Author: कविता बहार

  • बापू जी तुम्हें नही भूले

    बापू जी तुम्हें नही भूले

    बापू जी तुम्हें नही भूले

    mahatma gandhi

    हम भूल गये रे हर बात,
    बापू जी तुम्हें नही भूले।
    सब कुछ किया देश के नाम
    तुम्हारे सब काम नही भूले।।
    हम भूल गये रे……………।

    संघर्ष करके जीना सिखाया,
    अपनें वतन को बचाया।
    सब कुछ हमनें पाया मगर,
    तेरे साथ ना झूला कभी झूले।।
    हम भूल गये रे……………..।

    उठाके अपनें गोद में हमको
    सबको गले से लगाया।
    खेलें हैं कितनें खेल मगर,
    तेरे साथ ना खेल कभी खेले।।
    हम भूल गये रे…………….।

    तेरे सत्य-अहिंसा को लेकर
    उस सीमा में ले जायेंगें।
    हम सीनातान रहेंगें वहाँ,
    जिस राह में दुश्मन हैं फैले।।
    हम भूल गये रे……………।

    उमेश श्रीवास”सरल”
    मु.पो.+थाना-अमलीपदर
    जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
    पिन-493891
    मोबाईल-9302927785
                9406317782

  • देखो न मुझे बुखार है

    देखो न मुझे बुखार है

    देखो न मुझे बुखार है
    या ये तेरा ही खुमार है
    दिल को तेरा रोग लग गया
    दिल बेचारा बीमार है

    धड़कने बढ़ें और कभी थमे
    देखूँ जो तुम्हें तो बोलो क्या हुआ हमें
    हर जगह ही तुम दिखते हो मुझे
    दिल मेरा पुकारता है हर घड़ी तुझे
    क्या ये सच है या है ये भरम
    क्या तुझे भी ऐतबार है
    देखो न मुझे बुखार है….

    तेरे हाल का तुझसे क्या कहूँ
    जानती हूँ तेरे दिल में मैं ही मैं रहूँ
    बहके हैं कदम सांसे हैं गरम
    तेरे जैसा ही तो मेरा हाल है सनम
    बढ़ती धड़कन बार बार है
    देखो न मुझे बुखार है…

    जागता रहूँ नींद उड़ गई
    बहकी बहकी सी क्यों मेरी चाल हो गई
    भूख प्यास भी लगती नहीं अब
    कौन है वो कहके मुझसे पूछते हैं सब
    रहता दिल में कौन यार है
    देखो न मुझे बुखार है…

    इश्क़ का नशा हमपे चढ़ गया
    दिन ब दिन यूँहीं हमारा रोग बढ़ गया
    लाईलाज है ये दिल की है लगी
    बदली है मोहब्बतों से सबकी ज़िन्दगी
    ‘चाहत’ दिल में बेशुमार है
    देखो न मुझे बुखार है…..

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी

  • वतन का नमक

    वतन का नमक

    इस जहां से सुकून,हमने कभी पाया तो है
    चमन का कोई गुल,हिस्से मेरे आया तो है


    लफ़्ज मेरे लड़खड़ाये,सामने तूफां पाकर
    फिर भी तरन्नुम में , गीत कोई गाया तो है
    तख़्त पर बैठे हमने,तपन के दिन बिताये
    जरा-सा प्रेम का,बादल कभी छाया तो है


    मंजिलों रोज ही बनते,गमों के आशियाने
    दरकते खण्डहरों को,हमनेभी ढाया तो है
    इस खुले आसमां तले,दिन क्यों गुजारूं?
    सिर छिपाने को , दरख़्तों का साया तो है


    दिल तड़फता रहा , बड़ा बेचैन-सा होकर
    बेसहारे को दुआ , ये कही  से लाया तो है
    गंवाया तो करूँ क्यों , अफ़सोस  आज मैं
    इस वतन का नमक,आज तक खाया तो है

    ✍––धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई,दौसा(राज.)

  • ओ मोरे घनश्याम साँवरे

    ओ मोरे घनश्याम साँवरे

    ओ मोरे घनश्याम साँवरे
    ओ मोरे घनश्याम साँवरे
    बिन दर्शन हम हो गए बावरे
    बिन दर्शन हम हो गए बावरे
    मोरे घनश्याम ओ मोरे श्याम
    ओ मेरे….
    दूखन लागे हमरे नैना
    तुम बिन कान्हा अब नहीं चैना
    दिन गुज़रे न कटती रैना
    सुबह से हो गई अब तो शाम रे
    ओ मोरे…..
    गलियन गलियन ढूँढत आई
    ओ मोरे मोहन रट है लगाई
    बेचैनी तुमने है बढ़ाई
    मुश्किल में हैं हमरे प्राण रे
    ओ मोरे….
    जब से तोरी प्रीत जगी है
    ‘चाहत’ वाली अगन लगी है
    तन मन को बस लगन लगी है
    जिव्या पे बस तुम्हरा नाम रे
    ओ मोरे………


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी

  • सूनापन पर गीत

    सूनापन पर गीत

    आजाओ न तुम बिन सूना सूना लगता है
    न जाओ न तुम बिन सूना सूना लगता है
    जिसकी डाली पे हम दोनों झूला करते थे
    वो झूला वो बरगद सूना सूना लगता है
    दिन में तुम्हारा साथ रात में ख़्वाब होते थे
    बिना तुम्हारे सावन सूना सूना लगता है
    जिन आँखों में सदा तुम्हारा अक्स समाया था
    उन आँखों का काजल सूना सूना लगता है
    तेरे साथ जो जलवा जो अंदाज़ हमारा था
    अपने दिल का ही साज़ सूना सूना लगता है
    तेरे होने से हर सू एक चहल पहल सी थी
    मुझको अब ये घर बार सूना सूना लगता है
    जब तक तेरी ‘चाहत’ का अहसास नहीं भर दूँ
    हर इक ग़ज़ल हर गीत सूना सूना लगता है

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी