठाई की मिठास से। फैले अब खुशियों की बहार ।। आओ रंगों की पिचकारी से। धोयें जग का अत्याचार।। होली के रंग अबीर से। आओ बाँटें मन का प्यार।। खुशहाली आये जग में। है आये रंगों का त्यौहार।। बसंत बहार के रंगों से। ओढ़े धरती है पितांबरी।। ईष्या राग द्वेष को त्यागें। सिचें मानवता की क्यारी।। रूठे श्याम को भी मनायें। रंगों से खुशियाँ फैलायें।। रंगों और पानी से सिखें। झलक एकता की दिखलायें।। मानवता का हो संचार। बहे सुख समृद्धि की धार।। होली के रंग अबीर से। आओ बाँटें मन का प्यार।। खुशहाली आये जग में। है आये रंगों का त्यौहार।।
भुवन बिष्ट रानीखेत (उत्तराखंड)
होली के रँग हजार – सुशीला जोशी
होली के रँग हजार होली किस रंग खेलूँ मैं ।।
लाल रंग की मेरी अंगिया मोय पुलक पुलक पुलकावे ढाक पलाश फूल फूल कर मो को अति उकसावे लाई मस्ती भरी खुमार होली किस रंग खेलूँ मैं ।। पीत रंग चुनरिया मेरी फहर खेतों में फहरावे गेंहु सरसों के खेतों में लहर लहर बन लहरावे सँग लाये बसन्ती बयार होली किस रंग खेलूँ मैं । नील रंग गगन सा विस्तृत निरन्तर हो कर विस्तारे चैत वासन्ती विषकन्या सी अंग छू छू कर मस्तावे किलके सूरज चन्द हजार होली किस रंग खेलूँ मैं ।। श्याम रंग नैन का काजल घना हो हो कर गहरावे सुरमई बदली ला ला करके गर्जना करके धमकावे मेरी फीकी पड़ी गुहार होली किस रंग खेलूँ मैं ।। धानी रंग धरा अंगडाइ इठला इठला सरसावे बाग बगीचे कोयल कुके मनवा में अगन लगावे बौराई सतरँगी बहार । होली किस रंग खेलूँ मैं ।। न हिन्दू न मुसलमा कोई नही कोई सिख ईसाई होली के रंगों में रंग कर सब दिखते है भाई भाई अब न पनपे कोई दरार होली किस रंग खेलूँ मैं ।।
सुशीला जोशी
मिल-जुल कर सब खेले होली – पंकज
फाल्गुन का मौसम है आया, फ़ाग गीत सबको है भाया। अम्बर पर रंगों का साया , सबके मन में प्रेम समाया। तुम भी आ जाओ हमजोली, मिल-जुल कर सब खेले होली। झांझ,नगाड़े,ताशे,ढोल, कानो में रस देते घोल। बात सुनो ये बड़ी अनमोल, द्वेष छोड़ और प्रेम से बोल। सबके संग हो हंसी ठिठोली, मिल-जुल कर सब खेले होली। टेशू, पलाश के फूल खिलेंगे, होली वाले रंग बनेंगे। मुख पर मुखौटे खूब सजेंगे, पी के भंग सब खूब नचेंगे । पिचकारी से भिगो दे चोली, मिल-जुल कर सब खेले होली। किस्म-किस्म पकवान बनाओ, और सभी मित्रो को बुलाओ। बैरी को भी गले लगाओ, अपने मन से बैर मिटाओ। सब जन बोले प्रीत की बोली, मिल-जुल कर सब खेले होली। पंकज
होली पर कविता – राज मसखरे
जला दी हमने राग-द्वेष,लालच लो अब की बार.. पून:अंकुर न ले न हो कोई बहाना ओ मेरे सरकार.. हो न कोई नफरत अब हमारे बीच न कोई बने दिवार.. रंगिनियाँ बिखरता रहे लब में हो मुस्कान ओ मेरे मीत,मेरे यार. चढ़ता जाये मस्ती उतर न पाये होली मे ये रंगीन खुमार … दिल से दिल मिले ‘मसखरे’सुन लो जरा रहे खुशियाँ बेशुमार .
राज मसखरे
होली है बेरंग-डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’
सभी रंग मिलावट के, होली है बेरंग! नहीं नेह की पिचकारी नहींभीगता अंग! भय,शोक,चिंता तनाव, प्रीत,प्रेम नहीं सद्भाव, रिश्तों की डोरी टूटी जैसे कटी पतंग! होली है………… टेसू और पलाश सिसकते, खुशबू को अब फूल तरसते, पेड़ों पर डाली के पत्ते गुम है पतझड़ संग होली है बेरंग… कागा करता काँव-काँव, आम्रकुंज की उजड़ी छाँव, फिर कोयल की हूक से, क्यों होते हम दंग! होली है बेरंग…… पकवानों के थाल नहीं, ढोल,मांदर, झाल नहीं, चरस,गाँजे और शराब में, फीकी पड़ गयी भंग! होली है बेरंग… —डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’
होली के रंग – केवरा यदु “मीरा “
अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग । साँवरे रंग मोहे भाये भाये न कोई रंग ।।
अब बरस– आ गई ग्वालन की छोरी। अनगिन मटकी में रंग घोरी।।
रंग में केसर भी घोरे अब कर देंगे बदरंग।। अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।
बंशी बजा कर श्याम बुलाते । छुप कर फिर वो रंग लगाते।।
छुप कर मैं भी रंग डालूंगी रह जाये कान्हा दंग । अब के बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।
फगुवा गीत गाते फगुवारे। छम छम नाचत नंद दुलारे।।
बजे नगाड़े ढ़ोल देखो और बजे मृदंग । अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।
रंग में उनके कबसे रंगी हूँ। साँवर प्रीत में मैं पगी हूँ।।
जन्म जन्म तक छूटे न बस चढ़े श्याम का रंग । अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।
केवरा यदु “मीरा “ राजिम
रंगो का त्योहार होली – रिखब चन्द राँका
होली पर्व रंगों का त्योहार, पिचकारी पानी की फुहार। अबीर गुलाल गली बाजार, मस्तानो की टोली घर द्वार।
हिरण्यकश्यप का अभिमान, होलिका अग्नि दहन कुर्बान। प्रहलाद की प्रभु भक्ति महान, श्रद्धा व विश्वास का सम्मान।
अग्नि देव का आदर सत्कार, वायु देव का असीम उपकार। लाल चुनरिया भी चमकदार, प्रह्लाद को भक्ति का पुरस्कार।
मस्तानों की टोली रंगो के साथ, वर्धमान के पिचकारी रंग हाथ । लाल,हरा, नीला,पीला रंग माथ, राधा रंगी प्रेम रंग में कृष्ण नाथ।
स्वादिष्ट व्यंजन गुंजियाँ तैयार, पकौड़ी खाजा,पापड़ी भरमार। गेहूँ चने की बालियाें की बहार अाग पके धान प्रसाद,स्वीकार।
जग में प्रेम सुधा रस बरसाना, दीन दु:खियों को गले लगाना। सद्भाव के प्रेम दीपक जलाना , होली पर्व ‘रिखब’ संग तराना।
रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’ जयपुर राजस्थान
ब्रज में उड़े ला गुलाल – बाँके बिहारी
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली खेले होली हो खेले होली नयना लड़ावे नंदलाल,ब्रज पिया खेले होली ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।
सखी सब नाचे ढोल बजावे एक दूजे पर रंग बरसावे साथ रंग लगाये गोपाल ब्रज पिया खेले होली हो ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।
धुरखेल करत हैं वृषभानु दुलारी जोरा जोरी करे मोरे रास बिहारी पकड़े बईया मोहन रंगे राधे की गाल ब्रज पिया खेले होली ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।
पिसी- पिसी भाँग श्यामा प्यारी को पिलावे मारी-मारी मटकी रसिया सखी को बुलावे पिचकारी से मचाए धमाल ब्रज पिया खेले होली ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।
