छत्तीसगढ़ का वैभव -शशिकला कठोलिया

छत्तीसगढ़ का वैभव  छत्तीसगढ़ी कविता कहलाता धान का कटोरा ,है प्रान्त वनाच्छादित ,महानदी ,इंद्रावती, हसदो, शिवनाथ करती सिंचित, छत्तीसगढ़ की गौरवशाली, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जनजीवन पर दिखता, सामाजिकता व इंसानियत,हुए हैं छत्तीसगढ़ में,बड़े बड़े साहित्यकार,लोचन…

जब भी सुनता हूँ नाम तेरा- निमाई प्रधान’क्षितिज

जब भी सुनता हूँ नाम तेरा तेरे आने की आहटें… बढ़ा देती हैं धड़कनें मेरी !मैं ठिठक-सा जाता हूँ-जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!! तेरे इश्क़ के जादूओं का असर..यूँ रहामेरी…
हाइकु

निर्मल नीर के हाइकु

निर्मल नीर के हाइकु नूतन वर्ष~चारों तरफ़ छायाहर्ष ही हर्ष काम न दूजा~सबसे पहले होगायों की पूजा है अन्नकूट~कोई न रहे भूखाजाये न छूट भाई की दूज~पवित्र है ये रिश्ताइसको…

नई राह पर कविता- बांकेबिहारी बरबीगहीया

नई राह पर कविता धन को धर्म से अर्जित करनातुम परम आनंद को पाओगे।सुख, समृद्धि ,ऐश्वर्य मिलेगी तुम धर्म ध्वजा फहराओगे।जीवन खुशियों से भरा रहेगायश के भागी बन जाओगे ।अपने धन…

कवयित्री विजिया गुप्ता समिधा -बस यही ख्वाहिश है मेरी

बस यही ख्वाहिश है मेरी इक कली की उम्र पाऊँ,फिर चमन में खिलखिलाऊँ,किसी भ्रमर का प्यार पाऊँ,तितलियों को भी लुभाऊँ,माली का भी हित निभाऊं,मुरझा कर फिर बिखर जाऊँ,याद बनकर याद…

स्त्री की व्यथा – विजिया गुप्ता समिधा

स्त्री की व्यथा स्त्री की व्यथा वह भी एक स्त्री थी।उसकी व्यथा,मुझे ,मेरे अंतर्मन को,चीरकर रख देती है।टुकड़े-टुकड़े हो बिखर जाती है,मेरे अंदर की नारी।जब महसूस करती है ,उसकी वेदना ।कितना…

मातर तिहार पर कविता-गोकुल राम साहू

            मातर तिहार पर कविता चलना दीदी चलना भईया,मातर तिहार ला मनाबोन।बड़े फजर ले सुत उठ के,देवी देवता ला जगाबोन।। हुँगूर धूप अगर जलाके,देवी देवता…
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कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला कैसी दीवाली किसकी दीवालीजेब भी खाली बैंक भी खाली हर तरफ हुआ है धूंआ-धूंआपर्यावरण भी दूषित है हुआ जीव-जन्तु और पशु-पखेरआतिशी दहशत में हुए ढेर…

मिल कर दिवाली को मनाएँ हम- प्रवीण त्रिपाठी

मिल कर दिवाली को मनाएँ हम चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।* *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।* *मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों…

कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा दीपावली की पावन बेलामहकी जूही, खिल गई बेलाधनवंतरि की रहे छायानिरोगी रहे हमारी कायारूप चतुर्दशी में निखरे ऐसेतन हो सुंदर मन भी सुधरे…