कभी यमुना तट कभी बगीया में होली में रंग डाले रसिया मोरे अंगिया में पंचमेवा खिलावे नंदलाल ब्रज पिया खेले होली ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।
मोहे मन भावे ब्रज की होली बाल-सखा सब सखीयन की टोली देखो प्यारे सबको करते निहाल ब्रज पिया खेले होली ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।
बाँके बिहारी बरबीगहीया
अंग – अंग में रंग चढ़ाया – सन्तोष कुमार प्रजापति
विधा – गीत (सरसी छन्द)
प्यारा यह मधुमास सुहावन , काम तनय सब जान I अंग – अंग में रंग चढ़ाया , मदन तीर ले तान Il तुम्हें बताऊँ कैसे सजना , मन की अपने पीर I होली का मनभावन उत्सव ,
तुम बिन धरे न धीर ll आ जाओ फिर होली खेलें , भाँग पिलाओ छान I अंग – अंग में … …. … मुझे पड़ोसी ऐसे ताकें , जैसे सोना चोर l मला गुलाल बहुत गालों में , बदन रंग में बोर Il तन मेरा ये दहक रहा है , मन भी बहका मान l अंग – अंग में … …. ….. मुझे चैन मत पड़ता साजन , होली करे कमाल I बुरा न मानो कह – कह सबने , चोली करदी लाल ll आँखें मेरी हुईं शराबी , बदल गई मम तान l अंग – अंग में … …. …. हरा , लाल , नीला औ पीला , धानी उड़े गुलाल I तन मेरे मकरन्द टपकता , भ्रमर देख तो हाल Il यौवन की मदहोशी छायी , चढ़ा प्रेम परवान l अंग – अंग में … …. …. तुम मुझको मैं तुम्हें रंग दूँ , फिर गायेंगे फाग l राधा तेरी राह निहारे , माधव आओ भाग Il तुम बिन मटकी मेरी अटकी , करो फोड़ सम्मान I अंग – अंग में … …. … स्वरचित
सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
खुशियों का त्योहार होली – मनी भाई
धूल उड़ रहे आसमान में उड़ रहा अबीर गुलाल है भेदभाव कटुता को मिटाकर फैलाता चहुँओर प्यार है ऐसा पावन पर्व है होली खुशियों का त्योहार है ऐसा पावन पर्व हमारा रंगो का त्योहार है ।।
धुरखेल हो गया सुबह में देखो शाम को उड़ेगे रंग सज- धज कर निकलेगी सजनीया डालेंगी पिया पे रंग पिचकारी में रंग भरे हैं और रंगो का फूहार है ऐसा पावन पर्व है होली खुशियों का त्योहार है ।।
क्या बच्चे क्या बूढ़े को भी देखो मचा रहे हुड़दंग उम्र की सीमा तोड़ प्यार से झुमे सभी के संग ढोलक, झांझ ,मंजीरो की धुन का देखो अद्भुत झंकार है ऐसा पावन पर्व है होली खुशियों का त्योहार है ।।
पेड़,पौधे पशु -पक्षी पर छाया होली का खुमार है बेसनबरी,फुलौरी,भभरा का विशेष आहार है कांजी,भाँग ,ठंढाई पीने को भीड़ जुटा भरमार है ऐसा पावन पर्व है होली खुशियों का त्योहार है ।।
अंधकार भगा प्रकाश को लाता होली का त्योहार है कच्चे अन्न को पका-पकाकर बनता होला भरमार है ब्रज रसिया और अवध पिया भी लूटाते सभी पर प्यार हैं ऐसा पावन पर्व है होली खुशियों का त्योहार है ऐसा पावन पर्व हमारा रंगो का त्योहार है
मनी भाई
मधुमासी रंग – सुशीला जोशी
नव रंगों से भर गए ,वन उपवन अरु बाग केसरिया टेसू हुआ , ढाक लगावे आग ।।
मधुमासी मद से भरे सारे तरु कचनार मस्ती हास् विलास ले ,आयी मधुप बाहर ।।
ऋतुराज की सुगन्धसे ,मदमाया परिवेश शुक पिक कोकिल कुजते , अपने बैन विशेष ।।
नटखट वासन्ती चले ,छेड़ करे बरजोर देख न पाई आज तक , अन्तस् मन का चोर ।।
निर्मल नभ से झांकता , करता विधु विनोद ढोल ढप और गीत से , करता मोद प्रमोद ।।